व्यावहारिक आलोचना ( Practical Criticism )

व्यावहारिक आलोचना ( Practical Criticism ) के प्रतिपादन से पूर्व रिचर्ड्स काव्य की भाषा के बारे में गंभीर चिन्तन कर चुके थे। उन्होंने काव्य की भाषा के दो प्रयोग स्वीकार किए हैं। इनमें से एक के अधीन वैज्ञानिक सत्य का निर्देश होता है और दूसरे में कवि की अनुभूतियों का सम्प्रेक्षण होता है। भाषा के … Read more

आई ए रिचर्ड्स का काव्य-मूल्य सिद्धान्त

आई ए रिचर्ड्स ( I. A. Rechards ) अंग्रेजी आलोचना साहित्य के प्रसिद्ध आलोचकों में से एक हैं | उनका जन्म 26 जनवरी, 1893 में हुआ | उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान का अध्ययन किया | कालांतर में उन्होंने आलोचना जगत में पदार्पण किया | आलोचना जगत में आई ए रिचर्ड्स ( I. … Read more

मैथ्यू आर्नल्ड का आलोचना सिद्धांत

मैथ्यू आर्नल्ड मूलतः एक कवि थे परन्तु बाद में वे आलोचक के रूप में विख्यात हुए । उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में समाज, शिक्षा, धर्म और साहित्य-संस्कृति के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित समस्याओं का विवेचन किया। उनका कहना था कि-साहित्य जीवन की आलोचना है। उनका विचार था कि जीवन से असम्बद्ध साहित्यिक सौन्दर्य की विवेचना … Read more

अरस्तू का त्रासदी सिद्धांत

अरस्तू ने काव्य के प्रमुख पाँच भेद स्वीकार किए हैं। ये हैं — (1) महाकाव्य (2) त्रासदी (3) कामदी (4) रौद्र स्तोत्र तथा (5) गीतिकाव्य । इन सबमें वे महाकाव्य को श्रेष्ठ मानते हैं। वे नाटक के दो भेद मानते हैं-कामदी तथा त्रासदी। कामदी में प्रायः सुखद घटनाएँ होती हैं तथा इसका अन्त भी सुखद … Read more

निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत

इलियट बीसवीं शताब्दी के अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि और आलोचक थे। कॉलरिज के बाद इलियट का ही नाम आता है। इलियट ने स्वयं को क्लासिकवादी कहा है। क्लासिक से उनका मतलब था ‘परिपक्वता’ या ‘प्रौढ़ता’ । क्लासिकवाद के लिए उन्होंने मस्तिष्क की प्रौढ़ता, शरीर की प्रौढ़ता और भाषा की प्रौढ़ता को आवश्यक माना है। मस्तिष्क … Read more

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत पाश्चात्य काव्य-शास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | कॉलरिज रोमांटिक युग के एक महत्त्वपूर्ण कवि तथा आलोचक थे | उनका जन्म 1772 ईस्वी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा ‘क्राइस्टस चिकित्सालय’ तथा कैम्ब्रिज में हुई। विद्यार्थी जीवन में ही कॉलरिज में एक महान् कवि एवं आलोचक के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से … Read more

मशीनी अनुवाद : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप व प्रकार

सामान्य शब्दों में एक भाषा की सामग्री को दूसरी भाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है | एक अनुवादक स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दोनों की बारीकियों को समझते हुए अनुवाद कार्य का निष्पादन करता है | अनुवाद एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि इसमें केवल शब्दों को ही दूसरी भाषा में रूपांतरित नहीं किया जाता … Read more

टिप्पण या टिप्पणी : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएं और प्रकार

टिप्पण या टिप्पणी का कार्यालयों के लिए एक विशेष महत्व है | यह अंग्रेजी शब्द नोटिंग ( Noting ) का हिंदी अनुवाद है | ‘नोटिंग’ शब्द लैटिन के Nota से बना है जिसका अर्थ है – जानना| इसके लिए ‘कमेंट’ या ‘एनोटेशन’ का भी प्रयोग किया जाता है | कार्यालयों में आवेदन पत्रों को सरलता … Read more

विलियम वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत

विलियम वर्ड्सवर्थ का आधुनिक पाश्चात्य काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है | उसने उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में नव्यशास्त्रवाद (Neoclassicism) से सम्बन्ध विच्छेद करके एक सर्वथा नवीन विचारधारा को जन्म दिया। विलियम वर्ड्सवर्थ के इन विचारों को पाश्चात्य काव्यशास्त्र में स्वच्छंदतावाद के नाम से जाना जाता है | उनके विचार उनकेप्रसिद्ध काव्य-संग्रह Lyrical Ballads के द्वितीय … Read more

अनुवाद : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

अनुवाद का अर्थ अनुवाद शब्द संस्कृत की ‘वद्’ धातु में ‘अनु’ उपसर्ग तथा ‘घयं’ प्रत्यय लगाने से बना है | अनु का अर्थ है – पीछे और वाद का अर्थ है-कथन। अतः अनुवाद उस कथन को कहा जाता है जो किसी पूर्व कथन का अनुसरण करके कहा गया हो या फिर लिखा गया हो। अंग्रेजी … Read more

जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत

जॉन ड्राइडन का पाश्चात्य आलोचना जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे | वे आलोचक के साथ-साथ प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा व्यंग्यकार थे। उनके आलोचना सिद्धान्त उनकी रचनाओं की भूमिकाओं में मिलते हैं। उन्होंने सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाओं के बारे में अपने मत व्यक्त किए। वे एक … Read more

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत

पाश्चात्य काव्यशास्त्र में प्लेटो तथा अरस्तू के पश्चात लोंजाइनस एक महत्वपूर्ण काव्यशास्त्री हुए हैं | लोंजाइनस ने अपनी काव्य संबंधी अवधारणा अपनी पुस्तक पेरिइप्सुस में प्रस्तुत की है | बहुत लंबे समय तक यह पुस्तक अंधकार के गर्त में रही | आरंभ में इसके केवल कुछ अंश प्राप्त हुए ; 1554 ईस्वी में इस ग्रंथ … Read more

अरस्तू का विरेचन सिद्धांत

अरस्तू यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो का शिष्य था | अरस्तू का विरेचन सिद्धांत अपने गुरु प्लेटो के काव्य संबंधी सिद्धांत का प्रतिवाद कहा जा सकता है | प्लेटो की यह धारणा थी कि काव्य हमारी क्षुद्र वासनाओं को उभरता है और आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधा बनता है | उनका मानना था कि … Read more

अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत

अरस्तू प्लेटो के प्रतिभाशाली शिष्य होने के साथ-साथ एक महान् चिन्तक भी थे | यही कारण है कि उन्होंने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, उन्हें सभी परवर्ती पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार किया। प्लेटो का शिष्य होते हुए भी अरस्तू ने प्लेटो के विचारों का खंडन करके अपना भौलिक चिंतन प्रस्तुत किया। अरस्तू के पिता राजवैद्य … Read more

प्लेटो की काव्य संबंधी अवधारणा

प्लेटो एक महान पाश्चात्य विचारक थे | एक महान दार्शनिक होने के साथ-साथ साहित्य जगत में एक आलोचक के रूप में भी विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे | प्लेटो से पूर्व, होमर, हैसीयाड, अरिस्टोफेनिस आदि विद्वानों के मत मिलते हैं। ये विद्वान् काव्य का लक्ष्य शिक्षा देना और आनन्द प्रदान करना मानते थे। प्लेटो कवि … Read more