मुहम्मद गौरी के आक्रमण ( Mohammed Gauri’s Invassions )

महमूद गजनवी के बाद भारत पर आक्रमण करने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों में मोहम्मद गौरी का नाम आता है | 1173 ईस्वी में गजनी का शासक बनने के तुरंत पश्चात उस ने भारत पर आक्रमण करने की योजना बना ली थी उसने भारत पर अपना पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में किया | उसका भारत पर आक्रमण करने का उद्देश्य स्पष्ट था | वह भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना चाहता था | 1206 ईस्वी तक उसने भारत के विभिन्न भागों पर विजय प्राप्त कर ली थी | गजनी लौटने से पहले उसने अपने भारत विजय के कार्यक्रम को अपने दास और योग्य सेनानायक कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया। ऐबक ने गौरी जैसी तीव्रता दिखाकर गौरी के अधूरे कार्य को पूरा कर दिया। जब 1206 ई० में गौरी की मृत्यु हुई, उस समय भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित हो चुका था। यद्यपि सभी आक्रमणों में गौरी को सफलता नहीं मिली, परन्तु फिर भी उसकी विजयें भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का आधार बनी |

मुहम्मद गौरी आक्रमणों के उद्देश्य (Objectives of Mohammad Gauri’s Invasions )

मुहम्मद गौरी ने निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ती के लिए भारत पर आक्रमण किया —

(1) गज़नी प्रदेश का राज्य पहले गज़नवी वंश के अधीन था। गौरी ने इस वंश की समाप्ति कर दी थी, परन्तु पंजाब में अभी भी गज़नवी वंश का शासक खुसरोशाह शासन कर रहा था। उसकी शक्ति को कुचले बिना गौरी का राज्य सुरक्षित नहीं रह सकता था।

(2) गौरी महत्वाकांक्षी था | वह अपने गज़नी के छोटे-से राज्य से सन्तुष्ट नहीं था। वह अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। यह विस्तार केवल भारत की ओर ही सम्भव था।

(3) गौरी एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम धर्म का प्रचार करना अपना प्रमुख कर्त्तव्य समझता था। यह कार्य भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के बिना सम्भव नहीं था। अतः उसने भारत पर आक्रमण किए।

(4) गौरी की धन की लालसा ने भी उसे भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। वह भारत की अपार धन सम्पत्ति के बारे में जानकारी रखता था।

(5) गौरी का संघर्ष मध्य एशिया में भी चल रहा था। पंजाब पर अधिकार किए बिना वह अपने इस उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता था।

(6) गौरी समकालीन भारत की राजनीतिक दशा से भी परिचित था। भारत में अब भी राजनीतिक एकता नहीं थी और अब भी राजपूत आपस में लड़ रहे थे। दिल्ली और अजमेर के चौहान, कन्नौज के राठौर और बुन्देलखण्ड के चन्देल शक्तिशाली होते हुए भी आपसी फूट के कारण कमज़ोर थे। विनाश का भय होने पर भी वे एक होकर शत्रु का सामना नहीं कर सकते थे। ऐसे वातावरण में गौरी का भारत पर आक्रमण करना समय के अनुकूल था।

गौरी के प्रमुख आक्रमण (The main Invasions of Gauri)

मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण निम्नलिखित किए —

(1) मुल्तान व सिंध पर आक्रमण ( 1175 ई० )

मुहम्मद गौरी ने मुल्तान व सिन्ध पर 1175 ईस्वी में आक्रमण किया ।
मुल्तान में उस समय करामथी कबीले शासन करते थे। वे कबीले इस्लाम धर्म के विरोधी थे। गौरी ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया। वहाँ एक विश्वसनीय मुसलमान गवर्नर नियुक्त किया गया। गौरी ने चालाकी से सिन्ध किले पर अधिकार कर लिया। गौरी ने वहाँ की रानी को प्रलोभन देकर उसे अपने पक्ष में कर लिया। रानी ने जहर देकर अपने पति की हत्या कर दी। गौरी ने इस प्रकार दुर्ग पर अधिकार कर लिया, परन्तु रानी को दिया हुआ वचन पूरा नहीं किया। परन्तु इतिहासकार इस कहानी को सत्य नहीं मानते।

(2) गुजरात पर आक्रमण ( 1178 ई० )

मुहम्मद गौरी 1178 ईस्वी में अनहिलवाड़ा पर आक्रमण किया। यह नगर गुजरात की राजधानी था। वहाँ का शासक भीमदेव (मूलराज) था। भीमदेव ने विशाल सेना के साथ गौरी का मुकाबला किया। गौरी की करारी हार हुई। उसके अनेक सैनिक बन्दी बना लिए गए। गौरी अपमानित होकर अनहिलवाड़ा से भाग गया। वापसी पर भी मुस्लिम सेना को अनेक कठिनाइयाँ सहन करनी पड़ीं। बहुत कम सैनिक गज़नी पहुंचे।

