काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती ( Kale Megha Pani De : Dharmveer Bharti )

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग -2’ में संकलित ‘काले मेघा पानी दे’ अध्याय के मूल पाठ तथा अभ्यास के प्रश्नों को दिया गया है | )

काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती
काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती

उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली | बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत | जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेंढक-मंडली | उनकी अगवानी गलियों से होती थी | वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन, सिर्फ एक जाँघिया या कभी-कभी सिर्फ लंगोटी | एक जगह इकट्ठे होते थे | पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय |” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे | स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे, बारजे से झाँकने लगती थी और यह विचित्र नंग-धड़ंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी :

काले मेघा पानी दे

गगरी फूटी बैल पियासा

पानी दे, गुड़धानी दे

काले मेघा पानी दे |

उछलते-कूदते एक दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रुक जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है |” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी या घड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था | यह भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे | हाथ, पाँव, बदन, मुँह पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बांधकर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, ” काले मेघा पानी दे |” वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गर्मी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो | शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी | जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी की चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े | ढोल-डंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम-निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना |

वर्षा के बादलों के स्वामी, हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी मांगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए | पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो | बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंखते हैं! कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की | देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से | कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं मांग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड है | अंधविश्वास है | ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए |

मैं असल में था तो इन्हीं मेंढक-मंडली वालों की उम्र का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था – सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था | अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था | मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थी जीजी | यूँ मेरे रिश्ते में कोई नहीं थी | उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थी, पर अपने लड़के-बहू सब को छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे | और वे थी कुछ उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमार-सुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था | पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा -विधान, कोई त्यौहार-अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। दीवाली है तो गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाने में लगा हूँ, जन्माष्टमी है तो रोज आठ दिन की झांकी तक को सजाने और पंजीरी बांटने में लगा हूँ, हर-छठ है तो छोटी रंगीन कुल्हियों में भूजा भर रहा हूँ। किसी में भुना चना, किसी में भुनी मटर , किसी में भुने अरवा चावल, किसी में भुना गेहूं। जीजी यह सब मेरे हाथों से कराती , ताकि उनका पुण्य मुझे मिले। केवल मुझे।

लेकिन इस बार मैंने साफ इंकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेंढक मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गई उनके बूढ़े पांव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेर कर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वह भी तमतमाई , लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोली, “देख भइया रूठ मत | मेरी बात सुन | यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला | फिर जीजी बोली, “तू इसे पानी की बर्बादी समझता है पर यह बर्बादी नहीं है | यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊंचा स्थान दिया है।”

“ऋषि-मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी? क्या उन्होंने कहा था कि जब आदमी बूँद-बूँद पानी को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ?”

कुछ देर चुप रही जीजी, फिर मठरी मेरे मुँह में डालती हुई बोली, “देख बिना त्याग के दान नहीं होता | अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपए हैं और उनमें से तू दो-चार रुपए किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ | त्याग तो वह होता है कि जो चीज तेरे पास भी कम है, जिसकी तुझको भी जरूरत है तो अपनी जरूरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है |”

“फल-वल कुछ नहीं मिलता सब ढकोसला है |” मैंने कहा तो, पर कहीं मेरे तर्कों का किला पस्त होने लगा था | मगर मैं भी जिद्द पर अड़ा था |

फिर जीजी बोली, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है | मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा | पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूं अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियां बना कर फेंक देता है | उसे बुवाई कहते हैं | यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है | यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी | हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी मांगते हैं | सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सब का आचरण बनता है | यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है | सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा | यही तो गांधी जी महाराज कहते हैं |” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गांधी महाराज की बात अक्सर करने लगी थी |

इन बातों को आज पचास से ज्यादा बरस होने को आए पर ज्यों की त्यों मन पर दर्ज हैं | कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है | अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है | हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?

काले मेघा पानी दे ( अभ्यास के प्रश्न )

(1) लोगों ने लड़कों की टोली को मेंढक मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आप को इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी ?

उत्तर — लड़कों की टोली नंग धड़ंग और कीचड़ में लथपथ होकर सारे गांव में धमाचौकड़ी करते हुए घूमती थी | वह सारे गांव की गलियों में कीचड़ कांधो करते हुए घूमते थे | जो लोग उनकी इस हरकत से चिढ़ते थे, वे लड़कों की उस टोली को मेंढक-मण्डली कहते थे |

परंतु लड़कों की यह टोली स्वयं को इंद्रसेना कहती थी | उनका मानना था कि वे वर्षा के देवता इंद्र से वर्षा की गुहार लगाते हैं | वे लोगों को कठिन समय में पानी का दान करने की प्रेरणा देते हैं जिससे प्रसन्न होकर इंद्र देवता खूब वर्षा करते हैं |

(2) जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?

