कनिष्क की विजयें व अन्य उपलब्धियाँ

कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा था | वह एक महान विजेता, महान निर्माता, अच्छा प्रशासक तथा उत्साही धर्म प्रचारक था | उसके शासनकाल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है | डॉ वी ए स्मिथ तथा सर जॉन मार्शल आदि के अनुसार वह 120 ईस्वी के लगभग राजा बना और उसने 42 वर्ष तक शासन किया लेकिन अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि वह 78 ईस्वी में राजगद्दी पर बैठा | इसी समय से शक संवत का आरम्भ माना जाता है |

कनिष्क ने युद्ध, धर्म, कला, प्रशासन आदि के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियाँ हासिल की जिनका वर्णन इस प्रकार है —

कनिष्क की विजयें ( Conquests of Kanishka )

( 1) कश्मीर विजय ( Conquest of Kashmir )

कश्मीर को बहुत बड़ा प्रशासन अपने पूर्वजों से मिला था जिसका अधिकांश भाग भारत से बाहर था | उसने शासक बनते ही भारत में अपना साम्राज्य बढ़ाया | सर्वप्रथम उसने कश्मीर पर आक्रमण किया और उसे अपने साम्राज्य का अंग बनाया | यहाँ उसने कनिष्कपुर नगर की स्थापना की | कनिष्क की इस विजय का उल्लेख कल्हण की प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक ‘राजतरगिणी’ मिलता है | कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया |

(2) उज्जैन के शक क्षत्रपों का दमन ( Suppression of Saka-Satraps )

कनिष्क की उज्जैन के शक क्षेत्रों पर विजय का वर्णन भी मिलता है | उसने शक शासक चष्टन को पराजित किया | इतिहासकारों के अनुसार शक शासक ने कनिष्क की अधीनता स्वीकार कर उसे वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया |

(3) मगध विजय (Conquest of Magadha)

यद्यपि इस विजय का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता, फिर भी बौद्ध परम्पराओं के अनुसार, कनिष्क ने मगध पर विजय प्राप्त की। इस
विजय के बदले में कनिष्क एक प्रसिद्ध विद्वान अश्वघोष को अपने साथ अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) ले गया। इसी तथ्य से स्वीकार किया जा सकता है कि कनिष्क ने मगध पर विजय प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त मथुरा, बनारस और गया, जो मगध साम्राज्य का अंग थे, कनिष्क के साम्राज्य में शामिल कर लिए गए।

(4) साम्राज्य-विस्तार (Extent of the Empire)

कनिष्क के साम्राज्य में चीन के कुछ प्रदेश, अफ़गानिस्तान तथा पार्थियन साम्राज्य का कुछ भाग शामिल था। उसके साम्राज्य की
सीमाएँ उत्तर में हिमालय से दक्षिण में उज्जैन तक और पूर्व में पाटलिपुत्र से लेकर पश्चिम में ईरान तक विस्तृत थीं। इसमें चीन, भारत और मध्य एशिया के प्रदेश शामिल थे। पुरुषपुर (पेशावर) उसकी राजधानी थी, जो लगभग उसके साम्राज्य के मध्य में थी। उसने अपनी राजधानी को सुन्दर बनाने के लिए कई सुन्दर भवनों, मठों तथा विहारों का निर्माण करवाया। उसने वहाँ 152.5 मीटर ऊँचा एक लकड़ी का स्तम्भ भी बनवाया।

(5) चीन से युद्ध (War against China)

कनिष्क द्वारा चीन-विजय सबसे महत्वपूर्ण विजय मानी जाती है। कनिष्क के पूर्वज चीन को वार्षिक कर देते थे। कनिष्क ने यह कर देने
से इन्कार कर दिया। उसने ‘देवपुत्र’ की उपाधि धारण की, जो चीन के शासक अपना विशेषाधिकार समझते थे। फलस्वरूप दोनों में युद्ध हुआ। चीनी सेनापति ने कनिष्क को पराजित किया। यह प्रसिद्ध सेनापति पान-चाओ था। परन्तु पान-चाओ की मृत्यु के बाद कनिष्क ने पुनः चीन पर आक्रमण किया और चीन पर विजय प्राप्त की। इस विजय के फलस्वरूप कनिष्क को खोतान, यारकन्द और काशगर के प्रदेश मिले।

(6) बौद्ध धर्म का प्रचार (Propaganda of Buddhism)

कनिष्क के शासनकाल की सबसे प्रसिद्ध घटना बौद्ध धर्म का दो गुटों में विभाजन होना है। कनिष्क आरम्भ में बौद्ध धर्म का अनुयायी नहीं था। उसके आरंभिक सिक्कों पर सूर्य और अग्नि के चित्र थे। इनसे उसका पारसी धर्म के अनुयायी होने का अनुमान लगाया जाता है। बाद में उसके सिक्कों पर हिन्दू देवताओं के चित्र अंकित थे। परन्तु अश्वघोष के प्रभाव में आकर उसने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उसके काल में बौद्ध धर्म दो शाखाओं में बँट गया – हीनयान और महायान। कनिष्क ने महायान शाखा को अपनाया। उसने इसके प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए —

