तुलनात्मक आलोचना ( Comparative Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप तुलनात्मक आलोचना में दो लेखकों की या एक ही लेखक की दो रचनाओं में तुलना की जाती है | जिस किसी लेखक की या उसकी किसी रचना की तुलनात्मक आलोचना करनी होती है तब उस लेखक के जीवन और लेखन के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है | यही सब व्याख्यात्मक … Read more

शास्त्रीय आलोचना ( Classical Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप शास्त्रीय आलोचना को अंग्रेजी में ‘एकडेमिक क्रिटिसिज्म’ भी कहते हैं। इस आलोचना पद्धति के अन्तर्गत आलोचक लक्षण ग्रंथों में वर्णित काव्यशास्त्रीय नियमों के आधार पर साहित्यिक रचना का मूल्यांकन करता है। उदाहरण के रूप में यदि हम हिन्दी के किसी महाकाव्य का परीक्षण करना चाहें तो हम आचार्य मम्मट और विश्वनाथ द्वारा … Read more

फ्रायड का मनोविश्लेषणवाद ( Psychoanalysis )

‘मनोविश्लेषणवाद’ ( Psychoanalysis ) शब्द दो शब्दों के मेल से बना है — ‘मनोविश्लेषण’ तथा ‘वाद’ | ‘मनोविश्लेषण’ का सामान्य अर्थ है – मानव मन का विश्लेषण करना तथा ‘वाद’ का अर्थ है – पद्धति या सिद्धांत | अतः मनोविश्लेषणवाद ( Psychoanalysis ) वह पद्धति है जिसके द्वारा मानव-मन का विश्लेषण किया जाता है | … Read more

मार्क्सवादी आलोचना ( Marxist Criticism )

कार्ल मार्क्स ने जो सिद्धांत दिया उसका राजनीति के साथ-साथ साहित्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ा | मूलत: कार्ल मार्क्स का सिद्धांत अर्थवादी है | इसलिए कुछ आलोचक मानते हैं कि मार्क्सवाद का साहित्य से कोई संबंध नहीं | लेकिन यह तर्कसंगत नहीं है क्योंकि साहित्य जीवन की ही अभिव्यक्ति है | दूसरे, मार्क्स ने … Read more

रूपवाद ( Formalism )

रूपवाद ( Formalism ) का सिद्धांत रूस में विकसित हुआ । इसलिए इसे रूसी-रूपवाद ( Russian Formalism ) भी कहा जाता है। साहित्यिक समीक्षा की इस प्रणाली से संबंद्ध लोगों में बोरिस इकेनबाम, विक्टर श्केलोवस्की, रोमन जैकोब्सन, बोरिस तोयस्जेवस्की और तानिनोव उल्लेख्य हैं। इसके दो केंद्र थे- मास्को और पीटर्सबर्ग । मास्को में इस संस्थान … Read more

क्रोचे का अभिव्यंजनावाद ( Expressionism )

पाश्चात्य काव्यशास्त्र में स्वछंदतावाद के बाद अभिव्यंजनावाद ( Expressionism ) का अभ्युदय हुआ | अभिव्यंजनावाद का प्रवर्तन इटली के निवासी बेनेदेतो क्रोचे ने किया | क्रोचे का समय 1866 से 1952 है | उसने अपनी पुस्तक ‘एस्थैटिक्स‘ में अभिव्यंजनावाद ( Expressionism ) से सम्बंधित अपने विचार प्रस्तुत किए | उसने केवल साहित्य ही नहीं बल्कि … Read more

स्वच्छन्दतावाद ( Romanticism )

18वीं शताब्दी तक पाश्चात्य साहित्यधारा कुछ काव्य-नियमों में जकड़ी हुई थी। लेकिन 19वीं शताब्दी के आरम्भ में इन काव्य-नियमों के प्रति विद्रोह के फलस्वरूप एक नवीन साहित्यधारा का अभ्युदय हुआ। विद्वानों ने इस नवीन काव्यधारा को स्वच्छन्दतावाद ( Romanticism ) की संज्ञा प्रदान की। रूसो इस विचारधारा के प्रवर्तक थे। उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थी … Read more

अभिजात्यवाद ( Classicism )

