भारत-भारती (मैथिली शरण गुप्त): सार /कथ्य / मूल भाव / मूल संवेदना या चेतना

‘भारत-भारती’ ( Bharat Bharati ) कविता मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख कविता है। कवि ने इस कविता को तीन खण्डों में विभाजित किया है – अतीत खण्ड, वर्तमान एवं भविष्य खण्ड। प्रस्तुत काव्यांश अतीत खण्ड का आरम्भिक भाग है। इस कविता में कवि ने भारतवर्ष की प्राचीन का चित्रण किया है। इसके माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि समय का परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है। एक समय था जब भारतवर्ष विद्या, ज्ञान, कला-कौशल, सभ्यता और संस्कृति में विश्व में अग्रणी था। लेकिन आज भारत काफी पिछड़ गया है | वर्तमान दशा नितान्त शोचनीय हो गई है। आज भारत ज्ञान, शिक्षा व सभ्यता के लिए कदम-कदम पर दूसरों का मुँह ताकने के लिए विवश है।

लेकिन कवि का दृष्टिकोण निराशावादी नहीं है | वह भारतवासियों को गौरवशाली अतीत का स्मरण कराकर फिर से उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने का संदेश देना चाहता है | कवि के अनुसार उन्नति के बाद अवनति और अवनति के बाद उन्नति प्रकृति का नियम है। जिसकी उन्नति नहीं होगी तो उसकी अवनति कैसी। आज भारतवर्ष पतन के गर्त में गिरा हुआ है। वह उससे बाहर निकलने का प्रयास नहीं करता, अपितु दिन-प्रतिदिन और भी पतित होता जा रहा है।

कवि के अनुसार भारत के भाग्य का चाँद एक बार छिपकर पुनः उदय नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि यहाँ की सम्पूर्ण उन्नति सदा के लिए लुप्त हो चुकी है | इस अवनति को भारतवासियों ने अपना भाग्य मान लिया है | वे अकर्मण्य हो गए हैं |

इस प्रकार कवि ने इस कविता के माध्यम से भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है, वर्तमान दशा पर चिंता व्यक्त की है लेकिन साथ ही भारतवासियों को अवनति के इस गर्त से निकलने की प्रेरणा भी दी है |

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