(i) कनिष्क ने विदेशों में प्रचारक भेजे, जिसके फलस्वरूप बौद्ध धर्म मध्य एशिया, चीन, जापान आदि देशों में फैल गया।

(ii) कनिष्क ने बुद्ध की मूर्तियाँ बनवाकर देश के विभिन्न भागों में स्थापित करवाई, जिसके कारण जनता में महात्मा बुद्ध के प्रति श्रद्धा बढ़ी।

(iii) उसने कश्मीर में चौथी बौद्ध सभा का आयोजन किया। वसुमित्र इस सभा का अध्यक्ष और अश्वघोष उपाध्यक्ष था। यहाँ बौद्ध धर्म के नियमों को सरल बनाया गया। इन नियमों को ‘महाविभाषा’ नामक ग्रन्थ में संकलित किया गया। इस ग्रन्थ को महायान बौद्ध धर्म का शब्दकोश अथवा ‘महाकोश’ भी कहा जाता है। इन नियमों को ताम्रपत्रों पर लिखकर सन्दूकों में बन्द किया गया।

(iv) अशोक की भाँति कनिष्क ने भी बौद्ध भिक्षुओं को सहायता के रूप में बहुत-सा धन दिया। भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया।

(v) कनिष्क ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए मठों एवं विहारों का निर्माण करवाया और बौद्ध पूजा गृहों की भी स्थापना की।

(vi) बौद्ध धर्म में सुधार करके उसे सरल बनाया गया। भिक्षुओं को कठोर जीवन पसन्द नहीं था। अतः महायान शाखा का प्रचलन आरम्भ हुआ। इस नई शाखा ने संस्कृत भाषा को अपनाया और बुद्ध की मूर्तियाँ बनाकर उसकी पूजा आरम्भ कर दी।

(7) कला का विकास (Development of Art)

कनिष्क एक महान निर्माता भी था। उसने अनेक नगरों की स्थापना की । उसके शासनकाल में पेशावर, मथुरा, कनिष्कपुर और तक्षशिला के पास सिरसुख प्रसिद्ध नगर थे। इन नगरों में सुन्दर मूर्तियाँ एवं कलाकृतियाँ स्थापित की गई । मथुरा में कनिष्क की बिना सिर की मूर्ति मिली है। पेशावर में 420 फुट ऊँचा लकड़ी का मीनार है। इसे ‘कनिष्क चैत्य’ अथवा ‘शाहजी की ढेरी’ भी कहा जाता है। इसे किसी यूनानी शिल्पकार ने बनाया था। अनेक अन्य कला-शैलियाँ भी कनिष्क के संरक्षण में थीं। ये शैलियाँ मथुरा-कला, अमरावती-कला, सारनाथ-कला और गान्धार-कला थीं। गान्धार-कला इनमें सबसे प्रसिद्ध थी। इसे भारतीय-यूनानी कला भी कहा जाता है। इस कला शैली में में बुद्ध और उसके जीवन से सम्बन्धित मूर्तियाँ बनाई गईं। इन मूर्तियों पर यूनानी वेश-भूषा पहनाई गई। यूनान के लोग इसे यूनानी-कला कहते थे, भारत के लोग इसे भारतीय कला कहते थे। वास्तव में इस कला में यूनानी हाथ और भारतीय हृदय था। भारतीय धर्म और विचारों को यूनानी कला में दर्शाया गया था।

(8) साहित्य का विकास (Development of Literature)

कनिष्क विद्या और साहित्य का प्रेमी तथा संरक्षक भी था। उसका दरबार ‘पक्षियों का घोंसला’ था। अनेक विद्वान उसके दरबार की शोभा थे। अश्वघोष उसके दरबार का सबसे बड़ा रत्न था। उसकी तुलना मिल्टन तथा कान्त ( कांट ) से की जाती है। उसने ‘बुद्धचरित’, ‘सौद्रानन्द’, ‘वज्रसूचि’ और ‘सूत्रालंकार’ आदि ग्रन्थों की रचना की।कनिष्क के दरबार का दूसरा प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन था जिसे मार्टिन लूथर जैसा क्रान्तिकारी कहा जाता है। उसने ‘माध्यमिक सूत्र’ ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में सापेक्षता के सिद्धान्त का वर्णन है। वसुमित्र एक अन्य विद्वान् था। उसने ‘महाविभाषा’ ग्रन्थ की रचना की। चरक जैसा महान चिकित्सक भी कनिष्क के दरबार में था। उसने औषधि विज्ञान से सम्बन्धित ‘चरक संहिता’ की रचना की। चरक ने लिखा है कि भारत में कोई ऐसी बीमारी नहीं है जो भारत की जड़ी-बूटियों से ठीक न हो।