इस करारी हार के बाद गौरी ने पुनः 20 वर्ष तक गुजरात पर आक्रमण नहीं किया। परन्तु इस बीच गौरी ने अपनी सेना में महत्वपूर्ण सुधार किए। हार से सबक लेकर उसने अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये | अब उसने समझ लिया कि भारत विजय का रास्ता पंजाब में से होकर जाता है, परन्तु पंजाब में गज़नवी वंश का शासन था। अब उसने पंजाब प्रक्रमण की योजना बनानी शुरू कर दी |

(3) पंजाब पर आक्रमण ( 1179 ई० )

मुहम्मद गौरी ने 1179 ईस्वी में लाहौर पर आक्रमण किया | वहाँ का शासक खुसरो मालिक था | गौरी ने पेशावर पर अधिकार कर लिया | गौरी, खुसरो की शक्ति को पूरी तरह कुचल नहीं सका। अतः उसने पुनः लाहौर पर आक्रमण करके खुसरो को बन्दी बना लिया और खसरो की हत्या करवा दी।

(4) तराइन की पहली लड़ाई ( 1191 ईस्वी )

1191 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने दिल्ली तथा अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया | तराइन नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई | राजपूत संख्या में मुसलमानों से अधिक से इस युद्ध में गौरी की हार हुई | गौरी युद्ध के मैदान से भाग गया |

(5) तराइन की दूसरी लड़ाई ( 1192 ईस्वी )

1192 ईस्वी में गौरी ने पुनः पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया और तराइन नामक स्थान पर दूसरा युद्ध हुआ। गौरी अपनी पिछली अपमानजनक हार को नहीं भुला सका था | इस बार वह पूरी तैयारी के साथ आया था। उसके पास एक नई युद्ध-नीति थी। अब उसके साथ 1 लाख, 20 हजार घुड़सवार थे। उधर पृथ्वीराज चौहान भी तैयार था। दोनों में युद्ध आरम्भ हुआ। गौरी के कुछ सैनिक एक नीति के अनुसार पीछे हटने लये, परन्तु वे एकदम मुड़कर शत्रु पर टूट पड़े। राजपूत सेना में भगदड़ मच गई। गौरी को विजय मिली। पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बना लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई। गौरी का दिल्ली पर अधिकार हो गया। यह युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। इसी युद्ध ने उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव रखी।

गौरी ने अपने जीते हुए प्रदेश अपने योग्य एवं विश्वसनीय दास कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिए। गौरी स्वयं गज़नी लौट गया। उसके गज़नी जाते ही राजपूतों ने दिल्ली और अजमेर में विद्रोह आरम्भ कर दिए। परन्तु ऐबक ने कुशलतापूर्वक सभी विद्रोहों को कुचल दिया। इसके अतिरिक्त ऐबक ने मेरठ, बरन और कोल के प्रदेश जीतकर अपने राज्य में मिला लिए।

(6) चंदावर की लड़ाई ( 1194 ई० )

1194 ईस्वी में कन्नौज एवं बनारस के राजपूत शासक जयचन्द राठौर पर आक्रमण किया गया । आगरा से 20 मील दूर चंदावर ( चन्द्रवाड़ी ) के स्थान पर दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ। भाग्य ने फिर गौरी का साथ दिया। जयचन्द की हार हुई। गौरी ने बनारस पर धावा बोल दिया। कहा जाता है कि मुहम्मद गौरी बनारस का कोष लूटकर और उसे 1400 ऊँटों पर लादकर गज़नी ले गया।

गौरी कुछ समय तक भारत पर आक्रमण न कर सका, परन्तु ऐबक ने अपने सैनिक अभियान जारी रखे। उसने राजपूत विद्रोहों को दबाया। फिर उसने अनहिलवाड़ा के भीमदेव को 1198 ई० में पराजित किया और 20 वर्ष पहले की हार का बदला लिया। फिर उसने हांसी के जाटों का भी दमन किया और राजपूतों से कालिंजर का दुर्ग छीन लिया, जो सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।

(7) बिहार विजय (1197 ईस्वी )

ऐबक जब मध्य भारत में अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा रहा था उसी समय उसके वीर सेनानायक इख्तियार खलजी ने पूर्वी भारत पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। 1197 ई० में उसने बिहार में चुनार के निकट के क्षेत्र पर अधिकार किया और फिर बिहार पर विजय प्राप्त की। वहाँ उसने बहुत लूट-मार की । बौद्ध विश्व की हत्या कर दी गई और बहुत विहारों को नष्ट कर दिया गया | कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे पूर्वी प्रदेश पर अधिकार बनाए रखने की आज्ञा दे दी |

