गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात गुप्त काल के शासकों ने भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधा | यद्यपि ईस्वी की चौथी सदी के आरंभ से लेकर छठी सदी के अंत तक इनका शासन रहा | परंतु गुप्त वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक स्कंदगुप्त था जिसने 467 ईस्वी तक शासन किया | हूणों के आक्रमण तथा आंतरिक कलह के कारण छठी सदी के अंत तक गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया |

उत्कृष्ट प्रशासनिक व्यवस्था, प्रजा हितार्थ कार्यों तथा सामाजिक धार्मिक व सांस्कृतिक विकास के कारण इस काल को अनेक इतिहासकार भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहते हैं | गुप्त काल को इतिहास का स्वर्ण काल कहना कितना उचित है ; इस पर विचार करने से पूर्व स्वर्णकाल की अवधारणा को समझना नितांत आवश्यक होगा |

स्वर्णयुग की अवधारणा

इतिहास के किसी काल को स्वर्ण काल या स्वर्ण युग कहने के पीछे केवल सत्तासीन शासक की राजनीतिक शक्ति, विशाल साम्राज्य, विपुल धन-दौलत के कारण पर्याप्त नहीं हैं | भारतीय इतिहास में अनेक ऐसी राजवंश हुए हैं जिनके समय में भारत में विपुल धन दौलत थी तथा उन राजवंशों का साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के एक बहुत बड़े भूभाग में था | परंतु उन राजवंशों के काल को स्वर्ण काल नहीं कहा जा सकता | वास्तव में विशाल भू-भाग पर शासन के अतिरिक्त उत्कृष्ट प्रशासनिक व्यवस्था तथा राज्य की अधिकांश प्रजा की खुशहाली अधिक महत्त्वपूर्ण कारक हैं जो किसी काल को स्वर्णकाल बनाते हैं |

गुप्त काल में भारत में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुए | साहित्य, विज्ञान, वास्तुकला, ललित कला आदि का विकास हुआ | गुप्त काल को स्वर्ण काल कहने से पूर्व इन सभी पक्षों पर विचार करना आवश्यक होगा |

(1) राजनीतिक एकता

मौर्य वंश के पतन के पश्चात उत्तरी भारत में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण था | संपूर्ण उत्तरी भारत छोटे-छोटे अनेक राज्यों में बंटा हुआ था | इन राज्यों के आपसी संबंध अच्छे नहीं थे | भारतीय राजाओं की आपसी फूट का लाभ उठाते हुए विदेशी शासकों ने भारत पर आक्रमण करने आरंभ कर दिए | ऐसी विकट स्थिति में गुप्त शासकों ने न केवल राज्य को स्थिरता प्रदान की बल्कि उसका विस्तार भी किया |

चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त साम्राज्य का प्रथम शक्तिशाली शासक माना जा सकता है | उसने गुप्त वंश को सुदृढ़ आधार प्रदान किया | गुप्त साम्राज्य के विस्तार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय की रही | गुप्त शासकों ने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार किया अपितु उस साम्राज्य की सुरक्षा भी सुनिश्चित की | उन्होंने कुछ भाग को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा तथा कुछ भाग से केवल कर प्राप्त किया | समुद्रगुप्त ने विशेष रूप से इस नीति को अपनाया उसने दक्षिण भारतीय राजाओं को पराजित कर उनसे अतुलित धन-दौलत प्राप्त की | राजनीतिक एकता के दृष्टिकोण से यह काल मौर्य वंश और मुगल वंश के समकक्ष ठहरता है |

(2) कुशल प्रशासनिक व्यवस्था

गुप्त शासकों ने नए केवल अपने साम्राज्य का विस्तार किया अपितु उस साम्राज्य को एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान की | गुप्त शासकों ने विभिन्न प्रशासनिक इकाइयां स्थापित की | गुप्त काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी | इसका प्रशासन ग्रामिक के नेतृत्व में पंचायतें चलाया करती थी | इस समय स्थानीय प्रशासन लगभग आत्मनिर्भर था | शासक इसमें प्रायः हस्तक्षेप नहीं करते थे | गुप्त काल में प्रशासन की सफलता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय अपराध बहुत कम होते थे |

