हरियाणवी कहानी साहित्य ( Haryanvi Kahani Sahitya )

हरियाणवी कहानी साहित्य

कहानी गद्य साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें किसी व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का चित्रण न कर उसके जीवन के किसी अंग विशेष का चित्रण किया जाता है | कहानी कहना मनुष्य का स्वभाव है | सुख-दुख, आशा-निराशा, मिलन-विरह आदि का नाम ही जीवन है | मनुष्य के जीवन की यही खट्टी-मीठी बातें आकर्षक शब्दों में गुंथकर कहानी बन जाती हैं | हिंदी कहानी की भांति हरियाणवी कहानी का इतिहास ( Haryanvi Kahani Ka Itihas ) भी बहुत पुराना है | प्रारंभ में हरियाणवी कहानी की मौखिक परंपरा मिलती है जो मुख्यतः गेय थी | हरियाणवी कहानी अपने लिखित रूप में बीसवीं सदी के प्रथम दशक में आई |

हरियाणवी कहानी का उद्भव एवं विकास ( Haryanvi Kahani Ka Udbhav Evam Vikas )

हरियाणवी भाषा में कहानी साहित्य की मात्रा बहुत कम है किंतु उपन्यास के मुकाबले स्थिति बेहतर है | यद्यपि हरियाणवी कहानी का आरंभ बीसवीं सदी के प्रथम दशक से माना जाता है परंतु फिर भी हरियाणवी भाषा में कहानी-लेखन की तरफ लेखकों का झुकाव बहुत कम रहा है | मूलतः आरंभिक हरियाणवी कहानियाँ हरियाणा के हिंदी कहानीकारों के द्वारा ही लिखी गई जिन्होंने कहानी में स्वाभाविकता लाने के लिए हरियाणा के ग्रामीण परिवेश के पात्रों के संवाद हरियाणवी में लिखे |

हरियाणवी कहानी विधा पर हुए नवीनतम शोध के आधार पर कहा जा सकता है कि हरियाणा के मूर्धन्य साहित्यकार माधव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘लड़की की बहादुरी’ कहानी हरियाणवी भाषा की प्रथम कहानी है | डॉ बाबूराम ने अपने ‘हरियाणवी साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ में इसी कहानी को हरियाणवी भाषा में रचित प्रथम कहानी माना है | डॉo मुरारी लाल गोयल तो माधव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘लड़की की बहादुरी’ कहानी को न केवल हरियाणवी की अपितु हिंदी की प्रथम कहानी मानते हैं |

‘लड़की की बहादुरी’ कहानी को हिंदी की प्रथम कहानी बताते हुए डॉ मुरारी लाल गोयल लिखते हैं — “आधुनिक हिंदी कहानी का समय सन 1907 से पूर्व किसी भी दशा में सिद्ध नहीं होता | अतः विषय-प्रतिपादन, भाषा-शैली तथा उद्देश्य और शिल्प की दृष्टि से ‘वैश्योपकारक’ में सन 1904 में प्रकाशित ‘लड़की की बहादुरी’ कहानी प्रत्येक दृष्टि से हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी सिद्ध होती है |”

लड़की की बहादुरी’ आलोचकों द्वारा हिंदी की प्रथम कहानी तो स्वीकार नहीं की गई परंतु हरियाणवी भाषा में रचित निःसंदेह यह पहली कहानी है | इस प्रकार हरियाणवी भाषा में कहानी-लेखन परंपरा सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है |

लड़की की बहादुरी’ कहानी में वर्णित विषय सामाजिक है | कहानी में बताया गया है कि रामली एक ब्राह्मण कन्या धापली को झांसा देकर लाला गूदड़मल के पास व्यभिचार के लिए लाती है | उस कन्या की रक्षा गूदड़मल का नौकर जस्सा जाट करता है | इस प्रकार कहानी में तत्कालीन समाज में व्याप्त व्याभिचार और भ्रष्टाचार की समस्या व उसके समाधान पर प्रकाश डाला गया है | प्रस्तुत कहानी ठेठ हरियाणवी भाषा में रचित है |

प्रस्तुत कहानी की भाषा का एक उदाहरण देखिये —

“द्रोपदी की रच्छा करण वाला राम! तू कित सै – कहकर खुरपी हाथ में ले बहादुर जाट खड़ा हो गया और रामली को धमका कर कहने लगा – चिंडाल रांड जिसे डूबण के काम तै करै सै, इसे म्हारे हरियाणे मैं कोई भी कोन्नी करै |”

उपर्युक्त कहानी के पश्चात हरियाणवी कहानी की जो परंपरा चली उसका विवेचन निम्नलिखित कहानीकारों द्वारा रचित कहानियों के माध्यम से किया जा सकता है —

(1) डॉ नानक चंद शर्मा — डॉ नानक चंद शर्मा हरियाणवी के प्रमुख कहानीकार हैं | हरियाणवी कहानीकारों में उनका नाम विशेष सम्मान से लिया जाता है | उनके द्वारा रचित कहानी ‘डाकी डाभखाणा’ हरियाणवी भाषा की दूसरी कहानी मानी जाती है कहानी हास्य तथा व्यंग्य से परिपूर्ण है | यह कहानी हरियाणवी लोकजीवन में व्याप्त विनोदप्रियता की झलक प्रस्तुत करती है | कहानी का नायक हँसी-विनोद से भरपूर एक नौजवान है, जो कहानी में एक बूढ़े बाराती के क्रियाकलापों का मनोरंजक विवरण प्रस्तुत करता है | कहानी में वर्णनात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का प्रयोग हुआ है |

‘डाकी डाभखाना’ कहानी में प्रयुक्त हरियाणवी भाषा और वर्णनात्मक शैली का उदाहरण देखिए —

