आरंभिक नगर ( इतिहास, कक्षा-6 )( The Earliest Cities )

( ‘आरंभिक नगर’ NCERT की कक्षा -6 की इतिहास की पाठ्य पुस्तक ‘हमारे अतीत -1’ में संकलित है | इसमें हड़प्पा सभ्यता का विवरण है | )

आरंभिक नगर
आरंभिक नगर

     
◾आज से लगभग 4700 साल पहले भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में एक विकसित नागरिक सभ्यता का विकास हुआ जिसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है । सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता का पता सन 1921 में चला जब दयाराम साहनी ने हड़प्पा ( पाकिस्तान ) में खुदाई की ।

◾क्योंकि यह सभ्यता सिंधु नदी व उसकी सहायक नदियों के आसपास फली-फूली इसलिए इस सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है ।

◾सिंधु सभ्यता के काल ( Sindhu Sabhyata Ka Kaal ) को लेकर विद्वानों में मतभेद है । इसके काल विभाजन को लेकर सर्वमान्य मत है कि यह सभ्यता 2400 ई० पू० से 1700 ई० पू० तक विद्यमान थी । ( कार्बन-14 की काल-निर्धारण पद्धति के अनुसार )

◾सिंधु-घाटी की सभ्यता को प्रागैतिहासिक काल या कांस्य युग में भी रखा जा सकता है ।

मोहनजोदड़ो की खोज ( Mohenjo Daro Ki Khoj ) 1922 ई० में राख़ालदास बैनर्जी ने की । यह स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना ज़िले में सिंधु नदी के तट  पर स्थित है ।

◾यह सभ्यता अफागनिस्तान के कुछ भागों , पाकिस्तान के सिंध व पंजाब , भारत के जम्मू-कश्मीर , पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात और महाराष्ट्र तक फैली हुई थी ।

सिंधु सभ्यता का विस्तार ( Sindhu Sabhyata Ka Vistar ) — सिंधु सभ्यता की उत्तरी सीमा पर माँदा ( जम्मू-कश्मीर ), दक्षिणी सीमा पर दैमाबाद ( महाराष्ट्र ) , पूर्वी सीमा पर आलमगीरपुर ( उत्तर प्रदेश ) पश्चिमी सीमा पर सुतकाग़ेंडोर ( बलूचिस्तान ) था ।

हड़प्पा सभ्यता के मुख्य नगर ( Hadappa Sabhyata Ke Mukhya Nagar ) हड़प्पा , मोहनजोदड़ो , लोथल , धोलावीरा , कालीबंगा , बनावली , राखीगढ़ी , मीताथल व रोपड़ थे ।

हड़प्पा के नगर दो भागों में विभाजित थे । पश्चिमी हिस्सा कुछ ऊँचाई पर था जिसे नगर दुर्ग कहते थे तथा जो भाग नीचे था उसे निचला नगर कहते थे । दोनों हिस्सों की चारदीवारी पक्की ईंटों से बनी होती थी ।

◾मोहन जोदड़ो में एक विशाल तालाब मिला है जिसका प्रयोग संभवत: किसी धार्मिक अवसर पर सामूहिक स्नान के लिए किया जाता होगा ।

कालीबंगा ( राजस्थान ) और लोथल ( गुजरात ) में अग्निकुंड मिले हैं । इनका प्रयोग यज्ञ जैसी किसी धार्मिक क्रिया के लिये किया जाता होगा ।

◾हड़प्पा , मोहन जोदड़ो और लोथल में बड़े-बड़े भंडार-गृह मिले हैं ।

हड़प्पावासियों के घर : इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंज़िले होते थे । घर के आँगन के चारों ओर कमरे बनाये जाते थे । प्रायः सभी घरों में एक स्नानघर और एक रसोई घर होता था । कुछ घरों में कुएँ भी होते थे ।

◾सिंधु सभ्यता की सड़कें:- हड़प्पा काल में सड़कें चौड़ी होती थी और पक्की ईंटों से बनी होती थी । सड़क के दोनों और ईंटों से  ढकी पक्की नालियाँ होती थी ।

◾नगरीय जीवन :- हड़प्पा के नगरों में हलचल रहा करती थी । लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे । नगरों में प्रशासनिक अधिकारी , लिपिक , शिल्पकार व साधारण लोग रहते थे ।

◾हड़प्पा सभ्यता के बाट ‘चर्ट’ पत्थर के बने होते थे ।

◾हड़प्पा सभ्यता में मिले अनेक मनके ‘कार्निलियन’ पत्थर के बनाये गये थे ।

◾हड़पा सभ्यता के लोग तांबा, सोना , चाँदी और बहुमूल्य पत्थरों का आयात करते थे ।

तांबा राजस्थान व पश्चिमी-एशियाई देश ओमान से , सोना कर्नाटक से तथा बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात , ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था ।

◾हड़प्पा सभ्यता के लोग तांबे में टीन मिलाकर काँसे का निर्माण करने की कला में माहिर थे । टीन  का आयात अफगानिस्तान व ईरान से किया जाता था |

कृषि :- हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूँ , जौ , दालें , मटर , धान , तिल और सरसों का उत्पादन करते थे ।

🔹ये लोग गाय , भैंस , भेड़-बकरी  आदि पशु पालते थे ।

धौलावीरा :- कच्छ के इलाक़े में खादिर बेत के किनारे धौलावीरा नगर बसा था । यह नगर तीन भागों में बंटा था जबकि अन्य हड़प्पा क़ालीन नगर दो भागों में बंटे थे ।

◼️ लोथल :- खम्बात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती नदी की उपनदी ( भोगवा नदी ) के तट पर लोथल बसा था ।

🔹लोथल एक प्रसिद्ध बंदरगाह व गोदी-स्थल था ।

🔹यहाँ क़ीमती पत्थर मिलता था |

🔹यह पत्थरों , शंखों और धातुओं से बनायी गयी वस्तुओं का महत्त्वपूर्ण केंद्र था ।

🔹लोथल में एक भंडार-गृह भी मिला है । इस भंडार-गृह से कई मुद्राएँ और मुद्रांकन मिले हैं ।

🔹लोथल में एक ऐसी इमारत मिली है जहाँ संभवत: मनके बनाने का काम होता था । यहाँ पत्थर के टुकड़े , अधबने मनके , तैयार मनके और मनके बनाने के उपकरण मिले हैं ।

◾लगभग 3900 वर्ष पूर्व हड़प्पा सभ्यता का अंत ( Hadappa Sabhyata Ka Ant ) माना जाता है । जंगलों का विनाश , भूकम्प , बाढ़ , सूखा या महामारी इस सभ्यता के अंत का सम्भावित कारण माना जा सकता है ।

◾लगभग इसी समय ( सिंधु-सभ्यता के समकालीन ) 5000  साल पहले नील नदी के किनारे मिस्र की सभ्यता का उदय हुआ ।

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