दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ( हरिवंश राय बच्चन )

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है | )

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

हो जाए न पथ में रात कहीं,

मंजिल भी तो है दूर नहीं –

यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है |

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है | (1)

व्याख्या – हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि दिन देखते ही देखते बीत जाता है और शाम हो जाती है | अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा कोई राही जैसे ही यह विचार करता है कि दिन ढलने वाला है तो वह थका होने पर भी और अधिक तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगता है | जब उसे लगता है कि उसकी मंजिल अधिक दूर नहीं है तो उसके कदमों की गति और अधिक तेज हो जाती है |

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे –

यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है |

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है | (2)

व्याख्या – हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि दिन देखते ही देखते बीत जाता है और शाम हो जाती है | शाम के समय घर की तरफ लौट रही चिड़ियों के मन में जब यह भाव आता है कि उनके बच्चे नीड़ों में उनकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे तो ऐसी अवस्था में उनके परों में अचानक स्फूर्ति आ जाती है और वे और अधिक तेजी से अपने नीड़ों की ओर बढ़ने लगती हैं | इसका अर्थ मनुष्य के संदर्भ में भी लिया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति सारा दिन अपने बच्चों के लालन-पालन के लिए, आजीविका कमाने के लिए घूमता है और शाम के समय घर वापस लौटते हुए जब उसे अपने बच्चों की स्मृति आती है तो वह और अधिक तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ने लगता है | उसके थके-हारे कदमों में अचानक तेजी आ जाती है |

मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है |

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है | (3)

व्याख्या – हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि यह सही है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल जाता है और देखते ही देखते शाम हो जाती है परंतु कवि के जीवन में ऐसा कोई नहीं है जो व्यग्रता से घर पर उसका इंतजार कर रहा हो ; उससे मिलने के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो | अत: घर की ओर बढ़ रहे कवि के मन में अचानक प्रश्न उठता है कि वह किसके लिए अपने मन को चंचल करे? अर्थात कवि अकेला है, कोई भी उसे चाहने वाला नहीं है | जैसे ही कवि को यह बात स्मरण आती है, घर की ओर बढ़ रहे उसके कदम अचानक शिथिल पड़ जाते हैं |

अभ्यास के प्रश्न ( दिन जल्दी जल्दी ढलता है : हरिवंश राय बच्चन )

(1) बच्चे किस बात की आशा से नीड़ों से झांक रहे होंगे?

उत्तर — चिड़िया के बच्चे इस आशा से नीड़ों से झांक रहे होंगे कि उनके माता-पिता उनके लिए दाना-चोगा लेकर आ रहे होंगे | सांयकाल मनुष्य के बच्चे भी इसी आशा से बार-बार अपने माता-पिता के आने की प्रतीक्षा करते हैं कि उनके माता-पिता उनके लिए अच्छी-अच्छी स्वादिष्ट चीजें लेकर आएंगे और उन्हीं खूब प्यार-दुलार करेंगे |

(2) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर — ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ की आवृत्ति कविता के मुख्य भाव को प्रकट करती है | कविता का मुख्य भाव यही है कि मनुष्य का जीवन संक्षिप्त है | देखते ही देखते जीवन-संध्या का आगमन हो जाता है | अतः मनुष्य को समय रहते अपनी मंजिल पाने के लिए प्रयास कर लेना चाहिए | इस पंक्ति की आवृत्ति यह भाव भी प्रकट करती हैं कि प्रेम-जन्य मधुर क्षण बड़ी तेजी से बीत जाते हैं |

(3) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत का प्रतिपाद्य / मूल भाव / उद्देश्य या सन्देश स्पष्ट कीजिए |

उत्तर — ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत इस भाव को अभिव्यक्त करता है कि मनुष्य का जीवन संक्षिप्त है | देखते ही देखते मानव-जीवन की संध्या आ जाती है | अतः मनुष्य को समय रहते अपनी मंजिल को पाने का प्रयास कर लेना चाहिये | इसके अतिरिक्त यह गीत इस भाव को भी अभिव्यक्त करता है कि प्रेम-जन्य मधुर क्षण बड़ी तेजी से बीत जाते हैं | घर लौट रहे किसी व्यक्ति को अगर यह एहसास हो कि घर पर कोई उसका इंतजार कर रहा है तो घर की तरफ बढ़ रहे उसके कदमों में तेजी आ जाती है लेकिन यदि उसे पता हो कि उसका कोई नहीं है जो घर पर उसका इंतजार कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में घर की तरफ बढ़ते हुए उसके कदम अचानक शिथिल पड़ जाते हैं | इस प्रकार यह कविता जीवन में प्रेम के महत्व पर भी प्रकाश डालती है |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

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उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

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