पूंजीवाद : अर्थ, परिभाषा विशेषताएं / लक्षण, उदय के कारण व प्रभाव

पूंजीवाद का अर्थ, परिभाषा व विशेषताएँ

व्यापारी क्रांति के कारण आधुनिक अर्थव्यवस्था ने एक नई विशेषता ग्रहण की | इस नई विशेषता को पूंजीवाद कहा जाता है | पूंजीवाद के दो मूल तत्व होते हैं – (1) औजारों एवं संसाधनों पर निजी स्वामित्व, (2) अधिक से अधिक लाभ कमाना |

पूंजीवादी व्यवस्था में धन कुछ लोगों के पास ही होता है | उन्ही के पास बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थान होते हैं | मजदूर केवल अपनी मजदूरी के लिए काम करता है |

संक्षिप्तत: पूंजीवाद एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें पूंजी पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता है और जिसका प्रयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए होता है |

पूंजीवाद के लक्षण / विशेषताएँ ( Punjivad Ke Lakshan / Visheshtaen )

पूंजीवाद के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं : —

(1) निजी संपत्ति

पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन के साधनों अर्थात भूमि, पूंजी आदि पर निजी स्वामित्व होता है | व्यक्ति अपनी इच्छा और आवश्यकता के अनुसार अपना उद्यम स्थापित कर सकता है | उसकी प्रबंधकीय व्यवस्था भी वह स्वयं करता है | सरकार उसकी संपत्ति की रक्षा करती है |

(2) उद्यम की स्वतंत्रता

व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार कोई भी उद्यम चुन सकता है | वह जब और जहाँ चाहे अपना उद्यम स्थापित कर सकता है | वह अकेला भी कोई कार्य कर सकता है और किसी निगम का अंग भी बन सकता है |

(3) अधिकतम लाभ

पूंजीवाद का मूल लक्ष्य है – अधिकतम लाभ कमाना | पूंजीवादी व्यवस्था के अनुसार उत्पादन के साधनों का प्रयोग उसी स्थान पर किया जाता है जहाँ अधिक से अधिक लाभ हो |

(4) उपभोक्ता की पसंद

पूंजीवादी व्यवस्था में उपभोक्ता की पसंद का ध्यान रखा जाता है | उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिन्हें उपभोक्ता पसंद करते हैं | क्योंकि जिन वस्तुओं को उपभोक्ता पसंद करते हैं उनकी खपत अधिक होती है | अतः उनकी मांग भी अधिक होती है | परिणामत: उसकी कीमत बढ़ जाती है | जिससे पूंजीपति को अधिक लाभ होता है | अतः पूंजीवादी व्यवस्था में उपभोक्ता को केंद्र मानकर उत्पादन किया जाता है |

(5) प्रतिस्पर्धा

प्रतिस्पर्धा की भावना भी पूंजीवादी व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता है | चूंकि पूंजीवाद का मूल उद्देश्य लाभ कमाना है, अतः प्रतिस्पर्धा में अग्रणी रहना आवश्यक है | इसके लिए उत्पाद की गुणवत्ता और विज्ञापन का सहारा लिया जाता है |

(6) उत्तराधिकारी

पूंजीवाद में संपत्ति पर निजी स्वामित्व होता है | इसलिए संपत्ति का स्वामी अपनी मृत्यु के बाद या अपने जीते जी अपनी संपत्ति किसी भी उत्तराधिकारी के नाम कर सकता है |

पूंजीवाद के उदय के कारण या परिस्थितियाँ ( Punjivad Ke Uday Ke Karan Ya Paristhitiyan )

पूंजीवाद के उदय के प्रमुख कारणों का विवेचन निम्नलिखित है :–

(1) धातुओं का प्रयोग

धातुओं के प्रयोग विशेषत: लोहे के प्रयोग ने पूंजीवाद को काफी प्रोत्साहित किया | लोहे का प्रयोग विभिन्न प्रकार के औजारों व यंत्रों में किया गया जिससे कृषि व उद्योगों का विकास हुआ | सोना, चांदी आदि मूल्यवान धातुओं का उत्पादन भी बढ़ने लगा | धातुओं की बहुलता से सिक्कों के प्रचलन को प्रोत्साहन मिला | धन एकत्र करना व उसका प्रयोग करना सरल हो गया | धन की अधिकता पूंजीवाद की जननी व पोषक बन गई |

