वैदिक काल ( Vaidik Period )

वैदिक काल ( Vaidik Period )
वैदिक काल ( Vaidik Period )

सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद जो सभ्यता प्रकाश में आई उसे  वैदिक सभ्यता ( Vaidik Sabhyata ) के नाम से जाना जाता है । यह पूर्णत: एक ग्रामीण सभ्यता थी । इसके मूल निवासियों को ‘आर्य’ कहा जाता है । अतः इसे आर्य सभ्यता ( Arya Sabhyata ) भी कहा जाता है । वैदिक काल ( Vaidik Period ) के इतिहास के मुख्य स्रोत वेद हैं |

वैदिक काल ( Vaidik Period ) को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है : —

1️⃣ ऋग्वैदिक सभ्यता या पूर्व वैदिक सभ्यता ( 1500 ई० पू० से 1000 ई० पू० तक )

2️⃣ उत्तर वैदिक सभ्यता ( 1000 ई० पू० से 600 ई० पू० तक )

छठी  शताब्दी ई० पू० में सोलह महाजनपद अस्तित्व में आ चुके थे । इस काल को महाजनपद काल ( Mahajanpad Kaal ) कहा जाता है ।

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मूल स्थान : आर्यों के मूल स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है । प्रो० मैक्समूलर के अनुसार आर्य  मध्य एशिया से आए थे । यही तथ्य आज सर्वमान्य है ।  बाल गंगाधर तिलक के अनुसार उत्तरी ध्रुव , डॉ० अविनाश के अनुसार सप्त सैंधव , पेन्का  के अनुसार जर्मनी तथा मेयर के अनुसार पामीर का पठार आर्यों का मूल निवास स्थान था ।

विस्तार : वैदिक  सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान , पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था । विंध्याचल पर्वत शृंखला इसकी दक्षिणी सीमा निर्धारित करती थी ।

वैदिक सभ्यता की प्रशासन व सामाजिक संरचना : वैदिक सभ्यता में सबसे छोटी इकाई कुल या कुटुंब थी । इसके पश्चात ग्राम , विशजन प्रशासनिक इकाइयाँ थी ।

ऋग्वेद में विश का 171 बार तथा जन का 275 बार उल्लेख  हुआ है ।

▪️ वैदिक काल ( Vaidik Period ) का समाज चार वर्णों में बँटा था । ये चार वर्ण थे – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र । ऋग्वेद के दशम मंडल के पुरुष सूक्त में यह तथ्य वर्णित है । ऋग्वेद के अनुसार ब्राह्मण की उत्पत्ति आदि पुरुष के मुख से , क्षत्रिय की उत्पत्ति आदि पुरुष की भुजाओं से , वैश्य की उत्पत्ति आदि पुरुष की जंघाओं से तथा
शूद्र की उत्पत्ति आदि पुरुष के पैरों से मानी जाती है ।

वैदिक सभ्यता के महत्त्वपूर्ण बिंदु

आर्य मुख्यतः पशु पालक एवं कृषक थे । इनकी मुख्य फ़सल यव ( जौ ) थी । व्रीही ( चावल ) भी मुख्य फ़सल थी । गोधूम ( गेहूँ ) का कम उल्लेख मिलता है । माण (उड़द ), मुग्द (मूँग ) तथा सर्षप ( सरसों ) का उल्लेख भी मिलता है ।

▪️पेय पदार्थों में सोमरस व सुरा का प्रयोग किया जाता था । भेड़ व बकरी का माँस भक्षण किया जाता था । अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर अश्व के माँस का भक्षण किया जाता था ।

▪️‘औदन’ दूध में पकाकर बनाया जाने वाला पेय पदार्थ था । चावल को दूध में पकाकर ‘क्षीरौदन’ बनाया जाता था ।

▪️ ‘वास’ ऊपरी शरीर पर धारण किया जाने वाला प्रमुख वस्त्र था जबकि ‘नीवी’ को शरीर के निचले भाग पर धारण किया जाता था । ‘उष्णीय’ एक प्रकार की पगड़ी थी जिसे पुरुष तथा स्त्री दोनों सिर पर धारण करते थे ।  ‘पेशस‘ कढ़ाई किए गए वस्त्र थे ।                 

◾️ गले में ‘निश्क‘ , कान  में ‘कर्णशोभन‘ तथा शीश पर  ‘कुम्ब’ नामक आभूषण पहना जाता था ।

▪️ वैदिक काल ( Vaidik Period ) के लोगों ने प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण किया । यास्क के अनुसार 33 देवता थे । सवितृ (सूर्य ), आदित्य , मित्र , पूशण, विष्णु तथा आश्विन आकाश के देवता थे । इंद्र , रूद्र , मरुत , वायु , पर्जन्य अंतरिक्ष के देवता थे । अग्नि , सोम , पृथ्वी , बृहस्पति सरस्वती पृथ्वी के देवता थे ।

▪️ऋग्वेद में इंद्र को सर्वाधिक प्रतापी देवता माना गया है । (250 सूक्तों में वर्णन )

इंद्र को पुरंदर ( युद्ध नेता ) तथा वर्षा का देवता माना जाता था । द्योस उसके पिता थे अग्नि उसका भाई तथा मरुत उसका सहयोगी था । इंद्र ने वृत का वध करके आप (जल ) को मुक्त किया तथा सूर्य एवं उषा को जन्म दिया । विष्णु ने वृत  के वध में इंद्र की मदद की । द्योस सबसे प्राचीन देव था ।

▪️ऋग्वेद में ‘अग्नि’ को दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना गया है ( 200 सूक्तों में उल्लेख ) । यह देवताओं तथा मनुष्यों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता था । इन्हें ‘अतिथि ‘ तथा ‘देवताओं का मुख’ भी कहा जाता था ।

▪️तीसरा महत्त्वपूर्ण देवता ‘वरुण‘ था जिसका 30 सूक्तों में वर्णन मिलता है । इन्हें वायु व समुद्र का देवता , ऋतु-परिवर्तन व दिन-रात का कर्त्ता -धर्त्ता , पृथ्वी , आकाश व सूर्य का निर्माता कहा जाता था ।

▪️ऋगवैदिक काल में सभा , समिति , गण विदथ नामक संस्थाएँ थी । ‘विदथ‘ सबसे प्राचीन संस्था थी । अथर्ववेद में ‘सभा‘ व ‘समिति’को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है । ‘सभा‘ के सदस्य केवल श्रेष्ठ जन होते थे । समिति में सभी व्यक्ति शामिल होते थे । समिति के प्रमुख को ईशान ( पति ) कहते थे । समिति राजा को चुनने व पद से हटाने का अधिकार रखती थी ।

▪’️भरत‘ एक कुल का नाम था जिसके नाम पर भारत  देश का नाम भारत पड़ा। भरत कुल के पुरोहित वशिष्ठ थे ।

▪️भरत कुल के राजा सुदास तथा अन्य दस राजाओं के बीच दाशराज का युद्ध पुरुष्णी नदी ( रावी ) के तट पर हुआ । इसमें सुदास की विजय हुई । युद्ध के पश्चात भरतों व पुरुओं के बीच संधि हुई और एक नवीन वंश ‘कुरु‘ वंश की स्थापना हुई |

◼️ऋग्वेद में 25 नदियों  का उल्लेख है जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिंधु नदी को माना गया है । सरस्वती को सबसे पवित्र नदी माना गया है । ऋग्वेद में गंगा का 1 बार तथा यमुना का 3 बार उल्लेख हुआ है ।

वैदिक काल ( Vaidik Period ) की नदियों के प्राचीन नाम

सिंधु – सिंध ;

झेलम – वितस्ता

गोमती – गोमल

चिनाब – अस्किनी
काबुल – कुंभा

व्यास – विपाशा

कुर्रम – क्रुमु

सतलुज – शुतद्रि

घग्घर – दृषद्वती

रावी – पुरुषणी

सरस्वती – सरस्वती

वैदिक साहित्य ( Vaidik Sabhayta ) 

ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन वेद हैं । वेदों की संख्या चार है । ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है । अन्य वेद सामवेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद हैं । चारों वेदों का सम्मिलित रूप संहिता कहलाता है ।

ऋग्वेद ( Rigved ) में दस मंडल , 1028 सूक्त  तथा 10580 मंत्र हैं । वेद मंत्रों को ऋचा कहते हैं । दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में सर्वप्रथम ‘शूद्र’ शब्द का उल्लेख मिलता है ।nऋग्वेद में ‘ओ३म’ शब्द 1028 बार , जन 275 बार , विश 171 बार , ब्राह्मण 14 बार , क्षत्रिय 9 बार , वैश्य , शूद्र तथा गंगा 1 बार आया है । सिंधु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार तथा यमुना का 3 बार उल्लेख हुआ है ।

▪️ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ ऐतरेय तथा कौषीतकी हैं ।

सामवेद ( Samved ) संगीत से सम्बंधित वेद हैं । इसके मंत्रों ( 1549 मंत्र )का उच्चारण यज्ञ के समय ‘उद्गाता‘ ऋषि करते थे । ये मंत्र मुख्यतः सूर्य स्तुति को समर्पित थे ।

◾️ सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ  -पंचविंश,षडविंशऔर जैमिनीय हैं ।

⧭ यजुर्वेद ( Yajurved ) ‘यजुष’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है – यज्ञ । यजुर्वेद में 2000 मंत्र हैं | यज्ञ के समय इन मन्त्रों का उच्चारण किया जाता था  । इनका उच्चारण ‘उध्वर्यु‘ नामक पुरोहित करता था । यह वेद गद्य और पद्य दोनों में लिखित हैं । यजुर्वेद के दो भाग हैं – शुक्ल यजुर्वेद व कृष्ण यजुर्वेद । शुक्ल यजुर्वेद में केवल श्लोक हैं जबकि कृष्ण यजुर्वेद में श्लोक तथा उनकी व्याख्या दोनों मिलते हैं । यजुर्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं – शतपथ तथा तैतिरीय।यजुर्वेद में हिरण्य ( सोना ), कृष्ण अयस ( लोहा ) तथा अयस ( तांबा ) धातुओं का उल्लेख मिलता है |

अथर्ववेद ( Atharvaved ) की रचना अथर्वा ऋषि ने की । इसमें 20 मंडल व 630 सूक्त हैं । इस में भूत-प्रेत जादू-टोना आदि का वर्णन है ।

◾️ अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रंथ ‘गोपथ’है ।

▪️उपनिषदों की संख्या 108 है जिनमें प्रमुख हैं -ऐतरेय , कौषीतकी , तैतिरीय , मुंडक आदि । पुराणों की संख्या 18 है जिनमें प्रमुख हैं – मत्स्य , विष्णु , ब्रह्मा , भागवत, वायु आदि । मनुस्मृति की रचना मनु ने की । इसे प्राचीनतम विधि ग्रंथ माना जाता है ।

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