प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan )

      प्रयोगवादी कविता की सामान्य प्रवृतियां    
 ( Prayogvadi Kavita/ Nai Kavita Ki Visheshtayen )

प्रयोगवादी कविता या नई कविता की प्रवृत्तियाँ हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है आदिकाल,  मध्यकाल और आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्य काल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है |  भक्तिकाल की समय-सीमा संवत 1375 से संवत 1700 तथा रीतिकाल की समय-सीमा संवत 1700 से संवत 1900  तक मानी जाती है | संवत 1900 से आगे के काल को आधुनिक काल के नाम से जाना जाता है |

अगर ईo में बात करें तो आधुनिक काल को हिंदी कविता के संदर्भ में आगे निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है:-

▶️ भारतेंदु युग (1850 ईo से 1900 ईo)

▶️ द्विवेदी युग 1900 ईo से 1920 ईo)

▶️ छायावाद (1920 ईo से 1936 ईo)

▶️ प्रगतिवाद (1936 ईo से 1943 ईo)

▶️ प्रयोगवाद/नई कविता (1943 ईo से 1960 ईo)

▶️ साठोत्तरी कविता (1960 ईo  से आगे )

यहां प्रयोगवादी कविता/नई कविता का विवेचन करना हमारा वांछित लक्ष्य है |  सन 1943 ईस्वी से प्रयोगवाद / प्रयोगवादी कविता का आरंभ माना जाता है | 1954 ईस्वी में कुछ विद्वानों ने नई कविता का आरंभ माना है | लेकिन प्रायः 1943 ईस्वी से 1960 ईस्वी का काल एक जैसी काव्य प्रवृत्तियों के लिए जाना जाता है | अतः इसे प्रयोगवाद / प्रयोगवादी कविता या नई कविता नाम दिया जा सकता है | प्रयोगवाद का आरंभ अज्ञेय के  1943 ईस्वी  में प्रकाशित तार सप्तक से हुआ |

प्रयोगवाद क्या है? 

अज्ञेय ( Agyey ) ने  प्रयोगवादी कवियों को “सत्य के अन्वेषी”( Satya Ke Anveshi )  कहा है  | उनका मानना है कि प्रयोगवादी कविता में कथ्य  तथा शिल्प की दृष्टि से नवीन प्रयोग अवश्य हुए हैं लेकिन यह प्रयोग समय की मांग के अनुरूप हुए  हैं | उनके अनुसार प्रयोग साधन है साध्य नहीं | 

डॉक्टर गणपति चंद्र गुप्त ने नई कविता के विषय में कहा है- “नई कविता नए समाज के नए मानव की नई वृत्तियों की नई अभिव्यक्ति नई शब्दावली में है |” आगे वे कहते हैं कि-  “नई कविता नए पाठकों के नए दिमाग में नया प्रभाव उत्पन्न करती है |”

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर नई कविता/ प्रयोगवादी कविता के चार मूल तत्व है :-

( 1) नवीनता, (2) मुक्त यथार्थवाद  (3) बौद्धिकता,  (4) क्षणिकता |

🔷 प्रयोगवाद के प्रमुख कवि: अज्ञेय,  धर्मवीर भारती,  मुक्तिबोध,  गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे,  केदारनाथ सिंह,  केदारनाथ अग्रवाल आदि |

प्रयोगवाद/  नई कविता की विशेषताएं
( Prayogvadi Kavita Ki Visheshtayen )

1️⃣ घोर अहंनिष्ठ व्यक्तिवाद : नई कविता में घोर अहंनिष्ठ व्यक्तिवाद है |  इस कविता में सामाजिक जीवन का चित्रण नहीं मिलता |  इस व्यक्तिबाद में भी प्रत्येक पाठक को अपनी झलक मिलती है | नई कविता में यह व्यक्तिवाद की प्रवृत्ति आत्म-विज्ञान बनकर रह गई है | यह प्रवृत्ति साहित्य के विकास में बाधक है | अहंनिष्ठ व्यक्तिवाद का एक उदाहरण देखिए:

