कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )

कैमरे में बंद अपाहिज

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिमान

हम एक दुर्बल को लाएंगे

एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ?

तो आप क्यों अपाहिज हैं?

आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा

देता है ?

( कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा )

हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है ?

जल्दी बताइए वह दुख बताइए

बता नहीं पाएगा (1)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है | इसके रचयिता श्री रघुवीर सहाय हैं | यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ में संकलित है | इस कविता के माध्यम से कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता पर प्रकाश डाला है |

व्याख्या — दूरदर्शन पर कार्यक्रम संचालक दर्शकों को संबोधित करते हुए कहता है कि हम समर्थ और शक्तिवान हैं, दुर्बल और असहाय लोगों की आवाज को आप तक लाते हैं | हम एक निर्धन अपाहिज व्यक्ति को आपके सामने लेकर आएंगे और उसकी विकलांगता को देखकर भी जानबूझकर उससे पूछेंगे कि क्या वह अपाहिज है? हम उससे पूछेंगे कि उसका अपाहिजपन उसे दुख देता है? बार-बार उसके दुख को कुरेदेंगे और कहेंगे ; देता है ना? इन बेतुके प्रश्नों को सुनकर भी यदि वह व्यक्ति कोई उत्तर नहीं देगा और उसके चेहरे पर शिकन या दुख के भाव नहीं उभरेंगे तो हम उससे बार-बार ऐसे प्रश्न पूछेंगे कि वह अपनी व्यथा-कथा हमें सुनाने या रोने को मजबूर हो जाए |

सोचिए

बताइए

आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है ?

कैसा

यानी कैसा लगता है

( हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा? )

सोचिए

बताइए

थोड़ी कोशिश करिए

( यह अवसर खो देंगे? )

आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते

हम पूछ-पूछ कर उसको रुला देंगे

इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का

करते हैं ?

( यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा ) (2)

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कार्यक्रम संचालक एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेता है | वह उसके दुख को दर्शकों तक लाना चाहता है | इसके लिए वह उस अपाहिज व्यक्ति से बार-बार ऐसे प्रश्न पूछता है कि वह व्यक्ति फूट पड़े और अपनी व्यथा-कथा दर्शकों को सुनाने लगे | वह उस अपाहिज व्यक्ति से बार-बार पूछता है कि क्या वह अपाहिज है?क्या उसका अपाहिजपन उसे दुख देता है? उसे अपाहिज होकर कैसा लगता है? इस प्रकार अनेक बेतुके प्रश्न उस अपाहिज व्यक्ति से पूछे जाएंगे ताकि उसकी पीड़ा उसकी आंखों से छलकने लगे | इस प्रकार कार्यक्रम संचालक उसे रोने के लिए मजबूर कर देगा | क्योंकि कार्यक्रम की सफलता के लिए यह अति आवश्यक है | इसीलिए कार्यक्रम संचालक कहता है कि दर्शक भी उसके रोने का इंतजार करते हैं क्योंकि इससे कार्यक्रम स्वाभाविक लगता है | कहने का भाव यह है कि दूरदर्शन पर जो सामाजिक सरोकार के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं उनका उद्देश्य सामाजिक हित नहीं अपितु अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति मात्र है |

फिर हम पर्दे पर दिखलाएंगे

फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर

बहुत बड़ी तस्वीर

और उसके होठों पर एक कसमसाहट भी

( आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे )

एक और कोशिश

दर्शक

धीरज रखिए

देखिए

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं

आप और वह दोनों

( कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो परदे पर वक्त की कीमत है )

अब मुसकुराएँगे हम

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम

( बस थोड़ी ही कसर रह गई )

धन्यवाद | (3)

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कार्यक्रम संचालक कहता है कि हम एक असहाय निर्धन अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेंगे | उसके दु:ख-दर्द को दर्शकों के सामने लाएंगे और ऐसा जाहिर करेंगे कि हम अपाहिज लोगों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदलना चाहते हैं और उनके मन में अपाहिज लोगों के प्रति सहानुभूति का भाव जगाना चाहते हैं | परंतु वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है | वास्तव में दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले सामाजिक सरोकार के कार्यक्रमों का एकमात्र उद्देश्य केवल अपने व्यवसाय के हितों की पूर्ति मात्र है |

