शब्द एवं अर्थ : परिभाषा एवं दोनों का पारस्परिक संबंध ( Shabd Evam Arth : Paribhasha Evam Parasparik Sambandh )

                    शब्द की अवधारणा

             ( Shabd Ki Avdharna )

 साधारण शब्दों में वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं अर्थात जब कुछ वर्ण जुड़कर ऐसी संरचना बनाते हैं जो किसी अर्थ की ओर संकेत करे, उसे शब्द कहते हैं |
 जैसे – राम, फल,  पुस्तक,  सुंदर,  काला आदि सभी शब्द है |
 यह शब्द ही आगे प्रत्यय,  उपसर्ग, विभक्ति आदि के योग से नए शब्दों का निर्माण करते हैं |

                        शब्द के भेद

                          ( Shabd Ke Bhed )

 शब्दों का वर्गीकरण अनेक आधारों  पर किया जा सकता है जिनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है :-

 रूप परिवर्तन के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं –

 विकारी शब्द तथा अविकारी शब्द |
1. विकारी शब्द – संज्ञा,  सर्वनाम, विशेषण, क्रिया |
2. अविकारी शब्द – क्रिया-विशेषण, निपात, अव्यय |

 उत्पत्ति के आधार पर शब्द के पांच भेद होते हैं –

 तत्सम, तद्भव, देशज,  विदेशी तथा संकर |
1. तत्सम – दुग्ध,  क्षीर |
2. तद्भव – दूध, खीर |
3. देशज – पेट,  जूता |
4. विदेशज – स्कूल,  चीनी |
5. संकर – रेलगाड़ी, डाकघर |

व्युत्पत्ति ( रचना ) के आधार पर शब्द के तीन भेद हैं –

रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़ |

1. रूढ़ शब्द – फूल, मेज |
2. यौगिक  शब्द – पाठशाला, हिमालय |
3. योगरूढ़ शब्द – पंकज, जलज |

 अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं –

एकार्थी  तथा अनेकार्थी |

अतः स्पष्ट है कि वर्णों का ऐसा मेल जो किसी अर्थ ( भाव ) की ओर संकेत करे,  उसे शब्द कहते हैं | शब्द का मुख्य उद्देश्य तथा आधार अर्थ है | अर्थ के बिना शब्द का अस्तित्व नहीं रह सकता | निरर्थक शब्द जल्दी ही भाषा से लुप्त हो जाते हैं |

                     अर्थ की अवधारणा

                ( Arth Ki Avdharna )

 अधिकांश विद्वान इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि अर्थ, शब्द की आत्मा है | मूल रूप से कहा जाता है कि किसी शब्द से जिस भाव की प्रतीति होती है,  वही  उस शब्द का अर्थ है | किसी शब्द को बोलते ही श्रोता  के दिमाग में एक भाव या चित्र उभर आता है, यह भाव या चित्र ही उस शब्द का अर्थ है | उदाहरण के लिए ‘रोटी’ शब्द को सुनते ही श्रोता के दिमाग में ‘रोटी’  का चित्र उभर आता है | यद्यपि ‘रोटी’ का करना क्या है या वक्ता ‘रोटी’ के बारे में क्या कहना चाहता है ; यह पूरे वाक्य से ही स्पष्ट होगा परंतु यह सत्य है कि शब्द के अर्थ को जाने बिना वाक्य के भाव या अर्थ को नहीं जाना जा सकता |
मान लीजिये एक वक्ता कहता है – “आप मेरे लिए रोटी ले आओ | ” 
इस वाक्य में यदि श्रोता पूरे वाक्य के शब्दों के अर्थ को जानता है लेकिन ‘रोटी’ क्या होती है,  नहीं जानता तो श्रोता असमंजस की स्थिति में होगा | वह निर्णय नहीं कर पाएगा कि वक्ता क्या मांग रहा है |
अतः शब्द का अर्थ ही वाक्य के अर्थ को स्पष्ट करता है लेकिन कभी-कभी वक्ता के कहने के ढंग से शब्द अपना अर्थ बदल लेता है | वस्तुतः अर्थ वह भाव है जिसे वक्ता प्रकट करता है तथा श्रोता समझता है |
अर्थ के स्वरूप को समझने के लिए इसकी कुछ परिभाषाओं  पर विचार करना आवश्यक होगा |

                      अर्थ की परिभाषाएं 

            ( Arth Ki Paribhashayen )

 महर्षि पतंजलि के अनुसार

  ” अर्थ शब्द की अंतरंग शक्ति का नाम है |”

भर्तृहरि के अनुसार 

” जिस शब्द के उच्चारण से जिस अर्थ की प्रतीति होती है वही उसका अर्थ होता है |”