उत्तर — जीजी इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को पानी की बर्बादी नहीं मानती | उसके अनुसार यह इंद्र देवता को अर्घ्य चढ़ाना है |

अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए वह एक उदाहरण देती है | वह कहती हैं कि कुछ पाने के लिए हमें कुछ दान करना पड़ता है | एक किसान भी 30-40 मन अनाज पाने के लिए पहले 5-6 सेर गेहूं की बुवाई करता है |

इसी प्रकार इंद्र-सेना पर फेंका गया पानी भी वर्षा का कारण बनेगा | जहां-जहां से इंद्रसेना गुजरेगी वहां भरपूर वर्षा होगी |

(3) “पानी दे गुड़धानी दे” मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की मांग क्यों की जा रही है?

उत्तर — गुड़धानी का अर्थ है – गुड़ और धान से बना एक लड्डू | ‘गुड़धानी’ वास्तव में अच्छी फसल का प्रतीक है |

इंद्रसेना अपने द्वारा गाए जा रहे लोकगीत के माध्यम से पानी और गुड़धानी अर्थात वर्षा और अच्छी फसल की मांग करती है |

बादल हमें वर्षा के रूप में पानी प्रदान करते हैं | लेकिन अनाज भी वर्षा के कारण ही उग पाता है | वर्षा न होने पर पानी और भोजन दोनों की समस्या उत्पन्न हो जाती है | अतः इंद्रसेना अपने लोकगीत में पानी और गुड़धानी दोनों की मांग करती है |

(4) “गगरी फूटी बैल प्यासा” इंदर सेना के इस खेल गीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?

उत्तर — गर्मी के दिनों में जब चारों तरफ पानी का अभाव हो जाता है और दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है | पानी और भोजन की कमी से लोग त्राहि-त्राहि करने लगते हैं |

ग्रामीण जीवन में अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर करते हैं | बैल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी के समान होता है | बिना बैल के वे अपना कृषि कार्य नहीं कर सकते | इसीलिए वर्षा के न होने से उन्हें अपने लिए तथा अपनी फसलों के लिए पानी की चिंता होने के साथ-साथ अपने बैलों के प्यासा होने की चिंता भी सताने लगती है |

प्रस्तुत खेल गीत में बैलों के प्यासा होने की बात ग्रामीण संस्कृति में बैलों के महत्व को उजागर करती है |

(5) इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व है?

उत्तर — इंद्रसेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती है और उसके पश्चात अपने खेल-गीत के माध्यम से भगवान इंद्र से वर्षा की गुहार करती है | सर्वप्रथम गंगा मैया की जय बोला जाना भारतीय संस्कृति में गंगा तथा अन्य नदियों के महत्व को उजागर करता है |

भारत के अधिकांश भागों में ये इन नदियां हमारी अर्थव्यवस्था का आधार सिद्ध होती हैं | प्राचीन काल से ही भारत के अधिकांश बड़े नगर नदियों के किनारे पर बसे हुए हैं | यह नदियां कृषि, व्यापार पशुपालन, परिवहन आदि अनेक सुविधाएं प्रदान करती हैं |

नदियों का हमारे जीवन में इतना अधिक महत्व है कि इनको देवी मानकर इनकी पूजा की जाती है | इनके किनारों पर हर वर्ष मेले लगते हैं | हमारे समाज की अनेक परंपराएं नदियों के बिना पूरी नहीं हो पाती | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नदियों का भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में विशेष महत्व है |

यह भी देखें

भक्तिन : महादेवी वर्मा ( Bhaktin : Mahadevi Verma )

बाजार दर्शन : जैनेंद्र कुमार ( Bajar Darshan : Jainendra Kumar )

पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु ( Pahalvan Ki Dholak : Phanishwar Nath Renu )

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब : विष्णु खरे ( Charlie Chaplin yani Hum Sab : Vishnu Khare )

नमक : रज़िया सज्जाद ज़हीर ( Namak : Razia Sajjad Zaheer )

शिरीष के फूल : हजारी प्रसाद द्विवेदी ( Shirish Ke Phool : Hajari Prasad Dwivedi )

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ( Baba Saheb Bheemrav Ambedkar )