फिरोज तुगलक के सुधार

मुहम्मद तुगलक के पश्चात उसका चचेरा भाई फिरोज तुगलक सुल्तान बना | उसने 1351 ईस्वी से 1388 ईस्वी तक शासन किया | यद्यपि वह एक कमजोर सेनानायक था परन्तु अपने प्रजा हितार्थ कार्यों के कारण वह इतिहास में प्रसिद्ध है | उसके शासनकाल में कृषि, व्यापार, उद्योग के क्षेत्र में अनेक सुधार हुए | स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी उसका अत्यधिक योगदान है | फिरोज तुगलक के प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं —

फिरोज तुगलक के सुधार
फिरोज तुगलक के सुधार

(1) प्रजा-हितैषी कार्य (Welfare Work for Masses )

फिरोज तुगलक ने अनेक प्रजा-हितार्थ कार्य किए | उसने एक नए विभाग ‘दीवान-ए-खैरात’ का गठन किया | इसके दो विभाग थे – रोजगार विभाग तथा विवाह विभाग | रोजगार विभाग राज्य के बेरोजगार लोगों की सूची रखता था तथा उन्हें योग्यतानुसार रोजगार प्रदान करता था | दूसरा विभाग मुस्लिम लड़कियों के विवाह का प्रबंध करता था | यह विभाग अनाथों तथा विधवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करता था | सुल्तान ने दिल्ली तथा अन्य कुछ नगरों में मुफ्त अस्पताल भी खोले | राहगीरों के लिए लगभग दो सौ सराय बनवाई |

(2) दण्ड-विधान में सुधार ( Reforms in Panel Code )

फिरोज तुगलक ने दण्ड-विधान में अनेक परिवर्तन किए | उसने हाथ, नाक काटने जैसे सभी अमानवीय दंडों को समाप्त कर दिया | उसने मृत्यु दण्ड पर भी रोक लगा दी | कुछ अपराधी तो बिना दण्ड दिए ही छोड़ दिए जाते थे। लेकिन इन सुधारों का भी अधिक लभ मुसलमानों को ही हुआ। हिन्दुओं के लिए तो दण्ड-विधान पहले की भाँति कठोर ही रहा।

(3) दीन-दु:खियों की सहायता (Aid to the Troubled and Poor)

अधिकाँश जनता मुहम्मद तुगलक से घृणा करती थी। फीरोज़ ने इन पीड़ित लोगों के लिए राजकोष से धन दिया और उन्हें सन्तुष्ट किया। अनेक लोगों के ऋण समाप्त कर दिए गए। अनुमान है कि 2 करोड़
रुपए के ऋण क्षमा किए गए। उन लोगों को भी रुपया दिया गया जिन्हें मुहम्मद तुगलक से कोई शिकायत थी। परन्तु उनसे लिखवा लिया गया कि उन्हें स्वर्गीय सुलतान से कोई शिकायत नहीं है। इन क्षमा-पत्रों को एक सन्दूक में बन्द करक मुहम्मद तुगलक की कब्र में रखवा दिया गया। सुलतान को असन्तुष्ट लोगों का समर्थन मिल गया और स्वर्गीय सुलतान के प्रति श्रद्धा प्रकट हो गई। उसमें मानवीय दया की अनोखी धारा थी। सारी भारतीय जनता उसके समीप खड़ी हुई।

(4) अनुचित कर समाप्त (End of Unfair Taxes)

सुलतान के आरम्भिक शासनकाल में किसानों की दशा खराब थी। राज्य को कृषि से बहुत कम आय होती थी। अब करों की समाप्ति से आय और भी कम हो गई। कृषि को प्रोत्साहन देना आवश्यक हो गया। उसने अपने एक योग्य मन्त्री हिसामुद्दीन की सहायता से अनेक सुधार किए। मुहम्मद तुगलक के समय लिए गए ऋणों को माफ कर दिया गया। सारी भूमि की फिर से जाँच-पड़ताल की गई और भूमि-कर उपज का 1/10 भाग कर दिया गया। कृषि-योग्य भूमि का विस्तार किया गया। सिंचाई के साधनों का विशेष प्रबन्ध किया गया। राजस्व विभाग के कर्मचारियों का वेतन बढ़ा दिया गया, ताकि वे किसानों को तंग न करें। इससे राज्य की आय में वृद्धि हो गई। सबसे अधिक लाभ किसानों को हुआ। किसानों के घर अन्न-धन से भर गए। सभी को मौलिक तथा आर्थिक सुविधाएं मिल गईं। दोआब से 80 लाख टांक की आय होने लगी। कुल आय 6 करोड़ 85 लाख हो गई। कुरान के अनुसार, केवल चार कर लगाए गए ये रिवाराज (भूमि-कर), खम्स (युद्ध में लूट के माल में सुलतान का भाग), जकात (मुसलमानों पर धार्मिक कर) और जजिया कर थे।

