1857 ईo की क्रांति की प्रकृति या स्वरूप ( 1857 Ki Kranti Ki Prakriti Ya Swaroop )

1857 ईo की क्रांति ( Revolution of 1857 ) के स्वरूप के संबंध में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं | कुछ इतिहासकार जैसे सर जॉन लॉरेंस, सीले, मार्शमैन, सर सैयद अहमद खां के अनुसार यह भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह था |

सर जॉन लॉरेंस के अनुसार – “यह क्रांति वास्तव में एक कोरा सैनिक विद्रोह थी जिसकी उत्पत्ति का एकमात्र कारण चर्बी वाले कारतूस थे |”

कुछ इतिहासकार इसे अंग्रेजों के विरुद्ध हिंदू-मुस्लिम षड्यंत्र मानते हैं | कुछ इतिहासकार इसे ईसाई धर्म के विरुद्ध धर्म-युद्ध मानते हैं | कार्ल मार्क्स ( Karl Marx ) जैसे कुछ विचारकों ने इसे राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी है |

अनेक विद्वान ऐसे हैं जो 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं | इस प्रकार हम देखते हैं कि उपर्युक्त मतों में से कुछ मत सर्वथा अनुचित प्रतीत होते हैं | केवल दो मत ऐसे हैं जो विशेष रूप से प्रचलित हैं | प्रथम, यह विद्रोह सैनिक विद्रोह था | दूसरा, यह विद्रोह स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किया गया प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था |

प्रथम विचार : 1857 की क्रांति एक सैनिक विद्रोह था

अनेक विद्वान ऐसे हैं जो 1857 की क्रांति को महज एक सैनिक विद्रोह मानते हैं | सर जॉन लॉरेंस, सीले, मार्शमैन तथा सर सैयद अहमद खां आदि ऐसे ही विचारक हैं |

सर जॉन लॉरेंस के अनुसार – “यह क्रांति वास्तव में एक कोरा सैनिक विद्रोह था जिसकी उत्पत्ति का एकमात्र कारण चर्बी वाले कारतूस थे |” इसी प्रकार सीले के अनुसार – “1857 का विद्रोह देशभक्ति की भावना से रहित एक सैनिक विद्रोह था |”

यह विद्वान अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित प्रस्तुत करते हैं : –

1. विद्रोह के सैनिक कारण

अट्ठारह सौ सत्तावन ईo की क्रांति को महज एक सैनिक विद्रोह मानने वाले विद्वान यह मानते हैं कि इस विद्रोह के प्रमुख कारण सैनिक कारण थे | इन विचारकों के अनुसार भारतीय सैनिक असंतुष्ट थे | भारतीय सैनिकों से भेदभाव किया जाता था | अंग्रेज सैनिक भी उनसे दुर्व्यवहार करते थे | उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती थी | उनको उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था | उनको पदोन्नति के अवसर नहीं मिलते थे | स्पष्ट है कि भारतीय सैनिक कई कारणों से अंग्रेजों से असंतुष्ट थे | अत: उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया |

2. चर्बी वाले कारतूस

1856 ईo में ‘एनफील्ड’ नामक राइफल को सेना में प्रयोग किया जाने लगा | इस राइफल में जो कारतूस भरे जाते थे उनको मुंह से छीलना पड़ता था | ऐसा माना जाता है कि उन पर सूअर तथा गाय की चर्बी लगी होती थी | गाय हिंदुओं के लिए पवित्र थी | सूअर से मुसलमान तथा हिंदू दोनों नफरत करते थे | अतः उन्होंने सोचा कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं | सैनिकों ने उस राइफल का प्रयोग करने से इनकार कर दिया | बैरकपुर छावनी के मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों को गोली से उड़ा दिया | जिससे क्रांति का आरंभ हो गया | उसके पश्चात 10 मई को मेरठ में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया | वह भी मुख्यतः चर्बी वाले कारतूस की घटना से रुष्ट थे |

3. विद्रोह का आरंभ सैनिकों द्वारा किया गया

1857 की क्रांति का आरंभ लगभग हर स्थान पर सैनिकों ने ही किया | 29 मार्च, 1857 को जहां बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने क्रांति की शुरुआत की वहीं 10 मई, 1857 को मेरठ में भी क्रांति की शुरुआत सैनिकों ने ही की | दिल्ली में 11 मई को मेरठ के सैनिक पहुंचे और वहां उन्होंने क्रांति का बिगुल बजा दिया |

4. सीमित क्षेत्र में क्रांति का विस्तार

इस विद्रोह का विस्तार सीमित क्षेत्र में हुआ | क्रांति का आरंभ एक सैनिक छावनी से हुआ था | इसमें अधिकांश विद्रोही सैनिक ही थे |जमींदारों तथा देशी शासकों ने क्रांति में बहुत कम संख्या में भाग लिया | यह विद्रोह केवल उत्तर भारत एक सीमित रहा | दक्षिण भारत इससे बिल्कुल अछूता रहा | क्रांति का विस्तार अधिकांशत: उन क्षेत्रों में हुआ जहां पर सैनिक क्रांति में सक्रिय थे |

द्वितीय विचार : 1857 की क्रांति प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था

अनेक विद्वानों तथा इतिहासकारों के मतानुसार 1857 ईo का विद्रोह ( The Revolt Of 1857 ) महज एक सैनिक विद्रोह नहीं बल्कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था | ब्रिटेन के तत्कालीन विपक्ष के नेता डिजरेली ( Disraeli ) ने भी इस महान क्रांति को राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी | इन विद्वानों के अनुसार इस विद्रोह में विभिन्न जातियों तथा धर्म के लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया | विद्रोहियों में सैनिक, जमींदार, किसान तथा देशी राजाओं के साथ-साथ आम जनता भी शामिल थी | सभी लोग अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति चाहते थे | यह विद्रोह उनकी स्वतंत्रता के लिए किया गया विद्रोह था |

