स्वरों का वर्गीकरण

स्वरों का वर्गीकरण
स्वरों का वर्गीकरण

देवनागरी लिपि की मानक वर्णमाला में 12 स्वर हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ | स्वरों का वर्गीकरण मुख्यतः तीन आधार पर किया जा सकता है —

1️⃣ मात्रा के आधार पर

2️⃣ प्रयत्न के आधार पर

3️⃣ स्थान के आधार पर

1️⃣ मात्रा के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण (Matra Ke Aadhar Par Svaro Ka Vargikaran)

मात्रा के आधार पर स्वरों के तीन भेद हैं – ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर, प्लुत स्वर |

🔹ह्रस्व स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है – अ, इ, उ, ऋ |
इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं |

🔹 दीर्घ स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है – आ, ई, ऊ, ए,  ऐ, ओ, औ तथा ऑ |

🔹 प्लुत स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों के उच्चारण की अपेक्षा अधिक समय लगता है |  ‘ओ३म’ प्लुत स्वर का उदाहरण है|
अब हिंदी में प्लुत स्वर का प्रचलन नहीं है |

2️⃣ प्रयत्न के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण ( Prayatn Ke Adhar Par Svaron Ke Bhed )

प्रयत्न के आधार पर स्वरों को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है –
1.  जिह्वा की स्थिति के आधार पर

  1. ओष्ठों की स्थिति के आधार पर

3.  कंठ की मांसपेशियों की शिथिलता या दृढ़ता के आधार पर

1. जिह्वा की स्थिति के आधार पर

जिह्वा की स्थिति के आधार पर स्वरों को चार भागों में बांटा जा सकता है – संवृत, ईषद संवृत, विवृत, ईषद विवृत |

🔹संवृत – जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा बिना किसी प्रकार की रगड़ के ऊपर की ओर उठ जाती है, उन्हें  संवृत स्वर कहते हैं | जैसे – इ, ई, उ, ऊ |

🔹ईषद संवृत ( अर्ध संवृत ) – जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा और मुख-विवर के ऊपरी भाग की दूरी संवृत स्वर की अपेक्षा अधिक होती है यानी जिह्वा संवृत स्वर के उच्चारण की अपेक्षा थोड़ा कम ऊपर की ओर उठती है,  उन्हें ईषद संवृत स्वर कहते हैं | जैसे – ए , ओ |

🔹 विवृत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा और मुख विवर के ऊपरी भाग की दूरी अधिक होती है, उन्हें विवृत स्वर कहते हैं | जैसे – आ |

🔹ईषद विवृत – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा और मुख-विवर के ऊपरी भाग की दूरी विवृत स्वर की अपेक्षा कम होती है, उन्हें ईषद विवृत स्वर ( अर्ध विवृत ) कहते हैं |
जैसे – अ, ऐ, औ, ऑ |

◼️ जिह्वा की स्थिति के आधार पर स्वरों का एक वर्गीकरण इस प्रकार से भी किया जा सकता है – अग्र स्वर, मध्य स्वर तथा पश्च स्वर |

🔹 अग्र स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्रभाग ऊपर तालु की ओर कुछ ऊंचा उठता है परंतु तालु को स्पर्श नहीं करता, उन्हें अग्र स्वर कहते हैं |  जैसे – इ, ई, ए, ऐ |

🔹 मध्य स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग ऊपर की ओर थोड़ा ऊंचा उठता है, उन्हें मध्य स्वर कहते हैं | जैसे – अ,आ |

🔹 पश्च स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग कोमल तालु की ओर उठकर मुख-विवर से निकलने वाली ध्वनियों को प्रभावित करता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं | जैसे – उ, ऊ |

2. ओष्ठों की स्थिति के आधार पर

ओष्ठों  की स्थिति के आधार पर स्वरों को तीन भागों में बांटा जा सकता है – अवृत्ताकार, वृत्ताकार तथा अर्धवृत्ताकार |

🔹 अवृत्ताकार स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों  की स्थिति उदासीन बनी रहती है, वह स्वर अवृत्ताकार कहलाते हैं | सभी अग्र स्वर इसी श्रेणी में आते हैं |
इ, ई, ए, ऐ अवृत्ताकार स्वर हैं |

