कृषि क्रांति : अर्थ, परिभाषा, काल, कारण व प्रभाव ( Krishi Kranti : Arth, Paribhasha, Kaal, Karan V Prabhav )

कृषि क्रांति : अर्थ, परिभाषा, काल, कारण व प्रभाव

कृषि क्रांति से अभिप्राय है – कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि | 16वीं सदी से 18वीं सदी के बीच यूरोप में कृषि के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए | खेतों की चकबंदी और बाड़बंदी की गई | कृषि के नए औजारों व नए तरीकों का आविष्कार हुआ | उत्पादन एवं मुनाफा बढ़ने लगा | परिणामस्वरूप कृषि में एक नया मोड़ आया, जिसे कृषि क्रांति कहते हैं |

कृषि क्रांति का काल / समय ( Krishi Kranti Ka Kaal / Samay )

कृषि क्रांति कोई आकस्मिक घटना नहीं थी | परिवर्तन धीरे-धीरे हुए | 1600 ईस्वी के बाद कृषि में परिवर्तन आरंभ हो चुके थे परंतु यह परिवर्तन बहुत धीमे थे | वास्तविक परिवर्तन इसके लगभग 50 वर्ष बाद यानि 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुए | वास्तव में जब कृषि ने किसी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना शुरू किया और कृषि में नई विधियां अपनाई जाने लगी, उस समय को कृषि क्रांति का समय माना जाना चाहिए | इस आधार पर अधिकांश विद्वान 17वीं, 18वीं सदी को कृषि क्रांति का काल मानते हैं |

यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि अलग-अलग देशों में कृषि क्रांति का समय अलग-अलग रहा है | कृषि क्रांति सर्वप्रथम इंग्लैंड हुई | उसके पश्चात यह अन्य देशों के लिए उदाहरण बनी | इंग्लैंड में जहाँ कृषि क्रांति 1690 ईo – 1700 ईo के बीच हुई, वहीं रूस तथा स्पेन में कृषि क्रांति 1860 ईo – 1870 ईo के बीच हुई | इस आधार पर कृषि क्रांति का काल 17वीं सदी से 19वीं सदी तक माना जा सकता है |

कृषि क्रांति के कारण ( Krishi Kranti Ke Karan )

निम्नलिखित परिवर्तनों ने कृषि जगत में एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे कृषि क्रांति के नाम से जाना जाता है —

(1) बदल-बदलकर फसलें उगाना

फसलें अदल-बदल कर बोने की विधि ने कृषि क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया | टाउनशेड नामक एक व्यक्ति ने इस विधि की खोज की | टाउनशेड इंग्लैंड का निवासी था | उसने अपने खेतों में नए प्रयोग शुरू किए | उसने भूमि पर फसलों को बदल-बदलकर बोने का प्रयास किया | उसने शलगम को अधिक महत्व दिया | लोग उसे टर्निंप टाउनशेड कहने लगे | जल्दी ही यूरोप के अन्य देशों में भी बदल-बदल कर फसलें बोना लोकप्रिय हो गया |

(2) जेथ्रो टूल की ड्रिल

1701 ईस्वी में जेथ्रो टूल ने एक मशीन का आविष्कार किया जिसे ड्रिल कहा जाता था | इस मशीन द्वारा पंक्तियों में बीज बोए जा सकते थे | ड्रिल नालियाँ तैयार करती थी, बीज बोती थी और बीजों को ठीक प्रकार से मिट्टी से ढकती थी | इससे समय की बचत होती थी तथा फसल अच्छी होती थी |

जेथ्रो टूल ने खाद संबंधी प्रयोग भी किए तथा नाली व्यवस्था में भी सुधार किए | उसने इन सुझावों को ‘House Hoeing Husbandary’ नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया है

