नये साम्राज्य और राज्य ( इतिहास, कक्षा-6) ( New Empires And Kingdoms )

( यहाँ NCERT की कक्षा 6 की इतिहास की पाठ्य पुस्तक ‘हमारे अतीत-1’ में संकलित ‘नये साम्राज्य और राज्य’ अध्याय के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को संकलित किया गया है | )

नये साम्राज्य और राज्य
नये साम्राज्य और राज्य ( कक्षा 6 )

चंद्रगुप्त  प्रथम ( Chandragupta l ) ने 320 ई० में राजगद्दी संभाली उसने 320 ई० से 335 ई० तक शासन किया । वह प्रथम गुप्त शासक था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।

🔹उसने  320 ई० में गुप्त संवत ( Gupta Samvat ) चलाया ।

समुद्रगुप्त ( Samudragupta)  ने 335 ई० से 380 ई० तक शासन किया ।

🔹प्रसिद्ध इतिहासकार वी० ए० स्मिथ ( V. A. Smith )  ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ ( Nepolian Of India ) कहा है ।

🔹समुद्रगुप्त को ‘लिच्छवी दौहित्र’ भी कहा जाता है ।

🔷 हरिषेण ( Harishen )  उसका दरबारी कवि था । उसने इलाहाबाद में अशोक स्तम्भ पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति में संस्कृत भाषा में एक कविता लिखी है । यह अभिलेख इलाहाबाद प्रशस्ति या प्रयाग प्रशस्ति के नाम से जाना जाता है ।

🔷 अभिलेख लिखने की परम्परा गुप्त काल से पहले भी थी । गौतमी पुत्र शातकर्णी ( Gautami Putra Shatkarni ) के बारे में हमें उसकी माता गौतमी बलश्री द्वारा लिखित अभिलेख से जानकारी मिलती है । परंतु गुप्तकाल में अभिलेखों का प्रचलन बढ़ गया ।

🔷 प्रयाग प्रशस्ति से पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने आर्याव्रत के नौ शासकों को हराकर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाया ।

🔷 प्रयाग प्रशस्ति से ही पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12  राज्यों को पराजित किया परंतु उनके साम्राज्य को उसने अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया ।

🔷 अनेक पड़ोसी राज्य जिनमें असम , तटीय बंगाल , नेपाल और उत्तर-पश्चिम क कई गण और संघ  शामिल थे ; समुद्रगुप्त के लिए भेंट लाते थे तथा उसकी आज्ञाओं का पालन करते थे ।

🔷 पश्चिमोत्तर भारत ( पाकिस्तान व अफगानिस्तान में स्थित ) के राजा सम्भवत: कुषाण व शक वंश के थे । इन्होंने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की और अपनी पुत्रियों का विवाह उससे किया ।

🔷 सिक्कों पर समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है ।

🔷 प्रयाग प्रशस्ति से पता चलता है कि समुद्रगुप्त के पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम ( Channdragupta l )  तथा माता का नाम कुमार देवी ( Kumar Devi ) था जो लिच्छवी गणराज्य की राजकुमारी थी । इसीलिए समुद्रगुप्त को लिच्छवी दौहित्र भी कहा जाता है ।

🔷 समुद्रगुप्त ने भी चंद्रगुप्त प्रथम  की भाँति महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।

◼️ समुद्रगुप्त के पुत्र का नाम चंद्रगुप्त द्वितीय ( Chandragupta ll ) था ।

🔹चंद्रगुप्त द्वितीय ने अंतिम शक शासक को पराजित किया ।

🔹चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ व ‘शकारि’ की उपाधि धारण की ।

🔹कालिदास व आर्यभट्ट जैसे विद्वान चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार की शोभा थे ।

हर्षवर्धन ( Harshvardhana )  ने 606 ई० से 647 ई० तक शासन किया ।

🔷 बाणभट्ट ( Banbhatta ) हर्ष के दरबारी कवि थे जिसने संस्कृत भाषा में सम्राट हर्ष की जीवनी ‘हर्षचरित’ ( Harshcharit ) की रचना की । बाणभट्ट की एक अन्य प्रमुख रचना ‘कादम्बरी’ ( Kadambari ) है ।

