जब शाम हो जाती है तब खत्म होता है मेरा काम
जब काम खत्म होता है तब शाम खत्म होती है
रात तक दम तोड़ देता है परिवार
मेरा नहीं एक और मतदाता का संसार
रोज कम खाते-खाते ऊबकर
प्रेमी-प्रेमिका एक पत्र लिख दे गए सूचना विभाग को
दिन-रात सांस लेता है ट्रांजिस्टर लिए हुए खुशनसीब खुशीराम
फुर्सत में अन्याय सहने में मस्त
स्मृतियाँ खंखोलता हकलाता बतलाता सवेरे
अखबार में उसके लिए खास करके एक पृष्ठ पर दुम
हिलाता संपादक एक पर गुरुगुराता है | 1️⃣
एक दिन आखिरकार दोपहर में छुरे से मारा गया खुशीराम
वह अशुभ दिन था ; कोई राजनीति का मसला
देश में उस वक्त पेश नहीं था | खुशीराम बन नहीं
सका क़त्ल का मसाला, बदचलनी का बना, उसने
जैसा किया वैसा भरा
इतना दुख मैं देख नहीं सकता |
कितना अच्छा था छायावादी
एक दुख लेकर वह एक गान देता था
कितना कुशल था प्रगतिवादी
हर दुख का कारण वह पहचान लेता था
कितना महान था गीतकार
जो दुख के मारे अपनी जान लेता था
कितना अकेला हूँ मैं इस समाज में
जहाँ सदा मरता है एक और मतदाता | 2️⃣