रूपिम की अवधारणा : अर्थ, परिभाषा और भेद ( Rupim Ki Avdharna : Arth, Paribhasha Aur Bhed )

  भाषा विज्ञान की दृष्टि से वाक्य भाषा की प्रथम महत्वपूर्ण सार्थक इकाई है परंतु वाक्य को अनेक खंडों में विभाजित किया जा सकता है यह खंड ही पद या रूप कहलाते हैं |
 जब तक कोई शब्द केवल शब्दकोश तक सीमित होता है या वाक्य में प्रयुक्त नहीं होता तब तक वह केवल शब्द होता है परंतु जब वह शब्द वाक्य में प्रयुक्त हो जाता है तब वह पद बन जाता है कहीं बाहर यह शब्द मूल रूप में ही वाक्य में प्रयुक्त हो जाते हैं तो कई बार मूल शब्द में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता है |
 इसी हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं :-
         राम ने रावण को बाण से मारा | 
 उपर्युक्त वाक्य में राम, रावण, बाण, मारा आदि सभी शब्द हैं लेकिन राम ने,  रावण को,  बाण से, मारा तो पद या रूप हैं क्योंकि राम के साथ ‘ने’ कारक चिह्न है, रावण के साथ ‘को’,  बाण के साथ ‘से’ कारक चिह्न है तथा मरना क्रिया के साथ भूतकालिक प्रत्यय ‘आ’ का प्रयोग है |
 इससे यह स्पष्ट होता है कि जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है या प्रयुक्त होने की योग्यता धारण कर लेता है तो वह पद कहलाता है |
 एक वाक्य लीजिए :- सरोवर में सुंदर फूल खिलते हैं |
 यहां हमने सरोवर के साथ ‘में’ विभक्ति चिन्ह लगाया है, सुंदर तथा फूल के साथ शून्य विभक्ति चिह्न है |
 ‘खिलते हैं’ में क्रिया संबंधी प्रत्यय है | इसका अर्थ यह हुआ कि मूल शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने के योग्य नहीं थे | वाक्य में प्रयुक्त होने पर इनमें कुछ परिवर्तन आ जाता है | इस परिवर्तित रूप को ही रूप कहते हैं |
 सरोवर,  सुंदर,  फूल आदि सभी शब्दों के निश्चित अर्थ है | इन्हें हम अर्थ-तत्त्व  कह सकते हैं लेकिन अर्थ-तत्त्व के साथ संबंध-तत्त्व  के जुड़ने पर ही वे वाक्य में प्रयुक्त होने के योग्य बन पाते हैं इस प्रकार पद या रूप वाक्य गठन में उपयोगी तत्त्व है |
 अत: स्पष्ट है :- “जिस प्रकार स्वन-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई को स्वनिम कहते हैं ;उसी प्रकार रूप-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई को रूपिम कहते हैं |”
 रूपिम लघुतम अर्थवान इकाई होते हुए भी अर्थिम का पर्याय नहीं मानी जा सकती |उदाहरण के लिए ‘विद्या’ और ‘आलय’ दो रूपिम हैं लेकिन दोनों के योग से बना ‘विद्यालय’ अर्थिम है|
 एक अन्य उदाहरण देखिए :- सीता शीला से पत्र लिखवाएगी |
 इस वाक्य में सीता,  शीला, से, पत्र, लिख, वा, ए, ग, ई  नौ रूपिम हैं |
 अतः स्पष्ट है कि भाषिक विचारों में लघुतम अर्थवान तत्व रूपिम है |

                  रूपिम की परिभाषा

           ( Rupim Ki Paribhasha )

 रूपिम के बारे में भाषा वैज्ञानिकों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं | इनमें से कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं : 

ग्लीसन के अनुसार 

” न्यूनतम उपयुक्त व्याकरणिक अर्थवान रूप ही रूपिम होता है |”

 डॉक्टर ओ पी भारद्वाज के अनुसार 

 ” भाषिक विचारों में लघुतम अर्थवान तत्व रूपिम है |”

 डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार – 

” भाषा की लघुतम सार्थक इकाई को रूप-ग्राम या रूपिम कहते हैं |”

 डॉ हरीशचंद्र वर्मा के अनुसार 

” भाषा की लघुतम सार्थक इकाई जिसमें रूप-तत्व तथा अर्थ-तत्व का संयोजन रहता है,  उसे रूपिम कहते हैं |

