लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

( यहाँ कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित तुलसीदास कृत रामचरितमानस से अवतरित ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ काव्यांश का मूल पाठ तथा सप्रसंग व्याख्या दी गई है | )

दोहा

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत ।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत ॥

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार ।
मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार ॥ (1)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस‘ से अवतरित है | यहां पर कवि ने उस प्रसंग का वर्णन किया है जब हनुमान मूर्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे होते हैं और मार्ग में भरत उन्हें अपने बाण से घायल करके नीचे उतार लेते हैं |

व्याख्या — हनुमान ने भारत से कहा कि हे प्रभु तुम्हारे प्रताप को अपने हृदय में धारण करके मैं तुरंत प्रस्थान करता हूँ | यह कहकर हनुमान ने भरत के चरणों की वंदना की और उनकी आज्ञा पाकर लंका के लिए प्रस्थान कर दिया | हनुमान भरत के बाहुबल, उनके सुशील गुणों तथा उनका प्रभु राम के चरणों से अपार प्रेम देखकर मन ही मन उनकी बार-बार सराहना करते हुए चले जा रहे थे |

उहाँ राम लछिमनहि निहारी । बोले वचन मनुज अनुसारी ॥
अर्ध राति गयी कपि नहिं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायऊ ॥

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ॥
मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहेहु विपिन हिम आतप बाता ॥

सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ॥
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू | पितु वचन मनतेउँ नहिं ओहू ॥ (2)

व्याख्या — वहां युद्ध भूमि में राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखा तो वे एक सामान्य मानव के समान विलाप करने लगे | सामान्य मानव की तरह रोते-रोते हुए कहने लगे कि आधी रात बीत चुकी है परंतु हनुमान अभी तक नहीं आया | इस प्रकार विलाप करते हुए राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को अपनी छाती से लगा लिया |

विलाप करते हुए श्री राम जी कहने लगे कि तुम्हारा ( भरत का ) स्वभाव तो इतना कोमल था कि तुम मेरे दुख को नहीं देख सकते थे | मेरे लिए तुमने अपने माता-पिता का त्याग कर दिया और वन में रहते हुए सर्दी, गर्मी और तूफान के कष्टों को सहन किया |

विलाप करते हुए श्री रामचंद्र जी कहते हैं कि हे भाई! मेरे प्रति तुम्हारा वह स्नेह अब कहां चला गया ; तुम मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर उठ क्यों नहीं जाते | यदि मुझे पता होता कि वन में मुझे अपने सगे भाई से बिछुड़ना पड़ेगा तो मैं पिता की आज्ञा कभी नहीं मानता |

सुत बित नारि भवन परिवारा । होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ॥
अस बिचारि जियँ जागहु ताता । मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ॥

जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना ॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौं जड़ दैव जिआवै मोही ॥

जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं । नारि हानि बिसेष छति नाहिं ॥
(3)

व्याख्या — युद्ध भूमि में लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम विलाप करते हुए सामान्य मनुष्य की तरह अनाप-शनाप बड़बड़ाने लगते हैं और कहते हैं कि इस संसार में पुत्र, धन, पत्नी, भवन और परिवार बार-बार प्राप्त होते रहते हैं और नष्ट होते रहते हैं परंतु हे मेरे भाई! तुम अपने मन में यह विचार करके जाग जाओ कि सगा भाई पुनः प्राप्त नहीं होता |

हे मेरे भाई! जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी, मणि के बिना सांप तथा सूंड के बिना हाथी दीन-हीन और बेबस हो जाता है | हे मेरे भाई! यदि विधाता मुझे भी तुम्हारे बिना जीवित रखना चाहता है तो मेरी अवस्था भी कुछ इसी प्रकार से होगी | अर्थात मेरी अवस्था भी ऐसी होगी कि जैसे मैं जड़ रूप में केवल साँस ले रहा हूँ |

