काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती ( Kale Megha Pani De : Dharmveer Bharti )

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग -2’ में संकलित ‘काले मेघा पानी दे’ अध्याय के मूल पाठ तथा अभ्यास के प्रश्नों को दिया गया है | ) उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली | बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत | जो लोग उनके … Read more

डॉ धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय ( Dr Dharamvir Bharati Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – डॉ धर्मवीर भारती प्रयोगवादी कविता के प्रमुख कवि थे | इनका जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद में हुआ | इनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा तथा माता का नाम श्रीमती चंदा देवी था | इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विश्वविद्यालय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तथा इसी विश्वविद्यालय … Read more

विप्रलब्धा ( Vipralabdha ) : डॉ धर्मवीर भारती

बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चांद, रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा – मेरा यह जिस्म कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था तुम्हारे आश्लेष में आज वह जूड़े से गिरे हुए बेले-सा टूटा है, म्लान है | दुगना सुनसान है बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले-सा | (1) मेरा … Read more

थके हुए कलाकार से ( Thake Hue Kalakar Se ) : डॉ धर्मवीर भारती

सृजन की थकन भूल जा देवता ! अभी तो पड़ी है धरा अधबनी अभी तो पलक में नहीं खिल सकी नवल कल्पना की मधुर चाँदनी अभी अधखिली ज्योत्सना की कली नहीं जिंदगी की सुरभि में सनी – अभी तो पड़ी है धरा अधबनी, अधूरी धरा पर नहीं है कहीं अभी स्वर्ग की नींव का भी … Read more

गुलाम बनाने वाले ( Gulam Banane Vale ) : डॉ धर्मवीर भारती

और भी पहले वे कई बार आये हैं एक बार जब उनके हाथों में भाले थे घोड़ों की टापों से खैबर की चट्टानें काँपी थी एक बार जब भालों के बजाय उनके हाथों में तिजारती परवाने थे बगल में संगीने थी | (1) लेकिन इस बार और चुपके से आए हैं | आधे हैं, जिनके … Read more

बोआई का गीत ( Boai Ka Geet ) : डॉ धर्मवीर भारती

गोरी-गोरी सोंधी धरती कारे-कारे बीज बदरा पानी दे ! क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीत बोने वालो ! नई फसल में बोओगे क्या? बदरा पानी दे ! (1) मैं बोऊँगा वीरबहूटी, इंद्रधनुष सतरंग नये सितारे, नयी पीढ़ियाँ, नये धान का रंग हम बोयेंगे हरी चुनरियां , कजरी, मेहंदी – राखी के कुछ सूत और सावन की पहली … Read more

फूल, मोमबत्तियां, सपने ( Fool, Mombattiyan, Sapne ) : डॉ धर्मवीर भारती

यह फूल, मोमबत्तियां और टूटे सपने ये पागल क्षण, यह काम-काज दफ्तर-फाइल, उचाट-सा जी भत्ता वेतन ! ये सब सच है ! इनमें से रत्ती भर न किसी से कोई कम, अंधी गलियों में पथभ्रष्टों के गलत कदम या चंदा की छाया में भर -भर आने वाली आंखें नम, बच्चों की-सी दूधिया हँसी या मन … Read more

फागुन की शाम ( Fagun Ki Sham ) : डॉ धर्मवीर भारती

घाट के रस्ते उस बँसवट से इक पीली सी चिड़िया उसका कुछ अच्छा-सा नाम है ! मुझे पुकारे ! ताना मारे, भर आयें आँखड़ियाँ ! उन्मन, ये फागुन की शाम है ! (1) घाट की सीढ़ी तोड़-फोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बांसों … Read more

रथ का टूटा पहिया ( Rath Ka Tuta Pahiya ) : डॉ धर्मवीर भारती

मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ | लेकिन मुझे फेंको मत | क्या जाने कब इस दुरूह चक्रव्यूह में अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाये | अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी बड़े-बड़े महारथी अकेली निहत्थी आवाज को अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहे तब मैं रथ … Read more