(5) आर्थिक सुधार (Economic Reforms)

सिंचाई के साधन बढ़ने से राज्य को 2 लाख टांक की आय बढ़ गई। सुलतान ने 1,200 बगीचे बनवाए, जिनसे प्रति वर्ष 1 लाख 80
हज़ार टांक की आय होती थी। व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार से अनुचित प्रतिबन्ध हटा लिए गए और व्यापार पर कर भी कम किया गया। उस समय आवश्यक वस्तुओं के भाव अधिक नहीं थे। अतः जनता सुखी और सन्तुष्ट थी। अफीक (इतिहासकार) के अनुसार, अब वस्तुएं, अलाऊद्दीन खलजी के समय से भी अधिक सस्ती थीं। मी

(6) सिंचाई-व्यवस्था (Irrigation System)

यह फ़ीरोज़ तुगलक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था | कृषि को उन्नत करने के लिए अनेक नहरों का निर्माण करवाया गया। इसमें पश्चिमी यमुना नहर सभी 5 नहरों में प्रमुख थी। इसकी लम्बाई 150 मील थी। दूसरी नहर 96 मील लम्बी थी,जो सतलुज से घग्गर नदी तक जाती थी। तीसरी नहर पहाड़ियों से हाँसी तक जाती थी। कुछ नहरों के चिह्न आज भी हैं। फसलों के उत्पादन में वृद्धि होने लगी। जहाँ पहले एक फसल होती थी, वहाँ अब साल में दो-दो फसलें होने लगीं। सिंचाई के लिए अनेक कुएं भी खुदवाए गए, जिनसे किसानों को अच्छा लाभ हुआ।

(7) दास-व्यवस्था (Slavery System)

सुलतान को दास रखने का बहुत चाव या । वह उनके प्रति दयालु था। इतिहासकार अफीफ के अनुसार, सुलतान के पास 1 लाख 80 हज़ार दास थे। 40 हज़ार दास सरकारी सेवा में रहते थे। उन्हें शिक्षित किया जाता था। उन्हें दस्तकारी का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। पहले कभी इतनी अधिक संख्या में दास नहीं रखे गए थे | बाद में यह प्रथा राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। दासों ने दरबारी षड्यन्त्रों में भाग लेना आरम्भ कर दिया | राजकोष पर भी भारी खर्चा बढ़ गया। अन्त में वे दास इतने निडर हो गए थे कि उन्होंने राजकुमारों के सिर काटकर दरबार के द्वार पर लटका दिए थे।

(8) मुद्रा-प्रणाली में सुधार (Reforms in Monetary System)

फीरोज तुगलक के शासनकाल में अधिकतर सिक्के मुहम्मद तुगलक के समय वाले ही थे। परन्तु फीरोज ने साधारण जनता की सुविधा के लिए कम मूल्य के सिक्के भी प्रचलित किए। इनमें आधा जीतल और चौथाई जीतल प्रमुख थे। इन्हें ‘अहदा’ और ‘बिख’ कहा जाता था। ये सिक्के तार और चाँदी को मिलाकर बनाए जाते थे। अब लोग नकली सिक्के नहीं बना सकते थे। टकसानों में योग्य अधिकारी नियुक्त किए गए। पुराने सिक्कों में भी अनेक सुधार किए गए।

(9) शिक्षा एवं साहित्य को प्रोत्साहन (Encouragement to Education and Literature)

फ़ीरोज़ तुगलक विद्वानों का सहायक एवं संरक्षक था। उसने अनेक विद्वानों को पेंशन दे रखी थी। बरनी और अफीफ उसके समय के प्रसिद्ध इतिहासकार थे। बरनी ने ‘तारीखेंफ़ीरोज़शाही’ लिखकर फीरोज़ का नाम अमर कर दिया। उसने 36 लाख टका विद्वानों में बाँटे थे। फ़ीरोज़ के शासनकाल में 1300 संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद फ़ारसी भाषा में करवाया गया। चिकित्सा-शास्त्र में सुलतान की बहुत रुचि थी। सुलतान ने लगभग 30 मदरसे खुलवाए। फ़ीरोज़ाबाद का ‘फ़ीरोज़-ए-शाही’ मदरसा सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने विद्वानों से आग्रह किया कि वे देश में शिक्षा का दान दें। उसने ज्वालामुखी के स्थान पर एक पुस्तकालय बनवाया।

(10) निर्माण के कार्य (Works of Constructions)