 डॉ हरीश चंद्र वर्मा के अनुसार

 ” अर्थ एक प्रतीति है जो वक्ता के मन में बोलते समय तथा श्रोता के मन में सुनते समय बिंब या चित्र के रूप में उभरती है |”
 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शब्द और अर्थ का गहरा संबंध है | शब्द के बिना अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती तथा अर्थ के बिना शब्द का कोई महत्व नहीं |

              शब्द और अर्थ का पारस्परिक संबंध

  ( Shabd Aur  Arth Ka Parasparik Sambandh )

 शब्द और अर्थ का गहरा संबंध है | विद्वानों ने इसे नित्य तथा अभिन्न संबंध स्वीकार किया है | यह सर्वमान्य है कि शब्द के बिना अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती तथा अर्थ के अभाव में शब्द का कोई अस्तित्व नहीं | यद्यपि कुछ भावों को संकेतों द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है लेकिन अधिकांश भावों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता पड़ती है | शब्द और अर्थ के संबंध के विषय में कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं :-

 महर्षि पतंजलि के अनुसार 

” अर्थ शब्द से पूर्णत: अपृथक रहता है |इसलिए दोनों में नित्य संबंध है |”

भर्तृहरि के अनुसार 

” शब्द और अर्थ दोनों एक ही आत्मा के दो रूप हैं |दोनों एक दूसरे से पूर्णत:अपृथक और अभिन्न हैं |”

 महाकवि कालिदास ( Kalidas )  नेे शब्द और अर्थ को शिव और पार्वती के समान अभिन्न माना है |
 शब्द और अर्थ के संबंध को स्पष्ट करने के लिए भारतीय विद्वानों ने चार वाद प्रस्तुत किए हैं – 1. उत्पत्तिवाद, 2. ज्ञप्तिवाद, 3. अभिव्यक्तिवाद, 4. प्रतीकवाद |

1. उत्पत्तिवाद ( Utpativad ) 

 उत्पत्तिवाद के अनुसार अर्थ और शब्द का संबंध उत्पाद्य और उत्पादक का है | अर्थ उत्पाद्य है और शब्द उत्पादक | अर्थ की स्थिति पहले आती है और उस अर्थ को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द की रचना बाद में होती है |
इस वाद के अनुसार अर्थ और शब्द का प्रकाश्य और प्रकाशक संबंध भी स्थापित होता है |2. ज्ञप्तिवाद ( Gyaptivad )

 ज्ञप्तिवाद का अर्थ है कि शब्द अर्थ की ज्ञप्ति करता है अर्थात अर्थ को बताता है |  इस वाद के अनुसार शब्द और अर्थ में ज्ञाप्य-ज्ञापक संबंध है | ज्ञाप्य  का अर्थ है – बताया जाने वाला | ज्ञापक का अर्थ है – बताने वाला |  अर्थ ज्ञाप्य  है तथा शब्द ज्ञापक है |
3. अभिव्यक्तिवाद (Abhivyaktivad ) 
 अभिव्यक्तिवाद के अनुसार शब्द के द्वारा अर्थ की अभिव्यक्ति होती है | महर्षि पतंजलि ( Patanjli ) इस मत के प्रवर्तक हैं | उनके अनुसार शब्द और अर्थ में व्यंग्य-व्यंजक संबंध है | व्यंग्य अर्थ है तथा व्यंजक शब्द है |

4. प्रतीकवाद ( Pratikvad ) 

 इस वाद के अनुसार शब्द उस वस्तु के अर्थ का प्रतीक है जो हमारे मन में होती है | शब्द और अर्थ का प्रतीकात्मक संबंध है |  शब्द जिन भावों की प्रतीति करते हैं,  वे उन भावों के प्रतीक बन जाते हैं |
 अतः स्पष्ट है कि शब्द अर्थ की अभिव्यक्ति करते हैं | शब्द किस प्रकार अर्थ बोध कराते हैं इसको जानना भी आवश्यक होगा |

                    अर्थबोध के साधन

            ( Arthbodh Ke Sadhan ) 

 भारतीय विद्वानों ने अर्थबोध के आठ साधन बताए हैं :-
1. व्यवहार, 2. आप्त-वाक्य, 3. उपमान, 4. प्रकरण,
5. विवृत्ति, 6. सानिध्य, 7. व्याकरण, 8. शब्दकोष |

1. व्यवहार : अर्थ बोध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन व्यवहार है | मानव बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक व्यवहार द्वारा ही अधिकांश शब्दों को सीखता है और उनको अपनी भाषा में प्रयोग करता है | व्यवहार के कारण ही बच्चा शब्दों के सही अर्थों को जानता है |

