युद्ध की प्रतिध्वनि जगाकर
जो हजारों बार दुहराई गई,
रक्त की विरुदावली कुछ और रंग कर
लोरियों के संग जो गाई गई –
उसी इतिहास की स्मृति,
उसी संसार में लौटे हुए,
ओ योद्धा, तुम कौन हो? 1️⃣
मैं नवागत वह अजित अभिमन्यु हूँ
प्रारब्ध जिसका गर्भ ही से हो चुका निश्चित
परिचित जिंदगी के व्यूह में फेंका हुआ उन्माद
बांधी पंक्तियों को तोड़
क्रमश: लक्ष्य तक बढ़ता हुआ जयनाद :
मेरे हाथ में टूटा हुआ पहिया,
पिघलती आग-सी संध्या,
बदन पर एक फूटा कवच,
सारी देह क्षत-विक्षत,
धरती-खून में जो सनी लथपथ लाश,
सिर पर गिद्ध-सा मंडला रहा आकाश…. 2️⃣
मैं बलिदान इस संघर्ष में
कटु व्यंग्य हूँ उस तर्क पर
जो जिंदगी के नाम पर हारा गया,
आहूत हर युद्धाग्नि में
वह जीव हूँ निष्पाप
जिसको पूज कर मारा गया,
वह शीश जिसका रक्त सदियों तक बहा,
वह दर्द जिसको बेगुनाहों ने सहा | 3️⃣
यह महासंग्राम
युग युग से चला आता महाभारत,
हजारों युद्ध, उपदेशों, उपाख्यानों, कथाओं में
छिपा वह पृष्ठ मेरा है
जहां सदियों पुराना व्यूह, जो दुर्भेद्य था, टूटा,
जहां अभिमन्यु कोई भयों के आतंक से छूटा :
जहां उसने विजय के चंद घातक पलों में जाना
कि छल के लिए उद्यत व्यूह-रक्षक वीर-कायर हैं ,
जिन्होंने पक्ष अपना सत्य से ज्यादा बड़ा माना
जहां तक पहुंच उसने मृत्यु के निष्पक्ष, समयातीत घेरे में
घिरे अस्तित्व का हर पक्ष पहिचाना | 4️⃣