सूफी काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Sufi Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan )

सूफी काव्य परंपरा एवं प्रवृत्तियां
( Sufi Kavya: Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtayen )

हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है : आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली प्रकार समझा जा सकता है :

अत: स्पष्ट है कि निर्गुण काव्य धारा में संत काव्य धारा व सूफी काव्य धारा आती है जबकि सगुण काव्य धारा में राम काव्य धारा व कृष्ण काव्य धारा आती है | सूफी काव्य परंपरा को प्रेमाश्रयी काव्यधारा भी कहा जाता है | सूफी कवि उदारवादी कवि थे जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया |

सूफी/प्रेमाश्रयी काव्य परंपरा 
( Sufi / Premashryi Kavya Parampara )

सूफी काव्य परंपरा ( Prem Aakhyanak Kavya Parampara ) को लेकर विद्वानों में मतभेद है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कुतुबन की ‘मृगावती’ को सूफी काव्य-परंपरा का प्रथम ग्रंथ माना है |  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ईश्वर दास द्वारा रचित ‘सत्यवती कथा’  को इस काव्य परंपरा का प्रथम ग्रंथ माना है | डॉ रामकुमार वर्मा मुल्ला दाऊद की ‘चंदायन’ को प्रथम सूफी  ग्रंथ मानते हैं |  आज अधिकांश विद्वान ‘चंदायन’ को ही सूफी काव्य परंपरा का प्रथम ग्रन्थ  स्वीकार करते हैं |
सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि – मुल्ला दाऊद, कुतुबन, मंझन,  शेख नबी, उसमान,  कासिम शाह, नूर मोहम्मद व जायसी |
मुल्ला दाऊद की प्रमुख रचना चंदायन (1379 ईस्वी)  है |  इसे सूफी काव्य परंपरा का प्रथम ग्रंथ माना जाता है |कुतुबन ने मृगावती (1501 ईo ) की रचना की | यह सूफी काव्य परंपरा का प्रथम प्रसिद्ध ग्रंथ है | मंझन की ‘मधुमालती’ व शेख नबी की ज्ञानदीप प्रमुख सूफी काव्य रचनाएं हैं |उसमान ने चित्रावली की रचना की | कासिम शाह की हंस जवाहिर वह नूर मोहम्मद की इंद्रावती भी प्रमुख सूफी काव्य कृतियां हैं | मलिक मोहम्मद जायसी सूफी काव्य परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | पद्मावत ( 1540 ईo )  इनका सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ है | यह ग्रंथ इनकी कीर्ति का आधार स्तंभ है | इनके द्वारा रचित अन्य प्रमुख ग्रंथ हैं – मसला नामा, कहरा नामा,  अखरावट, आखिरी कलाम आदि | हाल ही के शोध से पता चला है कि सूफी काव्य धारा के कवि केवल मुसलमान ही नहीं है बल्कि असंख्य हिंदू कवियों ने भी सूफी काव्य की रचना की |

सूफी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां / विशेषताएं 
( Sufi Kavya ki Pravrittiyan / Visheshtayen )

सूफी प्रेमाख्यान काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :
1️⃣ प्रबंध कल्पना : सूफी कवियों के काव्य की प्रमुख विशेषता इनकी प्रबंध कल्पना है |  इन्होंने लोक प्रचलित प्रेम कहानियों को अपने काव्य का आधार बनाया है | इन्होंने लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है | इन सभी प्रेम कथाओं में एक जैसी परिस्थितियां हैं लेकिन फिर भी कवियों ने नए पात्रों,  नए दृश्यों, नए प्रसंगों का प्रयोग करके अपनी-अपनी रचनाओं को रोचक बनाने का प्रयास किया है | इन सभी रचनाओं में अंतर कथाओं,  अप्सराओं, देवताओं तथा राक्षसों का वर्णन मिलता है | प्रत्येक काव्य में प्रेमी के समक्ष अनेक कठिनाइयां प्रस्तुत की जाती हैं जिनका वह दृढ़ता से सामना करता है | इन रचनाओं में प्रबंध काव्य की अनेक रूढ़ियां मिलती हैं |इन सभी रचनाओं में प्रायः एक जैसे सागर, तूफान, जंगल,  भवन और फुलवारियां है |अधिकांशतः वस्तु परिगणन शैली को अपनाया गया है जिससे इनमें नीरसता आ गई है |सभी सूफी काव्यों  में आरंभ में मंगलाचरण किया गया है तत्पश्चात हजरत मोहम्मद व उनके सहयोगियों की प्रशंसा की गई है |इसके बाद शाहेवक्त की प्रशंसा,  गुरु का परिचय आदि मिलता है | इन प्रबंध काव्यों में सुखांत व दुखांत दोनों प्रकार की कथाएं मिलती हैं |

