काव्यात्मा संबंधी विचार

वेदों व अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में आत्मा शब्द का प्रयोग श्वास, प्राण, जीवन, परमात्मा आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है| विभिन्न दार्शनिकों का विचार है कि यह आत्मा परमात्मा का एक अंश है। अतः आत्मा और परमात्मा में अंश-पूर्ण का सम्बन्ध है। मानव शरीर इसी आत्मा के कारण जीवित है। काव्यशास्त्र में काव्यात्मा … Read more

औचित्य सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएं

औचित्य सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र सिद्धांतों में सबसे नवीन सिद्धांत है | भारतीय काव्यशास्त्र के अन्य सभी सिद्धांतों के अस्तित्व में आने के पश्चात इस सिद्धांत का आविर्भाव हुआ | दूसरे शब्दों में इसे संस्कृत काव्यशास्त्र का अंतिम सिद्धांत भी कह सकते हैं | आचार्य क्षेमेंद्र ने औचित्य सिद्धांत का प्रवर्तन किया | यह सिद्धांत आने … Read more

ध्वनि सिद्धांत ( Dhvani Siddhant )

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि-सिद्धांत का अभ्युदय 9वीं सदी में हुआ | इससे पूर्व रस सिद्धांत, अलंकार सिद्धांत तथा रीति सिद्धांत को पर्याप्त लोकप्रियता मिल चुकी थी | ध्वनि-सिद्धांत के संस्थापक आनंदवर्धन ने ध्वनि की मौलिक उदभावना करके काव्य के अंतर्तत्त्वों की विशद व्याख्या की | उन्होंने काव्यात्मा के संदर्भ में प्रचलित भ्रांतियों पर व्यापक प्रकाश … Read more

वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

वक्रोक्ति सिद्धांत ( Vakrokti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है | वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्त्तक आचार्य कुंतक थे | आचार्य कुंतक से पहले के आचार्य वक्रोक्ति को अलंकार मात्र मानते थे परन्तु आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को विशेष महत्त्व प्रदान किया | कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य के सौंदर्य का आधार मानते … Read more

रीति सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत के पश्चात रीति सिद्धांत ( Riti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण देन कही जा सकती है | रीति सिद्धांत का प्रवर्तन अलंकारवादी सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप माना जाता है | रीति सिद्धांत के प्रवर्तक श्रेय आचार्य वामन माने जाते हैं जिन्होंने अपनी रचना ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’ में इसका विस्तृत विवेचन किया है … Read more

अलंकार सिद्धांत : अवधारणा एवं प्रमुख स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र में सर्वाधिक प्राचीन सिद्धांत है | प्रत्येक आचार्य ने अलंकारों को किसी न किसी रूप में महत्व दिया है | अलंकार सिद्धांत के प्रतिपादक भामह माने जाते हैं परंतु भामह के अतिरिक्त दंडी, उद्भट तथा रूद्रट ने भी अलंकारों की अनिवार्यता का जोरदार समर्थन किया है | अलंकार सिद्धांत के विषय … Read more

सहृदय की अवधारणा ( Sahridya Ki Avdharna )

‘रस सिद्धांत’ के अंतर्गत रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण आदि की विस्तृत चर्चा हुई है | इसके पश्चात साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदय की अवधारणा की चर्चा हुई | इसका कारण यह है कि रसानुभूति सहृदय ही करता है | सहृदय का अर्थ एवं स्वरूप ( Sahridya Ka Arth Evam Swaroop ) ‘सहृदय’ शब्द का अर्थ है – … Read more

साधारणीकरण : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

साधारणीकरण के सिद्धांत की चर्चा रस-निष्पत्ति के संदर्भ में ही की जाती है | आचार्य भरतमुनि के रस सूत्र – ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगादरसनिष्पत्ति:’ – की व्याख्या करते हुए भट्टनायक ने इस सिद्धांत का प्रवर्त्तन किया | पाश्चात्य विचारकों टी एस इलियट आदि ने भी इस सिद्धांत के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है | विद्वान प्रायः यह … Read more

