द्वितीय विश्व युद्ध के कारण व प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 ईस्वी तक लड़ा गया | युद्ध का तत्कालीन कारण जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण था परंतु वास्तव में इस महायुद्ध के अनेक कारण थे | दोषपूर्ण वर्साय की सन्धि, साम्राज्यवाद, उग्र राष्ट्रवाद, तुष्टिकरण की नीति आदि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण थे जिनमें से कुछ प्रमुख कारणों का विवेचन निम्नलिखित है —

(1) दोषपूर्ण वर्साय की संधि

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर जर्मनी के साथ वर्साय की संधि की गई | यह संधि अन्यायपूर्ण थी | जर्मन जनता ने कभी भी इस संधि को मन से स्वीकार नहीं किया | इस संधि के कारण जर्मनी में आक्रोश पनप रहा था | हिटलर ने इस स्थिति का लाभ उठाया | वर्साय की संधि का लाभ उठाकर वह जनता का समर्थन हासिल करने में सफल रहा | इस संधि के कारण ही उसे जर्मनी में सत्ता की प्राप्ति हुई | सत्ता प्राप्त करते ही उसने उग्र विदेश नीति अपनाई |

(2) राष्ट्रसंघ की विफलता

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात राष्ट्र संघ का गठन किया गया था ताकि भविष्य में युद्धों को रोका जा सके परंतु यह असफल सिद्ध हुआ | इसके कई कारण थे | सर्वप्रथम इसमें कई वैधानिक दोष थे | दूसरे, इसके सदस्यों में आपसी मतभेद भी थे | रूस इसे पश्चिमी देशों का साम्यवाद के विरुद्ध षड्यंत्र मान्यता था | प्रत्येक सदस्य देश राष्ट्र संघ का प्रयोग अपने स्वार्थों के लिए करना चाहता था | इसके अतिरिक्त राष्ट्र संघ के पास अपनी सैनिक शक्ति नहीं थी | यह संस्था निर्बल थी | अतः जापान, जर्मनी और इटली की आक्रामक गतिविधियों को रोकने में राष्ट्र संघ नाकाम रहा जिससे इन देशों के हौसले बढ़ते गए |

(3) नि:शस्त्रीकरण की असफलता

1919 ईस्वी के पेरिस शांति सम्मेलन में पराजित राष्ट्रों की सेना व उनके हथियारों में कमी कर दी गई | यह आशा की गई कि मित्र राष्ट्र भी अपनी सेनाओं में कमी करेंगे | उसके पश्चात राष्ट्र संघ ने नि:शस्त्रीकरण के प्रयास तेज किए |

1921 ईस्वी में वाशिंगटन में तथा 1932 ईस्वी में जेनेवा में नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन आयोजित किए गए परंतु फ्रांस, जर्मनी, इटली के आपसी मतभेदों के कारण यह सम्मेलन नाकाम सिद्ध हुए |

हिटलर मित्र राष्ट्रों की किसी भी बात पर विश्वास करने के पक्ष में नहीं था | वह उन्हें सदैव संदेह की दृष्टि से देखता था | उसने स्पष्ट शब्दों में कहा –“अगर मित्र राष्ट्र अपने हथियारों में कमी नहीं करते तो जर्मनी भी किसी संधि के लिए बाध्य नहीं |”

(4) तुष्टीकरण की नीति

मित्र राष्ट्रों ने प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात तुष्टीकरण की नीति का सहारा लिया | ब्रिटेन केवल जर्मनी को ही नहीं बल्कि इटली व जापान को भी संतुष्ट करने का प्रयास करता रहा | जर्मनी के प्रति ब्रिटेन की तुष्टीकरण की नीति उसके व्यापारिक लाभ के कारण थे | इसके अतिरिक्त ब्रिटेन व अन्य पूंजीवादी देश साम्यवाद से भयभीत थे | वे उसके प्रसार को रोकना चाहते थे | इसलिए पूंजीवादी देशों ने जर्मनी के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई ताकि जर्मनी साम्यवादी ताकतों को मजबूत होने से रोक सके | इससे जापान, जर्मनी और इटली की ताकत बढ़ने लगी और युद्ध अवश्यंभावी हो गया |