(2) भौगोलिक खोजें

उत्तर मध्यकाल में अनेक भौगोलिक खोजें हुई | इसका कारण यह था कि 1453 ईस्वी में तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया | इससे एशिया और यूरोप के बीच मार्ग अवरुद्ध हो गया | एशिया से मसाले, कपड़े आदि आने बंद हो गए | अतः यूरोपवासी नए मार्गों की खोज में निकल पड़े | 1492 ईस्वी में कोलंबस ने अमेरिका की तथा 1498 में वास्को-डि-गामा ने भारत की खोज की | इससे यूरोप के देशों ने अनेक नए देशों में व्यापार का प्रसार किया | नए खोजे गए देशों में माल की मांग बढ़ गई | अतः अधिक पूंजी का निवेश किया गया | इस प्रकार पूंजीवाद को प्रोत्साहन मिला |

(3) उन्नत उपकरण

इस दौरान विज्ञान ने काफी उन्नति की | उद्योगों तथा कृषि में प्रयोग होने वाले उपकरणों में सुधार हुआ | कुछ नए व उन्नत उपकरणों की खोज हुई | इन उपकरणों के प्रयोग से कम समय में अधिक उत्पादन होने लगा | शीघ्र तथा बढ़िया माल बनाया जाने लगा | इससे पूंजीवाद को प्रोत्साहन मिला |

(4) बैंकिंग प्रणाली

बैंकिंग प्रणाली ने भी पूंजीवाद के विकास में योगदान दिया | बैंकों ने नई सुविधाएं दी | महाजनी एक बड़ा व्यवसाय बन गया | बैंक धन को ऋण के रूप में देने लगे | इस प्रकार पूंजीवाद व बैंकिंग एक दूसरे के पूरक बन गए |

(5) श्रेणी व्यवस्था की दुर्बलता

श्रेणी व्यवस्था काफी समय तक उन्नति के नए साधनों के मार्ग में अड़चन बनी रही | परंतु नई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए श्रेणी व्यवस्था में दरारें पड़ने लगी | उपश्रेणियां बनने लगी | कातने, बुनने, रंगने वालों ने अपनी-अपनी श्रेणियां बना ली | श्रम-विभाजन की प्रक्रिया आरंभ होने लगी | फलत: श्रेणियां कमजोर होने लगी | वे व्यापारियों पर अधिक निर्भर रहने लगी | व्यापारियों ने अपनी देखरेख में काम करवाना आरंभ कर दिया | उत्पादन केंद्रों की स्थापना होने लगी जिससे पूंजीवादी युग का आरंभ हुआ |

(6) संयुक्त पूंजी कंपनी

कंपनियों का आरंभ होने से पूंजीवाद का विकास होने लगा | विदेशों में व्यापार बढ़ने लगा | इससे धन की आवश्यकता भी बढ़ गई | फलत: बहुत सारे लोगों ने मिलकर संयुक्त पूंजी कंपनी की स्थापना की | सभी को शेयर दिए गए | इससे व्यापार को बढ़ावा मिला और पूंजीवाद का विकास हुआ |

(7) बीमा-प्रणाली

बीमा-प्रणाली के आरंभ होने से पूंजीवाद को बढ़ावा मिला | पूंजीपति सुरक्षित हो गए | व्यापार में हानि का भय नहीं रहा | माल का बीमा होने लगा | माल नष्ट होने पर बीमा-कंपनी एक निश्चित राशि हर्जाने के रूप में देती थी |

पूंजीवाद के प्रभाव / परिणाम ( Punjivad Ke Prabhav / Parinam )

पूंजीवाद के व्यापक प्रभाव पड़े जिनका वर्णन निम्नलिखित है :–

(क ) सामाजिक प्रभाव

पूंजीवादी व्यवस्था के मुख्य रूप से दो सामाजिक प्रभाव पड़े —

(1) समाज दो वर्गों में बट गया बुर्जुआ वर्ग ( पूंजीपति वर्ग ) तथा सर्वहारा वर्ग ( मजदूर वर्ग ) | बुर्जुआ वर्ग उत्पादन के साधनों का स्वामी था सर्वहारा वर्ग अपने श्रम को बेचता था |

(2) पूंजीवाद के कारण समाज में दास प्रथा का आरंभ हुआ |

(ख ) कृषि पर प्रभाव

(1) भूमि-पतियों ने किसानों से नकद भूमि-कर की मांग की जो बहुत अधिक थी | इसलिए वे किसान उन्हीं के खेतों में मजदूर बन गए या बेकार हो गए |

(2) भूमि बड़े पूंजीपतियों के नियंत्रण में आ गई | वे मजदूरों से काम करवाने लगे | इससे पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली का आरंभ हुआ |

(3) भूमिहीन किसान बेकार हो गए | ऐसे किसान शहरों में चले गए तथा मजदूरी करने लगे |

(ग ) औद्योगिक प्रभाव

(1) श्रेणी-पद्धति का स्थान घरेलू-पद्धति ने ले लिया | व्यापारी कच्चा माल खरीदकर घर लाने लगे और माल तैयार करवाने लगे |

(2) श्रेणी-पद्धति में कारीगरों तथा ग्राहकों का सीधा संबंध होता था परंतु श्रेणी-पद्धति के समाप्त होने के बाद ग्राहकों का व्यापारियों से सीधा संबंध स्थापित हो गया |

(3) पूंजीवाद के कारण उत्पन्न घरेलू पद्धति का स्थान कालांतर में कारखाना पद्धति में ले लिया |

(4) प्रशासनिक प्रभाव

(1) पूंजीपतियों ने अपनी सुरक्षा के लिए राजाओं की सहायता की | बदले में राज्य ने पूंजीपतियों की सुरक्षा के लिए अनेक प्रशासनिक नियम बनाए |

(2) राजाओं को सेना तथा शासन-संबंधी कार्यों में धन की आवश्यकता पड़ती थी जो व्यापारियों से मिल जाता था | इस प्रकार पूंजीपतियों का राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में हस्तक्षेप बढ़ गया |

(3) शासन-नीति में परिवर्तन आया | उपनिवेशों की स्थापना होने लगी | आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक होने लगा | विदेशी माल पर अधिक कर लगाया गया जिससे उसकी बिक्री कम होने लगी |

वस्तुत: पूंजीवाद व्यापारिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें बड़े-बड़े पूंजीपति उत्पादन के साधनों पर अपना नियंत्रण रखते हैं और अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए उनका प्रयोग करते हैं |

पूंजीवाद के उदय में श्रेणी व्यवस्था का दुर्बल होना, अनेक नवीन अविष्कारों, बैंकिंग प्रणाली, बीमा प्रणाली तथा संयुक्त पूंजी कंपनी आदि कारणों ने महती भूमिका निभाई | पूंजीवाद के अनेक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े इसने न केवल अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया बल्कि समाज और राजनीति पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ा |

Other Related Posts

सामंतवाद के पतन के कारण ( Samantvad Ke Patan Ke Karan )

पुनर्जागरण : अर्थ, परिभाषा एवं उदय के कारण ( Punarjagran : Arth, Paribhasha Avam Uday Ke Karan )

धर्म सुधार आंदोलन के कारण / कारक या परिस्थितियां ( Dharm Sudhar Andolan Ke Karan / Karak Ya Paristhitiyan )

वाणिज्यवाद : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएँ, काल व उदय के कारण

कृषि क्रांति : अर्थ, परिभाषा, काल, कारण व प्रभाव ( Krishi Kranti : Arth, Paribhasha, Kaal, Karan V Prabhav )

औद्योगिक क्रांति : अर्थ, कारण, विकास व प्रभाव ( Audyogik Kranti : Arth, Karan, Vikas V Prabhav )

फ्रांस की क्रांति के कारण व प्रभाव / परिणाम ( France Ki Kranti Ke Karan V Prabhav / Parinaam )

जर्मनी का एकीकरण ( Unification of Germany )

इटली का एकीकरण ( Unification Of Italy )

प्रथम विश्व युद्ध के कारण ( Pratham Vishwa Yudh Ke Karan )

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण व प्रभाव

13 thoughts on “पूंजीवाद : अर्थ, परिभाषा विशेषताएं / लक्षण, उदय के कारण व प्रभाव”

  1. Pingback: Site

Leave a Comment