 उपर्युक्त परिभाषाओं से रूपिम के संम्बंध में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं :
👉 रुपिम सार्थक होता है |
👉 रूपिम का संबंध रूप और अर्थ दोनों से होता है | 
👉 रूपिम  भाषा या वाक्य की लघुतम सार्थक इकाई है | 
👉 रूपिम के स्वनिम वियोजित किए जा सकते हैं |

                    रूपिम के भेद

             ( Rupim Ke Bhed )

 रूपिम के भेद निम्नलिखित आधार पर किए जा सकते हैं :
(क ) प्रयोग के आधार पर 
( ख ) अर्थ तत्त्व तथा संबंध तत्त्व के आधार पर 
( ग ) संरचना के आधार पर 
( घ ) खंडीकरण के आधार पर 
  

          (क ) प्रयोग के आधार पर 

 प्रयोग के आधार पर रूपिम के तीन भेद हैं – 1. मुक्त रूपिम 
2. बद्ध रूपिम 
3. मुक्तबद्ध रूपिम 
1. मुक्त रूपिम ( Mukt Rupim ) – मुक्त रूपिम वाक्य में स्वतंत्र रूप में प्रयोग किए जाते हैं | उनमें किसी उपसर्ग, प्रत्यय,  विभक्ति आदि लगाने की आवश्यकता नहीं होती | 
 जैसे – राम पुस्तक पढ़ता है |
 इस वाक्य में ‘राम’,  ‘पुस्तक’ पद मूल रूप में प्रयुक्त हैं | 
 इनमें उपसर्ग, प्रत्यय, विभक्ति आदि का संयोजन नहीं है |
2. बद्ध रूपिम ( Baddh Rupim ) – उपसर्ग और प्रत्यय के संयोजन से बने पद बद्ध रूपिम कहलाते हैं, जैसे – लड़के पुस्तकें पढ़ते हैं |
 इस वाक्य में ‘लड़के’,   ‘पुस्तकें’ बद्ध रूपिम हैं क्योंकि ये ‘ए’ ( लड़का +ए ) तथा ‘एँ’ ( पुस्तक + एँ ) प्रत्यय के योग से बने हैं |  बद्ध  रूपिम लिंग-प्रत्यय, वचन-प्रत्यय, भाववाचक-प्रत्यय,  गुणवाचक-प्रत्यय, स्थानवाचक-प्रत्यय, उपसर्ग आश्रित हो सकते हैं |

      लिंग प्रत्यय पर आश्रित बद्ध रूपिम 

लड़का + ई = लड़की 
धोबी + इन = धोबिन  
शेर + नी = शेरनी 
ऊँट + नी = ऊंटनी 

 वचन प्रत्यय पर आश्रित बद्ध रूपिम 

लड़का +ए = लड़के 
पुस्तक + एँ = पुस्तकें 
नदी +इयाँ = नदियाँ

 भाववाचक प्रत्यय पर आश्रित बद्ध रूपिम 

बच्चा +पन =बचपन 
बाल +पन = बालपन 
भला + ई = भलाई 
सुन्दर +ता = सुंदरता 
मानव + ता = मानवता

 गुणवाचक प्रत्यय पर आश्रित बद्ध रूपिम 

भूख + आ = भूखा 
रंग + ईला = रंगीला

 स्थान वाचक प्रत्यय पर आश्रित बद्ध रूपिम 

इलाहबाद + ई = इलाहाबादी 
मारवाड़ + ई = मारवाड़ी 
जयपुर +ई = जयपुरी 
शहजादपुर +इया = शहजादपुरिया

 उपसर्ग आश्रित बद्ध रूपिम 

आ +हार = आहार 
वि + हार = विहार

3. मुक्त-बद्ध रूपिम ( Mukt-Baddh Rupim ) – वे रूपिम  जो ऊपर से देखने में स्वतंत्र प्रतीत होते हैं परंतु वाक्य की आंतरिक अर्थगत और व्याकरणिक व्यवस्था में बंधे  होने के कारण किसी ने किसी पद पर आश्रित होते हैं, उन्हें मुक्त-बद्ध रूपिम कहते हैं | 
यथा – लता ने गीता को गीत सुनाया | 
 इस वाक्य में देखने में ‘ने’ और ‘को’ स्वतंत्र प्रतीत होते हैं परंतु वास्तव में यह ‘लता’ और ‘गीता’ पर आश्रित हैं | यदि ‘लता’ और ‘गीता’ के स्थान बदल दिए जाएं तो ‘ने’ और ‘को’ की भूमिका भी बदल जाती है | अतः इन्हें मुक्त-बद्ध रूपिम  कहना उचित है |