(3) बाड़बंदी और आर्थर यंग

खेतों की चकबंदी और बाड़बंदी की जाने लगी | बाड़बंदी का अग्रदूत सर आर्थर यंग था | उसे नई कृषि का पैगंबर कहा जाता है | उसने अपने लेखों तथा भाषणों द्वारा कृषि में नए सिद्धांत प्रसारित किए | उसने 1773 ईस्वी में कृषि बोर्ड की स्थापना की | वह इस बोर्ड का सचिव था 1760 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक सरकार ने लगभग 1500 बाड़बंदी अधिनियम पारित किए |

(4) पशुओं की नस्ल में सुधार

पशुओं की नस्ल में सुधार किया गया बैकवेल ने भेड़ों की नस्ल में सुधार किया | उसने भेड़ों की ‘New Leicester’ नामक नस्ल का सुधार किया | अब भेड़ का वजन 40 पौंड अधिक हो गया तथा भेड़ों का स्वास्थ्य ठीक रहने लगा |

चार्ल्स कॉलिंग ने बैलों की नस्ल में सुधार किया | उसने बैलों की नई नस्ल ‘Dushs Short Horn’ का विकास किया |

(5) जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि भी कृषि क्रांति के उदय का एक प्रमुख कारण बनी | अधिक भूमि पर कृषि होने लगी लेकिन फिर भी खाद्य पदार्थों की मांग निरंतर बढ़ती रही तो कृषि में सुधार किया जाना आवश्यक हो गया | खाद्यान्न की अधिक मांग की पूर्ति के लिए कृषि में नई विधियों का प्रयोग किया जाने लगा | उन्नत किस्म के बीजों तथा उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा | फलत: कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई |

(6) उच्च मूल्य

जनसंख्या बढ़ने से कृषि उत्पादों की मांग बढ़ गई | मांग बढ़ने के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगी जिससे कृषि सुधारों को प्रोत्साहन मिला | कृषि के क्षेत्र में अधिक निवेश होने लगा | किसान महंगे उपकरणों का प्रयोग करने लगे | इससे कृषि क्रांति को प्रोत्साहन मिला |

(7) सर रॉबर्ट वेस्टर्न की पुस्तक ‘डिसकोर्स ऑफ हसबेंड्री’

सर रॉबर्ट वेस्टर्न की पुस्तक ‘डिस्कोर्स ऑफ हसबेंडरी’ ने भी कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला दी | उसने बताया कि भूमि को खाली रखने की आवश्यकता नहीं | उसने सुझाव दिया कि भूमि को खाली छोड़ने की बजाय शलगम और त्रिपत्रि घास से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है | इससे पशुपालन बढ़ गया तथा साथ ही भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ने लगी |

(8) आदर्श खेत

इंग्लैंड में कुछ लोगों ने आदर्श खेत बनाए | उन्होंने आधुनिक ढंग से कृषि की तथा उत्पादन को 10 गुना बढ़ा दिया | यह पूरे यूरोप के लिए एक उदाहरण बन गया | इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज तृतीय ने स्वयं खेती की | उसने विंडसर में आदर्श खेत की स्थापना की | इसीलिए जॉर्ज तृतीय को कृषक राजा कहा जाता है | उसके प्रयासों से इंग्लैंड में आदर्श के तैयार होने लगे | तत्पश्चात पूरे यूरोप में इसका अनुसरण होने लगा |

(9) अधिक भूमि पर कृषि

कृषि उत्पादों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक भूमि कृषि योग्य बनाई गई | युद्ध के समय नष्ट हुए खेतों को भी कृषि योग्य बनाया गया | यहाँ तक कि दलदल वाली भूमि में भी सुधार करके कृषि की जाने लगी | यह कार्य भी सर्वप्रथम इंग्लैंड में शुरू हुआ | तत्पश्चात यूरोप के अन्य देशों में इसका अनुसरण किया जाने लगा |

