भारतेन्दु युग : प्रमुख कवि व विशेषताएँ ( Bhartendu Yug : Pramukh Kavi V Visheshtayen )

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ( Bhartendu Harishchandra ) आधुनिक युग के प्रवर्त्तक हैं। उनके आगमन से हिन्दी कविता में एक नया युग आरम्भ होता है। इस युग को साहित्यिक पुनरुथान, राष्ट्रीय चेतनापरक युग, सुधारवादी युग और आदर्शवादी युग कहा गया है। इस युग में रीतिकालीन श्रृंगार-प्रधान काव्य के स्थान पर सामान्य जनजीवन की विषय-वस्तु पर आधारित जनहित … Read more

तुलनात्मक आलोचना ( Comparative Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप तुलनात्मक आलोचना में दो लेखकों की या एक ही लेखक की दो रचनाओं में तुलना की जाती है | जिस किसी लेखक की या उसकी किसी रचना की तुलनात्मक आलोचना करनी होती है तब उस लेखक के जीवन और लेखन के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है | यही सब व्याख्यात्मक … Read more

शास्त्रीय आलोचना ( Classical Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप शास्त्रीय आलोचना को अंग्रेजी में ‘एकडेमिक क्रिटिसिज्म’ भी कहते हैं। इस आलोचना पद्धति के अन्तर्गत आलोचक लक्षण ग्रंथों में वर्णित काव्यशास्त्रीय नियमों के आधार पर साहित्यिक रचना का मूल्यांकन करता है। उदाहरण के रूप में यदि हम हिन्दी के किसी महाकाव्य का परीक्षण करना चाहें तो हम आचार्य मम्मट और विश्वनाथ द्वारा … Read more

अयोध्यासिंह उपाध्याय का साहित्यिक परिचय

जीवन परिचय — श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय खड़ी बोली के आरंभिक कवियों में से एक हैं | श्री मैथिलीशरण गुप्त के बाद उन्हें द्विवेदी युग का सबसे बड़ा कवि माना जा सकता है | उनका जन्म सन 1865 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की निजामाबाद नामक नगर में हुआ | उनके पिता का नाम … Read more

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय

जीवन-परिचय — श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने गद्य तथा पद्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चला कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया घाट गाँव में 23 सितंबर, सन् 1908 … Read more

विभिन्न साहित्यकारों का जीवन परिचय

कबीरदास सूरदास तुलसीदास मीराबाई कवि बिहारी घनानंद रसखान भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बालमुकुंद गुप्त अयोध्यासिंह उपाध्याय महावीर प्रसाद द्विवेदी मैथिलीशरण गुप्त आचार्य रामचंद्र शुक्ल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राहुल सांकृत्यायन विद्यानिवास मिश्र हरिशंकर परसाई महादेवी वर्मा जयशंकर प्रसाद सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सुमित्रानंदन पंत रामधारी सिंह दिनकर भारत भूषण अग्रवाल सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ नरेश मेहता डॉ धर्मवीर … Read more

कामायनी : आनंद सर्ग ( जयशंकर प्रसाद ) – सार / कथ्य / प्रतिपाद्य या मूल भाव

‘आनंद’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ का अंतिम सर्ग है। पाठ्यक्रम में संकलित आनंद सर्ग का सार निम्नलिखित है : मानव के सहयोग से इड़ा ने सारस्वत प्रदेश को सुव्यवस्थित कर दिया था। जिसका परिणाम यह निकला कि वे सभी लोग आपसी वैमनस्य का त्याग कर एक परिवार की तरह मिलजुल कर रहने लगे … Read more

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( मैथिलीशरण गुप्त ) : सार /कथ्य / प्रतिपाद्य

‘सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया’ प्रस्तुत कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य ‘साकेत’ के आठवें सर्ग का अंश है। श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण चित्रकूट में ठहरे हुए हैं। सीता जी अपनी पर्णकुटी के आस-पास के पेड़-पौधों को पानी दे रही हैं। श्रीराम ने उस समय सीता को अपने इस संसार में आने के … Read more

