कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिमान हम एक दुर्बल को लाएंगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ? तो आप क्यों अपाहिज हैं? आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है ? ( कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा ) हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है ? जल्दी बताइए … Read more

चिथड़ा-चिथड़ा मैं ( Chithda Chithda Main ) : रघुवीर सहाय

अब देखो बाजार में एक ढेर है चिथड़ों का और एक मैं हूं कि जिसके चिथड़े सब एक जगह नहीं वे मेरी धज्जियां कहां गई खोजकर लाओ उन्हें सिरहाने रात को रख जिनको सोया था | डप कागजों से | 1️⃣ मैं चिथड़े हो गया हूँ यही मेरी पहचान है – चिथड़ा चिथड़ा मैं मैं … Read more

आत्महत्या के विरुद्ध ( Atmhatya Ke Virudh ) : रघुवीर सहाय

जब से मैंने यह कविता लिखी है कट रहे जंगल के छोर पर राजमार्ग के समीप सब दिन मरे पड़े मिलते हैं नौजवान लाश का हुलिया सुन कोई जानता नहीं कौन था मान लिया जाता है कैसे मरा होगा मरने का कारण अब थोड़े ही शेष है हुलिया भी संक्षिप्त होता जा रहा है जितने … Read more

काला नंगा बच्चा पैदल ( Kala Nanga Bachcha Paidal ) : रघुवीर सहाय

काला नंगा बच्चा पैदल बीच सड़क पर जाता था और सामने से कोई मोटर दौड़ाये लाता था तभी झपट कर मैंने बच्चे को रस्ते से खींच लिया मेरे मन ने कहा कि यह तो तुमने बिल्कुल ठीक किया | 1️⃣ वहीं देखकर एक भिखारी मैंने उससे यों पूछा क्या यह साथ तुम्हारे है? वह पल … Read more

कोई एक और मतदाता ( Koi Ek Aur Matdata ) : रघुवीर सहाय

जब शाम हो जाती है तब खत्म होता है मेरा काम जब काम खत्म होता है तब शाम खत्म होती है रात तक दम तोड़ देता है परिवार मेरा नहीं एक और मतदाता का संसार रोज कम खाते-खाते ऊबकर प्रेमी-प्रेमिका एक पत्र लिख दे गए सूचना विभाग को दिन-रात सांस लेता है ट्रांजिस्टर लिए हुए … Read more

रामदास ( Ramdas ) : रघुवीर सहाय

चौड़ी सड़क गली पतली थी दिन का समय है घनी बदली थी रामदास उस दिन उदास था अंत समय आ गया पास था उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी | 1️⃣ धीरे-धीरे चला अकेले सोचा साथ किसी को ले ले फिर रह गया, सड़क पर सब थे सभी मौन थे सभी निहत्थे … Read more

धूप ( Dhoop ) : रघुवीर सहाय

देख रहा हूँ लंबी खिड़की पर रखे पौधे धूप की ओर बाहर झुके जा रहे हैं हर साल की तरह गौरैया अबकी भी कार्निंस पर ला ला कर धरने लगी है तिनके हालांकि यह वह गोरैया नहीं यह वह मकान भी नहीं ये वे गमले भी नहीं, यह वह खिड़की भी नहीं कितनी सही है … Read more

भाषा का युद्ध ( Bhasha Ka Yuddh ) : रघुवीर सहाय

अब हम भाषा के लिए लड़ने के वक्त यह देख लें कि हम उससे कितनी दूर जा पड़े हैं जिनके लिए हम लड़ते हैं उनको हमको भाषा की लड़ाई पास नहीं लाई क्या कोई इसलिए कि वह झूठी लड़ाई थी नहीं बल्कि इसलिए कि हम उनके शत्रु थे क्योंकि हम मालिक की भाषा भी उतनी … Read more

चिट्ठियां ( Chithiyan ) : रघुवीर सहाय

आखिर जब कवि लिखने बैठा तो कि वह चिट्ठी लिखता है सब नृशंसताएं सामान्य हैं इक्कीसवीं वीं सदी में पुराणपंथी प्रसन्न हैं बीसवीं शताब्दी शेष होने लगी सब मेरे लोग एक-एक कर मरते हैं बार-बार बचे हुए लोगों की सूची बनाता हूँ जो बाकी बचे हुए लोगों के अते-पते बतलाएं जिससे ये चिट्ठियां मैं उनको … Read more

लोकतंत्र का संकट ( Loktantra ka Sankat ) रघुवीर सहाय

लोकतंत्र का संकट ( Loktantra Ka Sankat ) पुरुष जो सोच नहीं पा रहे किंतु अपने पदों पर आसीन है और चुप हैं तानाशाह क्या तुम्हें इनकी भी जरूरत होगी जैसे तुम्हें उनकी है जो कुछ न कुछ उटपटांग विरोध करते रहते हैं | सब व्यवस्थाएं अपने को और अधिक संकट के लिए तैयार करती … Read more