डॉ धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय ( Dr Dharamvir Bharati Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – डॉ धर्मवीर भारती प्रयोगवादी कविता के प्रमुख कवि थे | इनका जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद में हुआ | इनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा तथा माता का नाम श्रीमती चंदा देवी था | इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विश्वविद्यालय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तथा इसी विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए | 1951 में प्रकाशित हुए दूसरे तार सप्तक से इन्होने हिंदी साहित्य में अपनी पहचान बनायी | सन 1959 में इन्होंने ‘धर्मयुग’ पत्र के संपादक का कार्यभार संभाला | ‘धर्मयुग’ के अतिरिक्त उन्होंने ‘निकष’ तथा ‘संगम’ नामक पत्रों का भी संपादन किया | यह आजीवन साहित्य साधना में लीन रहे | 4 सितंबर, 1997 को मुंबई में इनका देहांत हो गया |

प्रमुख रचनाएँ – डॉ धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | उन्होंने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई | उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं : –

काव्य संग्रह – ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कनुप्रिया, सपना अभी भी आदि |

गीति नाट्य – अंधा युग |

कहानी संग्रह – बंद गली का आखिरी मकान, चाँद और टूटे हुए लोग, मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी |

उपन्यास – गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश |

निबंध संग्रह – ठेले पर हिमालय, पश्यंति, कहनी-अनकहनी, मानव मूल्य और साहित्य आदि |

साहित्यिक विशेषताएँ / काव्यगत विशेषताएँ

डॉ धर्मवीर भारती के लेखन में अनेक परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं | उनके काव्य में छायावाद, स्वच्छंदतावाद और प्रयोगवाद के दर्शन होते हैं | उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं : –

(1) रोमांस की भावना – डॉ धर्मवीर भारती की आरंभिक कविताओं में रोमांस की भावना प्रबल है | उनकी कविताओं में प्रेम, सौंदर्य, कामवासना आदि की उन्मुक्त अभिव्यक्ति हुई है | ‘इन फिरोजी होठों पर’, ‘मुग्धा’, ‘गुनाहों का दूसरा गीत’ आदि कविताओं में यह स्वर प्रधान है | उनकी रोमांस भावना छायावाद की प्रतिक्रिया मानी जाती है | छायावादी कवियों के विपरीत उनका प्रेम बाह्य एवं मांसल है | वे वासना को ही जीवन का मापदंड मानते हैं |

“न हो वासना तो जिंदगी का माप कैसे हो |

किसी के रूप का सम्मान मुझ पर पाप कैसे हो ||”

(2) प्रकृति वर्णन – डॉ धर्मवीर भारती की कविताओं में प्रकृति का चित्रण आलम्बनगत व उद्दीपनगत, दोनों रूपों में हुआ है | लेकिन उद्दीपनगत प्रकृति चित्रण में वे अधिक सफल हुए हैं | प्रकृति में भी वे रोमानियत ढूंढते हैं | ‘फागुन की शाम’ कविता में उन्मन शाम कवि को उसकी प्रेमिका की याद दिलाती है | ‘नवंबर की दोपहर’, ‘सांझ का बादल’ आधी कविताएं भी प्रकृति के सुंदर चित्र प्रस्तुत करती हैं |

(3) निराशा की भावना – अनास्था और निराशा प्रयोगवाद की प्रमुख प्रवृत्ति है | यह प्रवृत्ति डॉ धर्मवीर भारती की कविताओं में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | उनकी कविताओं में निराशावाद का एक उदाहरण देखिये –

ऐसा लगता है आज कि मेरा सारा जीवन नष्ट,

ऐसा लगता है आज की मेरी सारी साधना भ्रष्ट,

मैंने हर दम घोंटा अपने सपनों का दम |

उनके गीतिनाट्य ‘अंधायुग’ में अनास्था और निराशा का यह स्वर अपने चरम पर दिखाई देता है | इस गीति नाटक के माध्यम से कवि ने धृतराष्ट्र ही नहीं बल्कि महाभारत के सभी पात्रों को अंधा बताया है | इस काल्पनिक कथा के माध्यम से उन्होंने आज के युग में व्याप्त अमानवीयता, अनास्था और निराशा का कटु चित्रण किया है |

(4) आस्था का स्वर – यद्यपि डॉक्टर धर्मवीर भारती के साहित्य में अनास्था का स्वर प्रबल है परंतु कहीं-कहीं आस्था और निर्माण का स्वर भी दिखाइए | ‘थके हुए कलाकार से’, ‘फूल, मूर्तियां और टूटे सपने’ आदि कविताओं में आस्था और विश्वास की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | ‘थके हुए कलाकार से’ कविता से एक उदाहरण देखिये –

सृजन की थकान भूल जा देवता !

अभी तो पड़ी है धरा अधबनी

अधूरी धरा पर नहीं है कहीं

अभी स्वर्ग की नींव का भी पता |

सृजन की थकन भूल जा देवता |

धीरे-धीरे उनका आस्था का यह स्वर और दृढ़ होता जाता है | कवि कहता है कि हम भविष्य में एक बार फिर से विकसित होंगे |

“कल भी हम खिलेंगे

हम चलेंगे

हम उगेंगे

और

वे सब साथ होंगे

आज जिन को रात ने भटका दिया है |”

(5) कला पक्ष – डॉ धर्मवीर भारती जी की भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है | उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं | इनकी कविताओं में शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकार मिलते हैं | मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा सशक्त बन गई है | बिम्ब विधान व प्रतीक योजना सुन्दर व प्रभावशाली है | संगीतात्मकता का तत्व इनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषता है |

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