गुप्त साम्राज्य अनेक राष्ट्रों अर्थात देशों में बंटा था | राष्ट्र अनेक भुक्तियों में तथा भुक्ति आगे अनेक विषयों में बंटे हुए थे | राष्ट्र वर्तमान समय के प्रांत के समान, भुक्ति कमिशनरी के समान तथा विषय आज के जिले के समान प्रशासनिक इकाई थी | सत्ता के इस विकेंद्रीकरण ने प्रशासन को सुदृढ़ बनाया |

गुप्त काल की न्याय व्यवस्था भी अच्छी थी | दंड अधिक कठोर नहीं थे | अपराध नाममात्र होते थे |

गुप्त शासकों ने सैनिक व्यवस्था की ओर भी विशेष ध्यान दिया इसी कारण से वे बाहरी आक्रमणों से राज्य को सुरक्षित रख सके और विशाल राज्य की स्थापना कर सके | आंतरिक शांति भी उनके कुशल शासन प्रबंध का प्रमाण थी |

(3) शिक्षा का विकास

गुप्तकाल में शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई | गुप्तकालीन शासकों ने शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया | उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की | गुप्तकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई | नालंदा विश्वविद्यालय उस समय विश्व का सर्वश्रेष्ठ शिक्षा केंद्र था | यहां पर भारत के अतिरिक्त विदेशों से भी हजारों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे | नालंदा के अतिरिक्त पाटलिपुत्र, तक्षशिला, मथुरा, काशी तथा उज्जैन भी उस समय शिक्षा के केंद्र थे | इन शिक्षण संस्थानों में धर्म, पुराण, तर्क, साहित्य, न्याय, व्याकरण दर्शन, ज्योतिष, गणित, राजनीति, इतिहास आदि विषयों को पढ़ाया जाता था | गुप्तकाल में स्त्रियों को भी शिक्षा का अधिकार था परंतु यह केवल चुनिंदा परिवारों की स्त्रियों के लिए था | उन्हें संगीत, चित्रकला, नृत्य तथा आचरण संबंधी शिक्षा दी जाती थी |

गुप्तकाल की शिक्षा व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय विद्यार्थियों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था | वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में गुप्त शासकों ने जो कार्य किए वे अन्य किसी काल में नहीं हुए |

(4) हिंदू धर्म का उत्थान

गुप्त काल में हिंदू धर्म का उत्थान हुआ | इस काल में हिंदू धर्म अपने चरम पर था | समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त आदि शासकों ने हिंदू धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | हिंदू धर्म का विपुल साहित्य रचा गया | जो रचनाएं केवल श्रुति के रूप में थी उन्हें पुस्तकों का रूप दिया गया | संस्कृत भाषा को राजभाषा घोषित किया गया | हिंदू देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां बनाई गई तथा अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया |

लेकिन केवल हिंदू धर्म के विकास के कारण इस काल को स्वर्ण काल नहीं कहा जा सकता | इस काल के शासकों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इन्होंने हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता की नीतियां बनाई | इस काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म को भी विकास का अवसर दिया गया | इस काल में अनेक बौद्ध स्तूप और विहारों की स्थापना हुई |

(5) वास्तुकला का विकास

गुप्त काल में वास्तुकला अपने चरम पर थी | इस काल में अनेक मंदिर, मठ तथा विहार बनवाए गए | गुप्त काल में बने वैष्णव व शिव मंदिर, बौद्ध मठ व विहार तथा गुफाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं | देवगढ़ का मंदिर गुप्त काल की वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है | इसके अतिरिक्त तिगवा का विष्णु मंदिर, भीतरी गांव का मंदिर, भूमरा का मंदिर आदि गुप्त काल के प्रमुख मंदिर हैं |

गुप्त काल में बने बौद्ध मठ, विहार, चैत्य तथा स्तूप स्थापत्य कला की महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं | पहाड़ी चट्टान को काटकर बनाई गई गुहा वह उसमें बौद्ध पूजा स्थल को चैत्य कहते हैं | अजंता की गुफाएं से विश्व प्रसिद्ध हैं | इस काल में हिंदू गुहा मंदिर भी बनाए गए | उदयगिरि का विष्णु मंदिर इसी प्रकार बनाया गया एक सुंदर मंदिर है |