भारत-भारती (मैथिली शरण गुप्त): सार /कथ्य / मूल भाव / मूल संवेदना या चेतना

‘भारत-भारती’ ( Bharat Bharati ) कविता मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख कविता है। कवि ने इस कविता को तीन खण्डों में विभाजित किया है – अतीत खण्ड, वर्तमान एवं भविष्य खण्ड। प्रस्तुत काव्यांश अतीत खण्ड का आरम्भिक भाग है। इस कविता में कवि ने भारतवर्ष की प्राचीन का चित्रण किया है। इसके माध्यम से कवि ने … Read more

जयद्रथ वध : सार / कथ्य / प्रतिपाद्य

‘जयद्रथ वध’ नामक कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। इसमें कवि ने जयद्रथ के वध तथा उसके पश्चात पांडव सेना में विजयोल्लास का चित्रण किया है। जब अभिमन्यु द्रोणाचार्य द्वारा रचित चक्रव्यूह में अकेला प्रवेश कर गया तब कौरव सेना के साथ योद्धाओं ने अभिमन्यु को चारों तरफ से घेर लिया | … Read more

पद्मावत : नखशिख खण्ड ( Padmavat : Nakhshikh Khand )

का सिंगार ओहि बरनौं राजा। ओही का सिंगार ओही पै छाजा।। प्रथमहि सीस कस्तूरी केसा। बलि बासुकि को औरु नरेसा || भंवर केश वह मालती रानी। बिसहर लुरहीं लेहिं अरघानी।। बेनी छोरी झारु जौं बारा। सरग पातर होइ अंधियारा || कंवल कुटिल केस नाग करे। तरंगहिं अंतिम भुंग बिसारे॥ बेधे जानु मलैगिरि बासा। सीस चढ़े … Read more

भाषा और वाक् ( Bhasha Aur Vaak )

सामान्य अर्थ में भाषा और वाक् में कोई विशेष अंतर नहीं हैं | आरम्भ में भाषा के लिये ही वाक् शब्द का प्रयोग किया जाता था | लेकिन कालांतर में भाषा और वाक् को दो भिन्न अर्थो में प्रयोग किया जाने लगा | भाषा — अतः भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने … Read more

भाषा और बोली में अंतर ( Bhasha Aur Boli Men Antar )

भाषा और बोली में स्पष्ट विभाजक रेखा खींचना बहुत कठिन कार्य है दोनों ही भावाभिव्यक्ति के माध्यम हैं । जब बोली किन्हीं कारणों से प्रमुखता प्राप्त कर लेती है तो भाषा कहलाती है | संक्षेप में बोली का स्वरूप भाषा की अपेक्षा सीमित होता है | वह भाषा की अपेक्षा छोटे भू-भाग में बोली जाती … Read more

विद्यापति पदावली : बसंत ( Vidyapati Padavali : Basant )

माघ मास सिरि पंचमी गँजाइलि नवम मास पंचम हरुआई । अति घन पीड़ा दुःख बड़ पाओल बनसपती भेति धाई हे ।। सुभ खन बेरा सुकुल पक्ख हे दिनकर उदित – समाई । सोरह सम्पुन बतिस लखन सह जनम लेल ऋतुराई हे ।। नाचए जुबतिजना हरखित मन जनमल बाल मधाई हे। मधुर महारस मंगल गावए मानिनि … Read more

विद्यापति पदावली : नखशिख खण्ड ( Vidyapati Padavali : Nakhshikh Khand )

पीन पयोधर दूबरि गता । मेरु उपजल कनक-लता || ए कान्हु ए कान्हु तोरि दोहाई । अति अपूरुब देखलि साई || मुख मनोहर अधर रंगे। फूललि मधुरी कमल संगे || लोचन – जुगल भृंग अकारे । मधुक मातल उड़ए न पारे|| भउँहक कथा पूछह जनू । मदन जोड़ल काजर-धनू || भन विद्यापति दूति बचने । … Read more