सहर्ष स्वीकारा है ( गजानन माधव मुक्तिबोध )

सहर्ष स्वीकारा है

जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है

सहर्ष स्वीकारा है ;

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हें प्यारा है |

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार-वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब

मौलिक है, मौलिक है

इसलिए कि पल-पल में

जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है –

संवेदन तुम्हारा है ! 1️⃣

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है | इसके रचयिता श्री गजानन माधव मुक्तिबोध हैं | इस कविता में कवि कहता है कि उसे जीवन में जो कुछ भी मिला है वह उसे सहर्ष स्वीकार करता है |

व्याख्या — कवि कहता है कि मुझे अपने जीवन में जो कुछ भी मिला है मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ | कवि अपने संबोध्य ( ईश्वर या कवि की प्रेयसी ) को संबोधित करते हुए कहता है मुझे अपने जीवन में जो कुछ भी मिला है वह सब तुम्हें प्रिय है | कवि के अनुसार उसकी गरबीली गरीबी, गंभीर जीवनानुभव, वैचारिक संपदा, मानसिक दृढ़ता, हृदयगत भावनाएं आदि सबकुछ नवीन तथा मौलिक हैं | इसका कारण यह है कि प्रत्येक पल मेरे जीवन में जो कुछ भी जागृत होता है, गतिशील होता है वह सब तुम्हारी ही प्रेरणा का प्रतिफल है | इसीलिए कवि को अपना जीवन प्रत्येक अवस्था में प्रिय है |

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चांद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है ! 2️⃣

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कवि अपने संबोध्य ( ईश्वर या कवि की प्रेयसी ) को संबोधित करते हुए कहता है कि मेरे और तुम्हारे बीच में न जाने कैसा रिश्ता है? मैं जितना अधिक अपने हृदय के प्रेम को उड़ेलता हूँ उतना अधिक मेरा हृदय प्रेम भावना से भर जाता है | ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मानो मेरे हृदय में ही कोई मधुर झरना समाया है जिससे लगातार स्नेह झरता रहता है | एक तरफ मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम है और दूसरी तरफ मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम | तुम्हारा मुस्कुराता हुआ चेहरा हर पल मुझे इस प्रकार निहारता रहता है जिस प्रकार चांद रात भर धरती को देखकर मुस्कुराता रहता है |

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं

तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुम से ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता है |

नहीं सहा जाता है |

ममता के बादल की मंडराती कोमलता –

भीतर पिराती है

कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह

छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है

बहलाती सहलाती आत्मीयता बर्दाश्त नहीं होती है ! 3️⃣

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कवि अपने संबोध्य ( ईश्वर या कवि की प्रेयसी ) को संबोधित करते हुए कहता है कि वह उसे सजा दे कि वह उसको भूल जाए | कवि चाहता है कि वह दक्षिण ध्रुव के अमावस्या के समान सघन अंधकार में डूब जाए | कवि अमावस्या के समान अंधकार में अपने तन-मन को डुबो देना चाहता है, वह अपनी प्रिय की विरह-जनित वेदना को झेलना और उसमें नहा लेना चाहता है | कवि कहता है कि उसका जीवन प्रिय के प्रेम रूपी आलोक से पूर्णत: घिरा हुआ है जो अत्यंत मनोहर है | परंतु अब यह उजाला कवि से सहन नहीं होता | कवि को प्रिय की ममता अपने मन में बादलों के समान छाई हुई प्रतीत होती है और उसके हृदय को पीड़ित करती रहती है | इससे कवि की आत्मा दुर्बल और अक्षम हो गई है | भविष्य की आशंका उसे डराती रहती है और उसकी आत्मा छटपटाती रहती है | कवि को अपने प्रिय की बहलाती, सहलाती आत्मीयता अब बर्दाश्त नहीं होती अर्थात कवि का अपने प्रिय से ना मिल पाना और उसके प्रिय द्वारा दूर से अपनापन दर्शाना केवल व्यर्थ का बहलाना सहलाना प्रतीत होता है, अब यह सब कवि से बर्दाश्त नहीं होता है क्योंकि इससे उसकी विरह-वेदना और अधिक बढ़ जाती है | अत: कवि अपनी प्रेयसी को भूलकर अपना स्वाभाविक जीवन जीना चाहता है |

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊं

पाताली अंधेरे की गुहाओं में विवरों में

धुएं के बादलों में

बिल्कुल मैं लापता

लापता कि वहां भी तो तुम्हारा ही सहारा है !

