हरियाणवी उपन्यास साहित्य ( Haryanvi Upnyas Sahitya )

आधुनिक साहित्य में गद्य विधाओं का प्रचुर मात्रा में विकास हुआ है | संभवत: इसीलिए विद्वानों ने आधुनिक युग को गद्य युग की संज्ञा से अभिहित किया है | उपन्यास भी गद्य साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है | हरियाणवी उपन्यास साहित्य की परंपरा को जानने से पूर्व उपन्यास के अर्थ को जानना आवश्यक होगा |

उपन्यास का अर्थ ( Upanyas Ka Arth )

‘उपन्यास‘ दो शब्दों के मेल से बना है – उप + न्यास | उप अर्थात समीप और न्यास अर्थात् रखी हुई वस्तु | इस प्रकार उपन्यास का शाब्दिक अर्थ है – समीप रखी हुई वस्तु | शाब्दिक व्युत्पत्ति के आधार पर उपन्यास साहित्य की उस विधा को कहा जा सकता है जो जीवन की किसी घटना या घटनाक्रम को इतने स्वाभाविक एवं विस्तृत रूप से हमारे सामने प्रकट करती है कि उससे हमारा निकट का संबंध प्रतीत होता है |

हिंदी के प्रख्यात उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी ने उपन्यास को “मानव चरित्र का उद्घाटन” कहा है |

बालकृष्ण भट्ट उपन्यास को “मन बहलाने वाली गुटिका” कहते हैं |

लज्जाराम मेहता अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आदर्श दंपत्ति’ की भूमिका में लिखते हैं – “उपन्यास समाज का चित्र है और आज उपन्यास की जो कथा कल्पित मानी जाती है वही समय पड़ने पर इतिहास बन जाती है |”

हरियाणवी उपन्यास साहित्य

हरियाणवी उपन्यास साहित्य का परिचय ( Haryanvi Upanyas Sahitya Ka Parichay )

हरियाणवी गद्य साहित्य ( Haryanvi Gadya Sahitya ) हरियाणवी पद्य साहित्य की अपेक्षा बहुत कम लोकप्रिय है | हरियाणवी गद्य साहित्य में हरियाणवी उपन्यास, कहानी व नाटक आदि को लिया जा सकता है |

उपन्यास साहित्य की दृष्टि से हरियाणवी को बहुत अधिक वैभव-संपन्न नहीं कहा जा सकता क्योंकि हरियाणवी भाषा में अभी तक बहुत अधिक उपन्यास नहीं लिखे गए हैं | हाल तक हुए शोध कार्यों के अनुसार हरियाणवी भाषा में केवल तीन ही उपन्यासों की रचना हुई है | यह तीनों उपन्यास हैं – ‘झाड़ू फिरी’, ‘फफा कुट्टणी’ तथा ‘समझणिए की मर’ | इनमें से प्रथम दो उपन्यास श्री राजाराम शास्त्री द्वारा रचित हैं तथा तीसरा उपन्यास डॉ श्याम सखा ‘श्याम’ का है | अतः हरियाणवी उपन्यास साहित्य का परिचय केवल इन तीन उपन्यासों के माध्यम से ही दिया जा सकता है |

हरियाणवी साहित्यकार श्री राजाराम शास्त्री का जन्म 27 दिसंबर, 1918 को हिसार जिला के टोहाना कस्बे में हुआ था | शास्त्री जी का रचना-क्षेत्र अत्यंत व्यापक रहा | एक भाषाविद और प्रकांड ज्योतिष शास्त्री के रूप में उन्हें विशेष ख्याति मिली | हरियाणा से उनका संबंध भाषा वैज्ञानिक होने के साथ-साथ रचनाकार के रूप में भी रहा | वह हरियाणवी भाषा को आंचलिक लोकभाषा ही नहीं अपितु साहित्य-रचना में समर्थ भाषा भी मानते थे | उन्होंने सन 1963 में ‘हरियाणा लोक मंच’ की स्थापना की तथा अनेक ग्रंथ भी लिखे | उन्होंने कुल ग्यारह उपन्यास लिखे जिनमें से दो हरियाणवी भाषा में हैं | उन्होंने 300 से अधिक रेडियो रूपकों तथा कई ज्योतिष ग्रंथों की रचना की | हरियाणा के इस महान साहित्यकार का देहांत 6 नवंबर, 2002 को हुआ |