2️⃣ भाव  व्यंजना : सूफी कवियों का प्रमुख विषय प्रेमानुभूति है | यही कारण है कि इन कवियों की रचनाओं  में श्रृंगार रस का सुंदर परिपाक हुआ है | इन कवियों ने श्रृंगार के संयोग-वियोग दोनों पक्षों का सुंदर चित्रण किया है |  संयोग की अपेक्षा वियोग में इन्हें अधिक सफलता हासिल हुई है  |विशेषत:  जायसी का पद्मावत महाकाव्य अपने विरह वर्णन के लिए विख्यात है | इस महाकाव्य में नागमती विरह वर्णन संपूर्ण हिंदी साहित्य में विरह वर्णन के लिए प्रसिद्ध है | पद्मावत में नागमती विरह वर्णन लौकिक है तो पद्मावती विरह वर्णन आध्यात्मिकता लिए हुए हैं | अधिकांश सूफी काव्य समासोक्तिमूलक हैं अर्थात इन कथाओं में लौकिक प्रेम के साथ-साथ अलौकिक प्रेम की व्यंजना भी मिलती है | सूफी प्रेम कहानियों का नायक मानव की आत्मा है और नायिका ईश्वर है | साधक के मार्ग की कठिनाइयां ही नायक के मार्ग की  कठिनाइयां हैं लेकिन कुछ सूफी काव्यों  में अलौकिक तत्व नहीं मिलता ; वह केवल लौकिक प्रेम की व्यंजना करती हैं |

3️⃣ चरित्र चित्रण : सूफी काव्य के सभी पात्र एक जैसे सांचे में ढले हुए हैं | सभी पात्र भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे हैं | इन पात्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है – ऐतिहासिक पात्र व काल्पनिक पात्र |  इन पात्रों का एक वर्गीकरण ऐसे भी किया जा सकता है मानवीय पात्र व मानवेतर पात्र | मानवीय पात्रों में राजा,  रानी,  मंत्री, सेनापति,  राजकुमार, राजकुमारी आदि पात्र आते हैं तो मानवेतर पात्रों में पशु-पक्षी, देवता, दानव परियां, जिन्न  आदि आते हैं | सभी कथाओं में नायक को पराक्रमी प्रेमी दिखाया गया है जबकि नायिका अद्वितीय सुंदरी,  सुकुमार व प्रेम रोग से ग्रस्त है | जो सूफी काव्य समासोक्तिमूलक  हैं  उन में पात्रों को प्रतीक रूप में देखा जा सकता है ;  जैसे नायक मानव की आत्मा का तथा नायिका ईश्वर का प्रतीक है |

4️⃣ प्रकृति वर्णन : सूफी कवियों ने प्रकृति वर्णन में विशेष रुचि दिखाई है | इन्होंने अपने काव्य में प्रकृति का दोनों रूपों में वर्णन किया है – आलम्बनगत व उद्दीपनगत | कहीं-कहीं प्रकृति का दूती रूप में मानवीकरण किया गया है |  इनके काव्य में आलम्बनगत  प्रकृति वर्णन में केवल वस्तु परिगणन शैली का प्रयोग मिलता है जिससे निरसता आ गई है |  इनका उद्दीपनगत प्रकृति वर्णन अधिक महत्वपूर्ण है | जायसी कृत पद्मावत में प्रकृति के उद्दीपनगत रूप का सुंदर वर्णन है | नागमती विरह वर्णन में प्रकृति के सभी अवयव मानो नागमती के विरह  से व्यथित हैं | संयोग काल में प्रकृति नायक-नायिका की कामवासना को उत्तेजित करती है तथा वियोगावस्था में प्रकृति विरह-व्यथा को और अधिक बढ़ा देती है |

5️⃣ लोक संस्कृति का वर्णन : सभी सूफी कवियों ने हिंदू संस्कृति व लोक जीवन का प्रभावशाली वर्णन किया है | इन सभी कवियों ने हिंदू प्रेम कथाओं को अपने काव्य का आधार बनाया है इसलिए इन काव्यों  में हिंदू परंपराओं, रीति-रिवाजों,  त्योहारों,  विवाह संस्कारों का वर्णन मिलता है | सूफी कवियों ने अपनी रचनाओं में हिंदू धर्म के विभिन्न कर्मकांडों  पर प्रकाश डाला है | इनसे स्पष्ट होता है कि सूफी कवि बड़े सरल,  उदार और मानवतावादी थे | बिना भेदभाव के उन्होंने सबको अपना प्यार वितरित किया | इन रचनाओं में हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से अनेक संस्कारों का उल्लेख मिलता है |

