वाकाटक वंश व चालुक्य वंश ( Vakataka And Chalukya Dynasty )

       वाकाटक वंश व चालुक्य वंश 

◾वाकाटक वंश ने तीसरी शताब्दी से छठी शताब्दी ई० तक दक्षिणापथ में शासन किया । इनका मूल स्थान बरार ( विदर्भ ) था । यह राजवंश ब्राह्मण था ।
▪अजन्ता गुहालेख से वाकाटक वंश के शासकों की राजनैतिक उपलब्धियों का विवरण मिलता है ।
▪वाकाटक वंश की स्थापना 255 ई० के लगभग विंध्यशक्ति ने की । वे सातवाहन शासकों के अधीन बरार के स्थानीय शासक थे । वाकाटक वंश के अन्य प्रमुख शासकों में प्रवरसेन प्रथम , रुद्रसेन प्रथम , पृथ्वीसेन प्रथम , प्रवरसेन द्वितीय , पृथ्वीसेन द्वितीय , सर्वसेन आदि का नाम लिया जा सकता है ।
▪अजन्ता के 16वें ,17वें गुहा विहार तथा 19वें गुहा चैत्य का निर्माण वाकाटक वंश के काल में हुआ ।

⚫️ बादामी के चालुक्य ⚫️
( Badami ke Chalukya )

◾ईसा की छठी सदी से आठवीं सदी के मध्य दक्षिणापथ पर बादामी ( वातापी ) के चालुक्यों ने शासन किया । चालुक्यों की इस शाखा को पूर्वक़ालीन पश्चिमी शाखा भी कहा जाता है ।
◾बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक जय सिंह या जय सिम्हा था | इसने वातापी ( कर्नाटक,  बीजापुर के निकट ) को अपनी राजधानी बनाया |
◼️जय सिंह / जय सिम्हा के बाद पुलकेशिन प्रथम राजा बना जिसे चालुक्य वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है |पुलकेशिन प्रथम के पश्चात उसका पुत्र कीर्तिवर्मन 566 ई o में सिंहासन पर बैठा |
◼️इस वंश के प्रमुख शासकों में पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय,  विक्रमादित्य, विनयादित्य,  विजयादित्य का नाम लिया जा सकता है।
◼️पुलकेशिन द्वितीय ( Pulakeshin ll )  कीर्तिवर्मन का पुत्र था जो 608 ईo में अपने चाचा मंगलेश को युद्ध में हराकर राजा बना |
◼️पुलकेशिन द्वितीय ( Pulkeshin ll ) चालुक्यों में सर्वश्रेष्ठ शासक था । उसने नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्धन को पराजित किया । एहोल अभिलेख से इस तथ्य की जानकारी मिलती है ।
🔹एहोल अभिलेख एक प्रशस्ति है । इसकी भाषा संस्कृत तथा लिपि दक्षिणी ब्राह्मी है ।इसकी रचना रविकीर्ति ने की थी ।
🔹पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को हराकर ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की ।
🔹जिनेन्द्र के ‘मेगुती मंदिर’ ( Maguti Temple )का निर्माण पुलकेशिन द्वितीय ने करवाया | यह मंदिर एहोल  में है | एहोल को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है | एहोल कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर स्थिति है |
🔹पुलकेशिन द्वितीय को पल्लव नरेश नरसिंह प्रथम ने पराजित किया ।
◾चालुक्य नरेश विक्रमादित्य ने पल्लव नरेश नंदीवर्मन द्वितीय को पराजित कर ‘काँचीकोंड’ की उपाधि धारण की ।
◾ बादामी के चालुक्य वंश का अंतिम सम्राट कीर्तिवर्मन द्वितीय था । इसे इसके अधीन स्थानीय शासक दंतिदुर्ग ने 757 ईo में परास्त कर राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की |

⚫️ वेंगी के चालुक्य ⚫️

◾वेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन द्वितीय के छोटे भाई विष्णुवर्धन ने की । चालुक्यों की इस शाखा को ‘पूर्वी चालुक्य वंश’ भी कहा जाता है । इनकी राजधानी वेंगी ( आँध्रप्रदेश ) थी । इनका राज्य कृष्णा नदी तथा गोदावरी नदियों  के बीच के भू-भाग पर था |
🔹वेंगी के चालुक्यों में सबसे प्रतापी राजा विजयादित्य तृतीय  था । उसका सेनापति पंडरंग था ।
🔹अंत में वेंगी के चालुक्य वंश का चोल साम्राज्य में विलय हो गया |

⚫️ कल्याणी के चालुक्य ⚫️
( Vengi Chalukya )

◾कल्याणी के चालुक्य ( Western Chalukya )वंश की स्थापना तैलप द्वितीय ने की।
कल्याणी के चालुक्य वंश का उदय राष्ट्रकूट वंश के पतन के पश्चात हुआ |
🔹मेरुतुंग कृत ‘प्रबंध चिंतामणि’ से ज्ञात होता है कि तैलप द्वितीय तथा परमार शासक मुंज के मधु 6 बार युद्ध हुआ ।
◾ इनकी आरम्भिक राजधानी मान्यखेट ( शोलापुर के निकट )  थी ।
◾सोमेश्वर प्रथम 1043 ई० में शासक बना । उसने अपनी राजधानी मान्यखेट से बदलकर कल्याणी ( कर्नाटक ) बनाई ।
🔹सोमेश्वर प्रथम चालों से पराजित हो गया और उसने तुंगभद्रा में जल-समाधि ले ली ।
◾इस वंश का सबसे प्रतापी राजा विक्रमादित्य षष्ठम् था ।
🔹विक्रमादित्य षष्ठम सोमेश्वर प्रथम का पुत्र तथा सोमेश्वर द्वितीय का छोटा भाई था |उसने 1076 ईo में अपने राज्यारोहण के समय चालुक्य विक्रमी संवत चलाया |
🔹उसने महान चोल शासक राजेंद्र चोल की पुत्री से विवाह किया
🔹विल्हण और विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य षष्ठम् के दरबार की शोभा थे ।
🔹विलहण ने ‘विक्रमांकदेवचरित’ की रचना की । इससे विक्रमादित्य षष्ठम् के शासनकाल की महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है ।
🔹विज्ञानेश्वर ने ‘मिताक्षरा’ नामक ग्रन्थ की रचना की | यह ग्रन्थ ‘याज्ञवल्कय स्मृति’ का व्याख्या ग्रन्थ है |
◼️चालुक्यकालीन शासन व्यवस्था में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी |ग्राम के  प्रशासनिक अधिकारी को ‘गामुड़’ कहा जाता था जिसकी नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाती थी | इसके अतिरिक्त ‘महाजन’ का भी उल्लेख मिलता है |

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