“साधारण नगर के
एक साधारण घर में
मेरा जन्म हुआ
 बचपन बीता अति साधारण
साधारण खान-पान |”

2️⃣ प्रेम व कामवासना : प्रेम और कामवासना की अभिव्यक्ति नई कविता की प्रमुख विशेषता है | नया कवि प्रेम व कामवासना की अभिव्यक्ति यथार्थवादी दृष्टिकोण से करता है | अज्ञेय के अनुसार “प्रेम मानव की भूख है” | नई कविता में उदात्त प्रेम का वर्णन नहीं मिलता | इस कविता में दूषित मनोवृत्तियों का चित्रण अधिक है | इनके काव्य में अश्लीलता अपने चरम पर है |

मणिका मोहिनी के शब्दों में :
“सुबह होने से लेकर दिन डूबने तक
मैं इंतजार करती हूं रात का
जब हम दोनों एक ही कोने में सिमट कर
एक दूसरे को कुत्ते की तरह चाटेंगे”
एक अन्य उदाहरण देखिए:
“विवाह के बाद जिंदा रहने के लिए जानवर बनना बहुत जरूरी है |”

इन कवियों ने प्रेम की अन्य स्थितियों का वर्णन भी किया है परंतु वासनात्मक रूप का वर्णन ही अधिक मिलता है |

3️⃣ निराशावाद: नया कवि निराशा से घिरा हुआ है | न तो नया कवि अतीत से प्रेरणा लेना चाहता है और न ही भविष्य के प्रति उसे कोई आशा है | वह केवल आज में जीना चाहता है | वह कहता है :
“जो कल थे वह नहीं रहे
क्योंकि कल हम भी नहीं रहेंगे |”

4️⃣ नारी चित्रण : नई कविता में नारी चित्रण प्रमुख रूप से तीन रूपों में हुआ है :
1)आधुनिक नारी जो बौद्धिक है |
2) मध्यमवर्गीय परिवारों की नारियां जो जीवन को बोझ समझकर जी रही  हैं |
3) भारतीय घरेलू नारी जो भारतीय संस्कृति में अपनी दृढ़ आस्था रखती है |
आधुनिक नारी तन-मन-धन से संतुष्ट रहने के लिए पुरुष से संबंध स्थापित करती है | इसके लिए वह सभी मर्यादाएं तोड़ जाती है | वह धोखा देती भी है और धोखा खाती भी है |  मध्यमवर्गीय नारी दुविधा-ग्रस्त जीवन जीती है | वह न तो परंपराओं को तोड़ पाती है और न ही परंपराओं में बंध  पाती है |
भारतीय घरेलू नारी ने अपने ऊपर होने वाले शोषण को स्वीकार करना सीख लिया है |

5️⃣ अति बौद्धिकता: नई कविता में अति बौद्धिकता है | नया पाठक इससे प्रभावित नहीं होता बल्कि इसकी अबूझ पहेली में उलझ कर रह जाता है | नया कवि पाठक के मन पर अनावश्यक बोझ लाद देता है | यही कारण है कि नई कविता में अनुभूति वह रागात्मकता की कमी है |  कहीं-कहीं ऐसे प्रयोग किए गए हैं जो बड़े बेमानी प्रतीत होते हैं | यथा :

“किंचित जरूरी है बस और फरेब

………………………………..
………………………………..
कहीं कुछ नहीं बदला
जले हुए दूध की वही महक |”

6️⃣ उपमानों की नवीनता : इन कवियों ने सभी क्षेत्रों में नए प्रयोग किए हैं | इन कवियों ने नए उपमानों  का सृजन किया है | नवीनता के मोह  में इन्होंने ऐसी वस्तुओं और जीवों को भी उपमान बनाया है जो काव्य के लिए वर्जित माने जाते थे | उदाहरण के लिए अज्ञेय ने गधे को धैर्य की साक्षात मूर्ति माना है |
कुछ अन्य उदाहरण देखिए:

“प्यार का बल्ब फ्यूज हो गया |”

