वृक्ष हत्या ( Vriksh Hatya ) : लीलाधर जगूड़ी

मुझे भी देखने पड़ेंगे

अपनी छोटी-छोटी आंखों से बड़े-बड़े कौतुक

मैं ही हूँ वह

स्प्रिंगदार कुर्सी के सामने टंगा हुआ

वसंत का चित्र

मुझे ही झाड़ने पड़ेंगे सब पत्ते

मुझे ही उघाड़नी पड़ेंगी एक-एक ठूंठ की

गयी-गुजरी आँखें

सभ्यता फैलाने वाले एक आदमी से मिलकर

ऐसा सोचते हुए मैं जब लौट रहा था

15 तारीख वाले दुर्भाग्य की बगल में

देखा कि एक पेड़ अपने युद्ध में

हरा हो रहा है | 1️⃣

मेरे सामने मक्कारी में बदल गई

सभ्यता फैलाने वाले चेहरे की तपस्या

उसने उस वृक्ष को गांजा और कहा

यह एक तोरण एक मंच

और एक सिंहासन के लिए काफी है

कुल्हाड़ियों के जुलूस से पहले

जब वह उसे आंज रहा था

पक्षी आए

और बुरी तरह चिंचियाने लगे

उसने कहा – पक्षियों का कलरव

पक्षियों का समूहगान सुनो | 2️⃣

मैंने कहा

ये अपने घोंसलों के लिए रो रहे हैं

यह इस साल के

फूल

फल

और पत्ते

देख रहे हैं इस करवट लेते पेड़ के अंदर

जब कि तुम लकड़ी देख रहे हो | 3️⃣

उछल मेरे रक्त उछल

इस छल की रक्षा में व्यवधान पैदा कर

मुझको एक ही गम है कि जितनी भी हो

उथल-पुथल कम है | 4️⃣

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