हरियाणवी भाषा की प्रमुख बोलियां ( Haryanvi Bhasha Ki Pramukh Boliyan )

हरियाणवी भाषा की प्रमुख बोलियां
हरियाणवी भाषा की प्रमुख बोलियां

हरियाणवी भाषा से अभिप्राय हरियाणा प्रदेश की भाषा से है | हरियाणा प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा को ‘हरियाणवी‘ कहा जाता है | हरियाणवी भाषा हरियाणा प्रदेश के लोगों से जुड़ी हुई भाषा है जो यहां के लोगों के पारस्परिक वैचारिक आदान -प्रदान का प्रमुख साधन है | हरियाणवी भाषा को बांगरू, कौरवी, दक्षिणी हिंदी, जाटू खड़ी बोली आदि नामों से पुकारा जाता है | ये सभी हरियाणवी की प्रमुख बोलियां हैं |

हरियाणवी भाषा का उद्भव उत्तरी शौरसेनी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है |

हरियाणवी भाषा हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर राजस्थान में भरतपुर तक तथा उत्तर प्रदेश में मेरठ तक बोली जाती है |

हरियाणवी भाषा की प्रमुख बोलियां ( Haryanvi Bhasha Ki Pramukh Boliyan )

हरियाणवी भाषा की छह प्रमुख बोलियां हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है :– (1) बांगरू, (2) अहीरवाटी, (3) बागड़ी, (4) मेवाती, (5) कौरवी, (6) ब्रज |

(1) बांगरू — बांगरू हरियाणा की प्रमुख एवं प्रतिनिधि बोली है | डॉक्टर जॉर्ज ग्रियर्सन, डॉक्टर सत्या गुप्ता और डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा ने बांगरू को हरियाणवी का पर्याय माना है किंतु नवीनतम शोधों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि बांगर वास्तव में हरियाणा के एक क्षेत्र का नाम है तथा उस क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को बांगरू कहा जाता है | अत: ‘बांगरू’ बोली समस्त हरियाणा की भाषा का प्रतिनिधित्व नहीं करती |

बांगरू हरियाणवी भाषा की एक उप-बोली है जो हरियाणा के कैथल, जींद, रोहतक, भिवानी, पानीपत, सोनीपत आदि जिलों में बोली जाती है |

(2) अहीरवाटी — अहीरवाटी शब्द ‘अहीर और ‘वाटी’ इन दो शब्दों के मेल से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है – अहीर लोगों का निवास स्थान | यह बोली मुख्य रूप से अहीरवाल क्षेत्र में बोली जाती है इस बोली का विस्तार हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान है | हरियाणा के झज्जर, गुड़गांव, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ आदि जिलों में अहीरवाटी बोली का प्रचलन मिलता है | दिल्ली के नजफगढ़ के मोचनपुर के आसपास रहने वाले अहीर जाति के लोग भी अहीरवाटी बोलते हैं | राजस्थान के कोटपुतली, बानसूर, बहरोड़, मुंडावर, किशनगढ़ आदि स्थानों पर भी ‘अहीरवाटी‘ बोली जाती है |

अहीरवाटी बोली बांगरू, बागड़ी और मेवाती बोलियों से घिरी हुई है | यद्यपि उक्त सभी बोलियों में क्रियाओं के रूप लगभग एक समान प्रत्ययों की सहायता से बनते हैं फिर भी अहिरवाटी की अपनी कुछ विशेषताएं हैं जो उसे अन्य बोलियों से अलग करती हैं | अहीरवाटी में ब्रज का माधुर्य तथा राजस्थानी और हरियाणवी का ओज है |

(3) बागड़ी — बागड़ी भी हरियाणवी भाषा की एक प्रमुख बोली है | यह ‘बागड़‘ क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली है | ‘बागड़‘ शब्द नदी के किनारे की ऊंची भूमि जहां बाढ़ न आ सके आदि के अर्थ में प्रयुक्त होता है |

