जर्मनी का एकीकरण ( Unification of Germany )

जर्मनी का एकीकरण

जर्मनी के एकीकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका बिस्मार्क की थी | प्रशा के शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की मृत्यु के पश्चात विलियम प्रथम शासक बना उसने | उसने 1862 ईस्वी में बिस्मार्क को प्रशा का चांसलर ( प्रधानमंत्री ) नियुक्त किया | प्रधानमंत्री का पद संभालते ही बिस्मार्क ने कहा – “मेरी सबसे बड़ी इच्छा जर्मन लोगों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करना है |”

जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क के प्रयास

बिस्मार्क ने प्रधानमंत्री बनते ही जर्मनी के एकीकरण की योजना बनाना शुरू कर दिया | वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उसके दो पड़ोसी देश – ऑस्ट्रिया व फ्रांस – जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्य को पूरा नहीं होने देंगे | अतः इन देशों के साथ प्रशा की लड़ाई अवश्य होगी | इसलिए उसने अपना ध्यान सर्वप्रथम प्रशा को शक्तिशाली बनाने पर दिया | सेना का पुनर्गठन किया गया तथा उसे युद्ध के लिए तैयार किया गया |

जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने निम्नलिखित तीन युद्ध लड़े — (1) डेनमार्क से युद्ध ( 1864 ईस्वी ), ऑस्ट्रिया से युद्ध (1866 ईस्वी ), फ्रांस से युद्ध (1870 -71 ईस्वी )

(1) डेनमार्क से युद्ध ( 1864 ईस्वी )

जर्मनी के एकीकरण में सबसे पहली बाधा डेनमार्क था | प्रशा व डेनमार्क के बीच युद्ध 1864 ईस्वी में हुआ | दोनों देशों के बीच युद्ध का मुख्य कारण दो डचियां थी – श्लेसविंग व होलस्टीन | भौगोलिक दृष्टि से ये डचियां दोनों देशों के बीच में थी | वहाँ पर कानून व्यवस्था डेनमार्क देखता था परंतु औपचारिक रूप से डेनमार्क ने कभी इन डचियों को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया |

युद्ध के कारण

प्रशा और डेनमार्क के बीच से युद्ध के निम्नलिखित कारण थे —

(क ) प्रशा और डेनमार्क के बीच युद्ध का सबसे प्रमुख कारण श्लेसविंग तथा होल्स्टीन दो डचियां थी | भौगोलिक दृष्टि ये डचियां दोनों देशों के बीच थी परंतु सामाजिक रूप से इनकी स्थिति भिन्न थी | 1852 ईस्वी के लंदन समझौते के अनुसार ये डचियां डेनमार्क के प्रभाव में मानी गई परंतु यह भी स्पष्ट किया गया कि डेनमार्क इन्हें अपने साम्राज्य में नहीं मिलाएगा |

(ख ) 1863 ईस्वी में डेनमार्क के शासक की मृत्यु हो गई तथा नया शासक क्रिश्चियन नवम ने सत्ता संभाली | उसने सत्ता में आते ही डेनमार्क के लिए नए संविधान का निर्माण करवाया | नए संविधान के अनुसार इन दोनों डचियों को डेनमार्क का हिस्सा बताया गया |

(ग ) 1864 ईस्वी में प्रशा और ऑस्ट्रिया के बीच समझौता हुआ जिसमें यह तय किया गया कि प्रशा और ऑस्ट्रिया मिलकर डेनमार्क के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करेंगे |

युद्ध की घटनाएँ

बिस्मार्क ने युद्ध का माहौल बनाने का हर संभव प्रयास किया | डेनमार्क को चेतावनी दी गई कि वह इन डचियों से अपना अधिकार छोड़ दे | जब डेनमार्क ने इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया तो ऑस्ट्रिया और प्रशा की संयुक्त सेना ने 1864 ईस्वी में डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया | युद्ध के पश्चात तीनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार डेनमार्क ने दोनों डचियों – श्लेसविंग व होलस्टीन से अपना अधिकार छोड़ दिया |

(2) ऑस्ट्रिया से युद्ध

डेनमार्क को पराजित करने के पश्चात बिस्मार्क का अगला निशाना ऑस्ट्रिया था | प्रशा और ऑस्ट्रिया के बीच यह युद्ध 1866 ईस्वी में हुआ |

प्रशा-ऑस्ट्रिया युद्ध के कारण

प्रशा-ऑस्ट्रिया युद्ध अवश्यंभावी था | बिस्मार्क आरंभ से ही जानता था कि जर्मनी के एकीकरण के लिए ऑस्ट्रिया से युद्ध लड़ना ही पड़ेगा | इसके लिए बिस्मार्क पहले से तैयार था | प्रशा-ऑस्ट्रिया युद्ध के निम्नलिखित कारण थे —

(क ) प्रशा के नेतृत्व में 1834 ईस्वी में जोल्वेरिन संघ का गठन किया गया था | ऑस्ट्रिया को जानबूझकर इससे बाहर रखा गया था |

(ख ) 1848 ईस्वी में जर्मन फेडरेशन का गठन किया गया था | ऑस्ट्रिया व प्रशा दोनों इसके सदस्य थे लेकिन दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते थे |

(ग ) 1854 ईस्वी के क्रीमिया के युद्ध में ऑस्ट्रिया चाहता था कि जर्मन संघ के सदस्य उसका समर्थन करें लेकिन ऐसा न होने पर वह प्रशा को कमजोर करने व संघ को तोड़ने की कोशिश करने लगा |

प्रशा-ऑस्ट्रिया युद्ध (1866 ) की घटनाएं

युद्ध का पूरा वातावरण बनाने के बाद बिस्मार्क ने होल्सटीन के मुद्दे को हवा दी जिससे ऑस्ट्रिया ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध की घोषणा कर दी | प्रशा-ऑस्ट्रिया युद्ध 16 जून,1866 को शुरू हुआ और सात सप्ताह तक चला | बिस्मार्क उत्तर जर्मनी के कुछ राज्यों का समर्थन हासिल करने में सफल रहा | उत्तर क्षेत्र को पराजित करने के बाद बिस्मार्क ने प्रत्यक्ष रूप से ऑस्ट्रिया को अपना निशाना बनाया | इसके लिए पांच मोर्चे खोले गए | एक मोर्चे पर इटली ने ऑस्ट्रिया को उलझा कर रखा तथा चार मोर्चों पर प्रशा ने युद्ध किया | अंततः सेडोवा के युद्ध में प्रशा को निर्णायक सफलता मिली | प्राग की संधि के माध्यम से यह युद्ध समाप्त हुआ |

उत्तर जर्मन संघ का निर्माण

बिस्मार्क ने उत्तर जर्मन संघ का निर्माण किया | उत्तरी क्षेत्र के 22 राज्य इसके सदस्य थे | बाद में इसके 24 सदस्य हो गए | मत विभाजन के आधार पर प्रशा के शासक विलियम प्रथम को इस संघ का अध्यक्ष तथा बिस्मार्क को प्रधानमंत्री बनाया गया | इस संघ के संविधान के अनुसार इस संघ के प्रधानमंत्री के पास बहुत अधिक शक्तियां थी |

(3) फ्रांस से युद्ध (1870 – 71 ईस्वी )

उत्तरी जर्मनी के एकीकरण के बाद बिस्मार्क का अगला निशाना दक्षिणी क्षेत्र था | इसके लिए फ्रांस से युद्ध अनिवार्य था |

युद्ध के कारण

फ्रांस-प्रशा के बीच युद्ध 1870 – 71 ईस्वी में लड़ा गया | इस युद्ध के निम्नलिखित कारण थे —

(क ) लुई 14वें व नेपोलियन ने प्रशा के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था | प्रशा के लोग इसे अपना अपमान समझते थे |

(ख ) क्रीमिया के युद्ध में प्रशा ने फ्रांस की बजाय रूस को महत्व देकर फ्रांस को अपना शत्रु बना लिया था |

(ग ) बिस्मार्क दक्षिण की रियासतों को जर्मनी में शामिल करना चाहता था परंतु नेपोलियन तृतीय उत्तर जर्मन संघ के निर्माण से ही दु:खी था |

फ्रांस-प्रशा युद्ध की घटनाएं

नेपोलियन तृतीय ने 1870 ईस्वी में प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | बिस्मार्क पहले से युद्ध की घोषणा का इंतजार कर रहा था | क्रीमिया के युद्ध में उसे रूस की सहानुभूति मिल गई थी | ऑस्ट्रिया को हराने के बाद उससे भी मित्रतापूर्ण संबंध बना चुका था | दक्षिण की अनेक रियासतें भी उसके साथ थी |

युद्ध की शुरुआत फ्रांस के आक्रमण से हुई परंतु प्रशा की सेना ने फ्रांस पर तीन ओर से आक्रमण किया | फ्रांस की हर मोर्चे पर हार हुई | सबसे महत्वपूर्ण युद्ध 1 सितंबर, 1870 को हुआ | यहाँ फ्रांस की सेना ने नेपोलियन तृतीय सहित आत्मसमर्पण कर दिया |

फ्रांस-प्रशा युद्ध 10 मई, 1871 को फ्रैंकफर्ट की संधि से समाप्त हुआ इस संधि की शर्तें इस प्रकार थी —

(क ) फ्रांस पर पाँच हजार मिलियन फ्रैंक का जुर्माना लगाया गया |

(ख ) फ्रांस ने जर्मन क्षेत्र में हस्तक्षेप न करना स्वीकार किया तथा जर्मनी के एकीकरण को मान्यता दी |

(ग ) फ्रांस ने इटली के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करना भी स्वीकार किया तथा इटली के एकीकरण ( Unification Of Italy ) को भी मान्यता दी |

(घ ) फ्रांस के अल्सेस व लॉरेन प्रदेश जर्मनी ने अपने कब्जे में ले लिए |

दक्षिण रियासतों का विलय

फ्रांस-प्रशा युद्ध के पश्चात दक्षिण की रियासतों के विलय के लिए बिस्मार्क ने अपने प्रयास तेज किए | ज्यादातर रियासतों ने सकारात्मक उत्तर दिया | इस प्रकार दक्षिण की रियासतों का भी जर्मनी में विलय हो गया | 18 जनवरी, 1871 को जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई | विलियम प्रथम को एकीकृत जर्मनी का शासक बनने का सौभाग्य मिला |

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि जर्मनी का एकीकरण ( Germany Ka Ekikaran ) एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने यूरोप के इतिहास की दिशा बदल दी | जर्मनी के एकीकरण में प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम तथा उसके प्रधानमंत्री बिस्मार्क का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान था | बिस्मार्क की दृढ़ इच्छाशक्ति और योजनाबद्ध लौह एवं रक्त की नीति ने जर्मनी के एकीकरण जैसे असंभव कार्य को संभव बनाया | जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क के योगदान को रेखांकित करते हुए इतिहासकारों ने सर्वथा उचित कहा है – “बिस्मार्क जर्मन साम्राज्य का वास्तविक निर्माता था |”

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