हे मेरे भाई! मैं अयोध्या में क्या मुंह लेकर जाऊंगा? मेरे बारे में लोग कहेंगे कि मैंने अपनी नारी के लिए प्रिय भाई को गँवा दिया | इस प्रकार मुझे इस संसार में बहुत अपयश सहन करना पड़ेगा क्योंकि इस संसार के लोगों के अनुसार पत्नी की हानि अधिक बड़ी हानि नहीं होती परंतु भाई का खोना अपूरणीय क्षति है |

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा । सहिहि निठुर कठोर उर मोरा ॥
निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान आधारा ॥

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी । सब बिधि सुखद परम हित जानी ॥
उतरु कहा दैहउँ तेहि जाई । उठि किन मोहि सीखावहु भाई ॥

बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन । स्रवत सलिल राजिव दल लोचन ॥
उमा एक अखंड रघुराई । नर गति भगत कृपाल दिखाई ॥ (4)

व्याख्या — हे पुत्र लक्ष्मण ! अब तो मेरे कठोर हृदय को पत्नी खोने का अपयश और तुम्हारा शोक यह दोनों दुख सहन करने पड़ेंगे | हे मेरे भाई! तुम अपनी माता के इकलौते पुत्र हो और उसके प्राणों के आधार हो | अर्थात तुम्हारे बिना तुम्हारी माँ किस प्रकार से जी पायेगी |

तुम्हारी माता ने सब प्रकार से तुम्हारा सुख और कल्याण सोचकर तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में सौंपा था | अब तुम ही बताओ मैं लौट कर उन्हें क्या उत्तर दूंगा | हे मेरे भाई! तुम उठ कर मुझे समझाते क्यों नहीं?

इस प्रकार सांसारिक प्राणियों की चिंताओं को दूर करने वाले राम स्वयं अनेक चिंताओं में डूब गए और विभिन्न प्रकार से सोचते हुए उन्होंने अपनी चिंताओं का विमोचन कर लिया | कमल के समान उनके विशाल नेत्रों से आंसू टपकने लगे | उनके चेहरे पर एक अखंड शांति झलकने लगी | इस प्रकार प्रभु राम ने सामान्य मनुष्य की भांति व्यवहार करके अपने भक्तों को नर-लीला दिखाई |

सोरठा

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर ।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मँह बीर रस ॥ (5)

व्याख्या — उसी समय हनुमान जी अचानक ऐसे प्रकट हो गए जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो गया हो | भाव यह है कि हनुमान के आते ही शोक का वातावरण उत्साह से भर गया |

हरषि राम भेटेउ हनुमाना । अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना ॥
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई । उठि बैठे लछिमन हरषाई ॥

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता । हरषे सकल भालु कपि ब्राता ॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा । जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा ॥

यह बृतांत दसानन सुनेऊ । अति विषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ ॥
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा । बिबिध जतन करि ताहि जगावा ॥
(6)

व्याख्या — प्रसन्न होकर श्री राम ने हनुमान से भेंट की | परम ज्ञानी श्री राम ने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की | उसके पश्चात वैद्य ने लक्ष्मण का उपचार किया और वे प्रसन्न होकर उठ कर बैठ गए |

तब प्रभु राम ने लक्ष्मण को अपने गले से लगा लिया जिसे देखकर सभी भालू और वानर समूह अत्यधिक प्रसन्न हुए | इसके पश्चात हनुमान ने वैद्य को सम्मानपूर्वक वहां पहुंचाया जहां से वह उन्हें लाए थे |

रावण ने जब यह वृत्तांत सुना तो वह अत्यधिक दुखी हुआ और बार-बार अपना सिर धुनने लगा | वह व्याकुल होकर अपने भाई कुंभकरण के पास आया और विभिन्न प्रकार के प्रयत्न करके उसे गहरी नींद से जगाया |

जागा निसाचर देखिअ कैसा । मानहुँ कालु देह धरि बैसा ॥
कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई ॥

कथा कहि सब तेहिं अभिमानी । जेहि प्रकार सीता हरि आनी ॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे । महा महा जोधा संघारे ॥

दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी । भट अतिकाय अकंपन भारी ॥
अपर महोदर आदिक बीरा । परे समर महि सब रनधीरा ॥ (7)

व्याख्या — नींद से जागने पर वह राक्षस कुंभकरण ऐसा लग रहा था मानो काल ( यमराज या मृत्यु ) ने देह धारण कर ली हो | तब कुंभकरण ने रावण से पूछा, हे भाई! मुझे बताओ किस कारण से तुम्हारा मुख सूख गया है?