फ़ीरोज़ एक महान् निर्माता था उसे भवन-कला से विशेष प्रेम था। अब्दुलहक और मलिक गाज़ी शाहना उसके समय के प्रसिद्ध वास्तुकार थे। उसने 300 नगर, 250 कालोनी, 100 मकबरे, 100 पुल तथा 10 स्नानघर बनवाए। जोनपुर, फ़ीरोज़पुर, फ़ीरोजाबाद, फ़ीरोज़शाह कोटला और हिसार आदि नगर फ़ीरोज़ तुगलक द्वारा बनवाए गए थे। सुलतान ने अशोक के दो स्तम्भों को मेरठ तथा खिजराबाद से उखड़वाकर दिल्ली के निकट गड़वाया।

(12) जागीरदारी-प्रथा (Zagirdari System)

सुलतान ने जागीरदारी-प्रथा पुनः प्रचलित किया तथा जागीरों को पैतृक भी बना दिया गया। बाद में यह प्रथा राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। की। सैनिकों और कर्मचारियों को नकद वेतन के स्थान पर भूमि अथवा जागीरें दी जाने लगी। परन्तु यह प्रथा सल्तनत के लिए हानिकारक सिद्ध हुई | जागीरदारों ने सुलतान के आदेशों की उपेक्षा करनी आरम्भ कर दी। सुलतान का उन पर नाममात्र का ही नियन्त्रण था। विद्रोह के समय जागीरदार अवसर का पूरा लाभ उठाते थे। धीरे-धीरे वे स्वतन्त्र होने लगे और राज्य की शक्ति कमज़ोर हो गई।

(12) सैनिक व्यवस्था ( Army System )

सुलतान फ़ीरोज़ कुशल सेनानायक नहीं था। उसका सैनिक-संगठन भी दुर्बल था। जागीरदारी-प्रथा और सुलतान का दयालु होना इसके
प्रमुख कारण थे। सुलतान बूढ़े और अयोग्य सैनिक को भी पद से मुक्त नहीं करता था। सेना में रिश्वत भी प्रचलित थी। सुलतान इसे जानता था, परन्तु उसने इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया | उसका युद्ध मंत्री भी सूदखोर था | उसकी मृत्यु के पश्चात उससे 13 करोड़ टके बरामद हुए थे | यही कारण है कि उसके सैनिक अभियान असफल रहे तथा वह आंतरिक विद्रोहों को भी नहीं रोक सका | बंगाल में उसे हार का सामना करना पड़ा |

निष्कर्ष ( Conclusion )

फिरोज तुगलक के उदारवादी कार्यों तथा अन्य सुधारों के कारण कुछ इतिहासकार उसे महान सुल्तान कहते हैं परन्तु कुछ उसे निर्बल व अयोग्य सुल्तान कहते हैं |

वस्तुत: फिरोज तुगलक में हृदय के गुण तो थे लेकिन व्यावहारिक योग्यता का अभाव था | उसने अपने राज्य में आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि, उद्योग तथा बागबानी के विकास के लिए अनेक प्रयास किए | उसने दीन दु:खियों को आर्थिक सहायता प्रदान की परन्तु उसकी इस उदारता के कारण खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ा और राज्य की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी | उसका यह निर्णय सही था परन्तु वंचित वर्ग को सुविधाएँ देने की वह कोई व्यवस्थित योजना नहीं बना पाया |

उसके समय में दास प्रथा, जागीरदारी प्रथा भी राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई | दुर्बल सैनिक व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार भी इस काल की सबसे बड़ी समस्या बन गई थी | इस प्रकार फिरोज तुगलक के सुधार व नीतियाँ दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी | उसके समय में राज्य इतना कमजोर हो गया कि राज्य का विघटन अवश्यंभावी था |

यह भी देखें

सल्तनतकालीन कला और स्थापत्य कला

सल्तनत कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

सल्तनत काल / Saltnat Kaal ( 1206 ईo – 1526 ईo )

गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल

सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization )

वैदिक काल ( Vaidik Period )

मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )

1857 की क्रांति ( The Revolution of 1857 )

1857 ईo की क्रांति के परिणाम ( 1857 Ki Kranti Ke Parinam )

1857 ईo की क्रांति की प्रकृति या स्वरूप ( 1857 Ki Kranti Ki Prakriti Ya Swaroop )

1857 ईo की क्रांति के पश्चात प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान ( Bhartiy Rashtriy Andolan Me Subhash Chandra Bose Ka Yogdan )

सांप्रदायिकता : अर्थ, परिभाषा, उद्भव एवं विकास ( Sampradayikta Ka Arth, Paribhasha, Udbhav Evam Vikas )

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