हिंदी नाटक का विकास ( संक्षिप्त )

भारत में नाटक लेखन की परंपरा बहुत पुरानी है | कालिदास द्वारा लिखित नाटक विश्व के श्रेष्ठ नाटकों में शामिल किये जाते हैं | कालिदास द्वारा रचित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ नाटक का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है | लेकिन हिंदी नाटक का इतिहास बहुत अधिक पुराना नहीं है |

हिंदी नाटक का उद्भव

हिंदी में नाटक लेखन की परंपरा का आरम्भ कब से हुआ है तथा हिंदी का पहला नाटक कौन सा है , इस बात को लेकर विद्वानों में मतभेद है | दशरथ ओझा हिंदी नाटक का आरंभ 13वीं सदी से स्वीकार करते हैं तथा गाय सुकुमार रास को हिंदी का पहला नाटक मानते हैं | परंतु हिंदी नाटक का वास्तविक विकास 19वीं सदी में हुआ | पारसी रंगमंच के प्रभाव से बांग्ला में अनेक नाटकों की रचना हुई | इन नाटकों की लोकप्रियता से हिंदी में भी नाटक रचे जाने लगे | विद्यापति द्वारा मैथिली भाषा में लिखा गया गोरक्षनाथ तथा प्राणचंद चौहान का रामायण महानाटक प्रमुख नाटक हैं | लेकिन विद्वान इनमें नाटक के सभी तत्व नहीं मानते | भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने पिता गोपाल चंद्र गिरिधरदास द्वारा लिखे गए नहुष नाटक को हिंदी का पहला नाटक स्वीकार किया है | यह नाटक ब्रज भाषा में लिखा गया है | इसे ही अधिकांश विद्वान हिंदी का पहला नाटक मानते हैं |

हिंदी नाटक का विकास

वास्तविक अर्थ में हिंदी नाटक का आरंभ भारतेंदु युग से हुआ | भारतेंदु युग की शुरुआत 1850 ईस्वी से मानी जाती है | हिंदी नाटक के विकास को मुख्यतः चार भागों में बांटा जा सकता है :

(1) भारतेंदु युग
(2) प्रसाद युग
(3) प्रसादोत्तर युग
(4) स्वतन्त्र्योत्तर युग

(1) भारतेन्दु युग

सही अर्थों में भारतेंदु ने ही हिंदी नाटक की विकास परंपरा का आरंभ किया | उन्होंने 1861 में विद्या सुंदर नामक नाटक लिखा जो एक बांग्ला नाटक का अनुवाद था | उन्होंने अनुदित और मौलिक दोनों प्रकार के नाटक लिखे |

मौलिक नाटक – भारत-दुर्दशा, अंधेर नगरी, चंद्रावली, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति है आदि |

अनूदित नाटक – विद्या सुंदर, रत्नावली, मुद्राराक्षस आदि |

भारतेंदु युग के अन्य प्रमुख नाटककारों में बालकृष्ण भट्ट, राधाकृष्णन दास, लाला श्रीनिवास दास, बद्रीनाथ आदि का नाम लिया जा सकता है |

बालकृष्ण भट्ट का दमयंती स्वयंवर तथा लाला श्रीनिवास दास का रणधीर प्रेम मोहिनी इस युग के प्रमुख नाटक हैं |

इस युग के नाटकों में भारतीय समाज की कुरीतियों तथा समस्याओं का चित्रण किया गया है | तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों की झलक भी इस युग के नाटकों में मिलती है |

(2) प्रसाद युग

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी नाटक विधा को नए आयाम प्रदान किए | उन्होंने मुख्यत: ऐतिहासिक नाटक लिखे | राज्य श्री, एक घूँट, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी आदि उनके प्रमुख नाटक हैं |

उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है | उनके नाटक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैं |

उदय शंकर भट्ट, रामनरेश त्रिपाठी, वृंदावन लाल वर्मा, लक्ष्मी नारायण मिश्र, प्रेमचंद तथा हरि कृष्ण प्रेमी आदि इस युग के अन्य प्रमुख नाटककार हैं |

इस युग के नाटककारों में विषय वस्तु के दृष्टिकोण से विविधता नजर आती है | जहां वृंदावन लाल वर्मा ने प्रसाद की भांति ऐतिहासिक नाटक लिखे वहीं उदय शंकर भट्ट, प्रेमचंद और हरि कृष्ण प्रेमी के नाटकों में सामाजिक समस्याओं का चित्रण है | इस युग में गीतिनाट्य तथा व्यंग नाटक भी लिखे गए |

(3) प्रसादोत्तर युग

इस युग में जयशंकर प्रसाद की मृत्यु के पश्चात सन 1938 से 1950 ईस्वी तक के नाटकों को शामिल किया जा सकता है | इस युग में हिंदी नाटक में विषय वस्तु व शिल्प की दृष्टि से अनेक परिवर्तन हुए |

इस युग में मुख्यतः ऐतिहासिक नाटक, सांस्कृतिक-सामाजिक नाटक, राजनीतिक नाटक व समस्या प्रधान नाटक लिखे गए |

ऐतिहासिक नाटकों में मुस्लिम, राजपूत व मराठा वीर इतिहास-पुरुषों के जीवन की मुख्य घटनाओं का वर्णन मिलता है | उपेंद्रनाथ अश्क का जय पराजय इस युग का प्रमुख ऐतिहासिक नाटक है |

उपेंद्रनाथ अश्क के स्वर्ग की झलक, कैद, उड़ान आदि सामाजिक नाटकों की श्रेणी में आते हैं | इस युग के नाटकों में मुख्य रूप से नारी शिक्षा, बेमेल विवाह, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह तथा पारिवारिक समस्याओं को उठाया गया है |

(4) स्वतन्त्र्योत्तर युग

सन 1950 के बाद के काल में हिंदी नाटक में अनेक बदलाव देखने को मिले | इस युग में एक ओर जहाँ स्वतंत्रता का उल्लास और नई आशाएँ थी वहीं दूसरी ओर विभाजन और सांप्रदायिक दंगों की त्रासदी भी थी | 1950 के दशक के नाटक स्वतंत्रता और विभाजन विषयों पर आधारित रहे | 1960-70 और 80 के नाटकों में मध्यम वर्ग की समस्याएँ जैसे महंगाई, बेरोजगारी, बदलती जीवन शैली का वर्णन किया गया | यह प्रवृत्ति 21वीं सदी में भी देखी जा सकती है | राजनीतिक व्यंग्य भी इस युग की प्रमुख प्रवृत्ति है | पौराणिक कहानियों पर आधारित नाटकों के माध्यम से भी वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों को उजागर किया गया है |

इस युग के प्रमुख नाटककारों में डॉ रांगेय राघव, मोहन राकेश, जगदीश चंद्र माथुर, लक्ष्मी नारायण लाल, भीष्म साहनी, सुरेन्द्र वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि का नाम लिया जा सकता है |

इस युग के नाटक आधुनिक बोध के नाटक हैं |

यह भी पढ़ें

हिंदी नाटक : उद्भव एवं विकास ( Hindi Natak : Udbhav Evam Vikas )

हिंदी कहानी : उद्भव एवं विकास ( Hindi Kahani : Udbhav Evam Vikas )

हिंदी उपन्यास : उद्भव एवं विकास ( Hindi Upanyas : Udbhav Evam Vikas )

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास ( Hindi Patrakarita Ka Udbhav Evam Vikas )

Leave a Comment