स्वतंत्र जुबान ( Swatantra Juban ) : लीलाधर जगूड़ी

मेरी कल्पना में एक ऐसा भी दृश्य आया आत्मा के खोजी कुत्ते सफेद रंग को घसीट कर ला रहे थे और सफेद रंग के काले खून में घुसे हुए पक्ष व विपक्ष बाहर न आने के लिए छटपटा रहे थे एक आदमी जो हर बार मेरे साथ उठता-बैठता है अमूमन हम एक-दूसरे की जासूसी करते … Read more

परिवार की खाड़ी में ( Parivar Ki Khadi Mein ) : लीलाधर जगूड़ी

बिस्तरे के मुहाने पर जंगली नदी का शोर हो रहा है और थपेड़े मकान की नींव से मेरे तकिये तक आ रहे हैं काँपते हुए पेड़ों को – भांपते हुए पत्नी ने कहा – आँधी और फिर बक्से के पास लौट आयी | 1️⃣ मेरे उठते ही खिड़की के रास्ते कमरे से हाथ मिला रहा … Read more

वृक्ष हत्या ( Vriksh Hatya ) : लीलाधर जगूड़ी

मुझे भी देखने पड़ेंगे अपनी छोटी-छोटी आंखों से बड़े-बड़े कौतुक मैं ही हूँ वह स्प्रिंगदार कुर्सी के सामने टंगा हुआ वसंत का चित्र मुझे ही झाड़ने पड़ेंगे सब पत्ते मुझे ही उघाड़नी पड़ेंगी एक-एक ठूंठ की गयी-गुजरी आँखें सभ्यता फैलाने वाले एक आदमी से मिलकर ऐसा सोचते हुए मैं जब लौट रहा था 15 तारीख … Read more