संपादक : गुण व दायित्व ( Sampadak : Gun V Dayitv )

संपादक ( Sampadak ) समाचार पत्र रूपी जलयान का कप्तान होता है | वह समाचार पत्र के विभिन्न क्षेत्रों का संचालन व नियमन करता है | वह संस्था के विभिन्न कर्मचारियों – संवाददाता, उप-संपादक, सह-संपादक , विज्ञापन-प्रबंधक आदि के मध्य समन्वय स्थापित करता है | समाचार पत्र की नीति के परिपालन का दायित्व उसका होता … Read more

फीचर का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, विशेषताएँ / गुण

फीचर आधुनिक युग की नवीन विधा है | यह विधा पत्रकारिता के क्षेत्र में हाल ही में विकसित हुई है | समाचार पत्रों के चार प्रमुख अंग होते हैं – समाचार, लेख, फीचर तथा चित्र | फीचर एक विशेष आलेख होता है | अपनी विभिन्न विशेषताओं के कारण यह अन्य तीन अंगों से सर्वथा भिन्न … Read more

शीर्षक-लेखन का महत्त्व एवं विशेषताएँ

समाचार, निबंध, कहानी, उपन्यास व किसी भी साहित्यिक विधा में शीर्षक का विशेष महत्त्व है | समाचार-लेखन में शीर्षक-लेखन का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है | प्रायः समाचार पत्रों के पाठक शीर्षक को देखकर ही उसे पढ़ने या छोड़ने का निर्णय लेते हैं | अतः समाचार के शीर्षक का सरल, संक्षिप्त और जिज्ञासावर्धक होना … Read more

भाषा के विविध रूप / भेद / प्रकार ( Bhasha Ke Vividh Roop / Bhed / Prakar )

सामान्य शब्दों में भाषा शब्द का प्रयोग मनुष्य की व्यक्त वाणी के लिए किया जाता है | भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है और दूसरों के विचार समझ पाता है | यद्यपि कुछ कार्य संकेतों और शारीरिक कष्टों के द्वारा किया जा सकता है लेकिन यह पर्याप्त … Read more

पारिभाषिक शब्दावली : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

पारिभाषिक शब्द अंग्रेजी के ‘टेक्निकल’ शब्द का हिंदी अनुवाद है | ‘टेक्निकल’ शब्द ग्रीक भाषा के ‘टेक्निक्स’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है – विशिष्ट कला का या विज्ञान का या कला के बारे में |इस आधार पर पारिभाषिक शब्द वे शब्द होते हैं, जो किसी विशिष्ट कला या विज्ञान की किसी शाखा से … Read more

पत्रकारिता के प्रकार / क्षेत्र या आयाम

आरंभ में पत्रकारिता केवल समाचारों के संकलन व प्रकाशन तक ही सीमित थी परंतु बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों की बदलती रुचियों, सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों और विज्ञान के नए-नए आविष्कारों ने पत्रकारिता को विविध आयामी बना दिया है | आज पत्रकारिता का क्षेत्र केवल समाचार पत्र तक सीमित न रहकर दूरदर्शन, आकाशवाणी, चलचित्र, इंटरनेट आदि क्षेत्रों तक … Read more

पत्रकारिता : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप एवं महत्त्व

पत्रकारिता का सीधा संबंध समाचार पत्रों व पत्रिकाओं से है | कोई भी महत्वपूर्ण घटना जो लोगों को प्रभावित करती हो या जिससे लोग रोमांचित होते हों, समाचार कहलाती है | समाचार जिस पत्र में प्रकाशित होते हैं, वह समाचार पत्र कहलाते हैं और जिस प्रक्रिया के माध्यम से समाचार लिखित रूप तक पहुंचते हैं, … Read more