पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

डॉक्टर जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे | उन्होंने संज्ञानात्मक विकास ( Cognitive Development ) का सिद्धांत दिया |

🔹 उसने स्वयं के बच्चों पर अध्ययन किया | जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते गए उनके मानसिक विकास का वे बारीकी से अध्ययन करते रहे |

🔹 उसने कहा कि बच्चों में बुद्धि का विकास उनके जन्म से जुड़ा हुआ है | जन्म के समय से ही बच्चा सहज क्रिया ( Reflex Actions ) करने लगता है | जैसे – चूसना, पीना, रोना, हंसना, देखना, वस्तुएं पकड़ना आदि |

🔹 उसने कहा कि सीखना यांत्रिक क्रिया ( Mechanical Process ) न होकर बौद्धिक क्रिया ( Intellectual Process ) है |

संज्ञानात्मक विकास के चरण ( Stages Of Cognitive Development )

  1. संवेदी प्रेरक अवस्था ( Sesory Motor Stage ) – जन्म से 2 वर्ष
  2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( Pre – Operational Stage) – 2 से 7 वर्ष
  3. मूर्त (प्रत्यक्ष ) संक्रियात्मक अवस्था ( Concrete Operational Stage ) – 7 से 11 वर्ष
  4. औपचारिक (अमूर्त ) संक्रियात्मक अवस्था ( Formal Operational Stage ) – 11 वर्ष से आगे
  1. संवेदी पेशीय / संवेदी प्रेरक अवस्था जन्म से 2 वर्ष तक ( Sensory Motor Stage )

🔹 यह अवस्था बालक में जन्म से लेकर लगभग 2 वर्ष तक की आयु में आती है |

🔹 इस अवस्था में बालक अपनी ज्ञानेंद्रियों के अनुभवों तथा उन पर पेशीय कार्य करके समझ विकसित करते हैं ; जैसे – छूना, पैर मारना, देखना आदि |

🔹 प्रारंभ में बच्चा सहज क्रिया ( Reflex Actions ) करता है ; जैसे – चूसना, पीना, रोना, हंसना, छूना, देखना, वस्तुएं पकड़ना, पैर मारना आदि | पियाजे ने इन्हें सहज सकीमा ( Innate Schema ) कहा है |

🔹 ज्ञानेंद्रियां व सहज क्रियाओं से बच्चा वस्तु, ध्वनि का अनुभव आदि करने लगता है |

🔹 इस अवस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि बालक द्वारा वस्तु स्थायित्व का संज्ञान होता है अर्थात बालक यह जान जाता है की घटनाएं एवं वस्तुएं तब भी उपस्थित रहते हैं जब वह हमारे सामने नहीं होती |

🔹 बालक स्वयं भविष्य में अंतर स्पष्ट कर पाने की स्थिति में आ जाता है |

2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( Pre – Operational Stage ) – 2 से 7 वर्ष तक

🔹 ज्यां पयाजे के अनुसार पूर्व /प्राक संक्रियात्मक अवस्था लगभग 2 वर्ष की आयु से 7 वर्ष की आयु के बीच आती है |

🔹 इस अवस्था को पियाजे ने पुन: दो भागों में विभक्त किया है : (क ) पूर्व सम्प्रत्यात्मक अवस्था ( Pre – Conceptional Period ) – 2 से 4 वर्ष तक, ( ख ) अन्तर्दर्शी अवस्था – 4 से 7 वर्ष तक

🔹 इस अवस्था में बालक वस्तु सामने ना होने पर भी उसकी मानसिक छवि बना लेते हैं |

🔹 आसपास की वस्तुओं ( सजीव-निर्जीव) में संबंध स्थापित करने लगता है |

🔹 बच्चा सोचता है कि सारी दुनिया उसी के इर्द-गिर्द है | इसे पियाजे ने Ego Centrism कहा है |

🔹 पियाजे ने इस अवस्था की दो परिसीमाएं बताई हैं – आत्मकेंद्रिता और जीववाद |

🔹 आत्मकेंद्रिता का तात्पर्य यह है कि बच्चा स्वयं के दृष्टिकोण व अन्य व्यक्ति के दृष्टिकोण में विभेद नहीं कर पाता |

🔹 जीववाद – यह भी पूर्व संक्रियात्मक अवस्था की एक सीमा है | इस अवस्था में बालक सभी वस्तुओं को सजीव समझता है | उसके अनुसार बादल, पंखा, कार, पेड़ आदि सभी सजीव होते हैं |

3. मूर्त या प्रत्यक्ष संक्रियात्मक अवस्था ( Concrete Operational Stage )

🔹 यह अवस्था लगभग 7 वर्ष की आयु से सेेेे 11 वर्ष की आयु के बीच आती है

🔹 इस अवस्था में बच्चा अपनी क्रियाओं का प्रदर्शन शुरू कर देता है |

🔹 मानसिक विकास के दृष्टिकोण से यह अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है |

🔹 इस अवस्था में बच्चा प्रारंभिक विद्यालय में जाना आरंभ कर देता है |

🔹 गणितीय अधिगम के दृष्टिकोण से यह अवस्था महत्वपूर्ण है क्योंकि इस अवस्था में बच्चा संख्या एवं परिमाण के दृष्टिकोण से आंकलन करने लगता है |

4. औपचारिक अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( Formal Operational Stage )

🔹 यह अवस्था लगभग 11 वर्ष की आयु से 18 वर्ष की आयु के बीच की अवस्था है |

🔹 इस अवस्था में बच्चा उच्च प्राथमिक विद्यालय में आ जाता है |

🔹 इस अवस्था में तार्किक क्षमता विकसित होने लगती है | बच्चा संकेतों, प्रतीकों और सूक्ष्म विचारों को समझने लगता है |

🔹 संज्ञानात्मक विकास होता है |

🔹 इस अवस्था में बच्चा जटिल गणितीय समस्याओं को हल करने लगता है |

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