सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय

जीवन-परिचय – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Suryakant Tripathi Nirala ) जी छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक प्रमुख कवि थे | केवल छायावाद ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में उनका एक विशेष स्थान है | उन्होंने हिंदी कविता को एक नया रूप प्रदान किया |

उनका जन्म 1896 ईo में बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ | उनके पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी था जो मूल रूप से उन्नाव के रहने वाले थे | निराला जी को अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | उनके जन्म के तीन वर्ष बाद उनकी माता का देहांत हो गया | 1911 में उनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ परंतु वह एक पुत्र और पुत्री को जन्म देकर अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गयी | 1935 ईस्वी में उनकी पुत्री सरोज का भी निधन हो गया | साहित्य जगत में भी उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | उनकी आरंभिक रचनाओं को संपादक अप्रकाशित लौटा देते थे | परंतु जल्दी ही उनकी रचनाएं संपादकों की पसंद बनने लगी | वे निरंतर साहित्य साधना में लीन रहे | 1961 ईस्वी में उनका देहांत हो गया |

प्रमुख रचनाएँ – निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई | उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं –

(क ) काव्य-संग्रह – परिमल, अनामिका, गीतिका, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, बेला, अपरा आदि |

(ख ) कहानी संग्रह – लिली, सखी, चतुरी चमार, सुकुल की बीबी आदि |

(ग ) उपन्यास – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा आदि |

साहित्यिक विशेषताएँ / काव्यगत विशेषताएँ ( Nirala Ji Ke Sahity Ki Pramukh Visheshtayen )

निराला जी के साहित्य का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है | उनके साहित्य में छायावाद की प्रवृत्तियों के साथ-साथ प्रगतिवादी साहित्य की प्रवृतियां भी मिलती हैं | उनके काव्य की प्रमुख साहित्यिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं : –

(1) राष्ट्रीय भावना – निराला जी का साहित्य राष्ट्रप्रेम की भावना से परिपूर्ण है | उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतवासियों को देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए प्रेरित किया | ‘जागो फिर एक बार’ कविता में उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी का उदाहरण देकर युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने के लिए प्रेरित किया | ‘खून की होली जो खेली’ कविता में उन्होंने देश के लिए बलिदान होने वाले शहीदों का गुणगान किया है |

(2) प्रकृति वर्णन – निराला जी की कविताओं में अनेक स्थानों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है | वे आलंबनगत तथा उद्दीपनगत दोनों रूपों में प्रकृति का चित्रण करते हैं | उन्होंने अपनी कविता में प्रकृति के विभिन्न अवयवों का मानवीकरण किया है | ‘बादल राग’ कविता में उन्होंने बादलों को क्रांति के दूत के रूप में प्रस्तुत किया है | छोटे पौधों को शोषित वर्ग का प्रतीक मानते हुए वे कहते हैं –

“हँसते हैं छोटे पौधे लघु-भार –

शस्य-अपार

हिल-हिल, खिल-खिल

हाथ हिलाते, तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते |”

(3) नारी भावना – निराला जी अपनी कविताओं में नारी के प्रति सद्भावना अभिव्यक्त करते हैं | यद्यपि आरंभिक कविताओं के माध्यम से उन पर यह आरोप लगाया गया है कि वे नारी के शारीरिक सौंदर्य का वर्णन करते हैं परंतु ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं | सच तो यह है कि उन्होंने अपनी अधिकांश कविताओं में नारी के पवित्र गुणों का वर्णन किया है | ‘विधवा’ कविता में वे एक भारतीय विधवा के दयनीय जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं | ‘तोड़ती पत्थर’ कविता में वह सड़क पर काम कर रही एक श्रमिक महिला का वर्णन करके हिंदी-कविता को एक नया आयाम प्रदान करते हैं |

(4) प्रगतिवादी भावना – निराला जी छायावाद के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके काव्य में प्रगतिवादी भावना सबसे अधिक दिखाई देती है | उन्होंने अपनी कविताओं में दलितों, शोषितों और पीड़ितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है | उनकी अनेक कविताओं में अत्याचारी जमींदारों, महाजनों जैसे शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश व्यक्त होता है | बादल राग, कुकुरमुत्ता, तोड़ती पत्थर, भिक्षुक आदि कवितायें प्रगतिवादी भावना से ओतप्रोत हैं |

(5) विद्रोह की भावना – निराला जी की कविताओं में विद्रोह का स्वर दिखाई देता है | वे अपनी कविताओं में समाज की गलत परंपराओं का विरोध करते हैं | यहां तक की काव्य-क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक प्रचलित परंपराओं को थोड़ा | उन्होंने कविता को छंद के बंधनों से मुक्त कर स्वतंत्र रूप में प्रवाहित होने दिया |

(6) श्रृंगारिकता – श्रृंगारिकता छायावादी काव्य का प्रमुख तत्व है | कोई भी छायावादी कवि श्रृंगार भावना से अछूता नहीं है परंतु छायावादी कवियों की यह श्रृंगारिकता रीतिकालीन कवियों की श्रृंगारिकता से भिन्न है | छायावादी कवियों की श्रृंगार भावना अलौकिकता व पवित्रता लिए हुए है परंतु कहीं-कहीं अश्लीलता के दर्शन भी होते हैं | निराला जी की कविता ‘जूही की कली’ पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया |

(7) कला पक्ष – निराला जी की भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक एवं विषयानुकूल है | उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं | मुहावरों एवं लोकोक्तियां के प्रयोग से उनकी भाषा सशक्त बन गई है | बिम्ब-योजना एवं प्रतीकों एवं का प्रयोग उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है | उनके काव्य में ही शब्दालंकार अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है |

निराला जी की सबसे बड़ी देन उनका मुक्त छंद है | उन्होंने मुक्त छंद का निर्भीकता के साथ प्रयोग किया | आरंभ में उनका विरोध किया गया परंतु बाद में साहित्य जगत में उनकी इस देन को स्वीकार कर लिया गया |

काव्य-रूप के दृष्टिकोण से उन्होंने प्रबंध-काव्य तथा मुक्तक काव्य दोनों प्रकार के काव्यों की रचना की है |

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