कार्यक्रम संचालक अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछकर उसे रोने के लिए मजबूर कर देता है | फिर उस अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आंख को पास से दिखाया जाता है | उस व्यक्ति के होठों की कसमसाहट टीवी पर दिखाई जाती है | दर्शक उसे उस अपाहिज व्यक्ति की अपंगता की पीड़ा मानते हैं और कार्यक्रम संचालक की उस क्रूरता को भूल जाते हैं जिसके कारण वह व्यक्ति रोने के लिए मजबूर हो जाता है और उसकी आंखें छलक पड़ती हैं |

कार्यक्रम संचालक यह बात जानता है कि कार्यक्रम की सफलता के लिए उस अपाहिज व्यक्ति तथा दर्शकों दोनों का रोना आवश्यक है | और कोशिश करने पर भी यदि ऐसा नहीं हो पाता तो वह कैमरामैन की तरफ इशारा करके कहता है कि रहने दो, पर्दे पर वक्त की कीमत होती है | अर्थात ऐसी अवस्था में उस कार्यक्रम को वहीं पर समाप्त घोषित कर दिया जाता है क्योंकि पर्दे पर ( टीवी पर ) केवल उसी कार्यक्रम को दिखाया जाता है जो दर्शकों को पसंद आए और जिससे उनके व्यवसायिक हितों की पूर्ति हो | कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संचालक एक बार फिर से दर्शकों के सामने आता है और मुस्कुराते हुए अपने चिर परिचित अंदाज में दर्शकों से मुखातिब होकर कहता है –“आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त यह कार्यक्रम “ | इस प्रकार कार्यक्रम संचालक कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा कर देता है |

कहने का भाव यह है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों के अंत में कार्यक्रम संचालक इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करता है कि दर्शकों को लगे कि यह कार्यक्रम सामाजिक सरोकार का कार्यक्रम है और इस कार्यक्रम के माध्यम से वे दुखी और पीड़ित लोगों के दु:ख-दर्द को दर्शकों तक पहुंचाना चाहते हैं ताकि समाज ऐसे लोगों के दु:ख-दर्द को समझ सके और उन लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास करे |

अभ्यास के प्रश्न ( कैमरे में बंद अपाहिज : रघुवीर सहाय )

(1) कविता में कुछ पंक्तियां कोष्ठकों में रखी गई हैं – आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?

उत्तर — नई कविता में ऐसे अनेक प्रयोग किए गए हैं जिन्होंने कविता के अभिव्यक्ति पक्ष को नई क्षमताएं प्रदान की हैं | प्रस्तुत कविता में कुछ पंक्तियां कोष्ठकों में लिखी गई हैं | यह पंक्तियां ही कविता के मूल भाव को अभिव्यक्त करती हैं | ऊपरी तौर पर यह कविता यह विचार प्रस्तुत करती है कि दूरदर्शन सामाजिक सरोकार के कार्यक्रम प्रस्तुत करता है | वह दीन-हीन और असहाय लोगों के दु:ख-दर्द और कठिनाइयों को दर्शकों तक लाता है ताकि समाज उनके दु:ख-दर्द को दूर करने के लिए आगे आ सके | परंतु कोष्ठकों में लिखी गई पंक्तियां कविता के वास्तविक उद्देश्य को हमारे सामने लाती हैं | इन पंक्तियों से ही हमें पता चलता है कि वास्तव में दूरदर्शन का मुख्य उद्देश्य केवल अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति मात्र है |

(2) “कैमरे में बंद अपाहिज” करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता की कविता है – विचार कीजिए |

अथवा ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के प्रतिपाद्य / मूल भाव / उद्देश्य या संदेश को स्पष्ट कीजिए |