6️⃣  रहस्यानुभूति : रहस्यवाद सूफी कवियों की प्रमुख विशेषता रही है | सूफी कवियों ने आत्मा-परमात्मा के संबंधों को सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया है |इनके काव्य में रहस्यवाद प्रतीक रूप में अभिव्यक्त हुआ है | इन्होंने बाहर से देखने पर अ लौकिक प्रेम कथाओं का वर्णन किया है परंतु सूक्ष्म दृष्टि डालने पर हम पाते हैं कि इनमें अलौकिक तत्व भी मिलता है | इन कवियों ने मनुष्य, शैतान,  ईश्वर, पीर आदि को ध्यान में रखकर काव्य रचना की है | इनका रहस्यवाद संत कवियों के रहस्यवाद से जरा भिन्न है ||सूफी कवियों का रहस्यवाद भावात्मक कोटि में आता है जबकि संत कवियों का रहस्यवाद साधनात्मक कोटि में आता है | दूसरे सूफियों के रहस्यवाद में प्रेम की अधिक चर्चा है |  इन कवियों ने लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है |

7️⃣ शैतान और गुरु का महत्व : जहां संत कवियों ने गुरु के महत्व की  चर्चा की है वही सूफी कवियों ने गुरु के साथ-साथ शैतान की भी चर्चा की है | शैतान का काम है साधक के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करना तथा गुरु का काम है उन बाधाओं को दूर करना और साधक को पुनः भक्ति के मार्ग पर वापस लाना | उदाहरण के रूप में ‘पद्मावत’ में राघव चेतन शैतान का प्रतीक है और हीरामन तोता गुरु का प्रतीक है |

8️⃣ प्रतीक योजना : प्रतीक योजना भी सूफी काव्य की प्रमुख विशेषता है | क्योंकि इन कवियों ने लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है ; अतः प्रतीक योजना अवश्यंभावी हो जाती है | इन प्रतीकों के माध्यम से ही सूफी कवियों की रहस्यानुभूति प्रकट होती है | जायसी की पद्मावत,  उसमान की चित्रावली व कासिम शाह की हंस जवाहिर आदि सभी सूफी रचनाओं में प्रतीकों का सुंदर प्रयोग मिलता है |  इन सभी काव्यों  में समासोक्ति है |  पात्रों को भी प्रतीक रूप में प्रयोग किया गया है ; जैसे पद्मावत में रतन सिंह आत्मा का प्रतीक है तथा पद्मावती परमात्मा का प्रतीक है | राघव चेतन शैतान का तथा हीरामन तोता गुरु का प्रतीक है | पद्मावती के नख शिख वर्णन में भी अलौकिक आभा के दर्शन मिलते हैं |

9️⃣ कला पक्ष : प्रायः सभी सूफी कवियों ने अवधी भाषा का प्रयोग किया है|  जायसी की भाषा तो ठेठ अवधी  कही जा सकती है | उसमान की भाषा पर भोजपुरी का प्रभाव है | नूर मोहम्मद ने कुछ स्थानों पर ब्रज भाषा का प्रयोग भी किया है | कुल मिलाकर इनकी भाषा सरल,  सहज व स्वाभाविक है | इनकी भाषा में राजस्थानी,  अरबी, फारसी के शब्दों का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है |
अलंकारों का सुंदर प्रयोग उनके काव्य में मिलता है | रूपक, उपमा,  उत्प्रेक्षा आदि इनके प्रिय अलंकार हैं |
छंदों के दृष्टिकोण से दोहा,  चौपाई छंदों की प्रधानता है |
सूफी कवियों ने मसनवी शैली का प्रयोग किया है | मसनवी शैली को समझे बिना उनके कार्यों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता |
कथातत्व की प्रधानता होने के कारण इन कवियों ने इतिवृतात्मक शैली का प्रयोग किया है जिससे कहीं-कहीं निरसता आ गई है |

◼️  समग्रत: अपनी प्रबंध योजना, सरसता,  रोचकता के कारण  सूफी काव्य अपने आप में बेजोड़ है |सूफी काव्य की सबसे बड़ी उपलब्धि मुस्लिम समाज की कट्टरपंथी सोच में परिवर्तन लाना व हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव को बढ़ावा देना है | अपनी अलग शैली से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में सूफी साहित्य का अपना विशेष महत्व है |

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