      ( ख ) अर्थ-तत्त्व  एवं संबंध-तत्त्व के आधार पर 

 अर्थ-तत्त्व एवं संबंध-तत्त्व  के आधार पर रूपिम के दो भेद हैं – 
1. अर्थदर्शी रूपिम ( Arthdarshi Rupim ) 
2. सम्बन्धदर्शी रूपिम ( Sambandhdarshi Rupim )

1. अर्थदर्शी रूपिम ( Arthdarshi Rupim ) – शब्दकोश में दिए गए सारे शब्द अर्थदर्शी रूपिम हैं |  यह शब्द संज्ञा,  सर्वनाम, विशेषण,  क्रिया,  क्रिया-विशेषण आदि व्याकरणिक कोटियों के निरूपक हैं | 
उदाहरण : – संज्ञा – सत्य, अहिंसा,  अध्यापक, मानवता आदि 
 सर्वनाम – वह, तुम,  मैं,  कौन, आप आदि | 
 विशेषण – मीठा, चतुर, ईमानदार आदि |

2. संबंधदर्शी रूपिम ( Sambandhdarshi Rupim ) – व्यावहारिक भाषा में सारे पद लिंग,  वचन, कारक,  काल आदि से अनुशासित होते हैं; यह संबंध दर्शी रूपिम का उदाहरण है| 
 जैसे :- 
👉वचन पर आधारित
      ए = लड़के, घोड़े 
    ओं = मटकों, लड़कों, घोड़ों 
     इयों = लड़कियों,  घोड़ियों

👉 लिंग आधारित 
     ई = लड़की, घोड़ी 
    इयाँ = लड़कियाँ, घोड़ियाँ

👉 कारक आधारित 
    ने = लड़की ने,  घोड़ी ने
    को = लड़की को,  घोड़ी को

👉 काल आधारित
  आ = पड़ा, चढ़ा
  गा = पड़ेगा,  चढ़ेगा

              ( ग ) संरचना के आधार पर

 संरचना के आधार पर रूपिम के तीन भेद हैं – 1. मूल रूपिम, 2. संयुक्त रूपिम, 3. मिश्रित रूपिम

1. मूल रूपिम (Mool Rupim ) – जिनके साथ कोई उपसर्ग या प्रत्यय नहीं जुड़ता उन्हें मूल रूपिम कहते हैं ; जैसे गाय, घड़ी,  दिन आदि |

2. संयुक्त रूपिम ( Sanyukt Rupim )  – जब दो या दो से अधिक रूपिम  इस प्रकार संयुक्त होते हैं कि उनमें से एक अर्थ तत्त्व पर आधारित होता है तथा अन्य उपसर्ग या प्रत्यय पर आधारित होता है तो उसको हम संयुक्त रूपिम  कह सकते हैं | 
जैसे : – बेटियाँ – बेटी ( मूल रूपिम ) + इयाँ ( वचन प्रत्यय )

3. मिश्रित रूपिम (Mishrit Rupim) – जब दो या दो से अधिक मूल रूपिम  एक साथ प्रयुक्त होते हैं तो उनको मिश्रित रूपिम कहते हैं | 
जैसे :-  बैलगाड़ी – बैल ( मूल रूपिम ) + गाड़ी ( मूल रूपिम )

            ( घ ) खंडीकरण के आधार पर 

 खंडीकरण के आधार पर रूपिम के  दो भेद हैं – 1. खंड्य रूपिम, 2. अखण्डय रूपिम 
1. खंड्य रूपिम (Khanday Rupim ) – जिन रूपिमों  के दो या दो से अधिक खंड किए जा सकते हैं,  उन्हें खंड्य रूपिम कहते हैं | 
जैसे :-    रेलगाड़ी – रेल +गाड़ी 
              खाएगी – खा +ए +गी

2. अखण्डय रूपिम ( Akhanday Rupim )  – जिन रूपिमों  के सार्थक खंड नहीं हो सकते, उन्हें अखण्डय रूपिम कहते हैं |
जैसे :- सुर ( Tone ) 
◼️ उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि वाक्य के लघुतम अर्थ-तत्त्व को रूपिम कहते हैं |  रूपिम का संबंध रूप और अर्थ दोनों से होता है तथा रूपिम का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है | 
    ▶️▶️▶️▶️▶️▶️⚫️◀️◀️◀️◀️◀️◀️

7 thoughts on “रूपिम की अवधारणा : अर्थ, परिभाषा और भेद ( Rupim Ki Avdharna : Arth, Paribhasha Aur Bhed )”

Leave a Comment