तब उस अभिमानी रावण ने वह सारी कथा कह सुनाई जिस प्रकार वह सीता का हरण करके लाया था | इसके पश्चात रावण कुंभकरण से कहने लगा, हे मेरे भाई! वानर सेना ने सारे राक्षसों को मार दिया है और मेरे बड़े-बड़े योद्धाओं का वध कर दिया है |

कुम्भकरण को युद्ध भूमि में वानर सेना द्वारा मारे गये अपने सैनिकों के विषय में बताते हुये कहते है कि दुर्मुख, देव-शत्रु, मनुष्य भक्षक, महा योद्धा, अति विशालकाय, धरा को कम्पित कर देने वाले युद्ध भूमि में धैर्य धारण करने वाले महोदर आदि असंख्य वीर योद्धा युद्ध क्षेत्र में मारे गए हैं |

दोहा

सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान ।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्याण ॥

व्याख्या — दशानन के वृतांत को सुनकर कुम्भकरण बहुत दुःखी हुआ और रावण से कहने लगा कि हे दुष्ट ! तूने साक्षात जगदम्बा का हरण कर लिया और अब अपना कल्याण चाहता है | तात्पर्य यह है कि रावण ने माता सीता का अपहरण करके अक्षम्य अपराध किया है | अत: उसका परिणाम उसे भुगतना ही पड़ेगा |

अभ्यास के प्रश्न ( लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप : गोस्वामी तुलसीदास )

(1) व्याख्या करें : —

(क ) मम हित लागि तजेहु, पितु माता | सहेहु बिपिन हिम आतप बाता | |

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू | पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू ||

(ख ) जथा पंख बिनु खग अति दीना | मनि बिनु फनि करिबर कर हीना | |

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही | जौं जड़ दैव जिआवै मोहि ||

(ग ) माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबोको दोऊ || ( कवितावली : उत्तरकांड से )

(घ ) ऊंचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी || ( कवितावली : उत्तर कांड से )

उत्तर — (क ) उपर्युक्त व्याख्या भाग से स्वयं करें |

(ख ) उपर्युक्त व्याख्या भाग से स्वयं करें |

(ग ) प्रस्तुत पंक्ति में गोस्वामी तुलसीदास जी के स्वाभिमानी स्वभाव के विषय में पता चलता है | कवि कहता है कि मुझे सामाजिक निंदा का कोई भय नहीं है | मैं समाज की परवाह नहीं करता | मुझे समाज के लोगों से किसी प्रकार की धन-संपत्ति या अन्य भौतिक सुविधा नहीं चाहिए | मैं मांग कर खाता हूं और मस्जिद में सोता हूँ | मुझे न किसी से एक लेना है और न किसी को दो देने हैं अर्थात मुझे इस समाज से कोई लेना-देना नहीं है | मैं प्रभु राम की भक्ति में तल्लीन रहता हूँ |

(घ ) प्रस्तुत पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास ने तात्कालिक आर्थिक विषमता का यथार्थ वर्णन किया है | कवि कहता है कि मनुष्य के सारे कार्य एवं व्यापार पेट की आग अर्थात भूख को शांत करने के लिए होते हैं | अपने पेट की आग को बुझाने के लिए ही लोग ऊंचे-नीचे कर्म करते हैं, धर्म और अधर्म कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं | यहां तक कि अपनी भूख को मिटाने के लिए लोग अपने बेटे-बेटियों तक को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं |

(2) भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है | क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए |

उत्तर — रामचरितमानस के लंका कांड से अवतरित इन पंक्तियों में भ्राता लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम का विलाप वास्तव में भगवान राम का नहीं बल्कि एक सामान्य मनुष्य का विलाप है | एक सामान्य मनुष्य जब शोक-ग्रस्त होकर विलाप करता है तो ऐसे में अनाप-शनाप वचन बोलता है | इन पंक्तियों में राम भी कुछ इसी प्रकार के वचन बोलते हैं | वे कहते हैं कि अगर उन्हें पता होता कि वन में उन्हें अपने भाई से जुदा होना पड़ेगा तो ऐसी अवस्था में वे अपने पिता को दिए हुए वचन को कभी नहीं मानते | वे यहां तक कहते हैं कि उन्होंने एक नारी के लिए अपने प्रिय भाई को गँवा दिया | वे कहते हैं कि घर, परिवार, धन, पुत्र और पत्नी तो फिर भी प्राप्त किये जा सकते हैं लेकिन सगा भाई पुनः प्राप्त नहीं होता | उनका यह कथन कहीं से भी मर्यादित कथन नहीं है | वास्तव में ऐसा प्रतीत होता है कि अपने भाई के मूर्छित हो जाने पर वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे तभी उन्होंने इस प्रकार के अशोभनीय वचन कहे | इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने भ्रातृ-शोक में हुई राम की दशा को एक सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है |

(3) शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?

उत्तर — जब लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं तो वैद्य सुषेण कहते हैं कि अगर प्रातः होने से पहले संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं अन्यथा उनकी मृत्यु निश्चित है | यह सुनकर हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं | परंतु अर्धरात्रि बीत जाने पर भी जब हनुमान लौट कर वापस नहीं आते तो समस्त भालू और वानर सेना घबरा जाती है | राम और समस्त वानर सेना भावुक होकर विलाप करने लगती है परंतु इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर पहुंच जाते हैं | जिससे अचानक वानर सेना में उत्साह का संचार हो जाता है | ऐसा प्रतीत होता है मानो करुणापूर्ण वातावरण में वीर रस का समावेश हो गया हो |

(4) जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई | नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ||

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं | नारि हानि बिसेष छति नाहीं ||

भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?

उत्तर — प्रस्तुत पंक्तियों में तात्कालिक नारी संबंधी सामाजिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है जिससे इस तथ्य की अभिव्यक्ति होती है कि उस समय नारी की स्थिति समाज में बहुत अच्छी नहीं थी | एक भौतिक वस्तु की तरह उसे जब चाहे त्यागा जा सकता था और जब चाहे पुनः प्राप्त किया जा सकता था | इस कथन से न केवल उस समय के नारी संबंधी सामाजिक दृष्टिकोण के विषय में पता चलता है बल्कि गोस्वामी तुलसीदास जी की नारी संबंधी अवधारणा पर भी प्रकाश पड़ता है | हिंदी साहित्य में अनेक आलोचक तुलसीदास जी की इस बात के लिए आलोचना करते हैं जो पूर्णत: सत्य भी है | यह कहकर कि विलाप करते हुए कोई व्यक्ति इस प्रकार के अनाप-शनाप वचन बोल देता है, पूर्णत: असत्य है | कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होता जो घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य के मरने की कामना करने लगे | हाँ, ऐसा तो बहुत बार सुना है जब विलाप करते हुए व्यक्ति यह कहने लगे कि हे भगवान! तू मुझे उठा लेता लेकिन ऐसा कोई नहीं कहता है कि तू मेरे बेटे को या मेरी बेटी को या मेरी पत्नी को उठा लेता | और अगर कोई व्यक्ति इस प्रकार के वचन बोलता है तो उसे अच्छी मानसिकता का व्यक्ति नहीं स्वीकारा जा सकता | विडंबना यह है कि विभिन्न धर्म ग्रंथों ( भारतीय और विदेशी ) में वर्णित पात्रों को आराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठापित करके बहुत सी गलत सामाजिक परंपराओं को सही सिद्ध करने का एक सफल षड्यंत्र रचा गया है |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

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