उड़ चल, हारिल ( Ud Chal Haaril ) : अज्ञेय

उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका

उषा जाग उठी प्राची में -कैसी बाट भरोसा किनका !

शक्ति रहे तेरे हाथों में – छूट ना जाय यह चाह जीवन की ;

शक्ति रहे तेरे हाथों में – रुक ना जाय यह गति जीवन की ! (1)

ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढा चीरता चल दिक् मण्डल,

अनथक पंखों की चोटों से नभ में एक मचा दे हलचल !

तिनका? तेरे हाथों में है अमर एक रचना का साधन-

तिनका? तेरे पंजे में है विधना के प्राणों का स्पंदन ! (2)

काँप न, यद्यपि दसों दिशा में तुझे शून्य नभ घेर रहा है,

रुक न, यद्यपि उपहास जगत का तुझको पथ से हेर रहा है ;

तू मिट्टी था, किंतु आज मिट्टी को तूने बांध लिया है,

तू था सृष्टि, किन्तु स्रष्टा का गुर तूने पहचान लिया है ! (3)

मिट्टी निश्चय है यथार्थ, पर क्या जीवन केवल मिट्टी है?

तू मिट्टी, पर मिट्टी से उठने की इच्छा किसने दी है?

आज उसी ऊर्ध्वंग ज्वाल का तू है दुर्निवार हरकारा

दृढ ध्वज-दंड बना यह तिनका सूने पथ का एक सहारा | (4)

मिट्टी से जो छीन लिया है वह तज देना धर्म नहीं है ;

जीवन-साधन की अवहेलना कर्मवीर का कर्म नहीं है |

तिनका पथ की धूल, स्वयं तू है अनंत की पावन धूलि –

किंतु आज तूने नभ-पथ में क्षण में बद्ध अमरता छू ली !

उषा जाग उठी प्राची में – आवाह्न यह नूतन दिन :

उड़ चल हारिल, लिये हाथ में एक अकेला पावन तिनका ! (5)

‘उड़चल, हारिल’ कविता का प्रतिपाद्य या कथ्य ( ‘Ud Chal, Haril’ Kavita Ka Pratipadya Ya Kathya )

‘उड़चल, हारिल’ अज्ञेय जी की एक प्रसिद्ध कविता है | इस कविता में उन्होंने हमेशा अपने पंजों में एक तिनका दबाए रखने वाले हारिल पक्षी का उदाहरण देकर मनुष्य को छोटी से छोटी वस्तु को ही अपने जीवन का आधार बनाने व आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है |

हारिल नामक पक्षी अपने पंजों में सदैव एक तिनका दबाये रखता है तथा उसे ही अपने जीवन का आधार समझकर आकाश की ऊंचाइयों को छूता है | मनुष्य को इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि वह अपने सीमित संसाधनों के बल पर विकास के पथ पर अग्रसर रहे |

कवि कहता है कि जिस प्रकार हारिल पक्षी जो स्वयं मिट्टी है परंतु मिट्टी को बांध लेने की शक्ति प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार मनुष्य भी अपनी संघर्ष-शक्ति के बल पर यह शक्ति प्राप्त कर सकता है |

“तू मिट्टी था, किंतु आज मिट्टी को तूने बांध लिया है ;

तू था सृष्टि, किंतु स्रष्टा का गुर तूने पहचान लिया है |”

कहने का भाव यह है कि मनुष्य यद्यपि उस ईश्वर की एक रचना है परंतु अपने प्रयासों से वह ईश्वर के रचना-कर्म सीख सकता है और अनेक कलाकृतियों की रचना कर सकता है |

कवि कहता है कि कोई भी साधन छोटा या बड़ा नहीं होता | मनुष्य एक बार जिस साधन को अपना जीवन साधन बना ले उसके प्रति उसके मन में पूर्ण विश्वास होना चाहिए | मनुष्य को कभी भी अपने जीवन साधन की अवहेलना नहीं करनी चाहिए |

“जीवन-साधन की अवहेलना कर्मवीर का कर्म नहीं है |”

निष्कर्षत: ‘उड़चल, हारिल’ कविता में कवि ने मनुष्य को अपने सीमित संसाधनों पर विश्वास रखने व निरंतर विकास करने के लिये कर्म करने की प्रेरणा दी है |