तुलनात्मक आलोचना ( Comparative Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप तुलनात्मक आलोचना में दो लेखकों की या एक ही लेखक की दो रचनाओं में तुलना की जाती है | जिस किसी लेखक की या उसकी किसी रचना की तुलनात्मक आलोचना करनी होती है तब उस लेखक के जीवन और लेखन के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है | यही सब व्याख्यात्मक … Read more

शास्त्रीय आलोचना ( Classical Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप शास्त्रीय आलोचना को अंग्रेजी में ‘एकडेमिक क्रिटिसिज्म’ भी कहते हैं। इस आलोचना पद्धति के अन्तर्गत आलोचक लक्षण ग्रंथों में वर्णित काव्यशास्त्रीय नियमों के आधार पर साहित्यिक रचना का मूल्यांकन करता है। उदाहरण के रूप में यदि हम हिन्दी के किसी महाकाव्य का परीक्षण करना चाहें तो हम आचार्य मम्मट और विश्वनाथ द्वारा … Read more

पद्मावत : नखशिख खण्ड ( Padmavat : Nakhshikh Khand )

का सिंगार ओहि बरनौं राजा। ओही का सिंगार ओही पै छाजा।। प्रथमहि सीस कस्तूरी केसा। बलि बासुकि को औरु नरेसा || भंवर केश वह मालती रानी। बिसहर लुरहीं लेहिं अरघानी।। बेनी छोरी झारु जौं बारा। सरग पातर होइ अंधियारा || कंवल कुटिल केस नाग करे। तरंगहिं अंतिम भुंग बिसारे॥ बेधे जानु मलैगिरि बासा। सीस चढ़े … Read more

विद्यापति पदावली : बसंत ( Vidyapati Padavali : Basant )

माघ मास सिरि पंचमी गँजाइलि नवम मास पंचम हरुआई । अति घन पीड़ा दुःख बड़ पाओल बनसपती भेति धाई हे ।। सुभ खन बेरा सुकुल पक्ख हे दिनकर उदित – समाई । सोरह सम्पुन बतिस लखन सह जनम लेल ऋतुराई हे ।। नाचए जुबतिजना हरखित मन जनमल बाल मधाई हे। मधुर महारस मंगल गावए मानिनि … Read more

विद्यापति पदावली : नखशिख खण्ड ( Vidyapati Padavali : Nakhshikh Khand )

पीन पयोधर दूबरि गता । मेरु उपजल कनक-लता || ए कान्हु ए कान्हु तोरि दोहाई । अति अपूरुब देखलि साई || मुख मनोहर अधर रंगे। फूललि मधुरी कमल संगे || लोचन – जुगल भृंग अकारे । मधुक मातल उड़ए न पारे|| भउँहक कथा पूछह जनू । मदन जोड़ल काजर-धनू || भन विद्यापति दूति बचने । … Read more

विद्यापति पदावली : वंदना ( Vidyapati Padavali : Vandana )

नन्दक नन्दन कदम्बक तरु-तर धिरे धिरे मुरलि बजाव । समय- संकेत-निकेतन बइसल बेरि बेरि बोलि पठाव । सामरि, तोरा लागि ‘अनुखन विकल मुरारि । जमुना के तिर उपवन उद्वेगल फिरि फिरि ततहि निहारि । गोरस बेंचए अवइत जाइत जनि जनि पूछ बनमारि । तोहे मतिमान, सुमति, मधुसूदन बचन सुनह किछु मोरा । मनइ विद्यापति सुन … Read more

‘पद्मावत’ का महाकाव्यत्व ( Padmavat Ka Mahakavyatv )

‘पद्मावत’ ( Padmavat ) मालिक मुहम्मद जायसी ( Malik Mohammad Jaysi ) द्वारा रचित सर्वाधिक प्रसिद्ध सूफी महाकाव्य है | तथापि इस रचना के काव्य-रूप को लेकर विद्वानों में मतभेद है | वस्तुत: उन्होंने अपना काव्य -ग्रन्थ में भारतीय प्रबंध-काव्य शैली व मनसवी शैली के ; दोनों का निर्वहन किया है | इसके साथ-साथ उन्होंने … Read more

कबीर की भक्ति-भावना ( Kabir Ki Bhakti Bhavna )

‘भक्ति’ शब्द की उत्पत्ति ‘भज्’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है – भजना अर्थात् भजन करना | ‘ ‘भक्ति’ की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं : (क) ‘शांडिल्य भक्ति सूत्र’ के अनुसार ईश्वर में परम अनुरक्ति का नाम ही भक्ति है | (ख) शंकराचार्य ने उत्कंठा युक्त निरंतर स्मृति को भक्ति कहा है | … Read more