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“मेरे सपने इस तरह टूट गए
जैसे भुजा हुआ पापड़ |”

▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️

 “प्यार का नाम लेते ही
 वह बिजली के स्टोव सी
 सुर्ख हो जाती हैं |”

7️⃣ रीतिकाव्य की आवृत्ति : यह कवि कहने को तो अपने को आधुनिक मानते हैं लेकिन उनकी कविता में रीति काल की छाप स्पष्ट दिखाई देती है | जिस प्रकार उन्होंने अपने काव्य में वासना,  कामुकता व अश्लीलता का वर्णन किया है ठीक उसी प्रकार से इन कवियों ने भी इन्हीं विषयों को अपनी कविता में प्रमुखता दी है | जिस प्रकार रीतिकाल में चमत्कार-प्रदर्शन की भावना थी |  ठीक उसी प्रकार यह कवि  भी चमत्कार उत्पन्न करने के लिए ही नए-नए प्रयोग करते नजर आते हैं | रीतिकाल का कला-पक्ष तो मनोहारी था लेकिन इन कवियों का तो कला-पक्ष भी सिवाय नए प्रयोगों के कुछ नहीं है |

️8️⃣ विषय परिधि : नया कवि कहता है कि उसकी कविता का विषय क्षेत्र व्यापक है | उसकी कविता किसी एक देश से संबंधित ने होकर पूरे संसार से संबंधित है | उनका मानना है कि उनकी कविता का विषय क्षेत्र इतना व्यापक है कि उसमें चींटी से लेकर हिमालय तक सभी पदार्थ शामिल हैं | उनके लिए कोई भी चीज व्यर्थ नहीं है | उन्होंने अपने काव्य में चाय की प्याली,  टूटी चूड़ी, गरम पकौड़ी, टॉफी,  रॉकेट,  गधा आदि सभी को स्थान दिया है |
उन्होंने अपनी कविता में ईश्वर का मजाक उड़ाया है | ईश्वर की अपेक्षा उन्होंने अपने ऊपर विश्वास करने को कहा है | धर्म के संबंध में इन कवियों का दृष्टिकोण प्रगतिवादी कवियों जैसा है |
स्थूल विषयों की अपेक्षा इन कवियों ने सूक्ष्म मनोविकार वह भावनाओं को उकेरने का अधिक प्रयास किया है |

9️⃣ कला पक्ष : नई कविता की भाषा व्यवहारिक भाषा है | इन कवियों ने अपनी भाषा में समाज में प्रचलित सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है | इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव,  देशज, विदेशी आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं | अंग्रेजी के शब्दों की जितनी भरमार इनकी कविता में है वह पूर्ववर्ती कविता में कहीं नहीं मिलती | इसका कारण यह है कि वह शब्द समाज में प्रचलित हैं |
मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी इसी दृष्टिकोण से किया गया है |  इनकी भाषा में अनेक नवीन प्रयोग भी मिलते हैं | इन्होंने अनेक काव्य-परंपराओं  को तोड़ा है | इन्होंने अनेक नवीन उपमानों का सृजन किया है | कुछ ऐसे उपमान भी दिए हैं जो आज तक साहित्य के क्षेत्र में वर्जित माने जाते थे |
छंदों की दृष्टि से इनकी कविता ‘मुक्त छंद’ को महत्व प्रदान करती है |
प्रतीकों के दृष्टिकोण से इनकी कविता में अनेक नए प्रतीक मिलते हैं |
इनकी कविता में शब्दालंकार व  अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकार मिलते हैं  | अनुप्रास, यमक, श्लेष,  पुनरुक्ति, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों इनके काव्य में बहुलता से मिलते हैं | परंतु इनके काव्य में यह अलंकार प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है | जानबूझकर अलंकारों का प्रयोग करना इनका मकसद नहीं था |

◼️ निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि नई कविता नवीनता के अत्यधिक आग्रह के कारण अत्यंत मशीनी  और निर्जीव प्रतीत होती है |

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