2. आप्तवाक्य : ऋषि-मुनियों या महान विद्वानों के द्वारा कहे गए वचन या कथन आप्त-वाक्य कहलाते हैं | उदाहरण के लिए ईश्वर, स्वर्ग-नरक, देवता, आत्मा आदि के बारे में हमें ऋषियों  के कथनों पर विश्वास करना पड़ता है |

3. उपमान : उपमान का अर्थ है – समानता | उपमान के द्वारा भी हम शब्दों के अर्थ को जान सकते हैं | उदाहरण के लिए बहुत लोग ऐसे होंगे जिन्होंने नीलगाय नहीं देखी परंतु गाय तो सभी ने देखी हुई है यदि कोई पूछता है कि नीलगाय किसे कहते हैं | तो हम कह सकते हैं कि नीलगाय गाय के समान होती है परंतु वह जंगल में रहती है | उसका रंग कुछ-कुछ नीला या काला होता है |

4. प्रकरण : प्रकरण को वाक्य-शेष भी कहते हैं | भाषा में अनेक शब्द अनेकार्थक होते हैं | ऐसे शब्दों का प्रयोग करते समय यह निर्णय कठिन हो जाता है कि यहां इस शब्द का क्या अर्थ होगा | ऐसी स्थिति में हम प्रकरण का सहारा लेते हैं |उदाहरण – (क ) नर्स ने रोगी को गोली दी |
( ख ) मां ने रोते हुए बच्चे को मीठी गोली दी |
(ग ) बदमाशों ने सेठ को गोली मार दी |
यहां तीनों वाक्यों में ‘गोली’ शब्द का प्रयोग हुआ है |  प्रकरण के द्वारा ही यह स्पष्ट हो पाता है कि यहां प्रथम वाक्य में गोली का अर्थ ‘दवाई’ है, दूसरे वाक्य में गोली का अर्थ ‘टॉफी’ है और तीसरे वाक्य में गोली का अर्थ बंदूक से निकला ‘कारतूस’ है |

5. विवृत्ति : विवृत्ति का अर्थ व्याख्या या विवरण है | विज्ञान, साहित्य, दर्शन में अनेक शब्द ऐसे होते हैं जिनका अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका विवरण देना पड़ता है ; जैसे परमाणु, प्रबंध काव्य, रहस्यवाद आदि |

6. सान्निध्य : कुछ शब्दों के अर्थ को जानने में उन शब्दों के निकट के शब्द सहायता करते हैं | शब्दों की इस समीपता को ‘प्रसिद्ध पद का सानिध्य’ कहा जाता है |
उदाहरण के लिए ‘शारंग’  के अनेक अर्थ हैं – धनुष, मृग, भंवर आदि |
एक वाक्य देखिए –  राम ने सारंग पर शर संधान किया |
इस वाक्य में शर ( बाण ) के सानिध्य के कारण ‘शारंग’ का अर्थ ‘धनुष’ लिया जाएगा |

7. व्याकरण : व्याकरण की सहायता से अनेक शब्दों के अर्थ का बोध हो सकता है व्याकरण के आधार पर हम प्रकृति और प्रत्यय का विश्लेषण करके अर्थ तक पहुंच सकते हैं |
जैसे – शैव ( शिव का पुत्र ),
वैष्णव ( विष्णु का पुत्र )
वासुदेव ( वसुदेव का पुत्र )
कौन्तेय ( कुंती का पुत्र ) आदि |

8. शब्दकोष : शब्दकोश अर्थबोध का एक बड़ा साधन है | शब्दकोश में सभी प्रकार के शब्दों के अर्थ होते हैं |यही कारण है कि बड़े से बड़े विद्वान भी अपने घरों में विभिन्न भाषाओं के शब्दकोश रखते हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे शब्दों के अर्थों को जान सकें |

अत: स्पष्ट है कि शब्द और अर्थ दोनों का आपस में अभिन्न संबंध है | शब्द साधन है,  अर्थ साध्य ; शब्द उत्पादक है, अर्थ उत्पाद्य ; शब्द ज्ञापक है, अर्थ ज्ञाप्य ; शब्द व्यंजक है, अर्थ व्यंग्य | संक्षेप में अर्थ वह बात,  वस्तु, चित्र,  प्रतीक, भाव विचार,  संवेदना आदि है जो श्रोता के मन में उत्पन्न होता है तथा शब्द वह साधन है जो इसी रूप में उस बात, वस्तु, चित्र, प्रतीक, भाव, विचार, संवेदना आदि को श्रोता तक पहुंचाता है | शब्दों के बिना अर्थ की अभिव्यक्ति संभव नहीं और अर्थ के बिना शब्दों का अस्तित्व  |

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