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है

सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है

अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है

सहर्ष स्वीकारा है

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हें प्यारा है | 4️⃣

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कवि अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम मुझे अपनी वियोग-वेदना का ऐसा दर्द दो कि मैं पाताल लोक की अंधेरी गुफाओं की सुनी सुरंगों में और दम घोंटने वाले धुएं के बादलों में बिल्कुल खो जाऊं | इस प्रकार मैं पूरी दुनिया से दूर होकर अकेलेपन मैं जीवन व्यतीत करने लगूं | परंतु उस अकेलेपन में भी मुझे तुम्हारा आश्रय मिलता रहेगा, तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी | कवि कहता है कि जो कुछ भी इस समय मेरा है या मेरा होना संभव होता है, हुआ है या हो सकता है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा का प्रतिफल है | कहने का तात्पर्य यह है कि कवि ने अपने जीवन मे जो कुछ भी प्राप्त किया है या प्राप्त करने की योजना बनाई है, वह सब अपनी प्रेयसी की प्रेरणा से ही संभव हुई है | इसलिए कवि अपने जीवन की प्रत्येक अवस्था को स्वीकार करता है और कहता है कि जो कुछ भी मुझे अपने जीवन में मिला है मैं उसे सहर्ष स्वीकार करता हूँ क्योंकि वह सब मेरी प्रेयसी को प्रिय है |

अभ्यास के प्रश्न ( सहर्ष स्वीकारा है : गजानन माधव मुक्तिबोध )

1️⃣ टिप्पणी कीजिए : – गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल |

उत्तर — (क ) गरबीली गरीबी — कवि को अपने गरीब होने का कोई दु:ख नहीं है क्योंकि अपनी गरीबी के कारण ही उसे नवीन अनुभव व मौलिक उदभावनाएं मिली हैं | इसलिए वह अपनी गरीबी पर गर्व करता है | उसे गरीबी के कारण किसी हीनता की अनुभूति नहीं होती | निर्धन होने पर भी वह स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीता है |

(ख ) भीतर की सरिता — भीतर की सरिता से अभिप्राय है – कवि की कोमल भावनाएं | कवि के मन में संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी कोमल भावनाएं प्रवाहमान हैं | अपनी इन्हीं कोमल भावनाओं के कारण वह अपने वर्तमान जीवन से संतुष्ट है और उसे आज तक जो भी मिला है वह उसे सहर्ष स्वीकार करता है |

(ग ) बहलाती सहलाती आत्मीयता — कवि के हृदय में अपने प्रिय के प्रति आत्मीयता का भाव है | कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी प्रियतमा भी उसके प्रति आत्मीयता का भाव रखती है जो विरहजन्य दु:ख की अवस्था में उसे बहलाती और सहलाती है |

(घ ) ममता के बादल — ममता के बादल का अर्थ है – प्यार का साया | जिस प्रकार से ग्रीष्म ऋतु में आकाश में छाए हुए बादल बरसकर संपूर्ण धरा के ताप को हर उसे शीतलता प्रदान करते हैं ठीक उसी प्रकार प्रेम रूपी बादल विरह जन्य संताप की अवस्था में हृदय को शीतलता प्रदान करते हैं |

2️⃣ इस कविता में और भी टिप्पणी योग्य पद प्रयोग हैं | ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें |

उत्तर — दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या — जिस प्रकार दक्षिण ध्रुव पर अमावस्या जैसा घना अंधियारा छाया रहता है ठीक उसी प्रकार कवि अपनी प्रियतमा के वियोग में विस्मृति के घने अंधकार में खो जाना चाहता है | ‘दक्षिणी ध्रुवी’ विशेषण का प्रयोग करने से अंधकार की सघनता में वृद्धि करना कवि का उद्देश्य रहा है | सघनता के साथ-साथ दक्षिण ध्रुव पर लंबे समय तक अंधकार रहता है | अत: कवि लंबे समय तक विस्मृति के अंधकार में खो जाना चाहता है | वह इस अंधकार को अपने चेहरे, शरीर और हृदय में समा लेना चाहता है |

3️⃣ व्याख्या कीजिए —

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चांद ज्यों धरती पर रात भर

मुझ पर ज्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहां चांद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूल कर अंधकार अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?

उत्तर — कवि अपने सम्बोध्य ( ईश्वर या प्रियतमा ) को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि मेरे और तुम्हारे बीच में कौन सा संबंध है लेकिन मैं केवल इतना जानता हूं कि जितना भी मैं तुम्हारे प्रति अपने ह्रदय में स्थित प्रेम को व्यक्त करता हूँ या खाली करने का प्रयास करता हूँ ; उतना ही मानो मेरा हृदय तुम्हारे प्रेम से और अधिक भर जाता है | ना जाने मेरे हृदय में कौन सा झरना है जिससे लगातार प्रेम की वर्षा होती रहती है? मेरे हृदय में तुम्हारा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है जिसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है | अर्थात जिस प्रकार रात्रि के समय चंद्रमा संपूर्ण पृथ्वी को आलोकित रखता है ठीक उसी प्रकार तुम मेरे हृदय को अपने प्रेम के आलोक से आलोकित रखती हो |

परंतु कवि चांद की तरह आत्मा पर झुके हुए अपनी प्रेयसी के चेहरे को भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात करता है क्योंकि वह विरह के इन क्षणों में अपनी प्रेयसी की यादों को विस्मृत कर स्वतंत्र जीवन जीना चाहता है |

4️⃣ तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूं मैं

इसलिए कि तुम से ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता |

(क ) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?

(ख ) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

(ग ) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें |

(घ ) कवि अपने संबोध्य ( जिसको कविता संबोधित है, कविता का तुम ) को पूरी तरह हम भूल जाना चाहता है | इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों ( लाल रंग में लिखे गए शब्द ) को ध्यान में रखकर उत्तर दें |

उत्तर — (क ) कवि ने अंधकार अमावस्या के लिए दक्षिण ध्रुवी विशेषण का प्रयोग किया है | इस विशेषण का प्रयोग करने से अंधकार की सघनता बढ़ गयी है | इसके अतिरिक्त दक्षिण ध्रुव पर लंबे समय तक अंधकार रहता है | अत: यह विशेषण अंधकार को चिरस्थाई बनाता है | कवि अपनी प्रियतमा को भूल कर इसी घने अंधकार में हमेशा के लिए लीन हो जाना चाहता है ताकि वह उसको भूल कर स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जी सके |

(ख ) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अपनी प्रियतमा की यादों से विस्मृति को अमावस्या कहा है | जिस प्रकार अमावस्या में गहन अंधकार होता है ठीक उसी प्रकार कवि भी अपने जीवन में विस्मृति का गहन अंधकार चाहता है जिससे वह अपने प्रिय को भूल कर पुन: सामान्य जीवन जी सके |

(ग ) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति भी कविता में व्यक्त हुई है | एक तरफ कवि अंधकार अमावस्या में खोकर अपने प्रिय की यादों को पूरी तरह से भूल जाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर वह उन यादों को ‘रमणीय उजाला’ बताता है | इसके अतिरिक्त एक अन्य स्थान पर वह यह भी स्वीकार करता है कि भले ही वह धुएँ के घने बादलों में अंधेरी गुफाओं में लुप्त हो जाए लेकिन वहां पर भी उसकी यादों का सहारा उसके साथ रहेगा |

