भारतेन्दु युग : प्रमुख कवि व विशेषताएँ ( Bhartendu Yug : Pramukh Kavi V Visheshtayen )

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ( Bhartendu Harishchandra ) आधुनिक युग के प्रवर्त्तक हैं। उनके आगमन से हिन्दी कविता में एक नया युग आरम्भ होता है। इस युग को साहित्यिक पुनरुथान, राष्ट्रीय चेतनापरक युग, सुधारवादी युग और आदर्शवादी युग कहा गया है। इस युग में रीतिकालीन श्रृंगार-प्रधान काव्य के स्थान पर सामान्य जनजीवन की विषय-वस्तु पर आधारित जनहित … Read more

महत्त्वपूर्ण प्रश्न ( बी ए पंचम सेमेस्टर – हिंदी )

(1) यह प्रश्न व्याख्या से सम्बंधित होगा जिसके अंतर्गत विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्य-पुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता ‘ से चार पद्यांश व्याख्या के लिए दिए जाएंगे | परीक्षार्थी को किन्हीं दो की सप्रसंग व्याख्या करनी होगी | यह प्रश्न 14 ( 7+7 ) अंक का होगा | (i) हमारा देश ( Hamara Desh ) : अज्ञेय … Read more

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय / जीवन परिचय

जीवन-परिचय नागार्जुन जी हिंदी के जनवादी कवियों में प्रमुख स्थान रखते हैं | नागार्जुन इनका उपनाम है। इनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र है। हिंदी साहित्य जगत में ये ‘यात्री’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं | इनका जन्म बिहार के दरभंगा जनपद में स्थित सतलखा गाँव में सन् 1911 ई. में हुआ। इनकी प्रारमिय शिक्षा … Read more

स्वतंत्र जुबान ( Swatantra Juban ) : लीलाधर जगूड़ी

मेरी कल्पना में एक ऐसा भी दृश्य आया आत्मा के खोजी कुत्ते सफेद रंग को घसीट कर ला रहे थे और सफेद रंग के काले खून में घुसे हुए पक्ष व विपक्ष बाहर न आने के लिए छटपटा रहे थे एक आदमी जो हर बार मेरे साथ उठता-बैठता है अमूमन हम एक-दूसरे की जासूसी करते … Read more

परिवार की खाड़ी में ( Parivar Ki Khadi Mein ) : लीलाधर जगूड़ी

बिस्तरे के मुहाने पर जंगली नदी का शोर हो रहा है और थपेड़े मकान की नींव से मेरे तकिये तक आ रहे हैं काँपते हुए पेड़ों को – भांपते हुए पत्नी ने कहा – आँधी और फिर बक्से के पास लौट आयी | 1️⃣ मेरे उठते ही खिड़की के रास्ते कमरे से हाथ मिला रहा … Read more

वृक्ष हत्या ( Vriksh Hatya ) : लीलाधर जगूड़ी

मुझे भी देखने पड़ेंगे अपनी छोटी-छोटी आंखों से बड़े-बड़े कौतुक मैं ही हूँ वह स्प्रिंगदार कुर्सी के सामने टंगा हुआ वसंत का चित्र मुझे ही झाड़ने पड़ेंगे सब पत्ते मुझे ही उघाड़नी पड़ेंगी एक-एक ठूंठ की गयी-गुजरी आँखें सभ्यता फैलाने वाले एक आदमी से मिलकर ऐसा सोचते हुए मैं जब लौट रहा था 15 तारीख … Read more

जब आदमी आदमी नहीं रह पाता ( Jab Aadami Aadami Nahin Rah Pata ) : कुंवर नारायण

दरअसल मैं वह आदमी नहीं हूँ जिसे आपने जमीन पर छटपटाते हुए देखा था | आपने मुझे भागते हुए देखा होगा दर्द से हमदर्द की ओर | 1️⃣ वक्त बुरा हो तो आदमी आदमी नहीं रह पाता | वह भी मेरी ही और आपकी तरह आदमी रहा होगा | लेकिन आपको यकीन दिलाता हूँ वह … Read more