🔹 वृत्ताकार स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों की आकृति वृत्ताकार हो जाती है, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं  |
जैसे – उ, ऊ, ओ |

🔹 अर्धवृत्ताकार स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों की स्थिति न तो उदासीन रहती है और न पूरी तरह वृत्ताकार होती है, उन्हें अर्धवृत्ताकार स्वर कहते हैं | जैसे – आ |

3. कंठ की मांसपेशियों की शिथिलता या दृढ़ता के आधार पर

कंठ की मांसपेशियों की शिथिलता या दृढ़ता के आधार पर स्वरों के दो भेद हैं –  दृढ़ स्वर व शिथिल स्वर |

🔹दृढ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कंठपिटक और चिबुक के बीच के भाग की मांसपेशियां दृढ़ हो जाती हैं, उन्हें दृढ़ स्वर कहते हैं | जैसे – ई,  ऊ |

🔹 शिथिल स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कंठपिटक और चिबुक के बीच के भाग की मांसपेशियां शिथिल रहती हैं, उन्हें शिथिल स्वर  कहते हैं | जैसे – इ, उ |

3️⃣ स्थान के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण ( Sthan Ke Aadhar Par Svaro Ke Bhed )

स्थान के आधार पर स्वरों के निम्नलिखित आठ भेद माने गए हैं :-

(1) कण्ठ्य – जिन स्वरों के उच्चारण में कंठ की महती  भूमिका होती है उन्हें कण्ठ्य स्वर कहते हैं जैसे – अ |

(2) तालव्य – जिन स्वरों का उच्चारण तालु  से होता है,  उन्हें तालव्य स्वर कहते हैं | जैसे – इ |

(3) मूर्धन्य – जिन स्वरों का उच्चारण मूर्धा से होता है, उन्हें मूर्धन्य स्वर कहते हैं | जैसे – ऋ |

(4) दन्त्य – जिन स्वरों का उच्चारण करते समय जिह्वा दन्त पंक्ति को स्पर्श करती है,  उन्हें दन्त्य स्वर  कहते हैं | जैसे – लृ | ‘लृ’  स्वर  का प्रचलन अब हिंदी में नहीं है |

(5) ओष्ठ्य – जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों  की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,  उन्हें ओष्ठ्य स्वर कहते हैं | जैसे – उ, ऊ |

(6) कंठतालव्य – जिन स्वरों का उच्चारण करने में कंठ और तालु दोनों स्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,  उन्हें कंठतालव्य स्वर कहा जाता है | जैसे – ए, ऐ |

(7) कंठोष्ठय – जिन स्वरों के उच्चारण में कंठ और ओष्ठ  दोनों की भूमिका होती है, उन्हें कंठोष्ठय  स्वर कहते हैं | जैसे – ओ, औ |

(8) दन्तोष्ठ्य –जिन स्वरों का उच्चारण दन्त और ओष्ठ दोनों से एक साथ होता है, उन्हें दन्तोष्ठ्य स्वर कहते हैं  जैसे – व |
‘व’ अर्ध स्वर है |

यह भी देखें

व्यंजना शब्द-शक्ति की परिभाषा एवं भेद ( Vyanjana Shabd Shakti : Arth, Paribhasha Evam Bhed )

शब्द एवं अर्थ : परिभाषा एवं दोनों का पारस्परिक संबंध ( Shabd Evam Arth : Paribhasha Evam Parasparik Sambandh )

वाक्य : अर्थ, परिभाषा एवं वर्गीकरण ( Vakya : Arth, Paribhasha Evam Vargikaran )

वाक्य : अर्थ, परिभाषा व स्वरूप ( Vakya : Arth, Paribhasha Evam Svaroop )

स्वन : अर्थ, परिभाषा, प्रकृति/स्वरूप व वर्गीकरण ( Svan : Arth, Paribhasha, Prakriti /Swaroop V Vargikaran )

रूपिम की अवधारणा : अर्थ, परिभाषा और भेद ( Rupim Ki Avdharna : Arth, Paribhasha Aur Bhed )