(घ ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह से भूल जाना जाता है | इसके लिए वह दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या में पूरी तरह से खो जाना चाहता है | कवि के व्यक्तिगत संदर्भ में यहां अंधकार अमावस्या से अभिप्राय कवि की यादों से विस्मृति है | ‘दक्षिण ध्रुवी विशेषण’ लगाने से अंधकार की सघनता बढ़ गई है | साथ ही जिस प्रकार दक्षिण ध्रुव पर लंबे समय तक अंधकार रहता है ठीक उसी प्रकार से कवि अपने जीवन में भी लंबे समय तक विस्मृति की इस अवस्था को बनाए रखना चाहता है ताकि वह अपनी प्रियतमा को भूलकर स्वाभाविक रूप से सामान्य जीवन जी सके |

5️⃣ बहलाती कहलाती आत्मीयता बर्दाश्त नहीं होती है – और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए |

उत्तर — प्रस्तुत कविता में कवि ने दो विपरीत स्थितियों को प्रस्तुत किया है | एक स्थिति में कवि कहता है कि उसे अपनी प्रियतमा की प्रत्येक वस्तु प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार्य है | संभवत: यह स्थिति संयोगकालीन स्थिति है | परंतु वियोग की अवस्था में अपनी प्रियतमा की यादें उसके लिए असहनीय बन गई हैं | उसकी प्रेयसी की यादें उसे बहलाती-सहलाती सी प्रतीत होती हैं | इसलिए वह विस्मृति के गहन अंधकार में खो जाना चाहता है ताकि वह अपनी प्रियतमा को भूल कर सामान्य जीवन जी सके | प्रेम की अवस्था में प्राय: ऐसा होता है जब अपने प्रिय को भूल जाना भावी जीवन के लिए लाभकारी तो होता है लेकिन चाह कर भी उसे भुलाया नहीं जा सकता | वही प्रेम जीवन में बाधा भी लगता है और जीवन का आधार भी | यही कारण है कि कवि अपनी प्रेयसी की यादों के प्रति स्वीकार और अस्वीकार, दोनों भाव रखता है |

6️⃣ ‘सहर्ष स्वीकारा है’ ( Gajanan Madhav Muktibodh ) कविता का प्रतिपाद्य / उद्देश्य / मूल भाव या संदेश संक्षेप में लिखिए |

उत्तर — ‘सहर्ष स्वीकारा है’ गजानन माधव मुक्तिबोध की एक प्रसिद्ध कविता है | इस कविता में कवि ने अपने संबोध्य को संबोधित करते हुए उसके द्वारा दी गई प्रत्येक अव्यवस्था को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने की बात कही है | यह संबोध्य कवि की प्रियतमा भी हो सकती है उसकी दिवंगत पत्नी भी और अज्ञात सत्ता सत्ता भी | कवि कहता है कि उसके जीवन में जो भी जटिल परिस्थितियां आई हैं, उसे अपने जीवन में सुख-दुख आदि जो कुछ भी मिला है ; वह उसे सहर्ष स्वीकार करता है | कवि के अनुसार उसका जीवन अनुभव, मौलिक विचार आदि सभी उसी की देन हैं | परंतु अपने प्रिय से विरह की अवस्था में वह उसे पूर्णत: भूलकर घनी-अंधेरी गुफाओं में लुप्त हो जाना चाहता है ताकि अपनी प्रियतमा को भूल कर वह सामान्य जीवन जी सके | लेकिन अपनी प्रेयसी को भूल पाना उसके लिए सरल नहीं है क्योंकि उस घने अंधकार में भी उसकी प्रिय की स्मृतियां का प्रसार व्याप्त है | इस प्रकार यह कविता प्रेम की उस स्वाभाविक स्थिति को प्रकट करती है जिसमें अपनी प्रेयसी से वियोग की अवस्था में उसकी यादें जीवन का आधार भी बनती हैं और सामान्य जीवन की बाधा भी |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी