सांप्रदायिकता : अर्थ, परिभाषा, उद्भव एवं विकास ( Sampradayikta Ka Arth, Paribhasha, Udbhav Evam Vikas )

उन्नीसवीं सदी के अंत तक राष्ट्रवाद के साथ-साथ सांप्रदायिकता का विकास होने लगा था | इसके विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की एकता के लिए खतरा उत्पन्न होने लगा था |

सांप्रदायिकता के उद्भव और विकास को जानने से पहले इसके अर्थ को जानना आवश्यक है |

सांप्रदायिकता का अर्थ ( Sampradayikta Ka Arth )

सांप्रदायिकता एक संकीर्ण विचारधारा है जो लोगों को धर्म के नाम पर बाँटती है | सांप्रदायिकता इस विश्वास का नाम है कि हिंदू, मुसलमान, सिक्ख और इसाई अलग-अलग समुदाय हैं |सांप्रदायिकता एक ऐसी भावना है जिसके कारण मनुष्य को अपने धर्म की हर बात अच्छी लगती है और दूसरे धर्म की सभी बातों से वह नफरत करने लगता है | दूसरे धर्म के लोगों की जीवनशैली, रीति-रिवाज, परंपराएं, मान्यताएं आदि सब से नफरत होने लगती है |

साम्प्रदायिकता की परिभाषा ( Sampradayikta Ki Paribhasha )

साम्प्रदायिकता एक ऐसी अवधारणा है जिसमें एक विशेष समुदाय या धर्म के लोग किसी दूसरे समुदाय या धर्म के लोगों को अपने समुदाय या धर्म के लिये अहितकारी मानकर उससे नफरत करने लगते हैं |

प्रसिद्ध इतिहासकार विपिनचंद्र के अनुसार – “साम्प्रदायिकता का आधार ही यह अवधारणा है कि भारतीय समाज कई ऐसे सम्प्रदायों में बंटा हुआ है जिनके हित न सिर्फ अलग हैं बल्कि एक दूसरे के विरोधी भी हैं |”

सांप्रदायिकता का उद्भव एवं विकास /साम्प्रदायिकता के कारण ( Sampradayikta Ke Karan )

19वीं सदी के अंत तक राष्ट्रवाद के साथ-साथ सांप्रदायिकता का विकास होने लगा था | इससे पहले हिंदू तथा मुसलमान एकजुट होकर अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे | राष्ट्रीय आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था | अतः राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने हिंदू तथा मुसलमानों के बीच नफरत के बीज बो दिए |

सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारण निम्नलिखित थे :-

1. अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति

अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सहारा लिया | उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालने के लिए अनेक प्रयास किए | इसके लिए उन्होंने मुसलमानों का पक्ष लेना शुरू किया | 1905 ईo में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया | 1906 ईo में मुस्लिम लीग ( Muslim League ) की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया | बंगाल के विभाजन के समय मुस्लिम लीग ने बंगाल के विभाजन का समर्थन किया तथा स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन का विरोध किया | इसी प्रकार कुछ स्थानों पर अंग्रेजों ने हिंदुओं का समर्थन किया जिससे हिंदुओं और मुसलमानों में नफरत बढ़ने लगी |

2. सांप्रदायिकता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मध्यकाल में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत के बीज पड़ चुके थे | मुसलमान शासक हिंदुओं पर अनेक अत्याचार करते थे | वे मुसलमानों को ऊंचा उठाने तथा हिंदुओं को नीचा गिराने का प्रयास करते थे | हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जाता था | धर्म परिवर्तन के लिए भी उन पर दबाव डाला जाता था | यहां तक कि अपने शासन में रहने के लिए हिंदुओं से जजिया ( Jizya ) कर भी लिया जाता था | अतः हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति नफरत की भावना थी |

3. मुसलमानों का पिछड़ापन

अधिकांश मुसलमान आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए थे | हिंदुओं ने आधुनिक शिक्षा को अपना लिया था | अत: उनको सरकारी नौकरियां भी मिलने लगी थी परंतु मुसलमान काफी समय तक अंग्रेजी शिक्षा से दूर रहे | परिणामस्वरुप वे नौकरियों के मामले में हिंदुओं से पिछड़ते गए | ऐसी स्थिति में अंग्रेजों के लिए मुसलमानों को हिंदुओं के विरुद्ध भड़काना आसान हो गया |

4. धार्मिक आंदोलनों का प्रभाव

19वीं सदी के दौरान ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी जैसे अनेक सुधार आंदोलन चले | इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज तथा धर्म में व्याप्त कुरीतियों का विरोध करना था | इन आंदोलनों के प्रभाव से मुसलमानों में भी जागृति आने लगी | मुसलमानों ने भी अनेक धार्मिक आंदोलन चलाए | परंतु जहां हिंदू सुधार आंदोलन सकारात्मक थे वहीं मुस्लिम आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य नकारात्मक था | वह केवल संगठित होकर अपने लिए राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना चाहते थे | अतः वे हिंदुओं का विरोध करने लगे |

5. लॉर्ड कर्जन की नीतियां

सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने में लॉर्ड कर्जन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | भारत में राष्ट्रीय आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था | अंग्रेजों का शासन कमजोर पड़ने लगा था | लॉर्ड कर्जन ने 1905 ईo में बंगाल का विभाजन कर दिया | इस विभाजन का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डालकर राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करना था |

6. कांग्रेस में उग्र राष्ट्रवाद का जन्म

20 वीं सदी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उग्र राष्ट्रवाद का जन्म हुआ | इन राष्ट्रवादियों ने हिंदुत्व पर बल दिया | प्राचीन भारतीय संस्कृति से उदाहरण दिए गए | अनेक प्राचीन परंपराओं पर जोर दिया गया | शिवाजी तथा अन्य हिंदू राजाओं की वीरता का गुणगान किया गया परंतु अकबर जैसे मुसलमान शासकों की उपलब्धियों की कोई चर्चा नहीं की गई | मुस्लिम शासकों को खलनायक के रूप में दिखाया गया | इससे मुसलमानों का इन राष्ट्रवादियों से नफरत करना स्वाभाविक था |

7. सर सैयद अहमद खां की भूमिका

अपने जीवन के अंतिम दिनों में सर सैयद अहमद खां ने सांप्रदायिकता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | वे अंग्रेजों की चापलूसी करने लगे और मुसलमानों के लिए सुविधाओं की मांग करने लगे | उनकी चापलूसी से प्रसन्न होकर सरकार ने उनको ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया | 1878 ईस्वी में उन्होंने एमo एo ओo कॉलेज की स्थापना की | इन शिक्षण संस्थानों का उद्देश्य मुसलमानों को पाश्चात्य शिक्षा देने के साथ-साथ अंग्रेजों के वफादार बनाना भी था | इस प्रकार उसने भारत के अनेक मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन से अलग कर दिया |

8. देश का आर्थिक पिछड़ापन

देश के आर्थिक पिछड़ेपन ने भी सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया |देश में निर्धनता व्याप्त थी | रोजगार के साधन बहुत कम थे | अतः लोगों ने नौकरियां पाने के लालच में धर्म, संप्रदाय, जाति आदि के आधार पर रियायतें पाने का प्रयास किया | इससे अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो की नीति’ को सफलता मिली |

9. लॉर्ड मिंटो की भूमिका

लॉर्ड कर्जन के बाद लॉर्ड मिंटो भारत का वायसराय बनकर आया | उसने भी लॉर्ड कर्जन की तरह भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की नीति को अपनाया | उसने आते ही महसूस किया कि अगर भारत में लंबे समय तक शासन करना है तो फूट डालो और राज करो की नीति को अपनाना होगा | लॉर्ड मिंटो ने 1909 ईo के भारत सरकार अधिनियम में सांप्रदायिकता को बढ़ाने के लिए अनेक ऐसी धाराएं रखी जिन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को और अधिक गहरा कर दिया | उसने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था की |

◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि भारत में सांप्रदायिकता का विकास अंग्रेजों की सोची समझी रणनीति का परिणाम था | अंग्रेजों ने समय-समय पर भारत के हिंदुओं तथा मुसलमानों को एक दूसरे के विरुद्ध बढ़ाया और अंततः भारत में सांप्रदायिकता इतनी बढ़ गई कि इसके इतने भयंकर परिणाम हुए कि स्वतंत्रता के समय भीषण रक्तपात हुआ और भारत दो भागों में बंट गया |

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