‘झाड़ू फिरी’ उपन्यास राजाराम शास्त्री का सामाजिक उपन्यास है | इसमें दो दंपतियों की कथा है जिसमें एक लड़का वैसे तो लड़की को पसंद करके विवाह करता है किंतु भूलवश वह अन्य लड़की को पसंद कर आता है और विवाह-उपरांत जब उसे अपनी भूल पता चलती है तो वह उसे त्याग देता है | दूसरे नायक का वैवाहिक जीवन भी भयानक होता है | वह भी अपनी पत्नी को प्रथम दर्शन में ही त्याग कर चला जाता है | पहले नायक की पत्नी सुशील है उसे भरोसा है कि वह अपनी सेवा से नायक का दिल जीत लेगी | दूसरे नायक की पत्नी नारियल की भाँती ऊपर से कठोर और भीतर से विनम्र है | इस उपन्यास में इन दोनों जोड़ों की घात-प्रतिघात का चित्रण किया गया है इसमें सुखद गृहस्थी के लिए मन की शांति, सहनशीलता, त्याग, सेवा और चकाचौंध की उपेक्षा के महत्व का चित्रांकन किया गया है | इसमें हास-परिहास एवं व्यंग्य-विनोद का अनूठा समावेश है |

‘झाड़ू फिरी’ उपन्यास का कथानक मौलिक है | कथानक में क्रमबद्धता बनी रहती है | कथानक घटनाओं और पात्रों के घात-प्रतिघात से गतिशील बना रहता है तथा अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करता है | कथानक में आदि से अंत तक जिज्ञासा का तत्व बना रहता है | जहाँ तक भाषा का प्रश्न है शास्त्री जी ने ठेठ हरियाणवी भाषा का प्रयोग किया है यथा स्थान हरियाणवी मुहावरे एवं लोकोक्तियां का की सुंदर प्रयोग किया गया है | समग्रतः ‘झाड़ू फिरी’ एक सफल उपन्यास है |

श्री राजाराम शास्त्री द्वारा रचित दूसरा उपन्यास ‘फफा कट्टणी’ है | ठेठ हरियाणवी भाषा में रचित यह उपन्यास भी सामाजिक सरोकारों को लिए हुए है | हरियाणवी उपन्यास साहित्य को पहचान दिलाने की दिशा में इस उपन्यास को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है | ‘झाड़ू फिरी’ उपन्यास की अपेक्षा यह उपन्यास कम चर्चित है |

हरियाणवी भाषा में रचित तीसरा उपन्यास डॉ श्याम सखा ‘श्याम’ द्वारा रचित ‘समझणिए की मर’ है | डॉ श्याम सखा श्याम का जन्म 1948 ईस्वी में रोहतक में हुआ | इन्होंने एम बी बी एस, सी जी पी, एल एल बी की उपाधियां प्राप्त की | यह हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘हरिगंधा’ के मुख्य संपादक भी हैं | ‘समझणिए की मर’ उपन्यास के अतिरिक्त अब तक इनका एक काव्य-संग्रह ( एक टुकड़ा दर्द ) तथा एक हिंदी कहानी-संग्रह ( अकथ ) प्रकाशित हो चुके हैं |

‘समझणिए की मर’ राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है जिसमें स्वार्थ-केंद्रित राजनैतिक दाँव-पेंच की अभिव्यक्ति है | इस उपन्यास को हरियाणवी भाषा में रचित आंचलिक उपन्यास कहा जा सकता है | इस उपन्यास का कथानक दो वक्ताओं द्वारा दो श्रोताओं को सुनाई गई बातचीत पर आधारित है | इस उपन्यास में वर्तमान की स्वार्थपूर्ण राजनीति और कलुषित होती जा रही पंचायती न्याय-व्यवस्था का यथार्थ वर्णन किया गया है | उपन्यास का कथानक मौलिक, रोचक, जिज्ञासापरक तथा उद्देश्यपरक है | ठेठ हरियाणवी भाषा में रचित यह उपन्यास अनेक हरियाणवी मुहावरों और लोकोक्तियों को लिए है | संवाद-योजना उत्कृष्ट है जो घटनाओं को पाठक के समक्ष जीवंत कर देती है | उपन्यास-शिल्प की दृष्टि से ‘समझणिए की मर’ एक सफल रचना है | इस उपन्यास के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए डॉ हरीश चंद्र वर्मा जी लिखते हैं —

“राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित उपन्यासकार की दृष्टि से सबसे अधिक चिंताजनक पक्ष है – भारत की राष्ट्रीयता से विमुख स्वार्थ-केंद्रित राजनीति | उपन्यास की कथा में समाहित कारगिल का युद्ध ऐसी ही स्वार्थ-केंद्रित राजनीति का परिणाम था जिसमें अनेक निर्दोष सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी | पारिवारिक और सामाजिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार भी कथाकार की चिंता का मुख्य विषय है |”

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हरियाणवी भाषा गद्य साहित्य के लिए भी उतनी ही उपयुक्त है जितनी पद्य के लिए किंतु उपन्यासों की संख्या को देखकर निराशा ही हाथ लगती है | वस्तुतः हरियाणवी उपन्यास अभी अपनी शैशवावस्था में ही है | केवल यह विचार मन को तसल्ली देता है कि हरियाणवी भाषा में उपन्यास भी लिखे जा सकते हैं |

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