(6) मूर्तिकला का विकास

मूर्ति कला की दृष्टि से भी गुप्त काल को स्वर्ण काल कहा जा सकता है | इस काल में मथुरा, सारनाथ और पाटलिपुत्र मूर्तिकला के केंद्र थे | सुंदर मूर्तियों के निर्माण के लिए मथुरा संपूर्ण उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध था | मथुरा कुषाण काल से ही मूर्ति निर्माण के लिए जाना जाता था | परंतु गुप्त काल में उनकी यह मूर्ति कला और अधिक निखर कर सामने आई | इस काल की मथुरा में निर्मित मूर्तियों पर गांधार शैली का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा और विषय वस्तु व बनावट की दृष्टि से शुद्ध भारतीय शैली में मूर्तियां बनाई जाने लगी |

गुप्त काल में मुख्यतः हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई गई | इस काल में शिव, विष्णु, पार्वती, सूर्य देव आदि देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई गई | विष्णु के विभिन्न अवतारी रूपों की मूर्तियां बनाकर हिंदू धर्म को महिमामंडित किया गया |

गुप्त काल में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म से संबंधित मूर्तियां भी बनाई गई | इनमें सजीवता और मौलिकता झलकती है | वस्तुत: गुप्त काल में मूर्ति कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय उन्नति हुई |

(7) नृत्य व संगीत कला का विकास

गुप्तकालीन गुफाओं की दीवारों पर बने हुए चित्र और साहित्य के प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुप्त काल की नृत्य कला भी अत्यंत विकसित थी | बाघ गुहा मंदिर के एक चित्र में नृत्य करती हुई दो मंडलीय चित्रित की गई हैं | दोनों में एक-एक नर्तक नाच रहा है और छह-छह नर्तकियाँ विविध वाद्य यंत्र बजाते हुए अपने नृत्य का प्रदर्शन कर रही हैं |

गुप्त काल के पुरातात्विक व साहित्यिक स्रोतों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्त काल की संगीत कला भी अपने चरम पर थी | समुद्रगुप्त के अनेक सिक्के मिले हैं जिन पर उसे वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया है | चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के सिक्कों पर कई वाद्ययंत्र बने हैं | वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ कामसूत्र में संगीत ज्ञान प्रत्येक नागरिक के लिए आवश्यक बताया है | कालिदास द्वारा रचित मालविकाग्निमित्रम् में गणदास को एक विख्यात संगीतज्ञ और नर्तक बताया गया है |

(8) मुद्रा कला का विकास

गुप्त काल में मुद्रा कला भी पर्याप्त विकसित थी | गुप्त सम्राटों ने कई प्रकार की मुद्राएं चलाई | समुद्रगुप्त ने केवल सोने के सिक्के जारी किए | चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सोने के सिक्कों के साथ-साथ चांदी और तांबे के सिक्के भी चलाए | समुद्रगुप्त के सिक्कों पर कुषाण मुद्रा कला का कुछ प्रभाव झलकता है परंतु चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्राएँ विशुद्ध भारतीय शैली में हैं | इन मुद्राओं पर भारतीय देवी-देवताओं के चित्र अंकित हैं |

(9) उत्कृष्ट साहित्य की रचना

गुप्त काल में उत्कृष्ट साहित्य रचा गया | इस काल में रचा गया साहित्य आज भी भारतीय साहित्यकारों के लिए आधारभूत सामग्री प्रदान करता है |

गुप्त काल के उत्कृष्ट साहित्य को देखकर बारनेट नामक विद्वान लिखता है — “प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्त काल का वही महत्व है जो यूनान के इतिहास में पेरिक्लियन युग ( Periclean Age ) का है |”

