परिवार की खाड़ी में ( Parivar Ki Khadi Mein ) : लीलाधर जगूड़ी

बिस्तरे के मुहाने पर

जंगली नदी का शोर हो रहा है

और थपेड़े

मकान की नींव से

मेरे तकिये तक आ रहे हैं

काँपते हुए पेड़ों को – भांपते हुए

पत्नी ने कहा – आँधी

और फिर बक्से के पास लौट आयी | 1️⃣

मेरे उठते ही

खिड़की के रास्ते

कमरे से हाथ मिला रहा है

गाँव का आकाश

परिवार की खाड़ी में लंगर डालकर

मेरा जहाज खड़ा है

मैं इस बार भी कहीं नहीं पहुँचूंँगा

एक नरक की मजबूती के लिए

उठे हुए बखेड़े पर किलें ठोकता हुआ

सोच रहा हूँ

जरूर कोई दूसरा किनारा है

कैसे कहा जा सकता है

कि अब नहीं चटकेगी

बहती उम्मीद पर ठोकी हुई

मेरी साधारण आत्मा | 2️⃣

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