उत्तर — ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता ऊपरी तौर पर सामाजिक सरोकार की कविता नजर आती है | प्रथम दृष्टि में कविता दूरदर्शन की सामाजिक प्रतिबद्धता प्रस्तुत करती है | परन्तु कोष्ठकों में लिखी गई पंक्तियां इस तथ्य को स्पष्ट करती हैं कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम में जिस करुणा को दिखाने का प्रयास किया गया है, वह कृत्रिम है | कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सामाजिक प्रतिबद्धता नहीं बल्कि अपने व्यवसायिक हितों की पूर्ति मात्र है | दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते हैं जो दर्शकों में लोकप्रिय हो सकें | यही कारण है कि कार्यक्रम-संचालक अपाहिज व्यक्ति से ऐसे बेहुदे प्रश्न पूछता है कि वह रोने के लिए मजबूर हो जाता है | वह अपाहिज व्यक्ति को उसके अपाहिजपन का बोध कराता है और उसे समाज की सामान्य धारा से अलग करने का क्रूर अपराध करता है | वस्तुतः यह कविता करुणा के मुखोटे में छुपी क्रूरता की कविता कही जा सकती है |

(3) ‘हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएंगे’ – पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?

उत्तर — ‘हम समर्थ शक्तिवान’ के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि दूरदर्शनकर्मी स्वयं को शक्तिशाली और समर्थ मानते हैं | वे मानते हैं कि वे चाहें तो किसी को भी ऊपर उठा सकते हैं और किसी को भी नीचे गिरा सकते हैं | वास्तव में यह दूरदर्शन कर्मियों की गलत मानसिकता है | वह सच्चाई की आवाज को बुलंद करने के लिए नहीं बल्कि शक्तिशाली राजनेताओं और धनी लोगों के हाथों की कठपुतली बनकर सुनियोजित ढंग से किसी बात को प्रायोजित करने के लिए अपने कार्यक्रम दिखाते हैं | वर्तमान समय में एनडीटीवी जैसे एक-दो चैनल को छोड़कर अधिकांश चैनल इसी मानसिकता से लोगों को गुमराह कर धन बटोर रहे हैं |

‘हम दुर्बल को लाएंगे’ इस पंक्ति के माध्यम से दूरदर्शनकर्मी यह कहना चाहता है कि वह दुर्बल लोगों की आवाज को समाज तक पहुंचाने का कार्य करता है | परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है | दूरदर्शन पर दुर्बल और अपाहिज लोगों के साक्षात्कार लेकर उनकी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है और दर्शकों की सहानुभूति बटोर कर अपने लिए पैसे जुटाए जाते हैं |

(4) यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक दोनों एक साथ रोने लगेंगे तो उससे प्रश्नकर्त्ता का कौन सा उद्देश्य पूरा होगा?

उत्तर — यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे अपंग व्यक्ति और दर्शक दोनों एक साथ रोने लगेंगे तो इससे प्रश्नकर्त्ता का व्यावसायिक उद्देश्य पूरा होगा | अपाहिज व्यक्ति के रोने पर दर्शकों की सहानुभूति अपाहिज व्यक्ति के साथ होगी, दर्शक भावनात्मक रूप से कार्यक्रम से जुड़ जाएंगे और कार्यक्रम लोकप्रिय हो जाएगा | कार्यक्रम के लोकप्रिय होने पर अधिक से अधिक विज्ञापन आएंगे जिससे उनकी अच्छी कमाई होगी |

(5) ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?

उत्तर — ‘पर्दे पर वक्त की कीमत है’ – इस कथन के कहने से साक्षात्कार के प्रति साक्षात्कारकर्त्ता के नजरिए के बारे में पता चलता है | इससे पता चलता है कि कार्यक्रम संचालक का वास्तविक उद्देश्य सामाजिक प्रतिबद्धता नहीं है, उसका वास्तविक उद्देश्य केवल अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति है | दूरदर्शन पर एक-एक मिनट से भारी आय होती है | दूरदर्शनकर्मी धन कमाने के लिए ही दीन-दुखियों के दु:ख-दर्द को पर्दे पर दिखाते हैं | ऐसा करके वे दर्शकों की सहानुभूति बटोरते हैं और अपने कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाते हैं लेकिन वास्तव में दुखी लोगों के प्रति उनकी अपनी कोई सहानुभूति नहीं होती |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी