धर्म सुधार आंदोलन के कारण / कारक या परिस्थितियां

धर्म सुधार आंदोलन के कारण

सोलवीं सदी के आरंभ में यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) आरंभ हुआ | यह आंदोलन जर्मनी के मार्टिन लूथर ने आरंभ किया था लेकिन शीघ्र ही यह यूरोप के सभी देशों में फैल गया | धर्म सुधार आंदोलन का विस्तृत विवेचन करने से पूर्व धर्म सुधार आंदोलन के अर्थ को जानना नितांत आवश्यक होगा |

धर्म सुधार आंदोलन का अर्थ ( Dharm Sudhar Andolan Ka Arth )

पूर्व मध्यकाल में चर्च ने यूरोपीय समाज में महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाई परंतु धीरे-धीरे पोप व पादरियों का चरित्र भ्रष्ट होने लगा और वे अपने कर्तव्य से विमुख होने लगे | अब चर्च बौद्धिक विकास में बाधक बन रहा था | अतः चर्च का विरोध बढ़ने लगा | यूरोप के बहुसंख्यक ईसाई चर्च के कटु आलोचक बन गए | वे चर्च से जुड़ी अनेक बातों में सुधार करना चाहते थे | उनके द्वारा चर्च में सुधार के लिए किए गए प्रयासों को ही धर्म सुधार आंदोलन की संज्ञा दी जाती है |

धर्म सुधार आंदोलन के कारण ( Dharm Sudhar Andolan Ke Karan )

1517 ईस्वी में एक जर्मन पादरी तथा धर्म-विद्या के प्रोफ़ेसर मार्टिन लूथर ने विट्टेनबर्ग विश्वविद्यालय के चर्च के दरवाजे पर 95 बातें लिखकर कील से लगा दी | पोप ने लूथर का दमन करना चाहा परंतु लूथर के पक्ष में अनेक शासक, सामान्य जनता खड़ी हो गई | इस प्रकार पोप के विरुद्ध आंदोलन की शुरुआत हो गई | इस घटना को धर्म सुधार आंदोलन का तत्कालीन कारण माना जा सकता है परंतु वास्तव में धर्म सुधार आंदोलन के अनेक कारण थे जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित थे —

(1) रोमन कैथोलिक चर्च में भ्रष्टाचार

मध्यकाल में रोमन कैथोलिक चर्च भ्रष्ट व दूषित हो चुका था | वह यूरोप में सर्वाधिक शक्तिशाली बन गया था | चर्च ने धन व शक्ति अर्जित कर ली थी परंतु धन व शक्ति के बढ़ने पर पोप व चर्च के अन्य अधिकारी अपने धार्मिक कर्तव्यों से विमुख हो गए थे | वह बड़े-बड़े महलों में भोग-विलास का जीवन बिताने लगे थे | दीन-दु:खियों की सेवा से उनका कोई सरोकार नहीं था | अतः आम जनता भी चर्च की एक संस्था के रूप में आलोचना कर रही थी | ईसा मसीह की शिक्षाएँ केवल प्रवचन बन कर रह गई थी | इसलिए एक बार फिर से ईसा मसीह की शिक्षाओं को व्यवहारिक जीवन में अपनाने पर बल दिया गया |

(2) कैथोलिक चर्च में आंतरिक असंतोष

कैथोलिक चर्च में धीरे-धीरे आंतरिक असंतोष पनपने लगा था | चर्च के दोषों को दूर करने की बात चर्च के पादरी भी कर रहे थे | उदाहरण के लिए एक अंग्रेज उपदेशक जॉन वाइक्लिफ ने कहा कि बाइबल सर्वोच्च प्रमाण है न कि पोप | उसने बाइबल का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया परंतु उसके अनेक शिष्यों को पाखंडी व विधर्मी कहकर जिंदा जला दिया गया | इसी प्रकार बोहेमिया के एक उपदेशक जॉन हंस ने भी चर्च की आलोचना की और उसमें सुधार की बात की तो पोप ने उसे रोम बुलाकर उस पर चर्च की निंदा का आरोप लगाया और उसे जिंदा जला दिया | इस प्रकार चर्च के विरुद्ध विरोध जोर पकड़ने लगा |

(3) चर्चित और राजाओं में मतभेद

मध्यकाल में चर्च बहुत अधिक शक्तिशाली हो गया था | धार्मिक मामलों के साथ-साथ उसके पास अनेक राजनीतिक शक्तियां भी आ गई थी | आर्थिक दृष्टि से चर्च सभी राज्यों से धार्मिक कर ‘टाइथ’ वसूल करते थे | चर्च के अधिकारी सामंत भी थे | राजनीतिक दृष्टि से भी चर्च को अनेक शक्तियां प्राप्त थी | वह किसी भी राज्य की जनता को राजा के विरुद्ध बगावत करने का आदेश दे सकता था | वह किसी भी राजा पर विधर्मी होने का आरोप लगाकर उसे धर्म से बहिष्कृत कर सकता था | पोप विभिन्न राज्यों में बिशप, आर्कबिशप, आदि की नियुक्ति भी करता था | ये अधिकारी इस बात का ध्यान रखते थे कि पोप की आज्ञाओं का उल्लंघन न हो | कोई भी राज्य सरकार इन पर मुकदमा नहीं चला सकती थी | उनके मामलों में निर्णय का अधिकार केवल पोप को था | इसलिए कहा जा सकता है कि पोप ‘राजाओं का भी राजा’ या ‘राज्य के अंदर राज्य’ था परंतु जब निरंकुश राजाओं का उदय हुआ तो वे चर्च की शक्ति को चुनौती देने लगे |

(4) पुनर्जागरण का प्रभाव

14वीं सदी से 17वीं सदी के बीच यूरोप में पुनर्जागरण का उदय हुआ | पुनर्जागरण के प्रभाव के कारण मानव-स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता का महत्व बढ़ गया | तर्क को महत्व दिया जाने लगा, रूढ़ियां टूटने लगी और नए युग का प्रादुर्भाव हुआ | लोग चर्च की गलत नीतियों और रीति-रिवाजों का विरोध करने लगे और चर्च में सुधारों की मांग करने लगे |

(5) वैज्ञानिक उन्नति

मध्यकाल में विज्ञान विकास की ओर अग्रसर था | कॉपरनिकस ने सौर-प्रणाली की व्याख्या की | केपलर ने कॉपरनिकस के सिद्धांत की पुष्टि की | गैलीलियो ने दूरबीन की खोज की | न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया | इन खोजों ने एक नए युग का सूत्रपात किया जिसमें अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था | तर्क का महत्व बढ़ गया और जनता चर्च की ऊल-जुलूस प्रथाओं को नकारने लगी |

(6) छापेखाने का प्रारंभ

15 वीं सदी में जर्मनी के गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की |छापेखाने की खोज के परिणामस्वरूप पुस्तकें सरलता से व तेजी से छपने लगी और ज्ञान का प्रसार होने लगा | अंधविश्वास व रूढ़ियाँ कम होने लगी और तर्क का महत्व बढ़ गया | बाइबल का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ | इससे आम जनता ईसाई धर्म के मूल को समझने लगी | मार्टिन लूथर के विचारों को फैलाने में प्रेस की अहम भूमिका रही |

(7) लोकभाषाओं का विकास

15वीं व 16वीं सदी में लोकभाषाओं अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी, इतालवी आदि का विकास हुआ | इन भाषाओं में भी ग्रीक और रोमन साहित्य छापने लगा | जनसाधारण इस साहित्य से परिचित होने लगा | लोकभाषा में रचित इस साहित्य ने चर्च के दोषों को आम जनता तक पहुंचाया जिससे धर्म सुधार आंदोलन को बल मिला |

(8) धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) के आर्थिक कारण

धर्म सुधार आंदोलन के कुछ आर्थिक कारण भी थे | चर्च के पास भूमि का बहुत बड़ा भाग था | वह जनता से अनेक कर वसूल करता था | उदाहरण के लिए फ्रांस में कृषि योग्य भूमि का पांचवा भाग तथा जर्मनी में कृषि योग्य भूमि का तीसरा भाग चर्च के अधीन था | अतः चर्च के अधिकारी सामंत भी थे जिन्हें कोई कर नहीं देना पड़ता था |उल्टे वे चर्च द्वारा लगाए गए करों को इकट्ठा करके रोम पहुंचाते थे | अतः जनसाधारण करों के बोझ से असंतुष्ट थी |

(9) धर्म सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण

पाप-मोचन पत्रों की बिक्री धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) का तात्कालिक कारण बना | पोप लियो दशम उचित-अनुचित हर तरीके से धन कमाना चाहता था | इन तरीकों में एक तरीका पाप मोचन पत्रों की बिक्री था | पोप के अनुसार यह पापों से मुक्ति का नया तरीका था जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति धन देकर पापों से मुक्त हो सकता था | पोप ने यूरोप के विभिन्न देशों में इन पत्रों को बेचने के लिए अपने प्रतिनिधि भेजे | जर्मनी के मेज नगर में एक प्रतिनिधि इन पाप-मोचन पत्रों को बेचने लगा | जब वह विटेनबर्ग पहुँचा तो मार्टिन लूथर ने इस बिक्री का विरोध किया | उसने इस कृत्य को धर्म-विरोधी कहा | उसने इसे ‘अज्ञानी लोगों का शोषण’ बताया | यही नहीं उसने विटेनबर्ग के चर्च के दरवाजे पर 95 प्रश्नों की सूची लगा दी | पोप ने मार्टिन लूथर का दमन करना चाहा परंतु लूथर के समर्थन में अनेक शासक सामान्य जनता खड़ी हो गई | शीघ्र ही लूथर की बातें सारे यूरोप में फैल गई और धर्म-सुधार आंदोलन आरंभ हो गया |

उपर्युक्त विवेचन के आलोक में हम कह सकते हैं कि धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) के अनेक कारण थे जिनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण चर्च का भ्रष्ट होना था | इसके अतिरिक्त पुनर्जागरण, वैज्ञानिक उन्नति, छापेखाने का आविष्कार आदि भी प्रमुख कारण थे | धर्म सुधार आंदोलन को व्यापक रूप प्रदान करने में मार्टिन लूथर का योगदान अद्वितीय था | उसने ही धर्म सुधारआंदोलन को वास्तविक आधार प्रदान किया | उसने कैथोलिक चर्च के दोषों को दूर करते हुए एक नवीन चर्च की परिकल्पना प्रस्तुत की जिसे प्रोटेस्टेंट चर्च कहा जाता है |

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