स्वतंत्र जुबान ( Swatantra Juban ) : लीलाधर जगूड़ी

मेरी कल्पना में एक ऐसा भी दृश्य आया

आत्मा के खोजी कुत्ते सफेद रंग को घसीट कर ला रहे थे

और सफेद रंग के काले खून में घुसे हुए पक्ष व विपक्ष

बाहर न आने के लिए छटपटा रहे थे

एक आदमी जो हर बार मेरे साथ उठता-बैठता है

अमूमन हम एक-दूसरे की जासूसी करते हैं

एक दिन

मेरे हिस्से के सारे अपराध भी

चुपचाप उसके शरीर में ही जाकर बस गए

ताकि जब कायरता का जिक्र चले

तो कहीं वह अपना नाम वापस न ले ले

और कहीं मैं अपने अपराधों से मुकर न जाऊं | 1️⃣

तब वह उठा

सवाल उठाने की गरज से

लेकिन उसकी जीभ कई मामलों से दबी हुई थी

वह जान-बूझकर अंधा हो गया

क्योंकि अगर सवाल उठाता है तो फंसता है

जब वह चुप बैठ गया तो दिखायी नहीं दिया

पानी में बैठे हुए पत्थर की तरह

मैं भी दबा-दबा देखता रहा

कि कौन कितने पानी में है | 2️⃣

जब कई सवाल उसके ऊपर से

उसके सामने से गुजर गए तो उससे रहा नहीं गया

मैं भी चाहता था कि हम दोनों उठें

और इन सवालों का जवाब दें

पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था

उसके पास क्या जवाब हैं

अब मुझे जासूसी करनी थी | 3️⃣

वह एक रात चुपचाप उठा

और सवालों के घोल से लोगों के कान पोत आया

जबकि लोगों के भीतर पहले ही बहुत से सवाल थे

उसकी जुबान से लोगों ने कुछ नहीं सुना

मगर जब लोगों के कान बहुत रंग गए

और वह दूर-दूर तक कहीं दिखायी नहीं दिया

तब उन्होंने अंदर ही अंदर मुंहमारी शुरू की

और सारे नगर को अपनी जुबान से कुतर डाला | 4️⃣

अब चारों ओर उड़ रहे थे

संशय और अफवाहें

अचानक उसने मेरे चारों ओर देखा

सारे सवाल टुकड़ों में उड़ रहे हैं

असली सवाल का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा

तब वह फिर उठा

मैं उसके चारों ओर फैला हुआ बेचैन हो रहा था | 5️⃣

उठते ही उसने ये तय किया

ताकि कल उसकी जुबान कहीं पकड़ी न जाए

जो पहले ही कई मामलों से दबी हुई है

इसलिए हरेक आदमी के पास

एक स्वतंत्र जुबान होनी चाहिए

जिससे वह एक स्वतंत्र बात कह सके

ताकि कल टहलने के लिए भी एक आड़ हो

कि कोई बताए

अगर ये बात मैंने अपनी जुबान से कही हो? 6️⃣

मगर तब तक एक काले कानों वाला सवाल उठा

और सामने खड़ा हो गया

कि स्वतंत्र जुबान आदमी कहाँ से लाए?

यह तो हो सकता है

कि अपनी ही जुबान स्वतंत्र कर ली जाए

वह भी उठा और सोच में पड़ा

सवाल उसको गहराई में ले गया

जहां हजारों जीभें दबी पड़ी थी | 7️⃣

उस खजाने के आस-पास

पानी के तल पर

उसने मेरे पैरों के निशान देखे

और भाग पड़ा

जुबान की आजादी के लिए

न मैं लड़ा न वो लड़ा

मगर उससे रहा नहीं गया

उसने अपने काम के लिए

जानवर की जुबान चुनी

और जानवरों में भी बैल की

जो उसके सबसे ज्यादा करीब था | 8️⃣

क्योंकि वह कइयों को चरना चाहता था

कई सवालों से बैलवानी करना चाहता था

कइयों के नीचे से छुड़ाकर जमीन

कइयों को गिराकर खंदकों में

कइयों को उठाना चाहता था सींगों पर

कइयों को अड्डी मारकर मारना चाहता था

वह कइयों के सामने गोबर करना चाहता था

ताकि उन्हें पता चले

आत्मा के क्या हाल हैं | 9️⃣

असल में वह जानवर की जुबान से

इस सारी धुंध

इस सारे धुएं को चाटना चाहता था

जैसे ताजा ब्याये हुए पशु

अपने बच्चों को चाटते हैं

उन्हें समर्थ बनाने के लिए

अभी वह कुछ नहीं बोला था

तभी मैंने महसूस की जानवर की जुबान

जो उसने ‘स्वतंत्र बोलने के लिए’ लगा ली थी

सड़ने लग गई है

और लोग कहने लगे

जिनके कान पहले ही बहुत रंगे हुए थे

यह अपनी जुबान से

एक समकालीन दुर्गंध फैला रहा है | (10)

सवालों की भीड़ में

अब तक जो कहीं नहीं थे

कुछ नए सवाल

उठे –

इसकी जुबान ठीक करो

या तो यह अपनी जुबान अपने पास रक्खे

किसी ने कहा – इसकी कोई जुबान नहीं

जब इसे कहना कुछ

और करना कुछ होता है –

तो यह इसी तरह अपनी जुबान बदल लेता है

मतलब कि इधर भी चरता है

उधर भी चरता है | (11)

अपनी सड़ी हुई ‘स्वतंत्र जुबान’ को लेकर

फिर वह उठ नहीं सका

और ‘असली जुबान’ से कुछ कह नहीं सकता था

इसलिए कि खामोखाम क्यों फसा जाए

वह मेरे पास आया, मैंने उसे नहीं कहा

कि तुम्हारी ‘नकली जुबान’ सड़ गई है |

मैंने कुछ और ही कहा –

मित्र ! इन दिनों सबने

अपनी असली जीभ का इस्तेमाल बंद कर दिया है

कोई भी कुछ कहकर फंसना नहीं चाहता | (12)

क्योंकि अब तुम्हारे बारे में

सवाल सिर्फ इतना ही नहीं रह गया

कि यह आदमी कौन है?

बल्कि सवाल यह भी है

कि इसकी असली जुबान कहाँ है?

इसीलिए यह सन 1974 है |

पिछली बार सन 47 में

केवल चार थे बायीं ओर

सात दायीं ओर थे

अबकी बार सात हैं बायीं ओर

दायीं ओर केवल चार हैं | (13)

इस समय इस बात का

बहुत बड़ा मतलब है

कि आपके क्या विचार हैं?

अब देखना यह है –

कि जो दबी हुई है

कहीं वह हमारी ही जुबान तो नहीं है?

और इस तरह हम दोनों के पास

एक होने के अलावा कोई दूसरा अंक नहीं था | (14)

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