जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 में काशी में हुआ था | जयशंकर प्रसाद जी धनी परिवार से संबंध रखते थे | इनका बचपन बहुत खुशहाली से बीता | इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई परंतु वह केवल सातवीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई जारी रख सके | जब वे 12 वर्ष के थे तब उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा जिस कारण इनकी पढ़ाई रुक गई लेकिन बड़े भाई ने इनकी पढ़ाई की व्यवस्था घर पर ही कर दी | इस प्रकार घर पर रहते हुए ही प्रसाद जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की | वे जीवन भर साहित्य-साधना में लीन रहे | साहित्य ही इनके जीवन का एकमात्र ध्येय था | 1937 ईo में इनका देहांत हो गया |

प्रमुख रचनाएं – प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | उन्होंने कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई |

काव्य संग्रह – लहर, झरना, आँसू , कामायनी आदि |

उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती (अधूरा )

कहानी संग्रह – छाया, आकाशदीप, आंधी आदि |

नाटक – राज्यश्री, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी , एक घूंट कल्याणी आदि |

साहित्यिक विशेषताएँ

1.राष्ट्रीय भावना – इनके साहित्य की प्रमुख विशेषता राष्ट्रीय भावना है | इनकी अधिकांश रचनाओं में देश के प्रति बलिदान, त्याग, समर्पण तथा देशवासियों के प्रति करुणा आदि भावों का वर्णन मिलता है | उनके नारी पात्र भी पुरुष पात्रों की तरह राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत दिखाई देते हैं |

2. प्रेम भावना – प्रसाद जी नारी एवं पुरुष के उदात्त प्रेम को अधिक महत्व देते हैं | इनकी रचनाओं में प्रेम के जिस रूप का वर्णन किया गया है वह केवल मांसल या दैहिक नहीं वरन् आत्मिक है | इनकी बहुत सी रचनाओं में पुरुष व नारी पात्र अपनी प्रिय के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं | इनकी दृष्टि में केवल प्रिय को पाना ही प्रेम नहीं है बल्कि प्रिय के लिये अपनी प्रेम का बलिदान कर देना भी प्रेम है | इनकी नाट्य रचनाओं में प्रेम के ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं | जबकि काव्य रचनाओं में वे जिस प्रेम का निरूपण करते हैं वह लौकिक प्रेम की अपेक्षा अलौकिक प्रेम अधिक लगता है |

3. प्रकृति वर्णन – प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थानों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है | ‘लहर’ की अनेक कविताएं प्रकृति वर्णन से संबंधित हैं | प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावनाओं का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता रही है | इसके साथ-साथ प्रकृति-वर्णन के माध्यम से मानव-जीवन की अनेक अनसुलझी ग्रंथियों व भावनाओं की अभिव्यक्ति भी वे बड़ी सुंदरता से करते हैं |

4. नारी भावना – छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य व उच्च मानवीय भावनाएं हैं |

5. कला पक्ष –प्रसाद जी की भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक एवं विषयानुकूल है | उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं | मुहावरों एवं लोकोक्तियां के प्रयोग से उनकी भाषा सशक्त बन गई है | बिम्ब-योजना एवं प्रतीकों एवं का प्रयोग उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है |

प्रसाद जी ने प्रबंध और गीतिकाव्य इन दो काव्य-रूपों को अधिक अपनाया है | ‘कामायनी’ इनका प्रसिद्ध महाकाव्य है | ‘लहर’, ‘झरना’, आँसू गीतिकाव्य हैं | प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दावली की प्रधानता है | प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद ; तीनों काव्य गुण विद्यमान हैं | उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं |

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