(9) व्यापार का विकास ( Development of Trade)

कनिष्क का साम्राज्य बहुत विशाल था। उसकी सीमाएँ रोम, पार्थिया
और चीन को छूती थीं। इन साम्राज्यों से व्यापार होना स्वाभाविक था। उसके काल में भारत में गर्म मसाले, रेशम, बुद्ध की मूर्तियाँ, जड़ी-बूटियाँ, मलमल, हाथी-दाँत आदि वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं। विदेशों से भारत में सोना, चाँदी तथा ऐश्वर्य की वस्तुएं आयात होती थीं। व्यापार जल एवं थल दोनों रास्तों से होता था। बुद्ध की मूर्तियाँ मुख्यतः यूनान भेजी जाती थीं, जिनकी संख्या लाखों में होती थी। भारत की मलमल इटली की महिलाओं को बहुत पसन्द थी। भारत से वहाँ इतनी मलमल भेजी जाती थी कि इटली (रोम) की सरकार का कोष खाली हो गया। अन्त में वहाँ सरकार को भारतीय मलमल पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। सारांश यह है कि विदेशी व्यापार के कारण भारत का कोष भर गया था और भारत धन-धान्य से समृद्ध था।

कनिष्क की उपलब्धियों का मूल्यांकन (Evaluation of Achievement of Kanishka )

कुषाण वंश का प्रतापी राजा कनिष्क एक वीर योद्धा, उत्साही धर्म-प्रचारक तथा कला का संरक्षक था। उसके चरित्र, व्यक्तित्व एवं सफलताओं का उल्लेख इस प्रका किया जा सकता है —

(1) महान विजेता (A great Conquerer)

कनिष्क एक वीर योद्धा और एक कुशल सेनानायक था। वह एक महान विजेता था। उसने अपने सैन्य बल से कश्मीर, मगध, पंजाब, मथुरा और उज्जैन के शासकों को पराजित किया। उसने चीन के शक्तिशाली साम्राज्य को हराकर ताशकन्द, यारकन्द, काशगार और खोतान के प्रदेश अपने राज्य में मिला लिए।

(2) महान निर्माता (A great Builder)

कनिष्क एक महान निर्माता था। उसने अनेक नगर तथा शानदार भवनों का निर्माण किया। उसने अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) को अनेक इमारतों से सजाया। उसने भगवान् बुद्ध के स्मारक के रूप में 600 फीट ऊँची एक बुर्ज का निर्माण करवाया। इस बुर्ज की 14 मंज़िलें थीं। इस बुर्ज का शिखर लोहे का था। इस बुर्ज के चारों ओर बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ बनवाई गईं। इसके अतिरिक्त कनिष्क ने सिरकप नामक स्थान पर एक नगर तथा पुरुषपुर एवं कनिष्कपुर नामक नगर की भी स्थापना की थी। यही नहीं, उसने पेशावर, तक्षशिला तथा मथुरा को बागों तथा सड़कों से सजाया ।

(3) कुशल प्रशासक (A good Administrator)

कनिष्क का शासन-प्रबन्ध भी उत्तम था। शासन की सारी शक्ति उसके हाथ में थी। उसका साम्राज्य बहुत-से प्रान्तों में बँटा हुआ था। प्रान्तों के अधिकारी (क्षत्रप) उसके नियन्त्रण में होते थे। अतः उसने साम्राज्य में शान्ति तथा व्यवस्था की स्थापना की। यद्यपि उसका व्यवहार कठोर था, परन्तु अन्यायपूर्ण नहीं था। कभी भी उसके साम्राज्य में विद्रोह नहीं हुआ। उसका साम्राज्य सुख-शान्ति से समृद्ध था, इस कारण व्यापार उन्नत हुआ और प्रजा समृद्ध थी।

(4) कला का संरक्षक (A Patron of Art)

कनिष्क के काल में कला की सुन्दर शैलियों का उत्कर्ष एवं विभिन्न पहलुओं का विकास हुआ। इस काल में गान्धार-कला शैली में कुशल मूर्तिकारों ने बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित दृश्यों को मूर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया। उनके द्वारा बनाई गई कई मूर्तियों में कुछ एक दृश्य, उदाहरण के लिए महात्मा बुद्ध का गृह-परित्याग, ज्ञान-प्राप्ति, घोर तपस्या, मृत्यु आदि इतने सुन्दर तथा मनोहर थे कि कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। कनिष्क के शासनकाल में मूर्ति-निर्माण स्थापत्य कला तथा तक्षण कलाओं का चार भिन्न-भिन्न केन्द्रों सारनाथ, मथुरा, अमरावती तथा गान्धार में समुचित विकास हुआ। इनमें से प्रत्येक की एक अलग शैली थी जो एक-दूसरे से
अप्रभावित थी। सारनाथ तथा मथुरा से प्राप्त मूर्तियों की निर्माण-कला में कुछ समानता पाई जाती है। अमरावती की मूर्तियाँ शिल्प-कला के विलक्षण नमूने हैं।