1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानने वाले विचारकों ने अपने मत की पुष्टि में निम्नलिखित तर्क दिये हैं : –

1.सौ वर्षों में सत्ता-परिवर्तन की मान्यता

भारत में एक कहावत प्रचलित थी कि 12 साल बाद तो कूड़े के ढेर का भाग्य भी बदल जाता है तथा 100 वर्षों बाद शासन बदल जाता है | 1757 से 1857 ईस्वी तक अंग्रेजों के शासन के 100 वर्ष पूरे हो चुके थे | भारतवासी सोचने लगे थे कि अब उन्हें अंग्रेजों के शोषण से मुक्ति मिल जाएगी | अतः वे स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने लगे थे | उचित अवसर जानकर 1857 में लोगों ने विद्रोह कर दिया |

2. अंग्रेजों के अत्याचार

अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में भारतीयों पर खूब अत्याचार किया था | उन्होंने भारतीयों का आर्थिक शोषण भी किया | भारतीयों की हालत दयनीय हो चुकी थी | देसी राजा, जमींदार, किसान तथा सामान्य जनता ; सभी अंग्रेजों के शासन से दुखी थे तथा उससे छुटकारा पाना चाहते थे | अतः सभी ने संगठित होकर 1857 ईo में स्वतंत्रता का प्रयास किया और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया |

3. योजनाबद्ध प्रयास

अट्ठारह सौ सत्तावन ईस्वी का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था | यह एक योजनाबद्ध तथा पूर्व नियोजित विद्रोह था | क्रांतिकारियों ने 31 मई, 1857 का दिन क्रांति के लिए निश्चित किया था | अनेक विचारकों ने इस विचार का समर्थन किया है |

4. हिंदू-मुस्लिम एकता

इस विद्रोह में हिंदुओं तथा मुसलमानों ने एकता का परिचय दिया |हिंदू तथा मुसलमान अपने भेदभाव को भुलाकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे | सभी क्रांतिकारियों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को शासक स्वीकार किया | कानपुर, झांसी तथा जगदीशपुर में मुसलमानों ने हिंदू शासकों के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया | इसके विपरीत अलीगढ़, लखनऊ आदि स्थानों पर हिंदुओं ने मुसलमान शासकों के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया | इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि सभी भारतीय अंग्रेजों के शासन से मुक्ति पाना चाहते थे |

5. विद्रोह को सामान्य जनता का समर्थन

यह विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था क्योंकि इसमें सैनिकों के साथ-साथ आम जनता ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया | यह विद्रोह केवल सैनिक छावनी तक ही सीमित नहीं था | यह विद्रोह उत्तर भारत के बहुत बड़े भाग तक फैला | यह केवल रियासतों का विद्रोह भी नहीं था क्योंकि अगर ऐसा होता तो इसमें केवल राजा तथा उनके सैनिक ही भाग लेते लेकिन इस आंदोलन में बड़ी संख्या में आम लोगों ने भी भाग लिया | इस संगठित प्रयास ने लगभग 100 वर्षों से चले आ रहे ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया | डेढ़ लाख से अधिक लोग शहीद हुए | निःसन्देह यह विद्रोह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था |

6. समान उद्देश्य

1857 ईo की क्रांति में सभी विद्रोहियों का एक समान उद्देश्य था | देसी राजा, जमींदार, किसान, मजदूर तथा आम जनता सभी अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग थे तथा सभी अंग्रेजों के शासन से मुक्ति चाहते थे | उनका एक ही उद्देश्य था – भारत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ना |

उपर्युक्त मतों के विपक्ष में तर्क

उपर्युक्त दोनों मतों में कुछ त्रुटियां हैं अधिकांश विद्वान मानते हैं कि 1857 ईस्वी के विद्रोह को महज़ सैनिक विद्रोह नहीं माना जा सकता क्योंकि इस विद्रोह में सैनिकों के साथ-साथ देशी राजाओं, जमींदारों, किसानों, कारीगरों तथा आम जनता ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया | दूसरा ; इस विद्रोह के केवल सैनिक कारण ही नहीं थे बल्कि राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, धार्मिक-सामाजिक कारण भी थे | विद्रोह केवल सैनिक क्षेत्रों में ही नहीं फैला बल्कि उन क्षेत्रों में भी फैला जहां सैनिक छावनीयां नहीं थी | अतः इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी नहीं कहा जा सकता |

दूसरे ; अनेक विद्वान इस विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं क्योंकि इस विद्रोह में विभिन्न धर्मों व जातियों के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों का सामना किया | इस विद्रोह में देशी राजाओं, जमींदारों, किसानों, आम जनता आदि सभी ने भाग लिया | भारतीय सैनिकों ने भी सशस्त्र विद्रोह किया | सभी अंग्रेजों के शासन से मुक्ति चाहते थे | यद्यपि इस मत में भी अनेक त्रुटियां हैं ; जैसे – उस समय तक राष्ट्रवादी भावना का पूरी तरह से विकास नहीं हुआ था, इसके साथ-साथ अनेक ऐसे क्रांतिकारी थे जो अपने अलग-अलग उद्देश्यों से विद्रोह कर रहे थे तथा विद्रोह सीमित क्षेत्र में हुआ आदि परंतु इन तमाम त्रुटियों के बावजूद भी यह मत अन्य मतों की अपेक्षा अधिक स्वीकार्य है | अत: हम 1857 ईo के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कह सकते हैं |