अभिजात्यवाद अंग्रेजी भाषा के Classicism का हिंदी रूपांतरण है | Classicism शब्द Classic शब्द से बना है जिसका अर्थ है — सर्वश्रेष्ठ, अद्वितीय व गंभीरतम | साहित्य के क्षेत्र में इसका अर्थ है — ऐसा साहित्य जिसकी समता कोई अन्य न कर सके | साहित्य के क्षेत्र में ‘क्लासिक‘ शब्द की व्याख्या करते हुए एक … Read more

व्यावहारिक आलोचना ( Practical Criticism )

व्यावहारिक आलोचना ( Practical Criticism ) के प्रतिपादन से पूर्व रिचर्ड्स काव्य की भाषा के बारे में गंभीर चिन्तन कर चुके थे। उन्होंने काव्य की भाषा के दो प्रयोग स्वीकार किए हैं। इनमें से एक के अधीन वैज्ञानिक सत्य का निर्देश होता है और दूसरे में कवि की अनुभूतियों का सम्प्रेक्षण होता है। भाषा के … Read more

आई ए रिचर्ड्स का काव्य-मूल्य सिद्धान्त

आई ए रिचर्ड्स ( I. A. Rechards ) अंग्रेजी आलोचना साहित्य के प्रसिद्ध आलोचकों में से एक हैं | उनका जन्म 26 जनवरी, 1893 में हुआ | उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान का अध्ययन किया | कालांतर में उन्होंने आलोचना जगत में पदार्पण किया | आलोचना जगत में आई ए रिचर्ड्स ( I. … Read more

मैथ्यू आर्नल्ड का आलोचना सिद्धांत

मैथ्यू आर्नल्ड मूलतः एक कवि थे परन्तु बाद में वे आलोचक के रूप में विख्यात हुए । उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में समाज, शिक्षा, धर्म और साहित्य-संस्कृति के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित समस्याओं का विवेचन किया। उनका कहना था कि-साहित्य जीवन की आलोचना है। उनका विचार था कि जीवन से असम्बद्ध साहित्यिक सौन्दर्य की विवेचना … Read more

अरस्तू का त्रासदी सिद्धांत

अरस्तू ने काव्य के प्रमुख पाँच भेद स्वीकार किए हैं। ये हैं — (1) महाकाव्य (2) त्रासदी (3) कामदी (4) रौद्र स्तोत्र तथा (5) गीतिकाव्य । इन सबमें वे महाकाव्य को श्रेष्ठ मानते हैं। वे नाटक के दो भेद मानते हैं-कामदी तथा त्रासदी। कामदी में प्रायः सुखद घटनाएँ होती हैं तथा इसका अन्त भी सुखद … Read more

निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत

इलियट बीसवीं शताब्दी के अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि और आलोचक थे। कॉलरिज के बाद इलियट का ही नाम आता है। इलियट ने स्वयं को क्लासिकवादी कहा है। क्लासिक से उनका मतलब था ‘परिपक्वता’ या ‘प्रौढ़ता’ । क्लासिकवाद के लिए उन्होंने मस्तिष्क की प्रौढ़ता, शरीर की प्रौढ़ता और भाषा की प्रौढ़ता को आवश्यक माना है। मस्तिष्क … Read more

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत पाश्चात्य काव्य-शास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | कॉलरिज रोमांटिक युग के एक महत्त्वपूर्ण कवि तथा आलोचक थे | उनका जन्म 1772 ईस्वी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा ‘क्राइस्टस चिकित्सालय’ तथा कैम्ब्रिज में हुई। विद्यार्थी जीवन में ही कॉलरिज में एक महान् कवि एवं आलोचक के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से … Read more

विलियम वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत

विलियम वर्ड्सवर्थ का आधुनिक पाश्चात्य काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है | उसने उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में नव्यशास्त्रवाद (Neoclassicism) से सम्बन्ध विच्छेद करके एक सर्वथा नवीन विचारधारा को जन्म दिया। विलियम वर्ड्सवर्थ के इन विचारों को पाश्चात्य काव्यशास्त्र में स्वच्छंदतावाद के नाम से जाना जाता है | उनके विचार उनकेप्रसिद्ध काव्य-संग्रह Lyrical Ballads के द्वितीय … Read more