(5) उग्र राष्ट्रवाद

सभी देशों में उग्र राष्ट्रवाद की भावना बढ़ती जा रही थी | सभी देश अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए प्रयासरत थे | भले ही इसके लिए दूसरे देश को कितना ही नुकसान क्यों न झेलना पड़े | 1929-33 के आर्थिक संकट के कारण राष्ट्रवाद की भावना ने और अधिक जोर पकड़ लिया | उग्र राष्ट्रवाद के कारण साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला | सभी देश व्यापार पर एकाधिकार करने के लिए एशिया व अफ्रीका में अपनी-अपनी बस्तियां स्थापित करना चाहते थे | परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों में पारस्परिक टकराव बढ़ने लगा |

(6) तानाशाही का उदय

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात विभिन्न देशों में तानाशाही शक्तियां उभरने लगी थी | जर्मनी में हिटलर तथा इटली में मुसोलिनी अपने चरम पर थे | यह दोनों तानाशाह अंध-राष्ट्रवादी थे तथा आक्रामक नीति में विश्वास रखते थे | दोनों ही देश स्वयं को विश्व की महानतम शक्ति बनाना चाहते थे | हिटलर और मुसोलिनी के तानाशाही रवैये के कारण चारों तरफ युद्ध का वातावरण बन गया |

(7) सैनिक गुटों का उदय

प्रथम विश्व युद्ध की भांति दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व भी पूरा विश्व दो गुटों में बंटने लगा था | एक गुट में धुरी शक्तियां थी | यह धुरी शक्तियां जापान, जर्मनी और इटली थी | यह अत्यंत महत्वाकांक्षी राष्ट्र थे जो पूरे विश्व पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे | दूसरे गुट में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल थे | दोनों गुटों की विचारधारा में अंतर था | पहला गुट तानाशाहों का गुट था जबकि दूसरा गुट प्रजातंत्र का समर्थक था | अपने विचारों की भिन्नता के कारण दोनों में संघर्ष बढ़ने लगा और युद्ध अवश्यंभावी हो गया |

(8) द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण

जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण की योजना बनाई | हिटलर ने पोलैंड से डेजिंग बंदरगाह तथा पोलिश गलियारे की मांग की | पोलैंड ने हिटलर की मांग को ठुकरा दिया जिस पर हिटलर ने 1 सितंबर, 1939 को प्रातः पोलैंड पर आक्रमण कर दिया | ब्रिटेन व फ्रांस ने जर्मनी को अल्टीमेटम दिया कि वह पोलैंड से अपनी सेनाएं हटा ले परंतु हिटलर ने उनकी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया | परिणामस्वरूप 3 सितंबर, 1939 को ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी |

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव / परिणाम

द्वितीय विश्व युद्ध के अत्यंत भयंकर परिणाम निकले | इस महायुद्ध ने यूरोप के साथ-साथ पूरे विश्व को प्रभावित किया | द्वितीय विश्व युद्ध के कुछ प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित है —

(1) भयंकर विनाश

द्वितीय विश्व युद्ध में भयंकर रक्तपात हुआ | एक अनुमान के अनुसार इस महायुद्ध में 5 करोड से अधिक जानें गई | केवल हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बमों से तीन लाख से अधिक जानें गई | यही नहीं इन बमों के परिणामस्वरूप लंबे समय तक पर्यावरण संकट बना रहा |

(2) हिटलर की बर्बरता

युद्ध के दिनों में हिटलर की बर्बरता अपने चरम पर थी | उसने यहूदियों व अपने विरोधियों को चुन-चुन कर मौत की सजा दी | अनेक यातना शिविर खोले गए | एक अनुमान के अनुसार इन यातना शिविरों में एक करोड़ के लगभग लोगों को अमानवीय यातनाएं दी गई तथा मौत के घाट उतार दिया गया |

(3) यूरोपीय आधिपत्य का अंत

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व राजनीति में परिवर्तन आया | यूरोपीय साम्राज्यवाद का पतन होने लगा | विश्व राजनीति का नेतृत्व ब्रिटेन के हाथों से फिसल गया | अनेक उपनिवेश स्वतंत्र होने लगे | संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ विश्व की महाशक्ति बन गए | विश्व फिर से दो गुटों में बंटने लगा |

(4) शीत युद्ध का आरंभ

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरे परंतु दोनों शक्तियां एक दूसरे की विरोधी थी | इससे विश्व दो परस्पर विरोधी गुटों में बंटने लगा | अमेरिका पूंजीवादी गुट का नेता बना तथा रूस साम्यवादी गुट का नेतृत्व करने लगा | दोनों गुटों में तनाव बढ़ने लगा | विश्व मंच पर दोनों एक दूसरे के विरोध में जहर उगलने लगे | इस प्रकार की युद्ध का वातावरण बनने लगा ; दोनों के बीच वाक युद्ध चलता रहा परंतु वास्तव में युद्ध नहीं हुआ इसे ही शीत युद्ध की संज्ञा दी जाती है |

1991 ईस्वी में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात शीत युद्ध की समाप्ति हुई |

(5) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना

द्वितीय विश्व युद्ध में महाविनाश हुआ था | एक अनुमान के अनुसार इसमें 5 करोड़ से अधिक जानें गई और अरबों डॉलर की संपत्ति नष्ट हो गई थी | इस युद्ध के भयावह परिणामों को भुगतने के पश्चात विश्व के सभी देश चिंतित हो गए तथा भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए उपाय सोचने लगे | परिणामस्वरूप 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई ताकि भविष्य में युद्धों को रोका जा सके | संयुक्त राष्ट्र संघ राष्ट्र संघ की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली संस्था सिद्ध हुआ | अनेक युद्धों को रोकने में इसकी निर्णायक भूमिका रही |

(6) जर्मनी का विभाजन

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर जर्मनी का नियंत्रण मित्र राष्ट्रों के हाथ में आ गया | जर्मनी का नियंत्रण रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका के हाथों में आ गया | लेकिन आरंभ से ही रूस व अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की विचारधारा में भिन्नता थी | अतः जर्मनी दो भागों में बट गया जिन्हें कालांतर में पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी का नाम दिया गया |

(7) एशिया व अफ्रीका के देशों की स्वतंत्रता

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक सुखद परिणाम यह पड़ा कि साम्राज्यवादी शक्तियां कमजोर होने लगी | द्वितीय विश्वयुद्ध के सभी साम्राज्यवादी देशों विशेषत: ब्रिटेन, फ्रांस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जिससे अपने उपनिवेशों पर इनकी पकड़ कमजोर होने लगी | इसके अतिरिक्त एशिया और अफ्रीका के देशों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा | इन देशों में स्वतंत्रता के लिए आंदोलन होने लगे | परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि के उपनिवेश धीरे-धीरे स्वतंत्र होने लगे |

उपर्युक्त विवेचन के आलोक में हम कह सकते हैं कि वित्तीय विश्वयुद्ध के विनाशकारी परिणाम निकले | दुनिया के एक बड़े क्षेत्र पर इस विश्वयुद्ध का प्रभाव पड़ा | तटस्थ देश भी इसके प्रभाव से बच न सके | द्वितीय विश्वयुद्ध का एक सुखद परिणाम यह निकला कि इससे साम्राज्यवाद को ठेस पहुंची | पराधीन देश स्वतंत्र होने लगे और संपूर्ण विश्व में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृता की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी |

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