कबीर की रहस्य-साधना ( रहस्यानुभूति )

साहित्य विशेषतः काव्य के क्षेत्र में रहस्यवाद का अर्थ आत्मा-परमात्मा के संबंधों की व्याख्या से लिया जाता है | जब कवि अपने आध्यात्मिक विचारों व अलौकिक शक्ति से अपने संबंध की चर्चा करता है, रहस्यवादी कहलाता है | रहस्यवाद का अर्थ व परिभाषा रहस्यवाद कोई दाशनिक सिद्धान्त नहीं है, वह एक मनोदशा मात्र है। इसको … Read more

फ्रायड का मनोविश्लेषणवाद ( Psychoanalysis )

‘मनोविश्लेषणवाद’ ( Psychoanalysis ) शब्द दो शब्दों के मेल से बना है — ‘मनोविश्लेषण’ तथा ‘वाद’ | ‘मनोविश्लेषण’ का सामान्य अर्थ है – मानव मन का विश्लेषण करना तथा ‘वाद’ का अर्थ है – पद्धति या सिद्धांत | अतः मनोविश्लेषणवाद ( Psychoanalysis ) वह पद्धति है जिसके द्वारा मानव-मन का विश्लेषण किया जाता है | … Read more

मार्क्सवादी आलोचना ( Marxist Criticism )

कार्ल मार्क्स ने जो सिद्धांत दिया उसका राजनीति के साथ-साथ साहित्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ा | मूलत: कार्ल मार्क्स का सिद्धांत अर्थवादी है | इसलिए कुछ आलोचक मानते हैं कि मार्क्सवाद का साहित्य से कोई संबंध नहीं | लेकिन यह तर्कसंगत नहीं है क्योंकि साहित्य जीवन की ही अभिव्यक्ति है | दूसरे, मार्क्स ने … Read more

रूपवाद ( Formalism )

रूपवाद ( Formalism ) का सिद्धांत रूस में विकसित हुआ । इसलिए इसे रूसी-रूपवाद ( Russian Formalism ) भी कहा जाता है। साहित्यिक समीक्षा की इस प्रणाली से संबंद्ध लोगों में बोरिस इकेनबाम, विक्टर श्केलोवस्की, रोमन जैकोब्सन, बोरिस तोयस्जेवस्की और तानिनोव उल्लेख्य हैं। इसके दो केंद्र थे- मास्को और पीटर्सबर्ग । मास्को में इस संस्थान … Read more

क्रोचे का अभिव्यंजनावाद ( Expressionism )

पाश्चात्य काव्यशास्त्र में स्वछंदतावाद के बाद अभिव्यंजनावाद ( Expressionism ) का अभ्युदय हुआ | अभिव्यंजनावाद का प्रवर्तन इटली के निवासी बेनेदेतो क्रोचे ने किया | क्रोचे का समय 1866 से 1952 है | उसने अपनी पुस्तक ‘एस्थैटिक्स‘ में अभिव्यंजनावाद ( Expressionism ) से सम्बंधित अपने विचार प्रस्तुत किए | उसने केवल साहित्य ही नहीं बल्कि … Read more

स्वच्छन्दतावाद ( Romanticism )

18वीं शताब्दी तक पाश्चात्य साहित्यधारा कुछ काव्य-नियमों में जकड़ी हुई थी। लेकिन 19वीं शताब्दी के आरम्भ में इन काव्य-नियमों के प्रति विद्रोह के फलस्वरूप एक नवीन साहित्यधारा का अभ्युदय हुआ। विद्वानों ने इस नवीन काव्यधारा को स्वच्छन्दतावाद ( Romanticism ) की संज्ञा प्रदान की। रूसो इस विचारधारा के प्रवर्तक थे। उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थी … Read more

अभिजात्यवाद ( Classicism )

अभिजात्यवाद अंग्रेजी भाषा के Classicism का हिंदी रूपांतरण है | Classicism शब्द Classic शब्द से बना है जिसका अर्थ है — सर्वश्रेष्ठ, अद्वितीय व गंभीरतम | साहित्य के क्षेत्र में इसका अर्थ है — ऐसा साहित्य जिसकी समता कोई अन्य न कर सके | साहित्य के क्षेत्र में ‘क्लासिक‘ शब्द की व्याख्या करते हुए एक … Read more