हरियाणा में ‘बागड़ी‘ बोली भिवानी, हिसार तथा जींद आदि जिलों बहुत बड़े क्षेत्र में बोली जाती है |

बागड़ी बोली में ‘ऋ’ स्वर का अभाव है | यह बोली बोलने वाले लोग ‘ऋ’ की जगह ‘रि’ का प्रयोग करते हैं | इस बोली में ‘य’ को ‘ज’ तथा व को ‘ब’ बोला जाता है | बागड़ी बोली में आकारांत शब्द ओकारांत हो जाते हैं | जैसे – काणा का काणों हो जाता है |

(4) मेवाती — मेवाती हरियाणवी की प्रमुख बोली है | प्राय: मेवात क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को मेवाती कहते हैं | भारत के इंपीरियल गजेटियर में मेवात को इस प्रकार परिभाषित किया गया है – “दिल्ली के दक्षिण में स्थित वह भाग जिसमें मथुरा और गुड़गांव जिले के कुछ भाग, अलवर का अधिकांश भाग और भरतपुर जिले का थोड़ा सा भाग सम्मिलित है ; मेवात कहलाता है |”

हरियाणा में फिरोजपुर झिरका, नूह, नगीना, हथीन, तावडू, बावल, सोहना, पुनहामा, उजीना आदि स्थानों के लोग मेवाती बोली का प्रयोग करते हैं |

(5) कौरवी — कौरवी बोली आमतौर पर अंबाला और मेरठ कमिश्नरियों की बोली है | अंबाला कमिश्नरी के अधिकांश भाग में बोली जाने के कारण इसे ‘अंबालवी’ भी कहा जाता है | कौरवी का नाम कुरु जनपद के आधार पर दिया गया है जो ‘महाभारत’ महाकाव्य में वर्णित क्षेत्र का विस्तृत भू-भाग है | इस प्रकार कौरवी का अर्थ है – कुरु प्रदेश में बोली जाने वाली बोली |

वासुदेव शरण अग्रवाल का कहना है – “कौरवी बोली को ही आजकल खड़ी बोली कहा जाता है | इस बोली ने ही अधिकांश राष्ट्रभाषा एवं अर्वाचीन हिंदी का साहित्यिक रूप ग्रहण किया है | इस बोली का एक छोर ब्रजभाषा से और दूसरा हरियाणा की बांगरू भाषा से मिलता है |”

यह बोली अंबाला के नारायणगढ़, साहा, शहजादपुर गाँवों में, कुरुक्षेत्र के थानेसर, पीपली व शाहबाद में, यमुनानगर के जगाधरी तथा पंचकुला गाँवों और मोरनी क्षेत्र में बोली जाती है |

मेरठ जिले की बागपत तहसील को टकसाली कौरवी का क्षेत्र स्वीकार किया गया है |

(6) ब्रज — ब्रज एक प्राचीन बोली है जो सूरदास, रहीम, रसखान बिहारी, नंददास, मतिराम, केशव जैसे कवियों के कारण भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई |

वस्तुतः ब्रज के प्रमुख क्षेत्र उत्तरप्रदेश का ब्रज, वृंदावन, मथुरा आदि हैं किंतु इस बोली का प्रयोग हरियाणा में भी प्राचीन काल से होता आ रहा है | हरियाणा में इस बोली का प्रचलन बल्लभगढ़, पलवल, हसनपुर, होड़ल आदि क्षेत्रों में अधिक है |

ब्रज बोली एक मधुर बोली है | इस बोली में कटु तथा कर्कश वर्णों का सर्वथा अभाव है | इस बोली में आकारांत शब्द अकारांत हो जाते हैं और ‘ड़’ , ‘ल’ वर्ण ‘र’ में परिवर्तित हो जाते हैं ; जैसे – कीड़ी- कीरी, झगड़ा- झगरो, काला – कारो | ‘ण’ का ‘न’ हो जाता है ; जैसे – कण – कन, किरण – किरन |

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