🔷 हर्षवर्धन स्वयं भी काव्य-रचना करता था । उसने नागानंद , प्रियदर्शिका व रत्नावली की रचना की ।

🔷 चीनी यात्री ह्यूनसांग ( Hieun Tsang ) उसके दरबार में रहा ।

🔷आरम्भ में हर्षवर्धन की राजधानी थानेसर थी उसका बहनोई कन्नौज का शासक था । जब बंगाल के शासक शशांक ( Shashank ) ने उसे मार दिया तो हर्ष ने कन्नौज को अपने अधीन कर लिया और बंगाल पर आक्रमण कर दिया ।

🔷 चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ( Pulkeshin ll ) ने नर्मदा नदी के तट पर उसे पराजित कर दिया । इस प्रकार नर्मदा नदी उसके साम्राज्य की दक्षिण सीमा बन गयी ।

◼️ इस काल में पल्लव व चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंश थे ।

🔷 पल्लवों की राजधानी ( Pallavon Ki Rajdhani ) कांचीपुरम ( Kanchipuram )  थी । उनका राज्य काँचीपुरम से कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला हुआ था ।

🔷 चालुक्यों की राजधानी ( Chalukyon Ki Rajdhani ) एहोल थी । चालुक्यों का राज्य कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों के बीच अवस्थित था ।

🔷 पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा था । उसके बारे में उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से पता चलता है ।

🔷 रविकीर्ति की प्रशस्ति से पता चलता है कि पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित किया । वह लिखता है कि ‘हर्ष अब हर्ष नहीं रहा ।’

🔷 पुल्लेशिन द्वितीय ने पल्लवों को भी पराजित किया । परंतु आपकी लड़ाई से दोनों राजवंश ( चालुक्य व पल्लव ) दुर्बल होते गए । पल्लवों व चालुक्यों को अंतत: राष्ट्रकूट और चालों ने पराजित कर सत्ताच्युत कर दिया ।

प्रशासन : भूमिकर उस समय आय का प्रमुख साधन था ।

🔷 महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पद आनुवांशिक थे । जैसे हरिषेण अपने पिता की तरह महादंडनायक  ( Mahadandnayaka ) (  मुख्य न्याय अधिकारी ) बन गया । कभी-कभी एक ही व्यक्ति कई पदों पर कार्य करता था । जैसे हरिषेण महादंडनायक होने के साथ-साथ कुमारामात्य ( Kumaramatya )  भी था । वह संधि-विग्रहिक ( Sandhivigrahk )  ( युद्ध व शांति का मंत्री ) भी था ।

🔷 उस काल में ‘सार्थवाह‘ व्यापारियों के क़ाफ़िले के नेता को , ‘प्रथम कुलिक‘ मुख्य शिल्पकार को तथा ‘श्रेष्ठी‘ मुख्य बैंकर के लिए प्रयुक्त होने वाली शब्दावली थी ।

◼️ सेना : सेनानायकों को नियमित वेतन नहीं मिलता था । उन्हें भूमि दी जाती थी जिससे वे कर वसूल करते थे । इस तरह के व्यक्ति ‘सामंत‘ कहलाते थे ।

🔷 सभाएँ : पल्लव काल में ब्राह्मण-भू-स्वामियों के संगठन को सभा कहते थे ।

🔹जिन इलाक़ों के भू-स्वामी ब्राह्मण नहीं थे वहाँ ‘उर‘ नामक ग्राम-सभा होती थी ।

🔹’नगरम‘ व्यापारियों का संगठन था ।

‘अभिज्ञानशाकुन्तलम’ कालिदास ( Kalidasa ) की प्रसिद्ध रचना है ।

🔷 चीनी यात्री फाह्यान / फ़ा-शिएन ने अछूत लोगों की दुरावस्था के विषय में लिखा है ।

◾लगभग 1400 साल पहले हज़रत मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की ।

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