(8) बंगाल विजय ( 1197-98 )

बिहार विजय के पश्चात इख़्तियार खिलजी ने 1197-98 ईस्वी में बंगाल पर आक्रमण कर दिया | उसने बंगाल के शासक लक्ष्मण सेन को पराजित करके बंगाल की राजधानी नदिया पर अधिकार कर लिया |

(9) खोखरों का विद्रोह (1205 ईस्वी )

गौरी की 1205 इसी में मध्य एशिया में करारी हार हुई | गौरी की मृत्यु की अफवाह फैल गई | उस समय पंजाब में खोखरों ने मुसलमानों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया परंतु गौरी ने धैर्य नहीं खोया और उसने ऐबक की सहायता से खोखरों के विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन किया | 1206 ईस्वी में मुहम्मद गौरी पंजाब से गजनी को जा रहा था तो रास्ते में इस्मायली कबीले के कुछ लोगों ने उसकी हत्या कर दी |

मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के परिणाम ( Consequences of Mohammed Gauri’s Invassions )

मुहम्मद गौरी के भारत पर किए गए आक्रमणों के निम्नलिखित परिणाम निकले —

(1) मुहम्मद गोरी के आक्रमणों से भारत में राजपूत शासकों की शक्ति का नाश हो गया |

(2) गौरी ने भारत की अस्थिर व अव्यवस्थित राजनीतिक दशा का लाभ उठाकर भारत में स्थाई मुस्लिम शासन की स्थापना की |

(3) मुहम्मद गौरी ने भारतीय प्रदेशों को जीतकर उन्हें अपने विश्वसनीय दास कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया | उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी | अतः उसकी मृत्यु के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक भारतीय विजित प्रदेश का शासक बना और उसने दास वंश की नींव रखी |

(4) मुहम्मद गौरी की आक्रमणों के परिणामस्वरूप ग़जनी, फारस, खुरासान आदि प्रदेशों से भारत के व्यापारिक संबंध स्थापित हुए |

(5) मुहम्मद गौरी के आक्रमणों से भारतीय साहित्य तथा कला से संबंधित अनेकों कृतियों को नष्ट कर दिया गया | इससे प्राचीन भारतीय कला और साहित्य को महान हानि हुई | अनेक ऐतिहासिक इमारतों को भी नष्ट कर दिया गया |

निष्कर्ष ( Conclusion )

चारित्रिक रूप से भले ही मुहम्मद गौरी की गणना अच्छे इंसानों में न की जाती हो लेकिन एक महान योद्धा व विजेता के रूप में उसे इतिहास मेंसदैव याद किया जायेगा | वह आरंभ में एक छोटे से क्षेत्र का शासक था लेकिन अपनी वीरता तथा साहस के बल पर उसने न केवल मध्य एशिया में अपने साम्राज्य को बढ़ाया बल्कि भारत में भी मुस्लिम साम्राज्य की नींव रखी | उसने महमूद गजनवी की भांति केवल भारत को लूटने का ही कार्य नहीं किया है बल्कि यहां पर स्थायी शासन की व्यवस्था भी की | निःसंदेह उसे भारत में मुस्लिम साम्राज्य का संस्थापक माना जा सकता है |

यह भी देखें

दिल्ली सल्तनत का संस्थापक : इल्तुतमिश

बलबन की रक्त और लौह की नीति

अलाउद्दीन खिलजी के सुधार

अलाउद्दीन खिलजी की सैनिक सफलताएं ( Alauddin Khilji’s Military Achievements )

मुहम्मद तुगलक की हवाई योजनाएं

फिरोज तुगलक के सुधार

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

सल्तनत कालीन अर्थव्यवस्था

सल्तनतकालीन कला और स्थापत्य कला

सल्तनत काल / Saltnat Kaal ( 1206 ईo – 1526 ईo )

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement )

भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )

गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल

मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )

सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization )

वैदिक काल ( Vaidik Period )

महाजनपद काल : प्रमुख जनपद, उनकी राजधानियां, प्रमुख शासक ( Mahajanpad Kaal : Pramukh Janpad, Unki Rajdhaniyan, Pramukh Shasak )

मौर्य वंश ( Mauryan Dynasty )

वाकाटक वंश व चालुक्य वंश ( Vakataka And Chalukya Dynasty )

चोल वंश ( Chola Dynasty )

विजयनगर साम्राज्य ( Vijayanagar Empire )

राष्ट्रकूट वंश ( Rashtrakuta Dynasty )