गुप्त काल में कालिदास, भारवि, मातृगुप्त, मातृभेंट, कुमार दास, माघ तथा हरिषेण आदि प्रसिद्ध कवि हुए | इन कवियों में कालिदास निःसन्देह सर्वश्रेष्ठ हैं | कालिदास द्वारा रचित ग्रंथों में अभिज्ञान शाकुंतलम् , मेघदूत, मालविकाग्निमित्रम् , कुमारसंभव आदि प्रमुख हैं | इनके द्वारा रचित अभिज्ञानशाकुंतलम् का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है |

इसके अतिरिक्त शूद्रक द्वारा रचित मृच्छकटिकम तथा विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस भी इस काल के प्रसिद्ध नाटक हैं | विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की रचना की | यह है भारत के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों में लोकप्रिय हुई और इसका अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया | वात्स्यायन ने विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ कामसूत्र की रचना की |

गुप्त काल में बड़ी संख्या में धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई | इस काल में प्राचीन भारतीय ग्रंथों पर भाष्य व टिकाएँ लिखी गई | नारद, कात्यायन, पराशर तथा बृहस्पति आदि स्मृतियों का संकलन भी गुप्त काल में हुआ | बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म से संबंधित साहित्य की रचना भी इस काल में हुई |

(10) विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी गुप्त काल भारतीय इतिहास में अपनी छाप छोड़ता है | गुप्त काल में गणित, खगोल, रसायन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में अनेक नई खोजें हुई |

आर्यभट्ट इस काल का एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक था | उसने खगोल तथा गणित के क्षेत्र में अनेक अविष्कार किए | उसने अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित के अनेक आश्चर्यजनक तथ्य स्पष्ट किए | उसने पाई ( Pai ) का मान बताया | उसने सर्वप्रथम दशमलव प्रणाली को विकसित किया | आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी गोल है और अपनी दूरी के चारों ओर परिक्रमा करती है | उसने चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण के कारणों पर भी प्रकाश डाला | उसके द्वारा रचित आर्यभटीय ग्रंथ में उसके द्वारा की गई खोजों का वर्णन मिलता है |

वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य भी इस युग के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलज्ञ थे | वराहमिहिर ने अपनी रचना पंचासिद्धांतिका में ज्योतिर्विज्ञान पर प्रकाश डाला | ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के विषय में बताया |

धनवंतरी नामक चिकित्सक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का दरबारी था | इस काल में पशु चिकित्सा पर भी ग्रंथ लिखे गए | रसायन व धातु विज्ञान के क्षेत्र में भी यह काल अग्रणी था | दिल्ली के महरौली में स्थित लौह स्तंभ गुप्त काल के धातु विज्ञान का प्रमाण है जिसे आज तक जंग नहीं लगी |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि गुप्त काल न केवल राजनीतिक स्थिरता के कारण बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में हुए विकास के कारण भी प्राचीन भारतीय इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है | इस काल की प्रशासनिक व्यवस्था ने प्रजा के जीवन को खुशहाल बनाया | मूर्तिकला, चित्रकला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई | इस दृष्टिकोण से इसे स्वर्णकाल कहना गलत नहीं होगा परंतु प्राचीन परिस्थितियों को देखते हुए ही इसे स्वर्णकाल कहा जा सकता है | उस समय असमानता और अस्पृश्यता अपने चरम पर थी | इस काल में लिखे हुए अनेक ग्रंथ होने ने न केवल उस समय समाज को विभिन्न वर्गों में बांटा बल्कि आने वाले समय में अनेक छोटे-छोटे वर्गों, जातियों व उप जातियों में बांटने की आधारशिला भी रख दी |

गुप्त काल ( Gupta Period )

वैदिक काल ( Vaidik Period )

अशोक एक अनोखा सम्राट जिसने युद्धों का त्याग कर दिया ( इतिहास, कक्षा-6 ) ( Ashoka, The Emperor Who Gave Gave Up War ) ( NCERT, History, Class 6, Chapter 8 )

मौर्य वंश ( Mauryan Dynasty )

महाजनपद काल : प्रमुख जनपद, उनकी राजधानियां, प्रमुख शासक ( Mahajanpad Kaal : Pramukh Janpad, Unki Rajdhaniyan, Pramukh Shasak )

25 thoughts on “गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल”

Leave a Comment