“डाकी डाभखाणा मौजी माणस था – इतोहड़-उतोहड़ हांडणा, दुनिया देखणी | घणखरी बार ते आ टुकड़िया मैं बड़दी हाणी खिलकुटी पाटदा आंदा जगूं बेरा ना के राम मिलग्या उसनै | कोए बूझदा- डाकी के होग्या के ग्यान सै, तै और जोर-जोर से ताड़ी पीट-पीट के लोटपोट हो जांदा, अर उन्नै देखण आले भी उननै हँसदया देख कै नै हँसण लाग जांदे |”

अतः स्पष्ट है कि लेखक ने सफल संवादों एवं वर्णनात्मक शैली द्वारा आंचलिक वातावरण का सृजन इस कहानी में किया है | कहानी का कथानक हास्य-विनोदपूर्ण है | हरियाणवी मुहावरों और लोकोक्तियों का सफल प्रयोग करके कहानीकार ने हरियाणवी भाषा में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है |

‘डाकी डाभखाणा’ कहानी अत्यंत लोकप्रिय रही है | सन 1969 में ग्रामीण कार्यक्रम में आकाशवाणी दिल्ली द्वारा प्रसारण इसका प्रमाण है | डॉ नानक चंद्र शर्मा ने यद्यपि अधिक कहानियां नहीं लिखी किंतु उनकी यह कहानी हरियाणवी कहानी के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुई है |

(2) रघुबीर सिंह मथाना — हरियाणवी कहानी-साहित्य के विकास में हरियाणवी साहित्यकार श्री रघुवीर सिंह मथाना का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है | सन 1992 में ‘हरियाणा अध्यापक समाज’ पत्रिका में उनकी एक कहानी ‘आपराधिक आँकड़े’ प्रकाशित हुई थी | यह कहानी पुलिस-थाने के वातावरण पर आधारित थी | कहानी के कथानक के अनुसार पुलिस-अधीक्षक एक थाने के एक प्रभारी को उसके थाने के निरीक्षण के दौरान लताड़ लगा कर चले जाते हैं | पुलिस-अधीक्षक के जाने के बाद थाना-प्रभारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ एक मीटिंग करता है तथा सबको एक-एक डिडक्शन का मुकदमा दर्ज करने को कहता है | थाने के अधीनस्थ कर्मचारी रात को बस-स्टैंड और रेलवे-स्टेशन से गरीब लोगों को लाकर उन्हें विभिन्न अपराधों में बंद कर देते हैं और इस प्रकार आपराधिक आंकड़े जुटाते हैं |

प्रस्तुत कहानी पुलिस की कार्यप्रणाली की पोल खोलती है | हरियाणवी भाषा के सुंदर तथा व्यावहारिक प्रयोग के कारण यह कहानी हरियाणवी पुलिस की अकर्मण्यता की बानगी बन गई है |

(3) कंवल हरियाणवी — कंवल हरियाणवी हरियाणा के प्रमुख साहित्यकार हैं | यद्यपि इन्होंने कविता के क्षेत्र में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की परंतु गद्यात्मक विधाओं पर भी उन्होंने सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है | हरियाणवी कहानी को आगे बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है | सन 1995 में उनकी हरियाणवी कहानियों का एक संग्रह है ‘लीक पुरानी मोड नवा’ प्रकाशित हुआ | इस कहानी-संग्रह में कुल 12 कहानियाँ हैं | यह कहानी-संग्रह हरियाणा की ग्रामीण संस्कृति तथा ठेठ हरियाणवी संस्कारों की झलक प्रस्तुत करता है | इस कहानी-संग्रह की ‘धन्नो’, ‘सरजो काकी’ और ‘आशा किरण’ कहानियाँ नारी-जीवन की समस्याओं पर आधारित हैं | इसके अतिरिक्त इन कहानियों में समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों, अंधविश्वासों, वृद्धों की उपेक्षा, चरित्रहीनता, व्यभिचार अति भौतिकतावादी दृष्टिकोण, समाज के गिरते नैतिक स्तर आदि को भी सफलतापूर्वक उकेरा गया है |

(4) डॉo राजबीर धनखड़ — हरियाणवी कहानी-साहित्य के विकास में डॉ राजबीर धनखड़ का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है | अब तक इनके दो कहानी संग्रह ‘सरपंचणी’ तथा ‘स्याणपत’ प्रकाशित हो चुके हैं | ‘सरपंचणी’ शीर्षक कहानी-संग्रह सन 1998 में प्रकाशित हुआ जिसमें 23 कहानियाँ संग्रहीत हैं तथा सन् 2000 में प्रकाशित ‘स्याणपत’ कहानी-संग्रह में 24 कहानियाँ संकलित हैं |

श्री राजबीर धनखड़ द्वारा रचित इन दोनों ही कहानी-संग्रहों में हरियाणा की माटी की महक को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है | लेखक ने इन कहानियों में राजनीतिक, सामाजिक व ग्रामीण परिवेश से संबंधित विभिन्न समकालीन समस्याओं को प्रमुखता से उठाया है |

उपर्युक्त हरियाणवी कहानीकारों के अतिरिक्त हरियाणवी कहानी का विकास करने में देवीशंकर ‘प्रभाकर’, डॉo राजेंद्र स्वरूप ‘वत्स’, आरo एसo चिंगारी, धनवंतरि, सहीराम आदि हरियाणवी कहानीकारों का भी महत्वपूर्ण योगदान है | विभिन्न हरियाणवी पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न लेखकों द्वारा रचित हरियाणवी कहानियाँ भी हरियाणवी कहानी साहित्य को आगे बढ़ा रही हैं |

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