एक जले हुए मकान के सामने ( Ek Jale Hue Makan Ke Samne ) : कुंवर नारायण

शायद वह जीवित है अभी, मैंने सोचा इसने इनकार किया – मेरा तो कत्ल हो चुका है कभी का ! साफ दिखाई दे रहे थे उसकी खुली छाती पर गोलियों के निशान | 1️⃣ तब भी उसने कहा – ऐसे ही लोग थे, ऐसे ही शहर रुकते ही नहीं किसी तरह मेरी हत्याओं के सिलसिले … Read more

चक्रव्यूह ( Chakravyuh ) : कुंवर नारायण

युद्ध की प्रतिध्वनि जगाकर जो हजारों बार दुहराई गई, रक्त की विरुदावली कुछ और रंग कर लोरियों के संग जो गाई गई – उसी इतिहास की स्मृति, उसी संसार में लौटे हुए, ओ योद्धा, तुम कौन हो? 1️⃣ मैं नवागत वह अजित अभिमन्यु हूँ प्रारब्ध जिसका गर्भ ही से हो चुका निश्चित परिचित जिंदगी के … Read more

चिथड़ा-चिथड़ा मैं ( Chithda Chithda Main ) : रघुवीर सहाय

अब देखो बाजार में एक ढेर है चिथड़ों का और एक मैं हूं कि जिसके चिथड़े सब एक जगह नहीं वे मेरी धज्जियां कहां गई खोजकर लाओ उन्हें सिरहाने रात को रख जिनको सोया था | डप कागजों से | 1️⃣ मैं चिथड़े हो गया हूँ यही मेरी पहचान है – चिथड़ा चिथड़ा मैं मैं … Read more

आत्महत्या के विरुद्ध ( Atmhatya Ke Virudh ) : रघुवीर सहाय

जब से मैंने यह कविता लिखी है कट रहे जंगल के छोर पर राजमार्ग के समीप सब दिन मरे पड़े मिलते हैं नौजवान लाश का हुलिया सुन कोई जानता नहीं कौन था मान लिया जाता है कैसे मरा होगा मरने का कारण अब थोड़े ही शेष है हुलिया भी संक्षिप्त होता जा रहा है जितने … Read more

काला नंगा बच्चा पैदल ( Kala Nanga Bachcha Paidal ) : रघुवीर सहाय

काला नंगा बच्चा पैदल बीच सड़क पर जाता था और सामने से कोई मोटर दौड़ाये लाता था तभी झपट कर मैंने बच्चे को रस्ते से खींच लिया मेरे मन ने कहा कि यह तो तुमने बिल्कुल ठीक किया | 1️⃣ वहीं देखकर एक भिखारी मैंने उससे यों पूछा क्या यह साथ तुम्हारे है? वह पल … Read more

कोई एक और मतदाता ( Koi Ek Aur Matdata ) : रघुवीर सहाय

जब शाम हो जाती है तब खत्म होता है मेरा काम जब काम खत्म होता है तब शाम खत्म होती है रात तक दम तोड़ देता है परिवार मेरा नहीं एक और मतदाता का संसार रोज कम खाते-खाते ऊबकर प्रेमी-प्रेमिका एक पत्र लिख दे गए सूचना विभाग को दिन-रात सांस लेता है ट्रांजिस्टर लिए हुए … Read more

रामदास ( Ramdas ) : रघुवीर सहाय

चौड़ी सड़क गली पतली थी दिन का समय है घनी बदली थी रामदास उस दिन उदास था अंत समय आ गया पास था उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी | 1️⃣ धीरे-धीरे चला अकेले सोचा साथ किसी को ले ले फिर रह गया, सड़क पर सब थे सभी मौन थे सभी निहत्थे … Read more

धूप ( Dhoop ) : रघुवीर सहाय

देख रहा हूँ लंबी खिड़की पर रखे पौधे धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं हर साल की तरह गौरैया अबकी भी कार्निंस पर ला ला कर धरने लगी है तिनके हालांकि यह वह गोरैया नहीं यह वह मकान भी नहीं ये वे गमले भी नहीं, यह वह खिड़की भी नहीं कितनी सही है … Read more