भाषा और बोली में अंतर ( Bhasha Aur Boli Men Antar )

भाषा और बोली में स्पष्ट विभाजक रेखा खींचना बहुत कठिन कार्य है दोनों ही भावाभिव्यक्ति के माध्यम हैं । जब बोली किन्हीं कारणों से प्रमुखता प्राप्त कर लेती है तो भाषा कहलाती है | संक्षेप में बोली का स्वरूप भाषा की अपेक्षा सीमित होता है | वह भाषा की अपेक्षा छोटे भू-भाग में बोली जाती है | उसमें समृद्ध साहित्यिक परम्परा नहीं मिलती | उसकी अपनी लिपि और व्याकरण नहीं होता | भाषा और बोली के अंतर को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है —

(1) परस्पर सम्बन्धित बोलियाँ किसी एक ही भाषा का अंग होती हैं। अर्थात् भाषा अंगी है और बोलियाँ उसका अंग | भाषा की एक बोली दूसरी बोली से भिन्नता रखते हुए भी इतनी अधिक भिन्न नहीं होती कि दूसरी बोली बोलने वाले उसे समझ ही न सकें।

(2) शब्द भण्डार तथा उसे प्रयोग करने वाले जन समुदाय की दृष्टि से भाषा अधिक व्यापक होती है, जबकि बोली तुलनात्मक रूप से संकुचित होती है |

(3) बोली की तुलना में भाषा अधिक प्रतिष्ठित होती है।

(4) यद्यपि बोली का ही विकसित रूप भाषा कहलाता है, परन्तु बोली भाषा के अन्तर्गत ही आती है अर्थात् किसी भाषा की अनेक बोलियाँ हो सकती हैं, परन्तु किसी बोली की अनेक भाषाएँ नहीं हो सकतीं।

(5) शिक्षा, शासन तथा साहित्य में प्राय: भाषा का ही प्रयोग होता है, न कि बोली का। कई बार उच्च कोटि के साहित्यिक सृजन से बोलियां भी भाषा के दर्जा प्राप्त कर जाती हैं जैसे मध्यकाल में ब्रज भाषा और अवधी भाषा उच्च कोटि के साहित्य से भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई |

(6) किसी बोली का प्रयोग करने वाला व्यक्ति जब अपनी बोली- क्षेत्र से बाहर निकलता है, तब उसे अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का ही सहारा लेना पड़ता है।

अतः भाषा बोली की पूरक हो सकती है, परन्तु बोली भाषा की पूरक नहीं

(7) प्राय: यह माना जाता है कि भाषा का प्रयोग शिक्षितों एवं नगर-निवासियों द्वारा किया जाता है, जबकि बोली का प्रयोग अशिक्षित ग्रामीणों द्वारा किया जाता है। परन्तु यह सिर्फ मान्यता है कई बार कुछ शिक्षित व्यक्ति अपनी बोली को अपनी पहचान मानकर उसे भाषा से अधिक महत्व देते हैं |

(8) भाषा से बोली का विकास होता है, बोली से भाषा का नहीं।

(9) भाषा का मानक रूप होता है, लेकिन बोली का मानक रूप नहीं होता।

(10) भाषा का अपना व्याकरण होता है, बोली का प्रायः व्याकरण नहीं होता |

(11) बोली की अपनी लिपि नहीं होती | वह प्रायः उसी भाषा की लिपि में लिखी जाती है जिस भाषा से वह बनी है |

(12) भाषा में अपेक्षाकृत स्थिरता रहती है। बोलियों में परिवर्तनशीलता होती है।

(13) भले ही बोलियों का लिखित साहित्य नहीं होता लेकिन बोलियों में लोक-साहित्य व लोकगीतों की समृद्ध परंपरा होती है

(14) जहाँ दो भाषाओं में बोधगम्यता का अभाव होता है, वहीं एक भाषा के अंतर्गत आने वाली सभी बोलियों के बीच बोधगम्यता पाई जाती है। हिंदी बोलने वाला बंगाली और बंगाली बोलने वाला हिंदी नहीं समझ पाएगा, किंतु अवधी बोलने वाला भोजपुरी और भोजपुरी बोलने वाला अवधी समझ लेगा क्योंकि दोनों एक भाषा की उप-बोलियाँ हैं।

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