(10) भू-स्वामित्व में परिवर्तन

भू-स्वामित्व में परिवर्तन आया | भूमि बड़े-बड़े भूमि-पतियों के हाथों में चली गई | ये बड़े-बड़े जमींदार बड़े-बड़े खेतों पर बड़े पैमाने पर कृषि करने लगे व अधिक निवेश करके कृषि उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करने लगे | उनके प्रयासों से कृषि क्रांति को बढ़ावा मिला |

अतः स्पष्ट है कि कृषि क्रांति के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे | जिनमें बदल-बदल कर फसलें बोना, पशुओं की नस्ल में सुधार करना, बाड़बंदी व चकबंदी, वैज्ञानिक विधियों , उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग आदि प्रमुख थे | इसके अतिरिक्त कुछ सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियां की कृषि क्रांति का कारण बनी |

कृषि क्रांति के प्रभाव / परिणाम ( Krishi Kranti Ke Prabhav / Parinam )

कृषि क्रांति के व्यापक प्रभाव पड़े जिनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है : —

(क ) फसल उत्पादन में वृद्धि

कृषि क्रांति के कारण फसल-उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई | कृषि उत्पादन कई स्थानों पर 10 गुना तक बढ़ गया | प्रति हैक्टेयर उत्पादन में भी आशातीत वृद्धि हुई |

(ख ) भूमि की माँग में वृद्धि

कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप भूमि की माँग बढ़ गई | अधिक भूमि का होना उच्च सामाजिक स्तर का प्रतीक बन गया | अधिक भूमि के स्वामी को मत का अधिकार भी मिल गया | यही कारण है कि भूमि के मूल्यों में भी बढ़ोतरी हुई |

(ग ) कृषि में पूंजीवादी प्रणाली का आरम्भ

कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि में पूंजीवाद का आरम्भ हो गया | कृषि में अधिक निवेश होने लगा | फलत: कृषि बड़े-बड़े पूँजीपतियों के अधीन हो गई | छोटे किसान केवल मजदूर बनकर रह गए |

(घ ) जनसंख्या वृद्धि

कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी | इंग्लैंड में 17वीं 18वीं सदी में जनसंख्या में लगभग 10 प्रतिशत वृद्धि हुई | परन्तु जिन देशों में कृषि क्रांति देर से हुई वहाँ जनसंख्या वृद्धि भी देर से हुई |

(ङ ) औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन

कृषि क्रांति के कारण कृषि उत्पादन बढ़ गया | लोगों का जीवन स्तर सुधर गया | उनकी क्रय शक्ति बढ़ गई | उनकी आवश्यकताएँ बढ़ने लगी | इन आवश्यकताओं की पूर्ति केवल उद्योगों से ही हो सकती थी | वस्त्रों की माँग सबसे अधिक बढ़ी | कपास और ऊन का उत्पादन कृषि क्रांति के कारण पहले ही बढ़ चुका था | अतः सूती वस्त्र उद्योग को बढ़ावा मिला | बड़े-बड़े कारखाने खोले जाने लगे | इस प्रकार कृषि क्रांति ने औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया |

(च ) सामाजिक प्रभाव

कृषि क्रांति के सामाजिक प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है : —

(1) मशीनरी के प्रयोग के कारण बहुत से किसान पिछड़ गए |

(2) अनेक लोग बेरोजगार हो गए |

(3) मजदूरी कम हो गई | भूमिहीन किसानों के पास न घर रहे न अनाज | उनके लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाना भी कठिन हो गया |

(4) भूमि की बाड़बंदी होने से जो बेकार भूमि गरीब लोगों का चूल्हा चलाती थी, उनसे छिन गई |

(5 ) भूमिहीन किसानों की रक्षा के लिए सरकार को समय-समय पर अनेक कानून पास करने पड़े |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि कृषि क्रांति विश्व-इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी | कृषि क्रांति के अनेक आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक व राजनैतिक प्रभाव पड़े जिन्होंने यूरोप के इतिहास की दिशा ही बदल दी |

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