(5) बौद्ध धर्म का महान प्रचारक (The great Propagandist of Buddhism)

कनिष्क के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उसका बौद्ध धर्म का प्रचारक रूप है। वह बौद्ध धर्म का उत्साही प्रचारक था। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए देश के कोने-कोने में बुद्ध की मुर्तियाँ भेजी | धर्म-प्रचार के लिए उसने भिक्षु संघ स्थापित किए तथा उनके लिए बिहार तथा मठ बनवाए। उसने बौद्ध धर्म में आवश्यक सुधार किए और बौद्ध धर्म की सभा बुलाई। इसके साथ ही इस काल में ही बौद्ध धर्म की ‘महायान’ शाखा का उदय हुआ | डॉ राय चौधरी के शब्दों में — “कनिष्क एक विजेता के रूप में ही याद नहीं किया जाता | उसकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार उसके भवन और बुद्ध के धर्म को प्रदान किया गया संरक्षण भी है |”

(6) विद्वानों का संरक्षक ( Patron of Scholars )

कनिष्क विद्वानों का संरक्षक था | वह स्वयं भी एक महान विद्वान था | उसके दरबार में अश्वघोष, वसुमित्र, नागार्जुन, चरक आदि अनेक अनेक विद्वान थे | अश्वघोष संस्कृत भाषा का एक महान लेखक था जिसने बुद्धचरित की रचना की | वसुमित्र उसके दरबार का एक अन्य विद्वान था | कनिष्क के समय में कुंडल वन में चौथी बौद्ध सभा का आयोजन हुआ जिसका सभापतित्व वसुमित्र ने किया | उसने ‘महाविभाष‘ नामक पुस्तक लिखी जिसमें बौद्ध सिद्धांतों को सरल रूप में प्रस्तुत किया गया | प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन भी उसके दरबार की शोभा था | उसने ‘माध्यमिक सूत्र’ नामक पुस्तक की रचना की | कनिष्क के दरबार का एक अन्य रत्न इतिहास प्रसिद्ध चिकित्सक चरक था | उसने ‘चरक संहिता‘ नामक पुस्तक की रचना की |

(7) व्यापार का विकास ( Development in Trade )

कनिष्क ने व्यापार के विकास पर विशेष बल दिया | कनिष्क का साम्राज्य बहुत विस्तृत था | उसकी सीमा के साथ विदेशों की सीमाएं भी लगती थी | रोमन साम्राज्य,, आंध्र साम्राज्य, चीनी साम्राज्य और पार्थियन राज्य की सीमाएं कनिष्क के राज्य की सीमा से लगती थी | अतः इन राज्यों के साथ व्यापार होना स्वाभाविक था | कनिष्क के शासन काल में भारत से मोती, गर्म मसाले, मलमल, हाथी दांत, जड़ी बूटियों आदि का निर्यात किया जाता था तथा विदेशों से सोना-चांदी, शराब आदि सामग्री मंगवाई जाती थी | व्यापार जल और थल दोनों मार्गो से किया जाता है |

क्या कनिष्क को दूसरा अशोक कहना उचित है?

अनेक इतिहासकार कनिष्क को दूसरा अशोक कहते हैं | वास्तव में कनिष्ठ में अशोक की भांति एक महान योद्धा तथा आध्यात्मिक जिज्ञासु के गुण थे | कनिष्क ने अशोक की भांति बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने राज्य से बौद्ध भिक्षुओं को सुविधाएँ उपलब्ध करवाई | उसने बौद्ध भिक्षुओं की तन-मन-धन से सहायता की | उसने अशोक की भांति बौद्ध भिक्षुओं को धर्म प्रचारक के रूप में विदेशों में भेजा | उसने चीन, जापान और मध्य एशिया में अनेक बौद्ध भिक्षु भेजे | उसने अनेक मठों और विहारों का निर्माण करवाया | सम्राट अशोक की भागी उसकी शासनकाल में बौद्ध सभा का आयोजन हुआ | उस के शासनकाल में कश्मीर के कुंडल वन में चौथी बौद्ध सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता बौद्ध भिक्षु वसुमित्र ने की | यही कारण है कि कुछ इतिहासकार कनिष्क को दूसरा अशोक भी कहते हैं जो सर्वथा उचित प्रतीत होता है |

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